Thursday, July 30, 2020

रिजल्ट से आगे का रास्ता

                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...

सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड की दसवीं और बारहवीं क्लास के रिजल्ट्स आ गए हैं और साथ ही स्टेट बोर्ड द्वारा इन कक्षाओं के लिए आयोजित परीक्षाओं के भी. कोरोना वैश्विक महामारी के कारण इस बार विद्यार्थियों, अभिभावकों, स्कूल प्रबंधनों तथा परीक्षा आयोजित करनेवाले  विभिन्न  बोर्ड प्रशासनों को असमान्य स्थिति से गुजरना पड़ा. स्थिति सामान्य होने की प्रतीक्षा भी की  गई, लेकिन लम्बे लॉकडाउन के कारण कुछ विषयों की परीक्षा नहीं ली जा सकी. इसके कारण   कुछ विषयों में एवरेज  मार्किंग की मानक व्यवस्था अपनाई गई और रिजल्ट की घोषणा हुई.  बारहवीं क्लास के रिजल्ट्स में बिलंव के कारण जेईई और नीट के परीक्षाएं भी आगे खिसकाई गयीं. जो भी हो, थोड़ी देर से ही सही बिलकुल ही असामान्य एवं विकट परिस्थिति में जिस तरह सब चीजों को सम्हालते हुए परिणाम तक पहुंचने की समेकित कोशिश की गई, उसके लिए सभी संबंधित पक्ष तारीफ़ के हकदार हैं.

 
अब जब कि रिजल्ट आ गया है तो विद्यार्थियों के लिए कुछ बातों पर गंभीरता से सोच-विचार करना जरुरी है.
पहली बात तो यह कि रिजल्ट अच्छा या कम अच्छा जैसा भी आया है, उसे मन से स्वीकार करें. अगर रीचेकिंग या इम्प्रूवमेंट का प्रावधान या व्यवस्था है, तो उसका उपयोग करें. अगर मार्क्स सुधरते हैं तो बोनस के रूप में अतिरिक्त ख़ुशी के हकदार बनेंगे. फिलहाल, रिजल्ट जो भी है उसी के अनुसार आगे की कार्ययोजना बनाएं. किसी भी स्थिति में निराश और हताश  होने की बिलकुल जरुरत नहीं है. जो हो गया, सो हो गया. आज और आगे जीवन में जो छोटी-बड़ी परीक्षाएं और चुनौतियां आयेंगी, उसके लिए खुद को बेहतर ढंग से तैयार करने पर फोकस करें. किस दोस्त या सहपाठी को कितने मार्क्स आए, इसको जानने और इसकी विवेचना-आलोचना   से आपके मार्क्स तो इम्प्रूव नहीं होंगे, उलटे समय की बर्बादी होगी और नेगेटिव थॉट्स में वृद्धि. अतः इससे बचें. इस समय बस शांति और संयम से खुद को रीऑर्गनाइज करें. आपका जीवन और आज का समय दोनों बहुत मूल्यवान हैं. इसे हमेशा याद रखें. कई मामलों में आगे के पांच-सात साल आपके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होंगे. अतः बड़ी सजगता से अपनी रूचि और क्षमता को ध्यान में रखकर कोर्स, कैरियर और संस्थान का चयन करें. जल्दबाजी या देखादेखी में पड़ना बहुत हानिकारक साबित हो सकता है. बाद में पछताने के बजाय अभी थोड़ा ज्यादा समय  लगाएं. अभिभावक व शिक्षकों से भी परामर्श करें. सभी एंगल से सोच-समझ कर ही निर्णय लें.  


सामान्यतः दसवीं की परीक्षा पास करनेवाले अधिकतर छात्र-छात्राएं प्लस टू या बारहवीं या  इंटर में एडमिशन लेते हैं.
ऐसे उनके लिए अन्य अनेक विकल्प भी है. हां, कुछ विद्यार्थी प्रोफेशनल कोर्स की दिशा में आगे बढ़ते हैं. यहां बहुत सारे कोर्स उपलब्ध हैं. डिप्लोमा इन फाइन आर्ट्स से लेकर डिप्लोमा इन फैशन डिजाइन तक कई कोर्स हैं, जिनका जॉब बाजार में काफी डिमांड है. दसवीं पास विद्यार्थी इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर सकते हैं. इसके लिए दसवीं में गणित और विज्ञान विषय होना चाहिए. यह डिप्लोमा कोर्स तीन साल के होते हैं. इसमें  डिप्लोमा इन इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से लेकर डिप्लोमा इन पेट्रोलियम इंजीनियरिंग तक कई कोर्स हैं. आईटीआई और स्किल डेवलपमेंट मिशन नियमित रूप से  अनेक जॉब ओरिएंटेड कोर्स करवाते हैं, जिससे नौकरी या स्वरोजगार के अनेक अवसर मिल जाते हैं. चिकित्सा क्षेत्र में भी ऐसे कई शार्ट टर्म कोर्स हैं. 


बारहवीं पास विद्यार्थियों के लिए भी पारंपरिक कोर्स के साथ-साथ जॉब ओरिएंटेड प्रोफेशनल या स्किल डेवलपमेंट कैरियर में अनेक रास्ते खुले हैं.
पारंपरिक कोर्स की बात करें कि तो अनेक  विद्यार्थी बीएससी, बीए और बीकॉम में एडमिशन लेते हैं. इंजीनियरिंग में रूचि रखनेवाले विद्यार्थियों के लिए आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन, कंप्यूटर साइंस, मैकेनिकल व सिविल इंजीनियरिंग जैसे सदाबहार पाठ्यक्रम तो हैं ही. इनके अलावे भी ट्रेड एंड इंडस्ट्री के बदलती जरूरतों के मद्देनजर कई नए कोर्स उपलब्ध हैं. साइंस स्ट्रीम में बायोलॉजी लेकर पढ़नेवालों के लिए एमबीबीएस सहित मेडिकल साइंस से जुड़े ग्रेजुएशन के अन्य पाठ्यक्रम सुलभ हैं. माइक्रोबायोलॉजी, जेनेटिक्स आदि के कोर्स के अलावे फिजियोथेरेपी, आहार विज्ञान आदि पाठ्यक्रम भी इन दिनों छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय विकल्प के रूप में मौजूद हैं. उसी तरह आर्ट्स और कॉमर्स के विद्यार्थियों के लिए भी बहुत सारे कोर्स का विकल्प है. शार्ट टर्म के अनेक डिप्लोमा कोर्सेज तो उपलब्ध हैं ही. बस "जहां चाह, वहां राह" के दर्शन पर दृढ़ता से अमल करते चलें.   (hellomilansinha@gmail.com) 

   


                       और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं. 
#  लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" में 26.07.20 को प्रकाशित

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Monday, July 27, 2020

सहयोग से सब संभव

                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...

आप सबने 1957 में आई चर्चित हिन्दी फिल्म "नया दौर" का यह लोकप्रिय गाना तो सुना ही होगा जिसके बोल हैं - "साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना, साथी हाथ बढ़ाना...." यहां हाथ बढ़ाने का अर्थ सहयोग करने से है.  वैश्विक महामारी के इस कठिनतम दौर में आपसी सहयोग का अतिशय महत्व है. इसके बिना  इस समय देश के करोड़ों लोगों को भूख और बीमारी से बचाकर रखना बहुत मुश्किल है. इसमें बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं भी शामिल हैं. सोशल डीस्टेंसिंग के साथ-साथ इमोशनल क्लोजनेस बनाए रखने में भी आपसी सहयोग की अहम भूमिका है, जिसका आग्रह देश के प्रधानमंत्री बारबार कर रहे हैं. जाहिर है, इस समय उन छात्र-छात्राओं का रोल कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो जाता है, जो अपेक्षाकृत समृद्ध और सुरक्षित हैं. 


सच तो यह है कि उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के इस युग  में व्यक्ति, परिवार, समाज या देश सबको  - चाहे वह कितना भी उन्नत और सम्पन्न क्यों न हो,  किसी-न-किसी बात के लिए एक दूसरे के सहयोग की जरुरत होती ही है. सूचनाओं का आदान-प्रदान हो, आयात-निर्यात की बात हो, सुख-दुःख में भावनात्मक रूप से एक दूसरे  के साथ खड़े रहने का सवाल हो या अन्य कोई समस्या, सहयोग अपना कमाल दिखाता है. पूरे विश्व को अपना कुटुंब माननेवाली भारतीय संस्कृति तो आपसी सहयोग से समाधान तक पहुंचने की विशाल गाथा है. दरअसल आपसी सहयोग सबके विकास और कल्याण के लिए एक अनिवार्य शर्त है. 
 
सहयोग की भावना हर व्यक्ति में होती है, कम या ज्यादा. छात्र जीवन तो सहयोग का पाठ पढ़ने और उसे जीवन में अमल में लाने का बड़ा समय होता है. क्लास रूम से लेकर खेल के मैदान तक आपसी सहयोग की भावना से समस्या से आगे सफलता तक पहुंचना जारी रहता है. स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले अनेक विद्यार्थी आर्थिक रूप  से कमजोर वर्ग से आते हैं. इनको सरकार के अलावे परिजनों, सामाजिक संगठनों, मित्रों एवं सहपाठियों से सहयोग न मिले तो इनके लिए अध्ययन जारी रखना कितना मुश्किल होगा, यह हम सब जानते हैं. ऐसे भी हर विद्यार्थी के जीवन में ऐसा वक्त आता है जब उसे छोटे-बड़े आर्थिक सहयोग लेने या प्रदान करने की जरुरत होती है. विचारणीय सवाल है कि अगर हमें किसी साथी-सहपाठी-पड़ोसी का सहयोग करने का कोई अवसर मिलता है और हम वह करने में सक्षम हैं तो क्या हमें बिना ज्यादा सोच-विचार किए उस अवसर का उपयोग नहीं करना चाहिए? अगर हम आज किसी के साथ सहयोग करते हैं तभी तो हम आगे कभी किसी से सहयोग की अपेक्षा कर सकते हैं. 


हां, सहयोग का दायरा केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं होता. इसका दायरा बहुत व्यापक है. इसके अनेक अन्य आयाम हैं.  विद्यार्थी जीवन में चुनौती और समस्या आती रहती है. पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो प्रत्येक क्लास में  किसी विद्यार्थी को कोई विषय या चैप्टर बड़ा कठिन लगता है तो कोई दूसरा विषय बड़ा आसान. किसी दूसरे विद्यार्थी के मामले में इसका उल्टा  हो सकता है. मसलन, अगर पहले विद्यार्थी को अर्थशास्त्र कठिन लगता है और भूगोल आसान तो दूसरे विद्यार्थी को अर्थशास्त्र आसान और भूगोल कठिन लग सकता है.  ऐसी स्थिति में  दोनों विद्यार्थी एक दूसरे को कठिन लगने वाले विषय को समझने में सहयोग करे तो दोनों विद्यार्थी को कम या ज्यादा लाभ होता है. अव्वल तो दोनों को कठिन लगनेवाले विषय अब  थोड़ा आसान लगते हैं, समझानेवाले दोनों विद्यार्थियों का अच्छा रिवीजन हो जाता है,  ट्यूशन या कोचिंग की जरुरत नहीं होती, पैसे और समय की बचत होती है  और दोनों के बीच आपसी रिश्ता भी मजबूत होता है. प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में लगे कई विद्यार्थी जो कंबाइंड स्टडी करते हैं, वे इस तरीके से कम समय में सभी विषयों पर अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब होते हैं. जरा सोचिए, सहयोग की भावना से प्रेरित होकर आईआईटी की प्रतियोगिता परीक्षा में अगर तीन विद्यार्थी तीन विषयों फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स का अध्ययन साथ मिलकर करें, तो अपेक्षाकृत कम संसाधन और समय के बावजूद उन सबके लिए  विषयों की बेहतर समझ तो आसान हो ही जाएगी. 


ऐसे अनगिनत उदाहरण दिए जा सकते हैं जिसमें सहयोग के प्रति छात्र-छात्राओं का स्वाभाविक भाव परिलक्षित होता है. यह सदा लाभकारी साबित होता है. सच कहें तो  विद्यार्थियों में सहयोग भाव की मजबूत बुनियाद भविष्य में जीवन के हर मोड़ पर उन्हें चुनौतियों  से सफलतापूर्वक निबटने  में बहुत सहायता करता है. इससे देश-समाज को बेहतर बनाने में भी बड़ी मदद मिलती है. 

 (hellomilansinha@gmail.com)  

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 26.04.2020 अंक में प्रकाशित
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Friday, July 24, 2020

आर्डिनरी बनाम एक्स्ट्रा-आर्डिनरी

                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...

स्कूल-कॉलेज हो या अन्य शिक्षण-प्रशिक्षण स्थल हर स्थान पर आर्डिनरी और एक्स्ट्रा-आर्डिनरी की चर्चा से  सभी वाकिफ हैं. ये दो अलग शब्द हैं और इसका उपयोग दो अलग सेट ऑफ़ स्टूडेंट्स के लिए किया जाता है. छात्र जीवन में साल के अंत में प्राप्त प्रोग्रेस रिपोर्ट में किसी को एवरेज या आर्डिनरी और किसी को एक्सीलेंट या एक्स्ट्रा-आर्डिनरी लिखा मिलता है. यह कम-से-कम उस साल के लिए उस विद्यार्थी का मूल्यांकन रिपोर्ट होता है. इन दो शब्दों से फौरी तौर पर हर विद्यार्थी का मूल्यांकन हो जाता है और इसका प्रभाव एडमिशन, अपॉइंटमेंट, प्रमोशन आदि पर साफ़ देखा जा सकता है. 


जमैका के विश्व प्रसिद्ध धावक उसैन बोल्ट की चर्चा समीचीन होगी. अनेक अवरोधों और चुनौतियों के बावजूद बोल्ट ने 2008, 2012 और 2016 के तीन ओलिंपिक खेलों में 100 मीटर  और  200 मीटर के दौड़ में न केवल प्रथम स्थान हासिल किया, बल्कि ऐसा कीर्तिमान स्थापित करनेवाले वे विश्व के पहले धावक बने. ओलिंपिक मैच में जहां पूरी दुनिया के देशों से धावक पूरी तैयारी के साथ आते हैं, वहां लगातार तीन बार अभूतपूर्व प्रदर्शन दर्ज करना निश्चित रूप से एक्स्ट्रा-आर्डिनरी अचीवमेंट है. न जाने कितनी और काबिले तारीफ़ अचीवमेंट उनके नाम दर्ज हैं. उनके इन उपलब्धियों के लिए लोग उन्हें प्यार से "लाइटनिंग बोल्ट" के नाम से पुकारते हैं. 


जीवन के हर क्षेत्र में - विज्ञान, खेलकूद, संगीत, समाज सेवा आदि,  सुपर एचीवर थे, हैं और रहेंगे. कहने की जरुरत नहीं कि ये सब अपने-अपने तरीके से अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोत्तम स्थान हासिल करते हैं. उनसे  प्रेरणा लेकर छात्र-छात्राएं भी कुछ ऐसा असाधारण परफॉरमेंस दर्ज करने के लायक बन सकते हैं जिससे उन्हें भी एक्स्ट्रा-आर्डिनरी के रूप में ख्याति और पहचान मिल सके.
यकीनन इसके लिए जरुरी यह है कि विद्यार्थीगण उनके इन एक्स्ट्रा-आर्डिनरी उपलब्धियों के पीछे की सच्ची कहानी तथा कारणों को जाने-समझे और यथासंभव अपने जीवन में उतारने  का प्रयास  करें. आइए, तीन अलग-अलग कार्य क्षेत्रों के तीन विभूतियों की संक्षिप्त चर्चा करते हैं.

 
विज्ञान के क्षेत्र से एक मिसाल लें तो हाल के दशक में ब्रिटिश थ्योरीटिकल भौतिक शास्त्री  स्टेफन विलियम हाकिंग याद आते हैं. शारीरिक रूप से लगभग दिव्यांग इस विलक्षण वैज्ञानिक की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है. 21 साल की उम्र में एक बिमारी से ग्रस्त होने के कारण वे धीरे-धीरे शारीरिक अपंगता के शिकार हो गए और बाद के 53 साल व्हील-चेयर पर गुजारे. बावजूद इसके, जीने की प्रबल इच्छा और रिसर्च के प्रति उनके जुनून के बदौलत उन्होंने  49 साल और बहुत महत्वपूर्ण रिसर्च वर्क  किया जब कि उनके डॉक्टरों ने उनके मात्र दो साल जीवित रहने का अनुमान लगाया था.

 
उसी तरह जर्मनी में जन्में
महान संगीतज्ञ और कंपोजर  लुडविग वान बीथोवेन के अचीवमेंट को क्या कहेंगे? 30 साल की उम्र के आसपास उन्हें सुनने की समस्या होने लगी और बाद में वे पूरी तरह बहरे हो गए. लेकिन कुछ एक्स्ट्रा-आर्डिनरी करने का जज्बा इतना स्ट्रांग था कि उन्होंने अगले करीब ढाई दशक तक जो कुछ कंपोज़ किया वह अकल्पनीय था. क्या यह सब उस छोटे से शब्द एक्स्ट्रा के योगदान के बिना संभव हो पाता?


जरा अपने
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के विषय में भी जान लेते हैं. अपने पिता के इच्छानुसार वे ब्रिटिश शासन काल की सबसे मुश्किल इंडियन सिविल सर्विस प्रतियोगिता में शामिल हुए. पर  उस कठिन कम्पटीशन में चौथा स्थान हासिल करने और आईसीएस के लिए सेलेक्ट होने के बाद भी देश भक्ति की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने उससे त्यागपत्र दे दिया और स्वतंत्रता  आन्दोलन में शामिल हो गए. जरा सोचिए, किस तरह नेता जी ने देश के बाहर रहकर आजाद हिन्द फ़ौज का उत्कृष्ट नेतृत्व और संचालन किया, जिससे ब्रिटिश शासन बहुत परेशान हो उठा. उनके फ़ौज में चालीस हजार से ज्यादा सैनिक देश को आजाद करने के लिए संकल्पित थे, जिसमें रानी झांसी रेजिमेंट के नाम से महिला सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी भी शामिल थी. 


विख्यात अमेरिकी फुटबॉल कोच और उदघोषक जिमी जॉनसन ने एक बार आर्डिनरी और एक्स्ट्रा-आर्डिनरी के बीच के फर्क को समझाते हुए कहा था कि यह फर्क दोनों शब्दों के बीच के एक्स्ट्रा शब्द का है. उनके कहने का आशय यह था कि शब्द एक्स्ट्रा की व्याख्या करें तो यह आपके लक्ष्य निर्धारण, आपका संकल्प, समर्पण, उत्साह और संयम, आपकी प्लानिंग, मेहनत और एकाग्रता, आपका नियमित अभ्यास और फिटनेस आदि के साथ-साथ आपका यह जुनून कि आप रोज अपने ही रिकॉर्ड को कैसे बेहतर बनाते जाते हैं, पर निर्भर करता है.   

 (hellomilansinha@gmail.com)

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 19.04.2020 अंक में प्रकाशित
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Monday, July 20, 2020

जिम्मेदारी एवं समझदारी

                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...

हमारे देश में 18 साल के युवाओं को मतदान का अधिकार दिया जाता है, जिससे कि वे समाज व  देश हित के काम के लिए अपने प्रतिनिधि चुनने में अपने वोट का उपयोग कर सकें. इस अधिकार के मिलने के साथ ही उनके कंधे पर कई जिम्मेदारी स्वतः आन पड़ती है. ऐसे, किशोरावस्था से ही स्वयं कुछ करने की ललक हर लड़का-लड़की में दिखने लगती है. सभी अभिभावक चाहे-अनचाहे उन्हें छोटी-छोटी जिम्मेदारी देने और उन्हें परखने में पीछे नहीं रहते. सब  जानते हैं कि जिम्मेदारी और समझदारी के बीच गहरा रिश्ता होता है. समझदारी से जिम्मेदारी का निर्वहन  हुआ तो लाभ  ही लाभ, अन्यथा हानि. हां, जिम्मेदारी लेने का अर्थ बड़ा व्यापक है. यह एक समग्र भाव है, जिसके अनेक लाभ हैं. स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "खड़े हो जाओ, खुद में हिम्मत लाओ और सारी जिम्मेदारी के लिए खुद जिम्मेदार बनो, तब आप खुद अपने भाग्य के रचियता बन सकते हो."


कहते हैं कि जिस क्षण कोई विद्यार्थी अपने जीवन में हर काम की जिम्मेदारी लेना प्रारंभ करता है, उस क्षण से ही वह एक नए संकल्प और सकारात्मक सोच के साथ चल पड़ता है. रोचक बात है कि जिम्मेदारी देने के मामले में जहां विश्वास की भावना होती है वहीँ  जिम्मेदारी लेने के मामले में आत्मविश्वास की भावना. और जिम्मेदारी के सफल निर्वहन के साथ विश्वास और आत्मविश्वास दोनों भावनाएं सुदृढ़ होती है. सामान्यतः विद्यार्थी जीवन  के उतरार्द्ध में हरेक को जिम्मेदारी लेने और उसे निभाने का मौका मिलने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो कई बार जीवन के अंतिम दिन तक चलता रहता है. ज्ञानीजन कहते हैं कि जिम्मेदारी लेने और निभानेवाले  कभी हारते नहीं हैं. वे या तो जीतते हैं या फिर इस प्रक्रिया में बहुत कुछ सीखते हैं.


खुद के प्रति जिम्मेदारी बहुत अहम  है. इस जिम्मेदारी के तहत हर विद्यार्थी के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और शक्तिशाली बनना और बने रहना बहुत जरुरी है. इसके लिए खुद को अच्छाई से जोड़ते जाना - शिक्षा, स्वास्थ्य, आचार, विचार आदि सभी मामलों में, अनिवार्य हो जाता है. खुद के प्रति जिम्मेदारी निभाने के इन कार्यों को उपासना के माफिक पूरी आस्था और निष्ठा से करना पड़ता है. इसमें सफल होने या इस तरह काम करने की आदत हो जाने पर छात्र-छात्राएं बड़ी जिम्मेदारी के योग्य बनते जाते हैं. तभी तो आगे चलकर वे इंडस्ट्री, ट्रेड, बिज़नेस, नौकरी या अन्य किसी भी क्षेत्र में जिम्मेदारी के पदों को सुशोभित करते हैं. सब जानते हैं कि जितना बड़ा पद होता है, उसकी उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी होती है और उतनी ही ज्यादा व्यस्तता होती है उस पदासीन व्यक्ति की. इसके बावजूद हर विद्यार्थी की तमन्ना होती है ऐसे पद के लायक बनने की, क्यों कि बड़ी जिम्मेदारी का मतलब होता है कई लीडरशिप क्वालिटी से युक्त होना. 


 हर विद्यार्थी से एक मनुष्य के रूप में अपने परिवार, समाज और देश के प्रति जिम्मेदारी निभाने की सामान्य अपेक्षा होती है. अतः हर विद्यार्थी को खुद को इस लायक बनाना चाहिए कि वह अपने परिवार, समाज और देश की भलाई के लिए यथोचित योगदान कर सके.
जैसे बच्चे का लालन-पालन करके माता-पिता और अन्य परिजन उसे अपने पांव पर खड़ा होने लायक बनाते हैं और आगे सफलता व समृद्धि के पथ पर बढ़ने में मदद भी करते हैं, उसी तरह परिवार को सम्हालने, सहारा देने और हर सुख-दुःख में साथ खड़ा होने की जिम्मेदारी अब परिवार के लड़के-लड़कियों की होती है. इतना ही नहीं, हर विद्यार्थी के व्यक्तित्व विकास में समाज के न जाने कितने लोगों का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान होता है - साथी-सहपाठी से लेकर शिक्षक -प्रशिक्षक और जन सेवा के कार्य में लगे अन्य अनेक लोग. सफल, समर्थ और समृद्ध हो जाने के बाद इन लोगों के योगदान को भूल जाना ठीक नहीं. इसलिए हर विद्यार्थी को यह याद रखने की जरुरत है कि वे समाज के जिस भी व्यक्ति की  जिस भी रूप में मदद कर सकें, उसकी हरसंभव कोशिश करते रहें.  
 
देश के स्वतंत्रता संग्राम में हमारे युवाओं ने अहम जिम्मेदारी निभाई. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु चंद्रशेखर आजाद, उधम सिंह, खुदीराम बोस सरीखे न जाने कितने युवाओं ने इस निमित्त अपने प्राण तक की आहुति दे दी. वे देश के करोड़ों छात्र-छात्राओं के प्रेरणास्त्रोत हैं और रहेंगे. उस परंपरा के अनुरूप भी इस युवा देश के हर युवा से यह अपेक्षा है कि देश की एकता, अखंडता, मजबूती और उन्नति हेतु  वे न केवल एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में, बल्कि एक देशभक्त सिपाही के रूप में आगे बढ़कर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निष्ठापूर्वक निर्वहन करते रहें. तभी हम देश पर आनेवाले बड़े-से-बड़े संकट का भी सफलतापूर्वक बराबर सामना कर पायेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 12.04.2020 अंक में प्रकाशित
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Monday, July 13, 2020

आपदा और आपका व्यवहार

                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सब जानते हैं कि कोरोना वायरस के प्रकोप से पूरी दुनिया में आम जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित  है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया है. इसके मद्देनजर हमारे देश में  भी  लॉक डाउन और  कर्फ्यू तक लगाए गए हैं. लिहाजा, इस आपदाकाल में कुछ आवश्यक सेवाओं को छोड़कर शिक्षण-प्रशिक्षण सहित सभी सेवाएं कुछ दिनों के लिए बंद किए गए हैं. केंद्र सरकार लगातार प्रभावी कदम उठा रही है और राज्य सरकारों को भी तदनुसार एडवाइजरी जारी कर रही है. चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोग इस वायरस से ग्रसित लोगों का समुचित इलाज करने में जी-जान से जुटे हैं. भारत जैसे विशाल देश में यह समय एकजुट होकर सावधानी, सतर्कता और संयम से जानकार, जागरूक और जिम्मेदार नागरिक के रूप में काम करने का है, जिससे इस महामारी को और ज्यादा फैलने से रोका जा सके. निश्चित रूप से यह बहुत बड़ा काम है जिसमें देश के करोड़ों विद्यार्थियों की भी अहम भूमिका है. हां, ऐसे मुश्किल समय में कुछ बातों को जानकार और साधकर चलना सबके लिए फायदेमंद होता है. आइए, जानते हैं.


पहले तो केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर जारी नोटिस और एडवाइजरी को गंभीरता से लें. इसमें इस वायरस के संक्रमण से बचे रहने के आसान उपायों एवं किसी कारण से संक्रमित हो जाने की आशंका होने पर तुरत उठाये जानेवाले क़दमों की पूरी जानकारी है. खुद जानकार हो जाने के पश्चात उसका सौ फीसदी पालन करें. इसके बाद अपने परिजनों और आसपास के लोगों को प्रामाणिक यानी सरकार द्वारा दी गई जानकारी से अवगत कराएं और उनसे इसका पालन करने का आग्रह भी करें. उन्हें कंफ्यूज ना करें या डराएं नहीं. एक बात और. ऐसा कोई दोस्त या कोई परिचित अगर किसी दूसरे देश से हाल ही में आया है, वह संक्रमित हो या न हो उससे थोड़े दिन दूर रहना बेहतर है. अगर वह व्यक्ति छुपने की कोशिश कर रहा है या लोगों को अपने  ट्रेवल के बारे में बिना बताए अन्य लोगों से मिल रहा है तो पहले तो उसे एकांत में रहने और जरुरी हो तो मेडिकल टेस्ट के लिए प्रेरित करें. नहीं मानने पर प्रशासन को उसके बारे में जरुर बताएं. हां, अभी  स्वार्थी तत्वों पर नजर रखना भी जरुरी है, जिससे कि वे सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता को गलत जानकारी देकर दिग्भ्रमित और भयभीत न कर सकें.


 निसंदेह, इस वक्त खुद को और अपने परिजनों-मित्रों को इस भयानक वायरस से सुरक्षित रखना सबसे जरुरी प्राथमिकता है. इसके लिए सबको कुछ अहम बातों को सख्ती से फॉलो करना पड़ेगा. मसलन घर से बाहर जाने से बचना, हाथ मिलाने, गले मिलने जैसे अभिवादन के तथाकथित मॉडर्न तरीकों के बजाय नमस्ते, सलाम आदि तरीके अपनाना, बाहर से घर आने पर बढ़िया से साबुन से हाथ धोना, धुले हाथ से ही आंख, नाक और मुंह को छूना,  लोगों से बात करते वक्त कम-से-कम एक मीटर की दूरी बनाए रखना, भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाने से बचना आदि. इसमें लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं है. आखिर जीवन से बड़ा तो कुछ भी नहीं.


विद्यार्थियों को  प्रतिबंध, लॉक डाउन या कर्फ्यू को एक बड़े अवसर के रूप में लेना चाहिए. जो जहां हैं, वहीँ महफूज रहने का प्रयास करें. कुछ परेशानी तो होगी, लेकिन इस अस्थायी परेशानी को ख़ुशी-ख़ुशी झेलें, जिससे कि स्वास्थ्य संबंधी बड़ी समस्या से बचे रह सकें. पढ़ाई-लिखाई के लंबित कार्यों को या कुछ नया सीखने की इच्छा को मूर्त रूप देने के लिए यह समय अच्छा है. इसमें सीबीएसई हेल्पलाइन सहायक होगा. दोस्तों से मिलने उनके घर जाने या उन्हें अपने घर बुलाने  के बजाय इस समय फोन पर बात कर लें. मौज-मस्ती के लिए पार्टी आदि में जाने का तो विचार भी मन  में न लाएं. घर पर रहकर हेल्थ एंड हाइजीन के अहम बिन्दुओं के विषय में ठीक से जानने का प्रयास करें और उसे फॉलो करने का भी. इससे आपको जीवन में आगे भी बहुत फायदा होगा.

 
अपने घर के बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों के सेहत का खास ध्यान रखने तथा उन्हें संक्रमण से पूर्णतः बचाए रखने में सक्रिय सहयोग करें. उनके लिए जरुरी दवाइयां लाकर घर पर रख लें जिससे कि किसी को भी बारबार बाहर जाने की जरूरत न पड़े. एक बात और. संकट के इस दौर में सभी विद्यार्थी अपने और अपने परिजनों के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाए रखने का प्रयास करें. इसके लिए सबको हमेशा सकारात्मक सोच बनाए रखने के साथ-साथ  पौष्टिक खानपान, व्यायाम या योगाभ्यास, समुचित आराम और नींद पर फोकस करना होगा. कहने की जरुरत नहीं कि मजबूत इम्यून सिस्टम से किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ना और बचे रहना आसान हो जाता है.  

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 05.04.2020 अंक में प्रकाशित
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Monday, July 6, 2020

हेल्थ मैनेजमेंट: चीनी के बदले गुड़ का सेवन करें, बेहतर स्वास्थ्य के हकदार बनें

                              - मिलन  सिन्हा,   हेल्थ मोटिवेटर  एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

चीनी का हमारे दैनंदिन जीवन में गहरा दखल है. सुबह से रात तक हम सभी किसी-न-किसी रूप में चीनी का प्रयोग करते हैं. चाय, कॉफ़ी, कोल्ड ड्रिंक्स, डिब्बा–बोतल-पैकेट बंद फ्रूट जूस, मीठे बिस्कुट, केक, खीर-मीठे पकवान, तरह-तरह की मिठाई आदि में चीनी कम या ज्यादा मात्रा में मौजूद रहता है. 


हम सभी चीनी का सेवन मूलतः स्वाद में मीठेपन का आनंद लेने तथा शरीर में कार्बोहायड्रेट की जरुरत को पूरा करने  के लिए करते हैं. यह कैलोरी का बड़ा और आसान स्रोत है. 


आम व्यस्क इंसान को दिनभर में 1800 से 2400 कैलोरी की जरुरत होती है, जो हमें हमारे दैनिक भोजन में शामिल विभिन्न खाद्द्य पदार्थों से मिलता है.
 
अमूमन एक व्यस्क इंसान को दिनभर में चीनी या मीठे पदार्थों से लगभग 200 कैलोरी मिले तो काफी है. एक चम्मच चीनी से  करीब 50  कैलोरी प्राप्त होता है यानी दिनभर में औसतन चार चम्मच चीनी पर्याप्त है. कहते है न कि किसी भी चीज की अधिकता अच्छी नहीं होती. स्वास्थ्य की दृष्टि से चीनी के मामले में भी यह उतना ही सही है. यह तो हुई कैलोरी संदर्भित चीनी की बात. 


बहरहाल, मजेदार और सोचनीय सवाल है कि आखिर चीनी को मीठा जहर क्यों कहा जाता है? ऐसा इसलिए कि कार्बोहायड्रेट के एक आसान स्रोत और मिठास के अलावे इसके और कोई गुण नहीं है, बेशक अवगुण कई हैं. मसलन, चीनी मूलतः एसिडिक यानी अम्लीय गुणवाला होता है. फलतः यह कई शारीरिक परेशानियों तथा बीमारियों –मोटापा, मधुमेह, दांत और आंत की तकलीफ, कैंसर आदि का कारण बनता है. तो फिर क्या करें या क्या विकल्प है? 


हां, सबसे सरल, सुलभ एवं सुफल विकल्प के रूप में  चीनी के बदले गुड़ का सेवन करें. गुड़ में वह सफेदी तथा चमक  तो नहीं है, लेकिन उसमें कार्बोहायड्रेट और मिठास के अलावे कई अच्छे तत्व प्राकृतिक रूप से मौजूद रहते हैं. महात्मा गांधी खुद चीनी के बजाय गुड़ का ही सेवन करते थे. हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार 100 ग्राम गुड़ में करीबन 180 मिलीग्राम मिनरल्स मौजूद रहता है. इसके अलावे गुड़ में विटामिन बी, विटामिन सी और अल्प मात्रा में विटामिन ए भी पाया जाता है. गुड़ खाने के बाद हमारे शरीर में पाचनक्रिया के लिए जरुरी क्षार पैदा होता है जबकि चीनी अम्ल पैदा करती है जो शरीर के लिए नुकसानदेह है. ये अच्छे तत्व रीफाइनमेंट के क्रम में चीनी से निकल जाते हैं. ऐसे प्राकृतिक रूप से अन्न, फल, सब्जी आदि से भी हमारे शरीर को कार्बोहायड्रेट मिल जाता है जो शरीर के लिए बहुत लाभकारी है.

 
आइए, जानते हैं गुड़ के सेवन से होनेवाले फायदों के बारे में :


- गुड़ में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम रहता है जो हमारे हड्डियों को मजबूत करने में सहायक होता है. इसके अलावे गुड़ में फास्फोरस भी होता है जो शरीर में कफ को संतुलित करने में भी मदद करता है.
 
- यूँ तो गुड़ का प्रयोग हर मौसम में लाभकारी है, लेकिन गुड़ की तासीर थोड़ी गर्म होने के कारण यह खासकर जाड़े के मौसम में बहुत लाभ पहुंचाता है. यही कारण है कि इस मौसम में गुड़ से बनी बहुत-सी चीजें घर में बनती हैं और बाजार में भी मिलती हैं. हां, सर्दी-जुकाम से परेशान लोग गुड़ से बना काढ़ा पीएं तो राहत मिलेगी. 


- पेट की समस्या से परेशान लोगों के लिए गुड़ का सेवन बहुत अच्छा होता है. इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया अच्छी होती है और गैस की परेशानी भी कम होती है. रोजाना लंच और डिनर के बाद थोड़ा-सा गुड़ खाने की हमारी प्राचीन परंपरा से हम सभी अवगत हैं.

 
- गुड़ के साथ थोड़ा अदरक का सेवन करने से जोड़ों के दर्द में लाभ पहुंचता है. इससे गले की खराश में भी राहत मिलती है. 
 
- गुड़ हमारे रक्त से हानिकारक तत्वों को निकालने में सहायक होता है. यह नेचुरल ब्लड प्यूरीफायर है. इससे हमारे त्वचा की सेहत अच्छी रहती है. मुहांसे आदि की समस्या में भी लाभ मिलता है. 


 - गुड़ के नियमित और नियंत्रित सेवन से हमारा ब्रेन सक्रिय रहता है. परिणाम स्वरुप हमारी मेमोरी अच्छी बनी रहती है. माइग्रेन की परेशानी में भी गुड़ के सेवन से लाभ मिलता है. 


- गुड़ को एक अच्छे मूड बूस्टर के रूप में भी जाना जाता है. जब भी मूड खराब हो या तनाव से परेशान हों, गुड़ खाकर राहत महसूस करें.
 
- हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों को भी गुड़ खाने से फायदा होता है. गुड़ थोड़ा पुराना हो तो शरीर के लिए और ज्यादा लाभदायक होता है.


- गुड़ में प्राकृतिक रूप से आयरन की मौजूदगी से एनिमिया से पीड़ित लोगों को बहुत फायदा होता है. इसके सेवन से खून में हिमोग्‍लोबिन की मात्रा बढ़ती है. गुड़ आयरन का ऐसा अच्छा और सुलभ स्त्रोत है कि गरीब-अमीर सभी आयरन की कमी से उत्पन्न रोगों से बचे रह सकते हैं. 


कुछ और पॉइंट्स :


1. हमारे देश में गन्ने के रस को प्राकृतिक रूप से बड़े-बड़े कड़ाहों में उबाल कर गाढ़ा करके गुड़ बनाया जाता है. ऐसा हजारों वर्षों से किया जाता रहा है. मटके में जमाया हुआ गुड़ बेहतर माना गया है. ब्रिटिश शासनकाल में ही देश में पहला चीनी मिल खोला गया. उससे पहले तक देशवासी गुड़ का ही सेवन करते थे. अब भी गांवों में अधिकांश लोग गुड़ ही खाते हैं.


2. शरीर के तापमान को नियंत्रित रखने में गुड़ काफी मदद करता है. एलर्जी से परेशान होनेवाले लोगों को भी इसके सेवन से लाभ होता है. अस्थमा के मरीजों को इसका सेवन काफी लाभ पहुंचाता है. आँखों की सेहत के लिए भी गुड़ का सेवन अच्छा माना जाता है.


3. पीलिया से पीड़ित व्यक्ति को थोड़े से सोंठ में गुड़ मिलाकर खाने से काफी फायदा होता है. मूत्र विकार में गुड़ का सेवन लाभ पहुंचाता है. नींबू और गुड़ का शर्बत इंस्टेंट एनर्जी के साथ-साथ इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है. मेहनतकश लोगों के लिए तो गुड़ सबसे अच्छा एनर्जी बूस्टर है.


4. अगर किसी को भूख नहीं लगने या भूख कम लगने की परेशानी है, तो गुड़ के नियमित सेवन से लाभ होगा. इससे भूख खुलती है. इसमें फाइबर होता है इस कारण गुड़ खाने से कब्ज में भी आराम मिलता है. दरअसल, शरीर को सक्रिय और उर्जावान बनाए रखने में गुड़ अच्छी भूमिका अदा करता है.


एक बात और. बाजार में हर मौसम में गन्ने के रस से बना गुड़ तो मिलता ही है, लेकिन जाड़े के मौसम में ताड़ और खजूर का गुड़ भी मिल जाता है. इनका स्वाद थोड़ा अलग होता है और यह आम गुड़ की तुलना में मंहगा बिकता भी है. ताड़ और खजूर के गुड़ में भी काफी पोषक तत्व प्राकृतिक रूप से मौजूद रहते हैं.
 
जैसे किसी भी चीज का अत्यधिक सेवन अच्छा नहीं होता, वही बात गुड़ के सेवन पर भी लागू होती  है. चीनी की तरह मीठा होने के साथ ही गुड़ भी  कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है. अतः मोटे लोगों और मधुमेह से पीड़ित लोगों को गुड़ का सेवन भी सोच-समझकर करना चाहिए.   

(hellomilansinha@gmail.com) 


                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# दैनिक भास्कर में प्रकाशित
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Thursday, July 2, 2020

सीखना बराबर जारी रखें

                                  - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
सीखना एक सतत प्रक्रिया है. बचपन से लेकर बुढ़ापे तक यह सिलसिला किसी न किसी रूप में चलता रहता हैं. बेटर लर्निंग फॉर बेटर अर्निंग की बात भी अनेक मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स कहते रहे हैं. सीखने का दायरा बहुत व्यापक है. कोर्स की किताबों और क्लास रूम की पढ़ाई तो जरुरी है ही, देश-दुनिया की महत्वपूर्ण बातों के प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा तथा जीवन यात्रा में प्राप्त विविध अनुभव भी पढ़ाई का बड़ा और अहम हिस्सा होते हैं. विद्यार्थी जीवन में सीखने की प्रक्रिया को एन्जॉय करना और इसे अपनी आदत बनाना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है. ऐसा करते हुए देश-विदेश के अनेक विद्यार्थियों ने न केवल अपने समग्र विकास को संभव बनाया, बल्कि बड़ी सफलता और बड़ा सम्मान भी अर्जित किया.  रोचक बात है कि छात्र-छात्राओं को सीखने के लिए अपने आसपास देखने का बहुत लाभ मिलता है. मिसाल के तौर पर प्रकृति को ही लें. जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नदी-पहाड़, मौसम और न जाने क्या-क्या हर विद्यार्थी को सीखने का असीमित अवसर देते हैं.  असंख्य  बातें वे जान सकते हैं और उस ज्ञान एवं अनुभव का उपयोग अपने और दूसरों की जिंदगी को बेहतर बनाने में कर सकते हैं. दरअसल, हर विद्यार्थी किसी-न-किसी रूप में कम या ज्यादा ऐसा करता भी है. बहरहाल, वर्तमान में देश-विदेश में जितने प्रसिद्ध लोगों का नाम छात्र-छात्राएं जानते हैं, उनको फिलहाल छोड़ भी दें तो इतिहास के पन्नों में जिन महान लोगों का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है, उनमें से अपने पसंद के केवल एक प्रतिशत लोगों के विषय में जानने का भी एक गंभीर प्रयास करें तो सीखते रहने के असीमित लाभ के विषय में जानेंगे और उससे प्रेरित होकर कार्य करेंगे. फिर तो छात्र-छात्राएं खुद अनेक उपलब्धियों के लायक बनते जायेंगे.

श्री रामकृष्ण परमहंस, अल्बर्ट आइंस्टीन, हेनरी फोर्ड सहित कई विश्व प्रसिद्ध लोगों ने अलग-अलग शब्दों में इस विचार को रेखांकित किया है कि वह व्यक्ति या समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है, उनके जीवन में नवीनता ख़त्म हो जाती है. नीरसता और निराशा उनके साथी बन जाते हैं, उनके लिए प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और वे अवसान की ओर चल पड़ते हैं. सच कहें तो सीखते रहना सही अर्थों में युवा बने रहने की एक बड़ी शर्त है. जॉर्ज संटायना सही कहते हैं, "सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के लिए हमेशा कुछ सीखना बाकी होता है." आइए, दो छोटे उदाहरणों के माध्यम से इसे अच्छी तरह समझने का प्रयास करते हैं.

हम सभी जानते हैं कि 1879 में जन्मे अल्बर्ट आइंस्टीन में सीखने की लालसा जबरदस्त थी. उन्हें गणित सबसे आसान विषय लगता था, जब कि स्कूल में उनकी गिनती कभी भी मेधावी विद्यार्थियों में नहीं हुई. अपने छात्र जीवन में आइंस्टीन को एकाधिक बार असफलता और तिरस्कार का सामना करना पड़ा, फिर भी वे सीखने के मार्ग पर ख़ुशी-ख़ुशी चलते रहे. और जानते हैं आइंस्टीन ने 30 साल से कम उम्र में थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी यानी सापेक्षता का सिद्धांत प्रस्तुत किया. आगे इस दिशा में वे काम करते रहे. मात्र 42 साल की उम्र में उन्हें उनके आविष्कार के लिए नोबेल प्राइज इन फिजिक्स से सम्मानित किया गया. रोचक बात है कि इस विश्वविख्यात वैज्ञानिक को संगीत सीखना भी अच्छा लगता था और वे वायलिन अच्छा बजाते थे. अल्बर्ट आइंस्टीन की यह उक्ति उनके मिजाज  से खूब मेल खाती है जब वे कहते हैं, "कल से सीखो, आज के लिए जीओ, कल के लिए सपने देखो और सबसे जरुरी बात यह कि कभी भी रुको मत."

हमारे राष्ट्रगान "जन गण मन अधिनायक जय हे ..." के रचियता गुरुदेव रबीन्द्रनाथ ठाकुर में  सीखने की विलक्षण लालसा थी. प्रकृति उनका सबसे बड़ा दोस्त और शिक्षक था. प्रकृति के सानिद्ध में रहने और उससे सीखने के हर मौके का उन्होंने बहुत सदुपयोग किया. विधिवत औपचारिक शिक्षा न प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने साहित्य, इतिहास, संस्कृत, खगोल विज्ञान, अंग्रेजी  सहित अन्य कई विषयों का अध्ययन किया. उनकी कल्पनाशीलता और रचनात्मकता का  रेंज विशाल था. साहित्य  के  करीब सभी विधाओं - कविता, नाटक, गीत,  कहानी, लघु कथा, उपन्यास, निबंध आदि में बहुत उम्दा लेखन किया. संगीत और चित्रकारी में भी उनको महारत हासिल था. रबीन्द्र संगीत के नाम से प्रसिद्ध संकलन में उनके दो हजार से ज्यादा गीतों को संगीतबद्ध किया गया. भारतवर्ष के वे पहले नोबेल पुरस्कार विजेता थे. वर्ष 1913 में उन्हें उनकी रचना "गीतांजलि" के लिए साहित्य का नोबेल  प्राइज मिला. हमेशा सीखते रहने को लालायित इस महान व्यक्ति की यह उक्ति काबिले गौर है, "जो कुछ हमारा है वह  हम तक आता है ; यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं." 
(hellomilansinha@gmail.com) 

     
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.03.2020 अंक में प्रकाशित
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