Monday, June 29, 2020

जरुरी है अच्छा शैक्षणिक माहौल

                                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
कॉलेज और यूनिवर्सिटी में अध्ययन हेतु पंजीकृत छात्र-छात्राएं की संख्या करोड़ों में है. यहां  एक कोर्स या क्लास विशेष में पंजीकृत और अध्ययन हेतु उपस्थित विद्यार्थियों के डाटा का अध्ययन किया जाए तो अनुपात अधिकतम 10:9 का होगा. सवाल है कि ये दस प्रतिशत पंजीकृत पर अध्ययन से अनुपस्थित विद्यार्थी कौन होते हैं और क्या सामान्य तौर पर इनमें से ही अधिकांश  विद्यार्थी अपने कैंपस में या बाहर होनेवाले हंगामा-प्रदर्शन-तोड़फोड़-पत्थरबाजी का हिस्सा होते हैं?  

देश की राजधानी के अलावे समय-समय पर देश के कुछ  कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी में गैर-शैक्षणिक मुद्दों और वह भी देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था यानी देश की संसद से पारित मुद्दों पर मूलतः इन दस प्रतिशत वाले जमात के कुछेक विद्यार्थी हिंसक हंगामा-प्रदर्शन करते हैं. इतना ही नहीं, वे उनके संस्थान के ही बाकी के 90 प्रतिशत से ज्यादा छात्र-छात्राओं को पढ़ने-लिखने  से रोकने  की कोशिश भी करते हैं. कॉलेज या यूनिवर्सिटी प्रशासन को ऐसे आकस्मिक हंगामा-प्रदर्शन का वास्तविक कारण  पता नहीं होता, फिर भी देर-सबेर वे उनसे बात करने की कोशिश करते हैं, जिससे कि समाधान तलाशा जा सके और संस्थान में अच्छा शैक्षणिक माहौल बना रहे. लेकिन हल निकलता नहीं क्यों कि अधिकांश मामला शिक्षण आदि  से इतर राजनीतिक होता है.   हां, हमारे लोकतंत्र में विद्यार्थी सहित हर नागरिक को अन्याय के खिलाफ विरोध करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार क्या दूसरे को सामान्य जीवन जीने से रोक सकता है? 

अगर विद्यार्थियों को किसी मामले में विरोध करना है तो पहले संबंधित दूसरे पक्ष को उचित ज्ञापन  देकर और फिर आगे उनसे बातचीत करके समस्या का हल निकालने का प्रयास करना चाहिए. अगर इसमें सफलता नहीं मिलती तो अंतिम विकल्प के रूप  में वे  बिना किसी को परेशान किए शांतिपूर्ण तरीके से किसी पेड़ आदि के नीचे बैठकर विरोध दर्ज कर सकते हैं. गौरतलब बात है कि अगर उनके विरोध का मुद्दा वाकई जायज और सभी विद्यार्थियों के व्यापक हित में होगा तो  और भी छात्र-छात्राएं उनका साथ देने को जरुर आगे आयेंगे. और फिर उनके संस्थान को भी उस मामले के समाधान हेतु सक्रियता और गंभीरता से कार्य करना पड़ेगा.   

विचारणीय सवाल है कि आखिर विद्यार्थी किसी भी संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने के लिए ही तो आते हैं. उनके अभिभावक भी यही मानते हैं कि उनकी संतान उसी कार्य में व्यस्त होंगे. दरअसल,  हमारे देश में ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षित करने हेतु बड़ी मुश्किल से संस्थान का फीस, हॉस्टल के खर्चे आदि भर पाते हैं. फिर भी अगर उनकी संतान शिक्षा ग्रहण करने के बदले हंगामा-प्रदर्शन आदि में समय गंवाते हैं तो उनके लिए बहुत कष्ट और क्षोभ की बात होती है. खुद उन विद्यार्थियों के लिए यह अवांछित कार्य में संलिप्त होकर अपने भविष्य के साथ खिलवाड़  ही तो है. वे जोश या आवेग या उन्माद या बहकावे में बिना सोचे-समझे या किसी तात्कालिक आर्थिक या अन्य लाभ हेतु किसी दूसरे की कठपुतली बनकर यह सब करते हैं, जिसका पछतावा बाद में उनमें से अधिकतर विद्यार्थी को होता है. समय रहते वे यह समझ सकें और उनके साथी-अभिभावक-शिक्षक उन्हें समझा सकें तो हर दृष्टि से बेहतर होगा. 

यहां सभी अच्छे विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों की, जिनकी संख्या बहुत ज्यादा है, यह जिम्मेदारी है कि वे सब मिलकर अपने तरीके से कैंपस में यथोचित शैक्षणिक माहौल बनाए रखने के लिए कॉलेज और यूनिवर्सिटी प्रशासन पर दवाब बनाएं जिससे सभी विद्यार्थियों की शिक्षा बिना बाधित हुए समय से अच्छी तरह पूरी हो सके. कॉलेज-यूनिवर्सिटी प्रशासन की बात करें तो सीसीटीवी, बायोमेट्रिक अटेंडेंस आदि के जमाने में उनके लिए यह जानना मुश्किल नहीं है कि कौन-कौन से विद्यार्थी क्लासेज अटेंड नहीं करते और उनमें से कितने संस्थान के पढ़ाई-लिखाई के माहौल को खराब करने में शामिल रहते हैं. इस जानकारी के आधार पर पहले संबंधित विद्यार्थी से साफ़-साफ़ बात करना आसान होगा. फिर उनके अभिभावक को यथोचित जानकारी देकर उनकी मदद से विद्यार्थी को अध्ययन के लिए प्रेरित करना भी मुश्किल नहीं होगा. अगर  इस तरह की प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी विद्यार्थी में अपेक्षित सुधार नहीं दिखाई पड़ता है, तो प्रशासन उस विद्यार्थी के खिलाफ संस्थान के नियमानुसार कार्रवाई कर ही सकता है. यह एक पारदर्शी एवं प्रभावी प्रक्रिया है जिसका सदुपयोग कर देश-विदेश के कई अच्छे संस्थान अपने विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा देने तथा अपनी एकेडमिक रैंकिंग उन्नत करने में कामयाब रहे हैं.
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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 22.03.2020 अंक में प्रकाशित  
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Monday, June 22, 2020

मोटिवेशन: हैलो, स्माइल और सॉरी का कमाल

                                                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस  कंसलटेंट ...
देश-विदेश हर जगह कॉरपोरेट वर्ल्ड में मैन मैनेजमेंट यानी मानव प्रबंधन की चर्चा खूब होती है. होनी भी चाहिए. किसी भी संस्थान के लिए उनसे जुड़े लोगों से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई नहीं होता. वह उनके कर्मी हों, उनके ग्राहक, उनके सर्विस प्रोवाइडर  या कोई और. उनसे अगर रिश्ते अच्छे हैं और आगे उसे बेहतर करने का इरादा है तो संस्थान के विकास में दिक्कत नहीं होती. ऐसे तो आपसी रिश्तों को कामकाजी, अच्छा या प्रगाढ़ बनाने के जाने-पहचाने तरीके हैं, लेकिन अगर कोई संस्थान अपने लोगों को हेलो, स्माइल और सॉरी का बेहतर प्रयोग करना भी सिखा दे या  हम सभी अपने स्तर पर इनका सदुपयोग करना सीख लें तो तनाव को सरलता से मैनेज करने के साथ-साथ जिंदगी जीना काफी आसान और सुखद हो जाएगा. आखिर कैसे?

हैलो: यह शब्द छोटा है, लेकिन इसका उपयोग बहुत होता है और असर भी कम  बड़ा नहीं होता है. फोन उठाते ही हम पहला शब्द यही इस्तेमाल करते हैं. ऐसे कुछ लोग इसके बदले नमस्ते या नमस्कार जैसे शब्दों का भी उपयोग करते हैं. बात मोटे तौर पर एक ही है.  घर से ऑफिस के लिए निकलते ही हमको रास्ते में आते-जाते कई लोग मिलते हैं जो हमारे परिचित होते हैं, एक-दूसरे से हमारी नजर मिलती है तो क्या हेलो करते हैं यानी नमस्ते या हाथ हिलाकर अभिवादन करते हैं ? अगर करते हैं तो हम जानते हैं कि इसका कितना पॉजिटिव असर हमारे व्यक्तित्व विकास पर पड़ता है, हमारे मूड को इम्प्रूव करने में होता है और हमारे आपसी रिश्ते की गर्माहट को बनाए रखने में होता है. ऑफिस में प्रवेश करते ही हम हेलो, गुड मॉर्निंग, नमस्ते आदि शब्दों के माध्यम से एक दूसरे का अभिवादन करते हैं. गुडविल प्रदर्शन के लिए ये छोटे शब्द बहुत प्रभावी माने जाते हैं. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं या नजर चुराते हैं, तो आज से इस पर गौर कीजियेगा कि जब आप हेलो करने से बचते हैं उस क्षण या उसके तुरत बाद कैसा फील करते हैं. पॉजिटिव या नेगेटिव. हां, दूसरे पर इसका क्या असर होता है और इसके कारण अच्छे रिश्तों में कैसे दुराव और बदलाव आता है, इस पर अनेक सर्वेक्षण एवं शोध हो चुके हैं और यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि इसका  उपयोग कम या नहीं करने से  हम सबमें नकारात्मकता  बढ़ती है और इसका  दूरगामी नेगेटिव  इम्पैक्ट हर चीज पर दिखता है. तो फिर अभी से हेलो कहना शुरू करके देखिए और उसके असर को फील करने का प्रयास कीजिए. अच्छा लगेगा.
    
स्माइल: सच है, मुस्कुराहट हमारी खूबसूरती में सुधार करने का एक सस्ता और हेल्दी तरीका है. ऐसे भी हमें  मुरझाये हुए चेहरे अच्छे नहीं लगते. तभी तो फोटो खींचते वक्त फोटोग्राफर स्माइल प्लीज कहते हैं. दरअसल, मुस्कराहट हमारे चेहरे पर एक ऐसा मैजिक बैंड है जो दूसरों को मित्रता  और भाईचारे का संदेश देता  है. बच्चों की मुस्कुराहट से न जाने कितने लोगों का तनाव काफूर हो जाता है और वे अंदर से फ्रेश और आनंदित महसूस करते हैं. जब हम एक दूसरे से मुस्कुराकर मिलते हैं तो बड़ा अच्छा फील होता है. किसी भी वार्तालाप के सफल समापन में इसकी अहम भूमिका को सभी स्वीकारते हैं. तभी तो फोटो सेशन में इसका रिफ्लेक्शन हमें दोनों पक्षों के चेहरे पर मुस्कान के रूप में दिखाई पड़ता है. लेकिन क्या हम सभी ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस अनमोल तोहफे का उपयोग एवं उपभोग अपने जीवन को बेहतर और खुशहाल बनाने के लिए कर पा रहे हैं? विशषज्ञों के इस राय से कोई  इंकार नहीं कर सकता कि हमारे चेहरे पर तैरते स्वाभाविक मुस्कान हमारे अन्दर व्याप्त ऊर्जा एवं उत्साह का परिचायक होता है. यह भी सही है कि स्माइल करने वाले लोग अपेक्षाकृत तनाव प्रबंधन में माहिर होते हैं.  एक बात और. अनेक मेडिकल रिसर्च से यह साबित हो चुका है कि हंसना-मुस्कराना हमारे हेल्थ को बेहतर बनाये रखने में बहुत मदद करता है. ज्ञानी लोग तो इसे एक मुफ्त तथापि बेहद प्रभावी प्राकृतिक औषधि की संज्ञा देते हैं, कारण वे जानते हैं कि मुस्कराने की सम्पूर्ण प्रक्रिया में हमारे शरीर में फील-गुड तथा  फील-हैप्पी हॉर्मोन का स्राव स्वतः होता है जो हमें मानसिक रूप से प्रसन्न रखता है. इससे हमारी कार्यक्षमता बढ़ती है और हमारा परफॉरमेंस बेहतर होता है. हमारा मेटाबोलिज्म तो बेहतर होता ही है. रोचक बात है कि महात्मा गांधी, अल्बर्ट आइंस्टीन, चार्ली चैपलिन तथा अब्दुल कलाम सहित देश-विदेश के अनेक महान लोग  न केवल इसकी महत्ता  के प्रशंसक रहे हैं, बल्कि अपने दैनंदिन व्यवहार में इसे अमल में लाकर इसका औचित्य भी सिद्ध करते रहे हैं. फिर हम-आप स्माइल करने में पीछे क्यों रहें? 

सॉरी: हम सब अपने जीवन में छोटी-बड़ी गलती करते रहते हैं. ये गलतियां जाने-अनजाने कारणों से होती हैं. कहते हैं जिसने जीवन में सचमुच कोई गलती नहीं की, उसने वाकई जीवन को सम्पूर्णता में जीया ही नहीं. लेकिन गलती करते जाना भी कोई अच्छी बात तो नहीं. और गलती होने पर सॉरी न कहना या फील करना तो वाकई ठीक नहीं. घर हो या बाहर अगर हम एक सिंपल सिद्धांत बना लें कि जब भी मुझसे छोटी-बड़ी गलती होती है, बेशक उसे कोई देखे या न देखे, उस पर कोई टोके या न टोके, सॉरी या क्षमा याचना के लिए कहे या न कहे, मुझे बेझिझक तुरत सॉरी बोलना  है, तो हम अनगिनत लाभ के भागी बनेंगे. सबसे पहले तो हम हल्का फील करेंगे, अंदर से मजबूत फील करेंगे और झूठ बोलने एवं  आगे झूठ के चक्रव्यूह में फंसने से बचेंगे. हमें अपराधबोध बोध नहीं कचोटेगा,  ईगो प्रॉब्लम नहीं होगा और आगे से वही गलती न दोहराने की सीख मिलेगी. हमारे व्यवहार आदि में सुधार प्रक्रिया बेहतर होगी तथा आपसी रिश्ते बिगड़ने के बजाय सुधरेंगे. और भी अनेक छोटे-बड़े लाभ हासिल होंगें. इतिहास में ऐसे हजारों घटनाएं-दुर्घटनाएं दर्ज हैं, जिसका आगाज तो बहुत खराब हुआ, लेकिन इस छोटे से शब्द सॉरी ने उसका अंजाम बहुत सुखद बना दिया. तो आइए, इस लंबी पर सस्पेंस तथा सरप्राइज से भरी जीवन यात्रा में खुले मन से सॉरी का उपयोग करें और लाइफ को खुद एन्जॉय करने के साथ-साथ  दूसरों को भी एन्जॉय करने दें.    
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                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में 16.03.20 को प्रकाशित 
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Saturday, June 20, 2020

अंदर से समृद्ध बनें

                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
आपने भी अपने कुछ मित्रों को कहते सुना होगा कि स्टाइल में रहने का. ऐसे विद्यार्थी कपड़े से लेकर फूटवेयर तक ब्रांडेड और डिज़ाइनर कलेक्शन के शौक़ीन होते हैं. बेशक यह सब जुटाने और करने में अतिरिक्त रकम और वक्त खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन जिस प्रयोजन से वे ऐसा करने में लगे रहते हैं, उसका वैसा कोई पॉजिटिव लाभ उन्हें शायद ही मिल पाता है. उलटे इस  चक्कर में खुद को अंदर से समृद्ध करने में पीछे रह जाते हैं, क्यों कि वे मुख्यतः  सिर्फ बाहर देख रहे होते हैं, जब कि देखने का काम तो भीतर से शुरू होना चाहिए.  बहरहाल, देखने-दिखाने के मौजूदा दौर में सिर्फ स्टाइल में रहने के आदी  विद्यार्थी ही नहीं, बल्कि सभी विद्यार्थियों को हर समय यह याद रखने की जरुरत है कि अगर पहले खुद को अदंर से समृद्ध नहीं करेंगे तो चाहकर भी जीवन में बहुत कुछ हासिल नहीं कर पायेंगे. अब सवाल है कि अंदर से समृद्ध होने के लिए विद्यार्थियों को किन मूल बातों पर फोकस करना चाहिए.

रोज सुबह की शुरुआत आशा और विश्वास से करें. सोचें कि इस दुनिया में अगर कोई भी विद्यार्थी रोज कुछ भी अच्छा कर सकता है तो आप भी अपने तरीके से कुछ अच्छा करने का एक सार्थक प्रयास तो कर ही सकते हैं. महात्मा बुद्ध सहित कई महान लोगों ने अगल-अलग सन्दर्भ में कहा है कि हम जैसा सोचते हैं, धीरे-धीरे वैसा ही बनते जाते हैं. अच्छा सोचेंगे और अच्छा करेंगे तो नतीजे अच्छे आयेंगे. नार्मन विन्सेन्ट पील कहते हैं कि जब आपकी पूरी शक्तियां - शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक, समग्रता और एकाग्रता से किसी काम में लग जाती हैं तो उसके विरोध में कोई बाधा खड़ी नहीं रह सकती है. रोचक बात है कि सर्वोत्तम की उम्मीद करने और दिलो-दिमाग से उसे हासिल करने की कोशिश करने की प्रक्रिया में आप अपने मस्तिष्क में एक चुम्बकीय शक्ति उत्पन्न करते हैं जो आकर्षण के नियम के अनुसार सर्वश्रेष्ठ को आपकी ओर आकर्षित करती है. परन्तु अगर आप सबसे बुरे की आशा करते हैं तो आप अपने मस्तिष्क में विकर्षण की शक्ति को उत्पन्न करते हैं जो सर्वश्रेष्ठ को आपसे दूर कर देती है. लोग जीवन में इसलिए असफल नहीं होते कि उनमें योग्यता की कमी होती है. वे इसलिए असफल होते हैं कि वे दिल से सफलता की उम्मीद नहीं करते और फिर  पूरे दिल से वह काम नहीं करते. दरअसल जिंदगी उस आदमी को कभी असफल नहीं कर सकती, जो अपना सब कुछ उस कार्य के लिए झोंक देता है. सामान्यतः हर विद्यार्थी अच्छा करना चाहता है और अच्छा दिखना भी. लिहाजा यह बहुत जरुरी है कि सभी छात्र-छात्राएं हमेशा अपने सोच को पॉजिटिव बनाए रखें. ठान लें कि हताश और निराश नहीं होना है, किसी भी हालत में. 

 फाइटर की तरह पहले खुद की बुराइयों से लड़ना शुरू करें, एक-एक करके. पूरे संकल्प और योजना के साथ. खुद से वादा करे कि जो काम शुरू किया है उसे अंजाम तक पहुंचाएंगे. जाहिरा तौर पर इसके लिए हरेक विद्यार्थी का शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं शक्तिशाली बने रहना आवश्यक है. जितने भी उनके सपने हैं, इच्छाएं और योजनाएं हैं, उनको साकार करने के लिए शरीर रूपी इंजन का बेस्ट कंडीशन में रहना हर दृष्टि से पहली शर्त है. इसके लिए व्यायाम, खानपान और आराम में परफेक्ट संतुलन बनाकर नियमित रूप से उसका अनुपालन करें. इसके असीमित फायदे हैं. हां, किसी भी काम में जल्दबाजी न करें. धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाएं. सब कुछ बहुत आसान होगा, ऐसा भी मानकर न चलें. इससे किसी बाधा के सामने आने पर अनावश्यक तनाव से बचे रह पायेंगे. पॉजिटिव सोच अपना रंग दिखायेगा और आपको चुनौतियों के पार ले जाएगा. एक अहम बात और. जिन-जिन छोटी-बड़ी बुराइयों से खुद को मुक्त करें, कुछ भी हो जाए उन्हें फिर अपने जीवन में घुसने न दें. दुबारा घुसा तो निकालना ज्यादा मुश्किल होता है. इसके अनेकानेक उदाहरण हैं. ऐसे भी जो खराब है, उससे छुटकारा पाने के कुछ दिनों बाद फिर उसके चंगुल में फंसने का कोई मतलब नहीं.   

बुराइयों से मुक्त होते रहने के साथ-साथ अच्छी बातों को अपनी दिनचर्या में शामिल करते जाना  भी जरुरी है. एक-एक ईंट को करीने से जोड़ते जाने से जैसे बड़ी-से-बड़ी इमारत खड़ी की जा सकती है, कुछ उसी तरह आप भी अच्छी बातों को अपने व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा बनाते चलें. आपमें दिनोंदिन सुधार होगा और निखार भी आएगा. इस क्रम में आप कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते जायेंगे. इस दौरान आपको किसी से कुछ कहने की जरुरत नहीं. आपकी  सफलता ही आपके संकल्प, निष्ठा और परिश्रम की कहानी बयां करेगी. हां, इस पूरी यात्रा को एन्जॉय करना न भूलें. 
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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 15.03.2020 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, June 16, 2020

उपलब्ध संसाधन का सदुपयोग करें

                               - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
विख्यात अमेरिकी लेखक और  मोटिवेटर जिग जिगलर कहते हैं, "सक्सेस का मतलब यह कि जो कुछ हमारे पास है उससे सबसे अच्छा करना." कहने का अभिप्राय यह कि जो भी संसाधन हमारे पास हैं उसका उत्तम इस्तेमाल करके बेहतर परिणाम सुनिश्चित करना और यह भी कि जो नहीं है सिर्फ उसका रोना रोते हुए जो कर सकते थे वह भी न करना. अब अगर आप इन बातों के सन्दर्भ में अपने आसपास के मित्रों के सोच और कार्यकलाप पर गौर करेंगे तो आप पायेंगे कि अच्छी संख्या में विद्यार्थी इसलिए बेहतर परिणाम के हकदार नहीं बन पाते क्यों कि जो कुछ उनके पास नहीं है वे सिर्फ उसपर फोकस कर दुखी होते रहते हैं. जो उन्हें करना  चाहिए था या जो कर सकते थे और वह सब अभी भी करने का प्रयास कर सकते हैं, उसे भी अकारण नहीं करते. 

"यह दिल मांगे मोर" की भावना तो कमोबेश सबके अंदर होती है. बिना परिश्रम के ऐसे ही बैठे-बिठाए सब कुछ मिलता रहे, ऐसा भी कई लोगों की सोच होती है. यह उनके और समाज के लिए हितकारी नहीं है और देर-सवेर उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ता है. बहरहाल, छात्र-छात्राएं अपने आसपास घटित होनेवाली घटनाओं से बहुत कुछ सीखते हैं, अच्छा और बुरा दोनों. अब जब  वे देखते हैं कि उनके साथी-सहपाठी के पास कुछ चीजें या सुविधा के उपकरण, मसलन मोबाइल, घड़ी, स्कूटर-कार, मंहगे कपड़े-जूते आदि अधिक हैं तो उनमें से कई विद्यार्थियों के  मन में भी उसे पाने की इच्छा बलवती होती है. वे उसे पाने के लिए अपने अभिभावक से कहते हैं, जिद भी करते हैं और जब तक वह नहीं मिलता तबतक वे बेचैन रहते हैं. उनका मन अध्ययन जैसे बुनियादी कामों  से भटक जाता है. इस दौरान वे एक बार भी नहीं सोचते कि वाकई उन्हें इसकी कोई जरुरत है भी या नहीं या कि वे मात्र विलासिता के कुछ दिखावटी उपकरण हैं और वह सब उन्हें इसलिए चाहिए कि वे दिखावे में दोस्तों की बराबरी कर सकें या दोस्तों से खुद को ज्यादा समृद्ध या अमीर साबित कर सकें, बेशक स्थायी नहीं तो तात्कालिक रूप से ही सही. वे इस बात से भी बेफिक्र रहते हैं कि उनके अभिभावक की उन चीजों को खरीदने की औकात है भी या नहीं. अभिभावक के बढ़िया से समझाने और फिर ना कहने के बाद कुछ विद्यार्थी तो अपनी जिद को पूरा करने के लिए गलत तरीके मसलन झूठ बोलने, घर -बाहर जहां मौका मिला चोरी करने और गैरकानूनी तरीके से  पैसा हासिल करने से भी बाज नहीं आते.  
   
विचारणीय सवाल है कि दिखावे का क्या कोई अंत है. और फिर दिखावे से क्षणिक ख़ुशी के अलावे और क्या हासिल है? नुकसान तो अनेक हैं जो उन विद्यार्थियों को भी मालूम है. बहरहाल, इस दिखावे के चक्कर में उनके  पास जो कुछ उपलब्ध होता है, उसका समुचित उपयोग तथा उपभोग करने या आनंद उठाने से भी वे वंचित रह जाते हैं. ऊपर से सोच के स्तर पर पाजिटिविटी को छोड़ नेगेटिविटी की ओर बढ़ जाते हैं. इसका व्यापक दुष्परिणाम उन्हें आगे भुगतना पड़ता है. सवाल है कि इस चक्रव्यूह में फसने से कैसे बचें? 

सीधा और सरल तरीका यह है कि हर विद्यार्थी अपने हिसाब से एक कागज़ पर मोटे अक्षरों में उनके लिए अभी यानी अध्ययनकाल में किन-किन चीजों की आवश्यकता है यानी जिसकी  सख्त जरुरत है, उसका एक लिस्ट बना लें. दूसरे विद्यार्थी के लिस्ट को देखने और उससे तुलना कतई न करें. अब उनमें जो चीजें आपके पास हैं उन्हें टिक करते जाएं. अगर सब हैं तो खुद को भाग्यशाली समझें और ख़ुशी-ख़ुशी अध्ययन में लग जाएं. अगर किसी के पास एकाध चीज या कुछ चीजें नहीं हैं तो अपने अभिभावक से बात कर और उन्हें समझा कर उसे प्राप्त करने का प्रयास करें. इस दौरान धैर्य से काम लें और अपने अभिभावक के प्रति सम्मान भाव बनाए रखें. दीगर बात है कि हर अभिभावक अपने बच्चे की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने की पूरी कोशिश करता है, बेशक कभी-कभी कुछ देर हो जाती है. उस समय केवल उन विद्यार्थियों के विषय में सोचें जो आर्थिक रूप से आपसे भी कमजोर हैं, लेकिन पार्ट-टाइम जॉब करके भी अपनी पढ़ाई न केवल जारी रखते हैं, बल्कि अच्छा रिजल्ट भी करते हैं. सीखनेवाली बात यह भी है कि ऐसे विद्यार्थी न तो अपने अभिभावक को कोसते हैं और न ही इस बात का रोना रोते हैं कि उन्हें प्रतिकूल परिस्थिति में अध्ययन करना पड़ रहा है. बहरहाल, मौका मिले तो सिर्फ दो महान हस्तियों - लाल बहादुर शास्त्री और ए पी जे अब्दुल कलाम की जीवनी पढ़ लें. बहुत प्रेरणा मिलेगी और ऊपर लिखी बातों पर आप ज्यादा भरोसा भी करने लगेंगे. 
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Tuesday, June 9, 2020

नई राहें: मुश्किल नहीं है स्मार्ट वर्कर बनना

                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...
किसी भी संस्थान में काम करनेवाले सभी श्रेणियों  के लोगों के लिए अगर एक कॉमन शब्द  का प्रयोग करें तो कर्मी या वर्कर ठीक लगता है. कर्मियों की क्वालिटी  मुख्य रूप से संस्थान की मार्केट इमेज और बिज़नस परफॉरमेंस का कारण होता है. तभी तो वर्कप्लेस में अपने मैनेजिंग डायरेक्टर, प्रोजेक्ट मैनेजर, बॉस या किसी सीनियर ऑफिसर को मौका-बेमौका कई सहकर्मियों को कार्य निष्पादन के मामले में स्मार्ट बनने को कहते आपने भी सुना होगा. परफॉरमेंस रिव्यु या सालाना कार्य मूल्यांकन के वक्त भी वर्कप्लेस में हार्ड वर्कर बनाम स्मार्ट वर्कर संबंधी चर्चा आम होती है. स्पष्टतः यहां संस्थान के उन कर्मियों की चर्चा नहीं की जा रही है जो काम के मामले में जी चुराते या आलस्य दिखाते हैं यानी कार्य निष्पादन के मामले में कमजोर हैं और नतीजतन कभी भी अपने पद से डिमोट किए जा सकते है और खुद को इम्प्रूव न कर पाने के कारण बाद में जॉब से मुक्त भी किए जा सकते हैं. लिहाजा, अपनी चर्चा को हार्ड वर्कर और स्मार्ट वर्कर तक सीमित रखते हुए यह जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर दोनों में बुनियादी फर्क क्या होता है.

हार्ड वर्कर में कई खूबियां होती हैं. वे अपना काम पूरी तन्मयता और निष्ठा से करते हैं. अपने कार्यस्थल पर समय से पहुंचते हैं और कार्यावधि समाप्त होने के बाद ही घर जाते हैं. वे अपने वरीय सहयोगी और अपने टीम लीडर के निर्देशों का पालन करते हैं. उन्हें अपने मेहनत पर पूरा भरोसा होता है. वे अपने को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखते हैं. कामचोरी या आलस्य से उनका कोई वास्ता नहीं होता. हार्ड वर्कर अनुशासनप्रिय होने के साथ-साथ अपने काम के प्रति पूर्णतः समर्पित होते हैं. किसी भी संस्थान में वे लम्बे समय तक काम करनेवाले कर्मी होते हैं. हार्ड वर्कर को उनके संस्थान में अच्छी नजरों से देखा जाता है. इतना सब होने के बावजूद अपने संस्थान में उन्हें कभी-कभार ही बेस्ट परफ़ॉर्मर का खिताब मिल पाता है. लीडरशिप पोजीशन के लिए भी उनका चयन कम ही हो पाता है. आखिर ऐसा क्यों होता है?  आइए, इसे एक रियल लाइफ स्टोरी के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं.

अफ्रीका के एक जंगल में काम करनेवाले एक कंपनी ने अपने दो कर्मियों, एक सीनियर और एक नए कर्मी, को जंगल में पेड़ कटाई का काम सौंपा और उन्हें रोज के रोज अपना-अपना परफॉरमेंस रिपोर्ट मैनेजर को देने का निर्देश भी दिया. एक हफ्ते के बाद जब मैनेजर ने दोनों कर्मियों के परफॉरमेंस की समीक्षा की तो दोनों में बड़ा फर्क दिखा. अगले हफ्ते की समीक्षा में भी कुछ ऐसा ही अंतर था. मैनेजर को बात समझ में नहीं आई, क्यों कि दोनों ही स्टाफ निष्ठापूर्वक काम करते थे. अतः एक दिन मैनेजर दोनों कर्मियों के बीच के इस फर्क का कारण जानने खुद स्पॉट पर पहुँच गए और उन दो कर्मियों को बिना डिस्टर्ब किए बस उनके काम करने के तरीके को देखते-समझते रहे. मैनेजर शाम को हेड क्वार्टर लौट गए. इस बीच वे दोनों कर्मी कुछ दिन और उस जंगल में काम करते रहे और फिर वहां का टास्क पूरा होने पर लौट गए. सैलरी डे पर नए कर्मी को वेतन के अलावे अच्छा इंसेंटिव दिया गया और कंपनी के सभी कर्मियों के सामने मैनेजर ने उसकी खूब प्रशंसा की और उसे स्मार्ट वर्कर भी कहा. उन्होंने जंगल के अपने विजिट के दौरान जो कुछ नोटिस किया उसके आधार पर अपना अनुभव साझा करते हुए पहले प्रसिद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की यह उक्ति सबको सुनाई, "अगर किसी पेड़ को काटने के लिए मुझे छह घंटे दिए जाते हैं तो मैं पहले कुछ  घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाऊंगा" और फिर निम्न बातें कही.  
  
स्मार्ट वर्कर वह होता है जो इंटेलीजेंटली काम करता है, क्रिएटिवली काम करता है, आउट-ऑफ़-बॉक्स सोचता है, दूसरे से अच्छी बातें सीखता रहता है, लेकिन उसे परिस्थिति के अनुसार अपने तरीके से अमल में लाता है. वह मेनिपुलेसन का पक्षधर नहीं और न ही अनैतिक तरीके अपनाकर जीवन में आगे बढ़ने का, जैसा कि स्मार्ट होने की कुछ लोगों की मान्यता है. वह अनुशासनप्रिय होता है, तन्मयता से यथाशक्ति और यथाबुद्धि  काम करता है. वह खुद को रिचार्ज करते रहता है और अपने उपकरण-औजार को तराशता भी रहता है. वह अपने काम के हर पहलू से अच्छी तरह परिचित होता है. इतना ही नहीं, अपनी कंपनी द्वारा निर्धारित लक्ष्य के मद्देनजर वह खुद अपने लिए थोड़ा बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है और उस लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर कार्य निष्पादित करता है. वह ओवरटाइम काम किए बिना ही अपने टारगेट से कहीं बेहतर रिजल्ट देता है. ऐसा संभव हो पाता है, क्यों कि वह काम को बोझ नहीं समझता, बल्कि उसे एन्जॉय करता है. नतीजतन वह थकता कम है. वह प्रयोगधर्मी है और काम को अलग-अलग तरीके से करके एक नया और बेहतर तरीका खोजता रहता है, जिससे कि कार्य की गुणवत्ता से समझौता किए बगैर प्रोडक्टिविटी को उन्नत किया जा सके. जाहिर तौर पर कोई भी स्मार्ट वर्कर कंपनी के हार्ड वर्कर के गुणों के अलावे कई विशेष गुणों से सम्पन्न होता है. और इसी कारण निरंतर बड़ी सफलता का हकदार बनता है और बड़े पोजीशन का भी. 
(hellomilansinha@gmail.com)


                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में 02.03.2020 को प्रकाशित  

Friday, June 5, 2020

आज की बात: कोरोना, निसर्ग और हाथी की हत्या

 आज की बात -5 जून, 2020                                                                 - मिलन सिन्हा


कोरोना की कहानी चैनेल और अखबार में जारी है. अब तक प्रभावित लोगों की संख्या दो लाख पार कर चुका है. लेकिन तसल्ली की बात है कि संक्रमित लोगों में से ठीक होकर घर लौटनेवालों की संख्या एक लाख से ऊपर है और यह प्रतिशत धीरे-धीरे ही सही बेहतर हो रही है. महाराष्ट्र और पड़ोसी प्रदेश गुजरात में संख्या अब भी ज्यादा है. मुंबई की स्थिति अब डराने लगी है. गवर्नेंस का मसला है. दीगर बात है कि राज्य के मुखिया को सत्ता परिचालन का अनुभव नहीं रहा है. ऊपर से यह अप्रत्याशित और अकल्पनीय संकटपूर्ण स्थिति. पर संकल्प की कमी तो नहीं होनी चाहिए. विचारणीय बात यह भी है कि एनसीपी कोटे से मराठा क्षत्रप बड़े पवार के भतीजे उप मुख्यमंत्री न तो अनुभवहीन हैं और न ही उन्हें गाइड करनेवाले उनके चाचा. वे तो सीन से लगभग गायब ही हैं. यह चिंता और खेद का विषय है. 

दो दिनों तक समुद्री तूफ़ान निसर्ग ने कोरोना की गर्मी से खबरनीसों का ध्यान बेशक मोड़ दिया था. शुक्र है कि तूफ़ान ने आशा से कम ही नुकसान किया है. बहरहाल, यह सोचनीय विषय है कि टेस्टिंग किट की उपलब्धता के बावजूद अब भी ज्यादातर प्रदेशों में जांच के लिए हासिल सैंपल 7 से 10 दिनों तक रिजल्ट की प्रतीक्षा में हैं. जिनके सैंपल लिए गए हैं, जरा उनकी मानसिक स्थिति का अनुमान लगाएं और वह भी तब जब कोरोना के विषय में चारों तरफ से न जाने कितने पुष्ट-अपुष्ट डरानेवाली बातें उनके सामने आती हैं. इसमें अविलम्ब सुधार आवश्यक है. 

विश्व पर्यावरण दिवस के इस साल के थीम "जैव विविधता" की भावना के विपरीत केरल में एक गर्भवती हाथी के अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण मौत से चारों ओर स्वाभाविक रोष और चर्चा जोरों पर है. अमानवीयता का इससे ज्यादा घृणित कृत्य और क्या हो सकता है? वन्य जीवों की तस्करी और उनकी हत्या कर उनके अंगों के व्यापार में लिप्त लोग और उन्हें प्रश्रय देनेवाले कानून के तथाकथित रखवाले कठोर दंड के अधिकारी हैं. प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसे लोगों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई कर उन्हें सख्त सजा दिलवाए और आगे ऐसी घटना से मानवता शर्मसार न हो यह सुनिश्चित भी करें. यकीनन,  समाज की भी इसमें बड़ी भूमिका है.

गनीमत है कि जिन्हें हम जानवर कहते हैं वे मानव के खिलाफ ऐसे जानलेवा षडयंत्र नहीं करते. 

सबको असीम शुभकामनाएं.

 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

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Tuesday, June 2, 2020

आत्मविश्वास और कामयाबी

                                   - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
जीवन में सभी लोग चुनौतियों से रूबरू होते रहते हैं. पर आत्मविश्वास के धनी लोग निराश नहीं होते. वे हर चुनौती को एक परीक्षा मानते हैं और बस खुद पर यकीन बनाए रखते हैं. उनकी मान्यता है कि जो अपनी क्षमताओं को  पहचान लेता है और उसके अनुरूप कार्ययोजना बनाकर  हमेशा यथासाध्य प्रयासरत रहता है, कामयाबी उससे अधिक समय तक  दूर नहीं रह सकती है. स्वामी विवेकानंद तो स्पष्ट कहते हैं, "आगे बढ़ने के लिए यह आवश्यक है कि पहले हम खुद  पर  विश्वास रखें और फिर ईश्वर में. जिसे खुद पर  विश्वास नहीं, उसे ईश्वर में कभी भी विश्वास नहीं हो सकता." दरअसल, जीवन में मार्ग आसान हो या दुर्गम, सतत आगे बढ़ते रहने के लिए मजबूत आत्मविश्वास का होना अनिवार्य है. प्रसिद्ध अमेरिकी फुटबॉलर जो नामथ के अनुसार "जब  आपके  अन्दर  आत्मविश्वास  होता  है  तब  आप  खूब  आनंद  उठा  सकते  हैं . और  जब  आप  आनंद  उठाते  हैं  तब  आप  अदभुत  चीजें  कर  सकते हैं ."  

सही है. हर विद्यार्थी के जीवन में चुनौतियां हैं और रहेंगी. चुनौतियों बड़ी या छोटी हो सकती हैं, कम या ज्यादा हो सकती हैं, लेकिन ऐसा कोई विद्यार्थी नहीं होगा जिसके जीवन में कोई चुनौती नहीं हो या वह यह दावा कर सके कि आगे भी नहीं रहेगी. विविधताओं और अनिश्चितताओं से भरी दुनिया में चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने के लिए सबसे बड़ा यंत्र या हथियार होता है आपका आत्मविश्वास. आप सबने भी यह देखा-सुना होगा कि कई विद्यार्थी पर्याप्त अध्ययन करने के बावजूद परीक्षा केंद्र में नर्वस हो जाते हैं, जानते हुए भी प्रश्नों का उत्तर नहीं लिख पाते है और नतीजतन खराब रिजल्ट के भागी बनते है. एडमिशन हो या नौकरी के लिए इंटरव्यू या ग्रुप डिस्कशन, ऐसे विद्यार्थी अच्छे नॉलेज होने के बाद भी पिछड़ जाते हैं. कारण होता है आत्मविश्वास की कमी. हम नहीं कर पायेंगे, हम कुछ भी करें फेल ही होंगे, परीक्षा में सवाल बहुत कठिन आयेंगे, कम्पटीशन में बाकी प्रतिभागी हमसे बहुत अच्छे होंगे जैसे काल्पनिक और नकारात्मक ख्याल उनके आत्मविश्वास को नीचे ले जाते हैं. इसके बजाय ऐसे कम आत्मविश्वास वाले विद्यार्थी अगर अभी से मन में यह सोचें और बारबार दोहराएं कि हम बस ठीक से अध्ययन करते हैं, खुद को फिट  रखते हैं और टाइम को बेहतर तरीके से मैनेज करते हैं, जो कि हमारे अख्तियार में है और फिर देखते हैं कि हमसे सक्सेस कैसे और कितना दूर रहता है, तो क्या होगा? यकीनन उनका आत्मविश्वास बढ़ना शुरू हो जाएगा. दरअसल, खुद पर यकीन करने के लिए और उस भाव को सुदृढ़ करते रहने के लिए कई बुनियादी बातों को जानना, समझना और ठीक से आत्मसात करना बहुत लाभकारी होता है. आइए, उन पर चर्चा करते हैं. 

खुद को हीन भावना से मुक्त रखें. जब भी मन में ऐसे भाव आएं तो उसे तुरत झटक कर यह सोचें कि हम जब अच्छा काम कर रहे हैं तो उसका फल खराब क्यों होगा और अगर किसी दुर्घटनावश ऐसा होगा तो उससे जूझेंगे, उसका डटकर मुकाबला करेंगे, लेकिन कुछ भी हो जाए अच्छे पथ से हटेंगे-डिगेंगे नहीं. उच्चतर आत्मविश्वास के प्रतीक माने जानेवाले महान व्यक्तियों जैसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, सरदार बल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री आदि का स्मरण कर लें और जरुरत हो तो उनकी जीवनी पढ़ लें, आपको अच्छा लगेगा और आपके सोच को सही दिशा और शक्ति मिलेगी.
  
अपनी आदतों की समीक्षा और विश्लेषण करें. अच्छा या बुरा जो भी सामने आए, उससे बहुत संतुष्ट होने या घबराने के बदले उनमें तुरत गुणात्मक सुधार का संकल्प लेकर उसपर अमल करें. सुधार एक डायनामिक प्रक्रिया है. आस्था के साथ अमल करना बहुत अहम होता है. हां, अब पीछे मुड़कर न देखें और न ही रुकने का विचार मन में लाएं. बस आगे बढ़ते रहें. बेहतर परिणाम आने में देर हो सकती है, लेकिन परिणाम अच्छे ही आयेंगे. यह समीक्षा-विश्लेषण तथा उसके अनुरूप अपनी आदतों में सुधार के सिलसिले को  अपने जीवन यात्रा का अंग बना लें.  

जीवन में बड़ा लक्ष्य तो जरुर रखें, लेकिन यह जानकर और मानकर चलें कि बड़े लक्ष्य तक पहुंचने का रोडमैप तैयार हो और उसके लिए छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित कर उस दिशा में बढ़ते चलें. इसका लाभ यह होगा कि ज्यों-ज्यों आप छोटे लक्ष्यों को, जो वाकई आपके बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए पड़ाव हैं, हासिल करते जायेंगे, त्यों-त्यों आपका आत्मविश्वास भी बढ़ता जाएगा. इस तरह आप निरंतर छोटे-छोटे लक्ष्यों को साधते हुए एक दिन अपने बड़े लक्ष्य को हासिल कर लेंगे. तब एक क्षण पीछे मुड़कर इस यात्रा को देखेंगे तो आपको बहुत अच्छा लगेगा और फिर आप कभी किसी भी चुनौती से घबराएंगे नहीं, बल्कि पूरे आत्मविश्वास से उसके पार जा पायेंगे. (hellomilansinha@gmail.com) 

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 01.03.2020 अंक में प्रकाशित
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