Monday, May 27, 2019

मोटिवेशन : जीवनशैली प्रबंधन से राहें आसान

                                               - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... 
देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हमारे स्कूल-कॉलेज -यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले विद्यार्थियों का है. लिहाजा, हमारे विद्यार्थियों को शिक्षित करने और  रोजगार के लायक बनाने  के साथ–साथ तन्दुरस्त बनाए रखना अनिवार्य है. तभी आने वाले समय में वे एक समर्थ इंसान के रूप में जीवन की तमाम चुनौतियों से निबटते एवं अपनी जिम्मेदारिओं को निबाहते हुए समाज एवं देश को भी मजबूत बना पायेंगे. लेकिन ऐसा कैसे संभव होगा ?

निसंदेह, इसके लिए छात्र-छात्राओं को एक सरल, सक्रिय व सामान्य जिंदगी जीने का अवसर देना होगा, उन्हें इसके लिए प्रेरित करना होगा. कहने का तात्पर्य यह कि विद्यार्थियों को पौष्टिक खानपान, समुचित पढ़ाई, रोजगार उन्मुख दक्षता एवं शारीरिक सक्रियता के प्रति निरंतर जागरूक करते हुए जीवनशैली प्रबंधन के महत्व को समझाना होगा. इससे हमारे विद्यार्थीगण न  केवल उर्जा, उमंग व उत्साह से लबरेज होकर अपने छोटे–बड़े लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम हो पायेंगे, बल्कि ज्यादा  स्वस्थ व आनंदित भी रह पायेंगे.

मानव शरीर रूपी इस अदभुत मशीन के बारे में जितना जानें, कहें और लिखें, कम ही होगा. बचपन से बुढ़ापे तक अनवरत धड़कने वाला जहां हमारा यह दिल है, वहीं अकल्पनीय सोच, खोज व अनुसंधान-आविष्कार का जनक हमारा मस्तिष्क. सोचने से करने तक के सफ़र में निरंतरता को साधे रखने का इस मशीन का कोई जोड़ नहीं है. लेकिन क्या यह सब बस यूँ ही होता रहता है या इस शरीर को सर्वथा स्वस्थ व जीवंत बनाये रखने के लिए जीवनशैली प्रबंधन में पारंगत होना जरुरी होता है ? तो आइये, जानते है जीवनशैली प्रबंधन से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें : 

कहते हैं जल है तो जीवन है. जानकार बताते हैं, शरीर जितना हाइड्रेटेड रहेगा, आप उतना ही स्वस्थ रहेंगे. अतः  आपको  रोजाना 3-4 लीटर पानी पीना चाहिए.  हाँ, पीना चाहिए, गटकना नहीं. पीने का अर्थ है धीरे-धीरे जल ग्रहण करना और वह भी बैठ कर आराम से. रोज सुबह उठने  के बाद कम से कम आधा लीटर गुनगुना पानी पीना शरीर के अंदरूनी सफाई के लिए बहुत कारगर है. विशेषज्ञ यह भी कहते हैं  कि खाने के तुरत पहले, खाने के बीच में और खाने के तुरत बाद पानी नहीं पीना चाहिए, क्यों कि इससे पाचन क्रिया दुष्प्रभावित होती  है. बेहतर स्वास्थ्य के लिए भोजन से कम–से-कम 30 मिनट पहले और 30 मिनट बाद में पानी पीना चाहिए.

क्या आप रोजाना हेल्दी इटिंग करते हैं? सच पूछें तो घर में  उपलब्ध एवं तैयार पौष्टिक आहार से  प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन, मिनिरल आदि पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है जो आपको  शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए काफी है. ध्यान रखें कि जब भी खाएं खूब चबाकर एवं स्वाद लेकर खाएं. सुबह का नाश्ता बहुत ही पौष्टिक हो और मात्रा में ज्यादा भी. दोपहर के खाने में चावल या रोटी के साथ दाल, मौसमी हरी सब्जी, दही, सलाद का सेवन करें. अपने आहार  में मौसमी फलों – केला, पपीता, नारंगी, अमरुद, सेव आदि को भी शामिल करें. रात के खाने को सादा एवं सबसे हल्का रखें और  खाना जल्दी खा भी लें. सोने से पहले एक कप / गिलास  गुनगुना दूध पी कर सोयें. हाँ, जंक, बाजारू एवं प्रोसेस्ड चीजों से बचने की हरसंभव कोशिश करें.

सच पूछिये तो  व्यायाम व खेलकूद  सामान्य शारीरिक क्रियाएं हैं, पर इसके परिणाम अत्यन्त ही बहुआयामी व दूरगामी होते हैं. सुबह जल्दी उठकर पानी पीने एवं  शौच आदि से निवृत होने के बाद 1-2 चम्मच शहद खा लें. फिर 5 मिनट फ्री हैण्ड एक्सरसाइज कर लें यानी  वार्म-अप हो लें. अब 10 मिनट साइकिलिंग या स्किपिंग कर लें  या  पांच राउंड सूर्य नमस्कार आसन कर लें. अपराह्न या शाम को फ़ुटबाल, कबड्डी, हॉकी, बैडमिंटन, क्रिकेट जैसे किसी खेल में भाग लें. स्कूल-कॉलेज में होने वाले आउटडोर गेम्स में जरुर शामिल हों. इन सबका आपके व्यक्तित्व के  सर्वांगीण विकास में अहम योगदान होता है.
योग व ध्यान जीवनशैली वह अहम हिस्सा है जो जीवन के प्रति आपके  दृष्टिकोण को व्यापक तथा समग्र बनाता है. जानकार-समझदार लोग भी श्वास की महत्ता को बखूबी समझते हैं और उसकी तार्किक व्याख्या भी करते हैं. अतः सुबह व्यायाम/आसन  के बाद प्राकृतिक परिवेश में कम-से-कम 15-20 मिनट प्राणायाम और ध्यान करें. कहना न होगा, योगाभ्यास के जरिए आप  निराशा, तनाव (स्ट्रेस) एवं अवसाद (डिप्रेशन) से भी निजात पा सकते हैं. 

दरअसल, नींद हमारी जरुरत नहीं, आवश्यकता है. रात में जल्दी सोयें और सुबह जल्दी उठें. रात में 7-8 घंटा जरुर सोयें. रात में  नींद के  दौरान शरीर रूपी इस जटिल, किन्तु अदभुत मशीन की रोजाना सफाई व रिपेयरिंग आदि होती रहती है; छोटे-मोटे रोग स्वतः ठीक हो जाते हैं. तभी तो  दिनभर की व्यस्तता के कारण जो  थकान महसूस होती है वह रात भर की नींद से काफूर हो जाती है और आप हर सुबह तरोताजा महसूसते हैं. 
                              (hellomilansinha@gmail.com)

             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
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Sunday, May 19, 2019

मोटिवेशन : सोच-समझकर कोर्स का करें चयन

                                          - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... 
सामान्यतः इंटरमीडिएट और 12वीं यानी प्लस-टू की परीक्षा के बाद विद्यार्थियों के लिए अपने कैरियर को ध्यान में रख कर उपयुक्त कोर्स चुनने का कठिन समय होता है. ऐसा देखा गया है कि  साइंस के अच्छे विद्यार्थी पर मुख्यतः इंजीनियरिंग या मेडिकल में एडमिशन के लिए आंतरिक  एवं बाहरी दवाब होता है और चाहे–अनचाहे वे इन्हीं दोनों कोर्स  में से किसी एक में दाखिला लेने की कोशिश करते हैं. ऐसे पिछले कुछ वर्षों से विद्यार्थी एग्रीकल्चर साइंस और उससे जुड़े कई कोर्स में भी रूचि दिखा रहे हैं. इसके पीछे अधिकांश विद्यार्थी एवं उनके अभिभावकों की भावना मूलतः यह होती है कि एक बार इनमें से किसी कोर्स  में एडमिशन हो गया तो नौकरी  या अपना व्यवसाय अथवा प्रैक्टिस करके जीवन यापन करना आसान हो जाएगा. इंजीनियरिंग पढ़ने को इच्छुक विद्यार्थियों के लिए गौरतलब बात है कि आईआईटी, एनआईटी के साथ-साथ हजारों निजी और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में परंपरागत कोर्स के अलावे अब इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग जैसे कोर्स की पढ़ाई हो रही है, क्यों कि देश-विदेश  के रोजगार बाजार में इनकी अच्छी मांग है. इसी तरह मेडिकल की पढ़ाई के मामले में भी नए-नए कोर्स शामिल हो रहे हैं. विद्यार्थी पैरामेडिकल साइंस से जुड़े कई कोर्स में दाखिला ले सकते हैं, जिनका चिकित्सा क्षेत्र में अच्छी उपयोगिता है और आगे इसमें रोजगार की संभावना काफी बढ़नेवाली है.  

कॉमर्स और आर्ट्स के अच्छे विद्यार्थी चार्टर्ड एकाउंटेंसी, कॉस्ट एकाउंटेंसी आदि को चुनते हैं और तदनुरूप कोशिश करते हैं. ऐसे साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स के अधिकांश विद्यार्थी  बीएससी, बीए, बीकॉम जैसे  पारम्परिक कोर्सों में एडमिशन के लिए प्रयास करते देखे गए हैं. उन सभी विद्यार्थियों के लिए  बीबीए (बैचलर इन बिज़नस एडमिनिस्ट्रेशन), बीसीए (बैचलर इन कंप्यूटर एप्लीकेशन), होटल मैनेजमेंट, फोटोग्राफी, इवेंट मैनेजमेंट, जर्नलिज्म जैसे कई और  विकल्प मौजूद हैं. भारत सरकार के डिजिटल पहल के साथ ही उससे संबंधित क्षेत्र रोजगार  के नए द्वार खोल रहे हैं और विद्यार्थियों के पास उससे जुड़े विभिन्न कोर्स की पढ़ाई कर नौकरी व रोजगार पाने का मौका है.

कहना न होगा, निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लड़के-लड़कियां औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद एक अच्छी नौकरी की चाहत रखते हैं. लेकिन  नौकरी के आज के बाजार में सिर्फ परंपरागत स्नातक या स्नातकोत्तर डिग्री के बूते मनचाही नौकरी पाना आसान नहीं है.  देश में शिक्षित बेरोजगारों से संबंधित आंकड़े भी बताते हैं कि परंपरागत कोर्सों में अच्छे अंक या ग्रेड के साथ उत्तीर्ण होने के बावजूद ऐसे विद्यार्थियों  में से अनेक या तो बेरोजगार हैं या कोई ऐसी-वैसी नौकरी कर रहे हैं जिनका उनकी डिग्री से कोई प्रत्यक्ष वास्ता नहीं होता है, जब कि ऐसी डिग्रियां अर्जित करने में काफी वक्त एवं  मोटी रकम खरचने पड़ते हैं. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि व्यापार एवं उद्योग की बदलती जरूरतों के लिहाज से ऐसे कई कोर्स विभिन्न शिक्षण संस्थानों तथा स्किल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट में अब उपलब्ध हैं जिन्हें  नौकरी के बाजार में अपेक्षाकृत ज्यादा अहमियत दी जा रही है. देखा जा रहा है कि नियोक्ता के तौर पर आजकल निजी क्षेत्र की कम्पनियां आम तौर पर ऐसे उम्मीदवार को तरजीह देते हैं जिनका एकेडमिक बैकग्राउंड तो ठीक-ठाक हो, साथ ही जो नयी चीजें सीखने तथा चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तत्पर रहे. कारण, ऐसे नए कर्मियों को तीन से बारह  माह की अवधि का उपयुक्त ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग देकर दक्ष बनाना आसान होता है. अतः यह आवश्यक है कि विद्यार्थी अभी से अपने एकेडमिक कोर्स के चयन के साथ-साथ अपने जॉब / बिज़नेस कैरियर की प्लानिंग को भी यथोचित महत्व दें.

कहते हैं न कि जानकारी  समाधान तक पहुंचने का एक अहम जरिया है. लिहाजा, नए भारत के निर्माण के मौजूदा दौर में विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को इस बात पर भी गंभीरता  से विचार  करना पड़ेगा कि नौकरी के अलावा स्व-रोजगार के निरंतर बढ़ती संभावनाओं को ध्यान में रखकर विद्यार्थी कोर्स का चुनाव करें. अगर नौकरी और स्व-रोजगार दोनों के दरवाजे खुले रखने हैं तो यह मुनासिब होगा कि विद्यार्थी वैसे कोर्स में दाखिला लें, जिससे बाद में दोनों को साधने की संभावना बनी रहे. दोस्तों के देखा-देखी किसी भी कोर्स को चुनना और आगे चार-पांच साल व्यतीत  करना, समय और पैसे दोनों की बर्बादी है. निराशा और तनाव जो झेलना पड़ेगा, सो अलग. अभिभावकों और शिक्षकों से भी विद्यार्थियों के साथ विचार-विमर्श करने और उनका उचित मार्गदर्शन करने की अपेक्षा स्वाभाविक है.                      (hellomilansinha@gmail.com) 

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Monday, May 6, 2019

मोटिवेशन : रिजल्ट स्वीकारें और आगे बढ़ें

                                     - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... 
यूनिवर्सिटी, कॉलेज या स्कूल की वार्षिक परीक्षाओं की बात करें तो  रिजल्ट का दिन स्वाभाविक रूप से आशा, उत्सुकता, संशय और तनाव का दिन होता है - विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों  के लिए विशेष तौर पर. परीक्षाफल किसी के लिए खुशियों की सौगात लेकर आता है, किसी के लिए संतोष की छोटी-सी मुस्कान, तो किसी के लिए गम की गठरी. किसी के घर में उत्सव का माहौल होता है, किसी के घर में न ख़ुशी, न गम की सामान्य स्थिति, तो किसी के घर में डांट-फटकार, दोषारोपण और पश्चाताप की स्थिति. अगले कुछ दिन इसी तरह गुजरते हैं. विद्यार्थी खुद भी और उनके आसपास के लोग तुलनात्मक आकलन और कमेन्ट्री में व्यस्त हो जाते हैं. कई घरों में तो विद्यार्थी द्वारा पिछली परीक्षा से बेहतर रिजल्ट हासिल करने पर भी अभिभावक खुश होने तथा अपने लड़के या लड़की को शाबाशी देने के बजाय उसे कोसने लगते हैं क्यों कि पड़ोसी के बच्चे ने उनके बच्चे से कुछ बेहतर अंक हासिल किए हैं, जब कि उन्हें यह पता नहीं होता कि पड़ोसी के बच्चे ने पिछली परीक्षा से कम ही मार्क्स स्कोर किए हैं. कहने की जरुरत नहीं कि इसी बीच कुछ वियार्थी अपने खराब रिजल्ट और उसके बाद घर-बाहर के तानों से परेशान हो कर घर से भाग जाते हैं, अवसादग्रस्त हो जाते हैं या आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं. ऐसे समय अखबारों में छात्र-छात्राओं द्वारा आत्महत्या की घटनाओं की खबर सभी पढ़ते रहे हैं. विचारणीय प्रश्न है कि विद्यार्थी और उनके घरवालों दोनों को अच्छी तरह मालूम होता है कि रिजल्ट को बदल पाना अब संभव नहीं है, फिर भी वे उसे मन से स्वीकार नहीं करते हैं और परिणामस्वरूप घर के सभी लोग अकारण तनाव में जीते हैं. निश्चित रूप से यह किसी भी दृष्टि से अच्छी स्थिति नहीं है. जो होना था, वो तो हो गया. अब उसे स्वीकारते हुए आगे क्या करना है इस पर ठंडे दिमाग से सोच-विचार-विश्लेषण करके भविष्य में ऐसी गलती फिर न हो यह सुनिश्चित करने का विद्यार्थी द्वारा प्रयास करना सर्वथा उचित होता है.  देखिए, एप्पल कंपनी के संस्थापक और प्रसिद्ध आईटी एवं प्रबंधन विशेषज्ञ स्टीव जॉब्स क्या कहते हैं, 'कई बार आपके प्रयास में कमियां रह जाती हैं. सबसे बेहतर है, जितना जल्दी हो उन्हें स्वीकार करें और अपनी कोशिशों में सुधार लायें.'

दरअसल, परीक्षार्थी से बेहतर और कोई नहीं जानता कि रिजल्ट अच्छा, खराब अथवा आशा के अनुरूप नहीं होने के मुख्य कारण क्या हैं. सच पूछिए तो  इसके एक नहीं, अनेक कारण हो सकते हैं. मसलन, पढ़ा बहुत, पर सवाल कठिन थे; सवाल तो सही थे, पर सटीक उत्तर नहीं लिख पाये या तय समय के भीतर सभी सवाल का जवाब नहीं लिख पाये; तैयारी पूरी नहीं कर पाये; तैयारी तो पूरी थी, पर एग्जाम से ठीक पहले तबियत खराब हो गयी आदि. हां, अलग-अलग विद्यार्थी के लिए कारण में भिन्नता स्वाभाविक है. जो भी हो इस समय विद्यार्थी खुद को कोसना शुरू मत कर दें और न ही इस समय बड़ों के डांट- फटकार या किसी दूसरे के तंज को दिल से लें. 

खराब रिजल्ट के कारण तात्कालिक रूप से मायूस / तनावग्रस्त / अवसादग्रस्त हो जाना गैर मुनासिब नहीं है, तथापि ऐसी अवस्था हो तो थोड़ी देर खुली हवा में आँख बंद कर बैठें और डीप ब्रीदिंग करें. फिर खुले मन से अपनी गलती को सबके सामने बिना संकोच स्वीकारें और उन्हें यह भरोसा दिलाएं कि अगली परीक्षा में आप बेहतर प्रदर्शन जरुर करके दिखायेंगे. इतना करने भर  से ही आपका मन कुछ तो हल्का हो ही जाएगा और आपके घरवाले भी थोड़ा सहज-सामान्य फील करने लगेंगे. अब स्नान आदि से निवृत होकर सबके साथ खाना खाएं. अपना व्यवहार यथासंभव नार्मल रखने की कोशिश करें. तनाव फिर भी महसूस हो तो घर में आपके सबसे प्रिय व्यक्ति से खुल कर बात करें या अपने सबसे अच्छे दोस्त से बात करें, टीवी आदि पर कॉमेडी शो का आनन्द लें, पर्याप्त पानी/ मौसमी फल का रस पीएं और नींद का पूरा लाभ उठाएं. आपका तनाव स्वतः बहुत कम हो जाएगा. अगले दिन से एक बेहतर रूटीन को ईमानदारी से फॉलो करें.   

एक बात और. हर विद्यार्थी को यह मानना चाहिए कि उनके जीवन में परीक्षाएं आती-जाती रहेंगी, रिजल्ट अनुकूल-प्रतिकूल होते रहेंगे, आसपास के लोग कुछ-न-कुछ बोलते रहेंगे, लेकिन किसी भी परिस्थिति में खुद पर भरोसा बनाए रखना, अपना संतुलन कायम रखना और यथाशक्ति निष्ठापूर्वक अपना काम करते जाना उनके लिए सबसे जरुरी और अहम है. इतिहास के पन्ने ऐसे हजारों रियल लाइफ स्टोरी से भरे पड़े हैं, जिसमें हर शख्स ने कंफ्यूशियस के इस विचार को अपने कर्मों से साबित किया है कि 'हमारी महानतम विशालता कभी भी न गिरने में नहीं बल्कि गिरने पर हर बार फिर उठ जाने में निहित है.'
 (hellomilansinha@gmail.com)

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