Friday, October 29, 2021

विवाद, संवाद और समाधान

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

जीवन में कभी विवाद की स्थिति न आए, ऐसा नामुमकिन है. किसी भी विषय पर मतभेद होना  भी बहुत स्वाभाविक है. लेकिन हमेशा या अधिकांश समय विवाद में पड़ना या रहना और मनभेद का शिकार हो जाना विद्यार्थियों के लिए मुनासिब नहीं है. यह भी जानना और उसे आचरण में शामिल करना उतना ही जरुरी है कि हर विवाद का अंत संवाद से ही संभव हो पाता है. संवाद की मानसिकता से काम करने पर जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है. यह जानते हुए भी बहुत सारे विद्यार्थी जाने-अनजाने विवाद से घिरे और उसमें उलझे रहते हैं. काबिले गौर बात है कि अच्छे विद्यार्थी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि विवाद से फायदा कम होता है. बहुमूल्य समय और ऊर्जा की क्षति बहुत होती है. वे यह भी जानते हैं कि बेवजह विवाद पैदा करनेवाले तत्व एक के बाद दूसरे विवाद में विद्यार्थियों को उलझाकर  अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं. उनकी मंशा यह भी होती है कि विद्यार्थियों को किस तरह विवाद के मकड़जाल में फंसाया जाए, जिससे कि उनका ध्यान अध्ययन से हटे और उनका रिजल्ट खराब हो जाए. हर शैक्षणिक संस्थान में मौजूद ऐसे लोगों से आप सभी परिचित होंगे. वे बात-बेबात ज्यादातर विद्यार्थियों के लिए अप्रासंगिक विषयों को  विवाद का मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं. बेशक ऐसे विवादों से दूर रहना जरुरी है. यहां यह जानना भी जरुरी है कि छात्र जीवन में छात्र-छात्राएं विवादों से आम तौर पर कैसे निबटें, जिससे कि वे अध्ययन पर ज्यादा फोकस कर सकें? 


अध्ययन से जुड़े विषय पर ही बात करें: मित्र मंडली में या अन्यत्र हर वक्त इसका ध्यान रखें कि चर्चा का विषय अध्ययन से संबंधित हो. वहां भी सीखने-सीखाने पर बात हो तो अच्छा, अन्यथा वहां से प्रस्थान करना बेहतर है. इससे कुछ साथी-सहपाठी बेशक नाराज हो सकते हैं, लेकिन ऐसा करना ही सबके लिए हितकर होता है, क्यों कि इससे आपका फोकस नहीं बिगड़ता और मित्रों को भी सोचने और समीक्षा करने का एक और मौका मिल जाता है. इससे "हम भी रहें अच्छे, तुम भी रहो अच्छे" के सिद्धांत पर अमल भी हो जाता है.   


जाति, धर्म, राजनीति जैसे विषयों से दूर रहें: देखा गया है कि इन विषयों पर विवाद होने पर सार्थक चर्चा कदाचित ही हो पाती है. तर्क और तथ्य से परे भावना, अनुमान, पूर्वाग्रह व  संभावना पर बहस होने लगती है. कमोबेश सब अपने-अपने स्टैंड पर कायम रहते हैं. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है. लिहाजा बातचीत का शायद ही कुछ निष्कर्ष निकलता है. 

 
विवाद को सुलझाने पर फोकस करें: अधिकतर मामलों में विवाद पर सिर्फ बहस होती रहती है. उसको सुलझाने या उसका समाधान खोजने पर फोकस नहीं रहता.  कई बार तो मूल मुद्दा ही गौण हो जाता है और अनावश्यक बातों में लोग उलझे रहते है, जैसा कि आम तौर पर आजकल प्राइम टाइम टीवी शो पर अहम मुद्दों पर चर्चा का हश्र होता है. अतः ऐसे अवसरों पर अपने व्यवहार और संवाद कौशल से समाधान तक पहुंचने का रास्ता तलाश लेना बुद्धिमानी है. 

 
असीमित समय खर्च न करें: समय अमूल्य है. बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता. इस बात को दिमाग में रखकर चर्चा में शामिल हों. बेहतर यह होता है कि किसी एक मुद्दे पर, चाहे वह कितना ही विवादित हो, चर्चा का समय अधिकतम एक या दो घंटा नियत कर लें. हर विद्यार्थी को बोलने और उन्हें शांतिपूर्वक सुनने की शर्त सख्ती से लागू हो. ऐसा न होने पर पूरी संभावना होती है कि बहस असीमित समय तक चलता रहे, जिसका पश्चाताप बाद में ज्यादातर विद्यार्थियों को होता है.


आपसी कटुता से बचें: किसी विवाद पर बात करते-करते हमलोग  जाने-अनजाने व्यक्तिगत टिप्पणी या आक्षेप करने लगते हैं. इससे माहौल बिगड़ता है और अनावश्यक रूप से आपसी कटुता और मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इसका बहुआयामी नुकसान सबको कम या अधिक मात्रा  में उठाना पड़ता है. सब जानते हैं कि अच्छे रिश्ते बनाने में बहुत समय लगता है, लेकिन ऐसे मौके पर उसके टूटने-बिखरने में समय नहीं लगता. देखा गया है कि विवादित विषय पर पेशेवर तरीके से चर्चा करने पर न केवल कई बिन्दुओं पर सहमति बन जाती है और आपसी कटुता से बचना संभव होता है, बल्कि आगे संवाद से समाधान तक पहुंचने के दरवाजे खुले रहते हैं. राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर विवाद को सुलझाने में यही दृष्टिकोण अपनाया जाता है.     

 (hellomilansinha@gmail.com)

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के  16-31 अक्टूबर, 2021 अंक में प्रकाशित

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com   

Tuesday, October 12, 2021

होंगे कामयाब की मानसिकता

                         - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

मन में है विश्वास, हम होंगे कामयाब की मानसिकता के साथ जीवनपथ पर चलनेवाले विद्यार्थियों की दिनचर्या और जीवनशैली पर गौर करना दिलचस्प है और सबके लिए लाभदायक भी. किसी भी संस्थान में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या हो सकता है कि बहुत ज्यादा न हो, पर यही विद्यार्थी अपने-अपने क्षेत्र में देर-सवेर बड़ी सफलता हासिल करते हैं और नए-नए कीर्तिमान भी बनाते हैं. हाल में ही संघ लोक सेवा आयोग द्वारा घोषित सिविल सर्विसेज का रिजल्ट भी इसी तथ्य को संपुष्ट करता है. रैंकिंग में टॉप फिफ्टी में शामिल सफल लड़के-लड़कियों के बायोडाटा पर गौर करने पर यह बात साफ हो जाती है कि पहले, दूसरे या तीसरे प्रयास में असफल होने के बावजूद उनके मन में यह विश्वास बना रहा कि हम होंगे कामयाब और फलतः बेहतर कोशिश के जरिए उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया. सवाल है कि आखिर ऐसे विद्यार्थी जीवन में कौन सी रणनीति अपनाते हैं. आइए जानते हैं. 


लक्ष्य के प्रति अटूट समर्पण: खूब सोच-समझ कर एक बार जो लक्ष्य तय करते हैं उसके प्रति पूर्णतः समर्पित रहते हैं. कोई द्वन्द या दुविधा का फिर कोई सवाल खड़ा नहीं होता. अब बस लक्ष्य को हासिल करने के लिए फुलफ्रूफ कार्ययोजना बनाकर उसपर अमल करने का हर संभव प्रयास करते रहते हैं. दूसरे क्या कर रहे हैं या करेंगे या कहेंगे, इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं होती. इसके बजाय वे क्या कर सकते हैं और करेंगे उस पर ही उनका पूरा फोकस होता है. वे सोते-जागते बस अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में ध्यान केन्द्रित करते हैं और तदनुरूप एक्शन लेते हैं.   


खुद पर विश्वास: अपने आत्मविश्वास को हमेशा उच्च स्तर पर बनाए रखने के लिए खुद पर विश्वास करना अनिवार्य है. हर विद्यार्थी यह बेहतर जानता है कि उसके अध्ययन में कहां-कहां कमी है, उसमें कैसे गुणात्मक सुधार किया जा सकता है और यह भी कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में वह खुद सक्षम है. किसी परीक्षा, टेस्ट या प्रतियोगिता में असफल होने की स्थिति में यह आकलन और खुद पर विश्वास बनाए रखना आगे की यात्रा को ज्यादा फलदायक बनाने की बुनियादी शर्त है. इसे वे बराबर याद रखते हैं और साथ ही सदा आशावान बने रहते हैं.  


उत्साह और ऊर्जा: अपने अध्ययन के प्रति सदैव बहुत उत्साहित रहना  सफलता का एक अहम पायदान होता है. उत्साह का स्पष्ट मतलब होता है लक्ष्य के प्रति आपका लगाव और समर्पण. और जब किसी चीज के प्रति यह लगाव और समर्पण रहता है तो उस चीज को हासिल करने के लिए आगे की कार्ययोजना आप खुद बनाने में जुट जाते हैं. हां, केवल उत्साह से काम संपन्न नहीं होता. इसके लिए अपेक्षित ऊर्जा की जरुरत होती है. ऐसे अनेक उदाहरण  मिल जायेंगे जब कोई विद्यार्थी अभीष्ट कार्य तो करना चाहता है, लेकिन ऊर्जा की कमी के कारण उसे कर नहीं पाता है. अतः अच्छे विद्यार्थी खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखते हैं.  

  
नियमित कड़ी मेहनत: सब जानते हैं कि कड़ी मेहनत को कोई विकल्प नहीं है. फिर भी सभी विद्यार्थी ऐसा नहीं करते. ज्ञानीजन सही कहते हैं कि जैसा करेंगे, वैसा भरेंगे. कहने का तात्पर्य यह कि बिना अपेक्षित मेहनत के अपेक्षित रिजल्ट की कामना बेमानी है. सफलता को अपनी मुट्ठी में करने के लिए सजगता के साथ अध्ययन में अपना अधिकांश समय लगाना है. सफलता का परचम लहराने वाले विद्यार्थी हर विषय के एक-एक चैप्टर को न केवल समझ कर पढ़ते हैं,  बल्कि उसे बीच-बीच में दोहराते भी रहते हैं. हर संभावित सवाल का उत्तर लिखकर प्रैक्टिस करना उनकी  मेहनत को चार चाँद लगाता है. ऐसा नहीं कि वे परीक्षा से कुछ दिन या हफ्ते पहले रातभर जगकर पढ़ते हैं. उनके लिए तो नियमित रूप से कड़ी मेहनत करना दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा होता है. 


असफलता से कभी घबराते नहीं: देखा  गया है कि असफल होने पर ज्यादातर विद्यार्थी दूसरे लोगों के टिप्पणियों को बहुत गंभीरता से लेने की भूल करते हैं. अच्छे विद्यार्थी  ऐसा नहीं करते. ऐसे समय उन्हें भी बुरा तो लगता है लेकिन वे बिना घबराए और कंफ्यूज हुए असफलता के कारणों का स्वयं विश्लेषण करके लक्ष्य के प्रति अपने संकल्प को और दृढ़ बनाना जरुरी समझते हैं. बिना समय गंवाए और बिना किसी पर दोषारोपण किए अपनी गलती का पता लगाते हैं, उससे सीख लेते हैं और बेहतरी के प्रयास में जी-जान से जुट जाते हैं. तभी तो कामयाबी उनके कदम चूमती है. 

(hellomilansinha@gmail.com)                

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 अक्टूबर, 2021 अंक में प्रकाशित

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