Wednesday, December 30, 2020

वेलनेस पॉइंट: प्रशंसा का मनोविज्ञान

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस  कंसलटेंट ... ...

अमेरिकी दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स कहते हैं,  “मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा पाने की इच्छा होती है.”
सही है. बच्चे-बूढ़े, राजा-रंक, मालिक-नौकर सबको प्रशंसा अच्छी भी लगती है. मनोवैज्ञानिकों का  कहना  है कि किसी की प्रशंसा करने के लिए हिम्मत चाहिए, निंदा करने के लिए नहीं. सही कार्य के लिए सही समय पर सही प्रशंसा मन को आनंदित कर देता है. इससे प्रशंसा पानेवाले और प्रशंसा करनेवाले दोनों के बीच एक मजबूत भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाता है. आचार्य वेदांत तीर्थ  के अनुसार "प्रशंसा की मीठी अग्नि यमराज के कठोर ह्रदय को भी मोम बना देती है, तभी तो वह अपने भक्त को अमर होने का वर दे देते हैं, यह जानते हुए भी कि इस संसार में कोई अमर नहीं." आइए, प्रशंसा से जुड़े कई अहम आयामों की चर्चा करते हैं.


दीगर बात तो यह है कि
सच्ची एवं समय पर प्रशंसा करना सबके बस की बात नहीं होती है. इसके लिए साफ़ दिल और खुले दिमाग के साथ-साथ आत्मिक बल की आवश्यकता होती है. हर मनुष्य के लिए अपने आत्मिक बल को बढ़ाना सदैव लाभकारी साबित होता है. लिहाजा किसी के भी अच्छे काम  की प्रशंसा करने का कोई अवसर कभी नहीं छोड़ना चाहिए. कहते हैं कि मनुष्य में जो कुछ उत्तम विद्दमान है, सही प्रशंसा और प्रोत्साहन के माध्यम से उसके विकास को गति देना आसान होता है. 

   
सदा यह याद रखें कि वर्कप्लेस में किसी भी व्यक्ति के काम की  प्रशंसा एकांत में या अपने चैम्बर में करने के बदले सार्वजनिक रूप से की जाए तो सबसे अच्छा.
इसका मतलब यह कि अगर ऑफिस में या अन्य किसी वर्कप्लेस में किसी कर्मी ने तारीफ़ योग्य कोई काम किया है तो किसी तय समय में उस ऑफिस के सारे लोगों के सामने उस कर्मी का अभिवादन एवं तारीफ़ करें. इससे उस स्टाफ  के अलावे उनके सहकर्मियों को बढ़िया फील होगा, उन सबमें  अनायास ही बेहतर परफॉरमेंस के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा का संचार भी होगा. 


किसी भी उपलब्धि के लिए आप जब उन्हें बधाई देते हैं -आमने-सामने या टेलीफोन पर या संदेश भेजकर, हमेशा अच्छी तरह बधाई दें. खानापूर्ति न करें. उन्हें यह फील होना चाहिए कि बधाई देनेवाले को उनकी उपलब्धि पर सचमुच ख़ुशी हुई है.
बनावटी बातें न करें. इससे आपकी सही भावना  सही तरीके से नहीं पहुँच सकती हैं. अगर आप खुद मिलकर अपनी भावना का इजहार करना चाहते हैं तो यह सबसे अच्छा होता है, बशर्ते कि आप सहजता और सरलता से उस भावना को प्रदर्शित कर सकें. कई बार अच्छी मंशा से की जाने वाली प्रशंसा भी खुशामद प्रतीत होती है क्योंकि उस प्रक्रिया में अतिरेक का तत्व अनायास ही शामिल हो जाता है. लिहाजा किसी की तारीफ़ करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए. 


प्रशंसा करने में टाल-मटोल करना, बिलंव करना अच्छा नहीं होता.
जैसे बासी खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, उसी प्रकार देर से की जानेवाली प्रशंसा रिश्ते की सेहत के लिए अच्छा साबित नहीं होता. दोस्तों की प्रशंसा उनके पीठ पीछे करने की अहमियत ज्यादा मानी गई है. ऐसा इसलिए कि सांसारिक दुनिया में सिर्फ मुंह पर प्रशंसा करके अपना उल्लू सीधा करना आम होता जा रहा है. 


सामान्यतः हम देखते हैं कि लोग किसी को मात्र खुश करने के मकसद से उनकी तारीफ़ करते हैं जो थोड़े समय के बाद अंततः चापलूसी का रूप ले लेता है. ऐसा तब और भी स्पष्ट साफ़ हो जाता है जब हम किसी के अच्छे काम की तारीफ़ करने के बजाय उस व्यक्ति की यूँ ही तारीफ़ करने लगते हैं. जैसे कि आप जैसा दिलदार आदमी तो हमने अब तक नहीं देखा, आप इतने स्मार्ट कैसे हैं, आपके अंदाज तो वाकई बेमिसाल हैं आदि, आदि. राजनीति में  ऐसी चापलूसी बहुत आम है. जाहिर है, ऐसा स्वार्थवश किया जाता है.
अंग्रेजी के महान कवि जॉन मिल्टन कहते हैं, "प्रशंसा कर्तव्यपरायणता के लिए बाध्य करती है, जब कि चापलूसी कर्तव्यविमुखता की ओर ले जाती है." 


कहने का तात्पर्य यह कि जो भी जब भी कोई अच्छा काम करे और उसे उसके लिए  वाहवाही मिले, प्रशंसा मिले तो निश्चय ही वह और अच्छे काम करने को प्रेरित होगा. इसका सकारात्मक असर उसके परिवार के साथ -साथ पूरे समाज पर पड़ना लाजिमी है.
विश्व विख्यात ब्रिटिश उपन्यासकार चार्ल्स डिकेन्स के जीवन में जो सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट आया वह उस तारीफ़ के कारण था जो उन्हें उनकी पहली कहानी के प्रकाशन के बाद संपादक से मिली. ऐसी अनेक मिसाल इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में  दर्ज है. कहना न होगा, प्रशंसा जैसे सरल पर बेहद प्रभावी मनोवैज्ञानिक औजार से अच्छे काम करनेवालों की तादाद में अप्रत्याशित बढ़ोतरी करके किसी भी समाज और देश को बहुत मजबूत बनाया जा सकता है.

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            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" में 06.09.2020 को प्रकाशित
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Tuesday, December 22, 2020

कहां हैं रोजगार के बड़े अवसर

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

देशभर  में रोजगार का मुद्दा हर दिन समाचार पत्रों में किसी-न-किसी रूप में स्थान पाता है. बिहार विधानसभा के चुनाव में तो यह एक अहम मुद्दा है. बेरोजगार लोगों, खासकर शिक्षित बेरोजगारों  की संख्या निरंतर बढ़ रही है.
सरकारी नौकरी को रोजगार का सबसे बड़ा जरिया मानने की  भूल बहुत से जानकार लोग भी करते हैं और पब्लिक के बीच इसका भ्रम भी फैलाते हैं.  हकीकत यह है कि उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में सरकारी नौकरी कुल रोजगार  का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है और आनेवाले दिनों में इसकी संख्या बढ़ने की गुजाइश कम है. इसके विपरीत इस समय और भविष्य में निजी और कॉरपोरेट क्षेत्र में नौकरी के बड़े अवसर मौजूद रहेंगे. स्वरोजगार का दायरा तो अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगा. इसके अनेक जाने-पहचाने कारण हैं.


यह सच है कि विकसित, विकासशील और अविकसित सभी देशों में करोड़ों लोग हैं, जिनके पास कोई रोजगार नहीं हैं.
इनमें से बहुत सारे लोगों को  जिनमें युवाओं की संख्या ज्यादा है, नियोक्ता दक्षता में कमी या प्रोफेशनल  योग्यता में  कमी का हवाला देकर रोजगार से वंचित रखते हैं.  हाल  के वर्षों में विश्व बैंक ने भी एकाधिक बार  दुनिया के देशों से ऐसी शिक्षा पर जोर देने की बात कही है जो युवाओं को जॉब मार्केट के अनुरूप प्रशिक्षित और तैयार कर सके. 


विद्यार्थियों को मालूम है कि
प्रधानमंत्री ने ‘मेक इन इंडिया' और "आत्मनिर्भर भारत" का नारा दिया है और इसे अमल में लाने हेतु अनेक कदम उठा रहे हैं, जिससे कि देश में युवाओं को रोजगार मिले और देश आर्थिक रूप से मजबूत भी बने. इसके लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों से यह आह्वान किया गया है कि वे भारत में अपनी फैक्ट्री स्थापित कर यहां अपने उत्पादों का निर्बाध उत्पादन करें. दीगर बात है कि इस अभियान की सफलता के लिए जरुरी है कि देशी-विदेशी निवेशकों और उद्योगपतियों को भारत में अपेक्षित संख्या में कुशल कामगार मिले. ऐसी स्थिति में  शिक्षा और रोजगार को आपस में जोड़ने और विद्यार्थियों को प्रोफेशनल कोर्सेज में शामिल होने का मौका  देना अनिवार्य है, जिससे कि वे नए-नए कौशल से लैस हो सकें. खुशी की बात है कि नई शिक्षा नीति में इसपर यथोचित जोर दिया गया है. इस परिस्थिति में विद्यार्थियों के लिए भी यह जरुरी है कि वे इस बात को ध्यान में रखें कि अभी और आगे कौन-कौन से सेक्टर में रोजगार सृजन की ज्यादा संभावना है, जिससे कि वे उसके अनुरूप कोर्स में योग्यता हासिल कर सकें. आइए, उनमें से तीन बड़े सेक्टर की बात करते हैं जहां आनेवाले दिनों में रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे. 

  
आईटी सेक्टर: सबको मालूम है कि डिजिटलाईजेसन के इस दौर में कमोबेश छोटे-बड़े सभी कारोबार इंटरनेट और कंप्यूटर आधारित होते जा रहे हैं. सरकारी नौकरी हो या कॉरपोरेट जॉब या अपना व्यवसाय-व्यापार या फिर जीएसटी से लेकर इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की बात हो, कंप्यूटर की उपयोगिता ज्यादा व्यापक  होती जा रही है. कोरोना काल में व्यवसाय परिचालन और व्यक्तिगत जरूरतों के लिए ऑनलाइन-डिजिटल लेनदेन  में एक बड़ा उछाल देखा जा रहा है. अतः आईटी और उससे संबंधित सेक्टर में जॉब की संख्या आनेवाले दिनों में काफी बढ़नेवाली है. 


फार्मा सेक्टर: कोरोना महामारी ने मोटे तौर पर लोगों को अपने और अपने परिवार के हेल्थ के प्रति पहले की तुलना में ज्यादा जागरूक बनाया है. आयुर्वेदिक मेडिसिन की ओर लोगों का रुझान बहुत बढ़ा है और इस बीच उनके टर्नओवर में अच्छी वृद्धि की बात सभी मार्केट विशेषज्ञ मान रहे हैं. मॉडर्न मेडिकल फैसिलिटी को व्यापक और उन्नत करने का एक नया दौर शुरू हो चुका है. मिशन इन्द्रधनुष कार्यक्रम और पीएम जनआरोग्य योजना के तहत बड़े स्तर पर हेल्थ एंड मेडिकल केयर सुविधा के विस्तार पर जोर दिया जा रहा है. साथ ही  फार्मास्यूटिकल कंपनियों और प्राइवेट अस्पतालों के बिज़नेस में बेहतर  ग्रोथ का संकेत व अनुमान है. स्वाभाविक रूप से इस सेक्टर में नौकरी और रोजगार की संभावना पहले से बहुत ज्यादा होगी.


टूरिज्म सेक्टर: इस क्षेत्र का दायरा बहुत व्यापक और संभावनाओं से भरा है. लिहाजा  यहां युवाओं के लिए सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में अनेक प्रकार के मौके उपलब्ध हैं.  राजमार्गों के तीव्र विकास के साथ-साथ पासपोर्ट-वीसा नियमों में सकारात्मक बदलाव के बाद इस क्षेत्र में उच्च  वृद्धि की पूरी संभावना है. इस क्षेत्र से जुड़े कोर्सेज में योग्यता प्राप्त करने के पश्चात छात्र-छात्राएं एयरलाइन्स, होटल, टूर-ट्रेवल, मेडिकल टूरिज्म आदि में अनेक तरह की नौकरी और रोजगार के योग्य बन पाते हैं.

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Tuesday, December 15, 2020

'कुछ तो लोग कहेंगे' तो क्या करें?

                                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

पिछले दिनों जेईई, नीट तथा कई अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं का रिजल्ट घोषित हुआ है.
आम तौर पर रिजल्ट निकलते ही सफल-असफल दोनों तरह के छात्र-छात्राओं का लोगों की प्रतिक्रियाओं  से सामना होता है. इस समय उन्हें "कुछ तो लोग कहेंगे" वाली बात सत्य प्रतीत होती है. अगर सफल हुए तो भी घर-बाहर के कुछ लोग बधाई और वाहवाही देने के साथ-साथ मार्क्स-ग्रेड-रैंक आदि के विषय में कई प्रकार के सवाल करते हैं. असफल हुए तो फिर ऐसे लोग सामने और पीठ पीछे न जाने क्या-क्या कहते हैं. सोचनेवाली बात यह है कि इन सब प्रतिक्रियाओं से किसी विद्यार्थी  के रिजल्ट में कोई फर्क नहीं पड़नेवाला है. फिर भी कुछ लोग आदतन ऐसा आचरण करते हैं. हकीकत तो यह है कि रिजल्ट जो होना था, वह तो हो गया. अब सफल-असफल दोनों तरह के विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को इस पर सोच-विचार कर आगे की योजना  तय करनी है.  हां, यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ विद्यार्थी ऐसे मौकों पर दूसरे की प्रतिक्रिया को जानने और उन्हें तरजीह देने  में रूचि रखते हैं और अनेक मामलों में उन्हें बिना सोचे-समझे सच मानकर अपना स्ट्रेस भी बढ़ा लेते हैं. यह सही नहीं है. दरअसल, ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को अपना रिएक्शन या रिस्पांस देने से पहले निम्न बातों को महत्व देना चाहिए. 


1.
किसी की बात का बुरा न मानें, क्यों कि आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आपने पिछले  दिनों क्या-क्या किया है, आप फिलहाल क्या कर रहे हैं और आगे क्या करने की योजना है. और सब यह मानते हैं  कि सामान्यतः कार्य या कोशिश के अनुरूप ही परिणाम मिलते हैं. अब अगर कोई दूसरा व्यक्ति - दोस्त, सहपाठी या अन्य कोई, आपके रिजल्ट की आलोचना में कुछ कह दे तो बस उसे एक बार सुन लें. बुरा न मानें और नाराज या गुस्सा न हों, क्यों कि  इससे आपकी स्थिति तो बदलेगी नहीं. उल्टा मूड और रिश्ता खराब होने का जोखिम जरुर रहेगा. हां, आप इस संभावना को भी बिल्कुल ख़ारिज नहीं कर सकते हैं कि अगर तटस्थ रहकर आप उनके कमेंट्स को  सुनें तो शायद कुछ अच्छी बात पता चल जाए और अनायास कुछ लाभ हो जाय. 


2. आपको क्या लगता है, यह ज्यादा अहम है.
लोग तो कुछ-न-कुछ कहेंगे, लेकिन अपने जीवन  के प्रति आपकी सोच का ही सबसे ज्यादा महत्व है. अगर आप सोचते हैं कि आपने जो किया है और जो करनेवाले हैं, वह आपको आपके लक्ष्य तक जरुर ले जाएगा, तो फिर कोई बात नहीं. लेकिन अगर आपको लगता है कि पीछे जो कुछ किया, वह सही नहीं था या उसमें सुधार  और बेहतरी की बहुत गुंजाइश है, तो आपको गंभीर सोच-विचार और जरुरी हो तो परामर्श-विमर्श करके यथाशीघ्र उस पर अमल करना पड़ेगा. चुनौतीपूर्ण और  मुश्किल वक्त में ही आपकी सही परीक्षा होती है. अतः इस समय अपनी भावनाओं पर  नियंत्रण रखना और सही दिशा से न भटकना हर विद्यार्थी के लिए अनिवार्य है. 


3. खुद को आगे के लिए अच्छी तरह तैयार करें.
देखिए  स्वामी विवेकानंद ने कितनी अच्छी  बात कही है. वे कहते हैं, "दुनिया क्या सोचती है, उन्हें सोचने दो. अपने इरादे मजबूत रखो. दुनिया एक दिन आपके कदमों में होगी." कहने का तात्पर्य यह कि अपने उत्कृष्ट कार्य से लोगों को यथोचित उत्तर देने का प्रयास सबसे अच्छा होता है. कहा भी गया है कि इतनी शांति और समर्पण से अपना काम करें कि आपकी सफलता का शोर सबको सुनाई दे. निसंदेह इसके लिए "कल से बेहतर हो आज" के सिद्धांत  को हकीकत में तब्दील करने की जरुरत होगी. अनावश्यक बातों से दूर रहकर पांडव पुत्र अर्जुन की तरह केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ेगा. हर समय सफलता के बारे में सोचने के बजाय अपने प्रयास की गुणवत्ता को बराबर उन्नत करना पड़ेगा.  


4. हमेशा आशावादी बने रहें, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो. आशावाद वह  विश्वास  है  जिसके सहारे   कुछ भी हासिल किया जा सकता है. विश्व इतिहास के पन्ने उन सच्ची कहानियों से भरे हैं, जिसमें आशा का दामन थामे लाखों लोगों ने अपने कठिन प्रयास से सफलता के नए-नए कीर्तिमान बनाए हैं.
प्रख्यात प्रबंधन गुरु डेल कार्नेगी कहते हैं कि दुनिया की ज्यादातर महत्त्वपूर्ण चीजें उन लोगों द्वारा हासिल की गई हैं जो प्रतिकूल परिस्थिति में भी आशा के साथ अपने प्रयास में लगे रहे."  ऐसे भी निराशा और आशा के दो नावों के बीच चुनाव की स्थिति हो तो कोई भी विद्यार्थी निराशा  के नाव में चढ़ कर मंजिल से बहुत दूर मंझधार में क्यों फंसा रहेगा?  

 (hellomilansinha@gmail.com)  

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 01.11.2020 अंक में प्रकाशित
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Friday, December 11, 2020

सावधान रहें, सुरक्षित रहें

                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में, जब अनलॉक को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की  कोशिश जारी है, धीरे-धीरे ही सही स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी भी खुलने लगे हैं. कोविड-19 के संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए वैक्सीन की उपलब्धता में अभी कुछ और महीनों  का समय लग सकता है. कोरोना वायरस से ग्रसित होनेवाले लोगों के लिए सटीक दवा भी बाजार में अब तक नहीं आ पाई है, तथापि कई सकारात्मक कारणों से संक्रमित लोगों के ठीक होने का प्रतिशत बेहतर हो रहा है. यह अच्छी स्थिति है, पर संक्रमण का खतरा बरकरार है और आसन्न जाड़े के मौसम में इसके बिगड़ने की संभावना की बात मेडिकल एक्सपर्ट भी कर रहे हैं.


कतिपय कारणों से हमारे देश में कुछ लोगों द्वारा नियम और दिशानिर्देश के अनुपालन में गंभीरता का अभाव दिखता है, लेकिन उसका दुष्प्रभाव  सभी झेलते हैं. कोरोना काल में भी स्थिति  कमोबेश वैसी  ही रही है और इसी वजह से इतने लम्बे लॉक डाउन और क्रमिक अनलॉक की अवधि के बावजूद जितनी सुधार की अपेक्षा और गुंजाइश थी, उतना नहीं हो पाया है. हां, तुलनात्मक रूप से हमारे देश की स्थिति कई अन्य देशों से बेहतर है. यह संतोष का विषय है.
खैर, अब जब कि बड़ी संख्या में विद्यार्थी अध्ययन आदि के लिए घर से बाहर निकलेंगे, तो कोरोना के संक्रमण की चुनौती बहुत बड़ी होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. एक और बात है. छह महीने से ज्यादा घर में रहने के बाद जब छात्र-छात्राओं को दोस्तों-सहपाठियों से मिलने का मौका मिलेगा तब क्या  सावधानी का समुचित पालन हो पायेगा, जिसका दिशानिर्देश सरकार निरंतर जारी करती रही है? 


रेल यात्रा के दौरान विद्यार्थियों ने कई स्थानों पर यह लिखा हुआ देखा होगा कि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी. बिल्कुल यही बात इस समय लागू होती है, शायद कुछ ज्यादा ही.
यह सही है कि हर शिक्षण संस्थान में कुछ विद्यार्थी ऐसे होंगे जो लापरवाह और गैरजिम्मेदार होंगे, लेकिन अगर बाकी विद्यार्थी, जिनकी संख्या 95 प्रतिशत से कम नहीं होगी,  सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करें तो कोरोना के संक्रमण से एक बड़े हद तक बचे रहना संभव हो पायेगा. फिर भी  इस मुद्दे पर  स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी प्रशासन को सोच-विचार कर एक प्रभावी प्रोटोकॉल तैयार करना पड़ेगा और उसे सख्ती से लागू भी करना पड़ेगा. इसमें अभिभावकों और जिला प्रशासन की भूमिका भी अहम होगी. एक जरुरी बात और. तीन अहम गाइडलाइन - दो गज की दूरी, मास्क पहनना और साबुन से समय-समय पर ठीक से हाथ धोना, के अनुपालन के साथ-साथ निम्नलिखित बातों को भी सभी विद्यार्थी अमल में लाएं तो उन्हें बहुत लाभ होगा.  


1) घर लौटकर पहले शरीर और कपड़े को साबुन-पानी से साफ़ कर लें. ऐसे आरामदेह और वाशेवल कपड़े पहनकर बाहर जाएं जिससे शरीर कमोबेश ढका रहे. इसे घर लौटकर तुरत वाश कर लें. कहने का आशय यह कि एक ड्रेस को बिना साबुन या डिटर्जेंट से धोए दुबारा न पहनें. हेल्दी लाइफ हेतु पर्सनल हाइजीन की अहमियत  तो हर विद्यार्थी को अच्छी तरह मालूम है. 2)  बाहर से ले कर आए कॉपी-किताब, लैपटॉप, फाइल, मोबाइल आदि को सेनिटाइज कर एक सुरक्षित स्थान पर रखें. घर में उनका इस्तेमाल करने से पहले उन्हें दुबारा सेनिटाइज कर लें तो अच्छा.
3) रोज सुबह-शाम तुलसी, काली मिर्च, लोंग, दालचीनी और अदरक से बना एक कप काढ़ा  चाय  की तरह पीएं. आंवला, नींबू सहित विटामिन सी बहुल चीजों के सेवन के साथ-साथ अन्य आसान तरीकों से अपने इम्यून सिस्टम को हमेशा स्ट्रांग बनाए रखने का प्रयास जारी रखें. सम्प्रति इसकी जरुरत अपेक्षाकृत अधिक है. 4) घर का बना पौष्टिक और सुपाच्य खाना ही खाएं, बेशक मन फ़ास्ट फ़ूड या नॉन वेजीटेरियन या चटपटा खाने के लिए मचलता हो. "हम बीमार तो घर परेशान, अपनी पढ़ाई-लिखाई में भी नुकसान" वाली बात को बराबर ध्यान में रखें. अपने साथ टिफ़िन और पानी फिलहाल घर से ही ले जाएं. जो ले गए हैं उसे ही खाएं. दूसरों से  न अपना खाना साझा करें और न ही उनके प्लेट या टिफ़िन से कुछ खाएं. फिलहाल उनसे भावनात्मक भाईचारा निभाएं. हो सके तो गुनगुना पानी पीने की आदत डालें. इससे स्वास्थ्य संबंधी अनेक लाभ होंगे. सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने से अभी जितना बच सकें, उतना अच्छा. रोज रात में सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी पाउडर डाल कर पीएं. 5) सबसे महत्वपूर्ण  बात यह कि हर हालत में अपने सोच को पॉजिटिव बनाए रखें. इसका सेहत पर  गहरा सकारात्मक असर होता है. 

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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" में 25.10.2020 को प्रकाशित
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Tuesday, December 8, 2020

फिट हैं, तो हिट हैं

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

हाल ही में प्रधानमंत्री ने
"फिट इंडिया मूवमेंट" की पहली वर्षगांठ के अवसर पर ऑनलाइन फिट इंडिया संवाद के दौरान देश के कुछ प्रमुख लोगों से संवाद किया और यह जानने की कोशिश की कि आखिर वे किस तरह अपने को फिट रखते हैं. इन चुनिन्दा लोगों में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान, एक योग गुरु, एक महिला फुटबॉल खिलाड़ी, एक मॉडल व फिल्म एक्टर, एक डायटीशियन और केन्द्रीय खेल मंत्री भी शामिल थे. इन लोगों ने प्रधानमंत्री और देश के साथ जो बातें साझा की उससे एक बात समान रूप से उभरकर आई कि ये सभी लोग अपने को फिट रखने के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध हैं और तदनुरूप अपनी दिनचर्या में उसे महत्वपूर्ण स्थान देते हैं. 
छात्र-छात्राओं को याद होगा कि पिछले साल प्रधानमंत्री द्वारा एक जन आंदोलन के रूप में फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की गई थी जिससे कि देशवासियों में, जिनमें युवाओं की संख्या 65 प्रतिशत से ज्यादा है, फिटनेस के प्रति लगाव बढ़े और फिटनेस हर भारतीय के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन सके.
उनका कहना है कि "सफलता का कोई एलिवेटर नहीं होता, सीढ़ी पर चढ़ने के लिए कदम उठाने ही पड़ते हैं. फिटनेस और सफलता के बीच अटूट  रिश्ता होता है. अतः हर किसी को फिटनेस की अपनी लकीर बड़ी करने पर मेहनत करनी चाहिए." अच्छी बात है कि इस अभियान के तहत गत एक साल के दौरान देशभर में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने भी आगे बढ़कर भाग लिया.  


इस संवाद के दौरान क्रिकेटर  विराट कोहली ने कहा कि शरीर के साथ दिमाग को भी फिट रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि वे क्रिकेट का प्रैक्टिस सेशन तो मिस कर सकते हैं, लेकिन अपना फिटनेस सेशन नहीं. कोहली ने फिटनेस के लिए सही डाइट और नींद की अहमियत भी बताई. 
फिट इंडिया संवाद के दौरान बिहार स्कूल ऑफ़ योग, मुंगेर के स्वामी शिवध्यान सरस्वती ने योगाभ्यास के विविध फायदों के विषय में बताते हुए मंत्र, आसन, प्राणायाम, शिथिलीकरण और ध्यान रूपी योग कैप्सूल की चर्चा की जिससे कि कम समय में लोग योग का अधिकतम लाभ ले पाएं. जम्मू-कश्मीर की रहनेवाली महिला फुटबॉलर अफशां आशिक ने अपनी फिटनेस की कहानी साझा करते हुए यह बताया कि कश्मीर की ताजी हवा उन्हें फिट रखने में काफी मदद करती है. उनके प्रदेश की लड़कियां फिटनेस के प्रति जागरूक हैं. एक्टर मिलिंद सोमन ने कहा कि फिट इंडिया मूवमेंट से लोगों तक फिटनेस की सही जानकारी पहुंचेगी. उन्होंने कहा कि उन्हें  जितना भी समय मिलता है वे खुद को फिट रखने के लिए कुछ न कुछ करते हैं. वे जिम नहीं जाते हैं और न ही किसी फिटनेस मशीन का इस्तेमाल करते हैं. सार संक्षेप यह कि जहां चाह, वहां राह.


इसमें कोई दो मत नहीं कि विद्यार्थियों समेकित विकास के लिए फिट रहना नितांत जरुरी है. अब सवाल है कि इसके लिए उन्हें जो तीन-चार बातें दिनचर्या में शामिल करनी चाहिए, वे क्या हैं?


1) सुबह जल्दी उठें: फिट रहने के लिए सुबह यानी सूर्योदय के आसपास उठना बहुत लाभकारी होता है. उस समय वायुमंडल अपेक्षाकृत साफ़ रहता है. ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होती है और विषैले गैस की मात्रा कम. सूर्य के प्रकाश से तनमन ऊर्जा से भर जाता है. रात में अच्छी नीद के बाद सुबह की सकारात्मक सक्रियता विद्यार्थियों के बेहतर मानसिक विकास में अहम रोल अदा करता है. 2) शरीर को जलयुक्त रखें: सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में दो तिहाई पानी होता है. मसल्स, हड्डी, ब्रेन, लंग्स सहित शरीर के अन्य अंगों को भी जल की जरुरत होती है. पानी की कमी से अनेक शारीरिक समस्या होती है. अतः सुबह उठने के बाद ही और दिनभर शरीर को जलयुक्त करें और रखें. इससे शरीर के सारे अंग ठीक ढंग से काम करते हैं. 3) एक्सरसाइज करें: शरीर को फिट रखने के लिए रोजाना कम-से-कम आधा घंटा एक्सरसाइज या योगाभ्यास करना जरुरी है. इसीलिए तो प्रधानमंत्री ने देशवासियों को 'फिटनेस का डो़ज, आधा घंटा रोज' का मंत्र दिया है. यहां नियमितता का बड़ा रोल है. 4) पौष्टिक आहार लें: फिटनेस के लिए पौष्टिक आहार का भी बहुत महत्व है. अतः अपने दैनिक आहार में अन्न, दाल, दूध, दही, घी, मौसमी सब्जी-फल आदि को शामिल करना आवश्यक है. हां, विद्यार्थियों  को अपने इलाके में प्रचलित खानपान से खुद को जोड़े रखना चाहिए, क्यों कि हर इलाके की प्राकृतिक स्थिति के अनुरूप वहां खानपान का एक सिस्टम होता है जिससे सामान्यतः वहां के लोगों की शारीरिक जरूरतें पूरी हो जाती हैं. 
 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 18.10.2020 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, December 1, 2020

संभव-असंभव और आपकी सोच

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

स्वामी विवेकानंद कहते हैं, "संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना.” अपने शब्दकोश में असंभव जैसे शब्द न होने की बात करनेवाले फ़्रांसिसी क्रांति के एक मुख्य योद्धा और बाद में फ़्रांस के सम्राट का पद ग्रहण करनेवाले नेपोलियन बोनापार्ट के जीवनवृत से हमें उनकी इस सोच का परिचय मिलता है.
दिलचस्प और विचारणीय बात यह है कि इतिहास के पन्नों में असाधारण और अकल्पनीय कीर्तिमान और उपलब्धियों के लिए जितने भी लोगों के नाम दर्ज हैं, संभव है कि उनको भी एक समय वह काम असंभव प्रतीत हुआ हो, परन्तु उन्होंने अपने संकल्प, समर्पण व अथक परिश्रम से उसे संभव कर दिखाया. 


यहां अमेरिका के मशहूर तैराक मार्क स्पिट्ज और उनके हमवतन माइकल फेल्प्स का जिक्र बहुत प्रासंगिक है.
मार्क स्पिट्ज ने 1972 के ओलंपिक में एक साथ सात गोल्ड मेडल जीतकर असंभव को संभव कर दिखाया था. उससे पहले 1936 के बर्लिन ओलिम्पिक में अमेरिकी धावक जेसी ओवंस ने  और 1964 के टोक्यो ओलिम्पिक में अमेरिकी तैराक डॉन स्कोलेंडर ने चार-चार स्वर्ण पदक जीतने का रिकॉर्ड बनाया था. जाहिर है कि  मार्क स्पिट्ज ने एक ही ओलिम्पिक में चार गोल्ड मैडल के विश्व रिकॉर्ड को तोड़कर सात गोल्ड मैडल जीतने का अविश्वसनीय कीर्तिमान बना दिया. आगे जो हुआ वह और भी आश्चर्यचकित करनेवाला सत्य था.  अमेरिकी तैराक माइकल फेल्प्स  ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में आठ गोल्ड मैडल जीतकर असंभव को संभव बनाने का नया इतिहास रच दिया. सच कहते हैं कि इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं. हम वो सब कर सकते है, जो हम सोच सकते है और हम वो सब सोच सकते है, जो आज तक हमने नहीं सोचा. 


अमूमन सभी छात्र-छात्राओं के जीवन में एकाधिक बार ऐसा वक्त आता है जब उन्हें लगता है कि यह काम बिलकुल असंभव है. इसके अनेक कारण हो सकते हैं, जिसमें  एक बड़ा कॉमन कारण होता है विद्यार्थी की सोच.
अनेक महान लोगों ने अलग-अलग सन्दर्भ में यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि हम जैसा सोचते हैं, धीरे-धीरे वैसा ही बनते जाते हैं. बराबर जीतनेवाले और बराबर हारनेवाले दो विद्यार्थियों में फर्क इसी बात का होता है, जबकि दोनों एक तरह की क्षमतावाले होते हैं. दरअसल, होता यह है कि एक विद्यार्थी ने किसी टास्क के विषय में ठीक से जाने बिना या उसका विश्लेषण किए बिना ही उसे न करने का मन बना लिया. अब सोच के स्तर पर वह टास्क संभव होते हुए भी असंभव प्रतीत होने लगता है. इससे वह अंदर से कमजोर पड़ता जाता है  और फिर खुद को उस टास्क को करने लायक नहीं समझता है. कहने का मतलब यह कि आप खेलने से पहले ही मैदान छोड़ देते हैं. और देखा और पाया गया है कि क्विट करनेवाले कभी विन नहीं करते हैं. इसके विपरीत, जब कोई भी विद्यार्थी पॉजिटिव सोच और एक्शन के साथ आगे बढ़ता है तो वह नेपोलियन हिल की इस बात को साबित करता है कि मस्तिष्क किसी चीज की कल्पना कर सकता है तो उसे साकार भी कर सकता है. हां, यहां अल्बर्ट आइंस्टीन की इस बात को याद रखना जरुरी है कि हर व्यक्ति जीनियस है, लेकिन अगर आप किसी मछली की क्षमता उसके पेड़ पर चढ़ने से आंकना चाहते हैं तो वह जीवनभर यही सोच कर जीएगी कि वह तो निरा बेवकूफ है. कहने का अभिप्राय यह कि विज्ञान के किसी विद्यार्थी से कॉमर्स की परीक्षा में टॉप करने की अपेक्षा करना सही नहीं है. लेकिन अपने विषय की परीक्षा में परीक्षा से पहले ही खुद को फेल समझकर ड्राप हो जाना भी उचित नहीं माना जा सकता है.  तो विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए?


1) किसी भी टास्क को बिना सोचे-समझे या जांचे-परखे सीधा ना न कहें और न ही किसी साथी-सहपाठी की बात पर कोई नेगेटिव फैसला कर लें. 2) जिस भी टास्क को हाथ में लें, उसके प्रति यह भाव मन में जरुर रखें कि यह हो सकता है और इसे अच्छी तरह करने की  पूरी चेष्टा करेंगे. 3) काम के बीच में कभी भी कोई रुकावट आए, कारण चाहे जो भी हो, बराबर अपनी क्षमता और अपने आत्मविश्वास पर  भरोसा बनाए रखें और काम करते रहें, और ज्यादा दृढ़ निश्चय के साथ. 4) टास्क थोड़ा कठिन रहे या रखें तो बेहतर होगा. ऐसा इसलिए कि मानव स्वभाव में यह बात अंतर्निहित होता है कि वह कठिन या विपरीत परिस्थिति में पहले से बेहतर परफॉर्म करता है. 5) यथोचित प्रयास के बाद भी अगर असफलता मिलती है तो उस लम्हे को सेलिब्रेट करके यादगार बना दें जिससे कि अगले प्रयास को इतना बेहतर बनाने का जुनून हो कि संभव की संभावना दो सौ फीसदी और असंभव की शून्य हो जाए. 

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Monday, November 23, 2020

जिज्ञासा का साथ न छूटे

                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

"जंगल बुक" जैसी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक ब्रिटिश साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग, जिन्हें  साहित्य के क्षेत्र में सबसे कम उम्र  में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, का कहना है, "मैं छह ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ. इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ.  इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन. सचमुच कितनी महत्वपूर्ण बात कही है इस महान लेखक ने.
सभी विद्यार्थी  इस बात से सहमत होंगें कि देश-दुनिया में अबतक जितने भी आविष्कार और अन्वेषण हुए हैं, सबके पीछे इन छह शब्दों की अहम भूमिका रही है. इसे एक शब्द में मनुष्य के  प्राकृतिक गुण जिज्ञासा के रूप में जाना जाता है. जरा सोचिए, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित  करनेवाले महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन के बारे में. अगर पेड़ से गिरते हुए सेव को देखकर उनको यह जिज्ञासा न हुई होती कि यह सेव नीचे धरती पर ही क्यों गिरा, तो क्या यह महान आविष्कार हो पाता? अगर महान भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बोस और इटालियन वैज्ञानिक गुल्येल्मो मार्कोनी अपनी जिज्ञासा को पंख न लगाते तो क्या रेडियो टेलीग्राफी का आविष्कार हो पाता और आज उसी सिद्धांत पर आधारित रेडियो, दूरसंचार, टेलीविज़न, मोबाइल आदि की  विराट और अदभुत  दुनिया का लाभ हम उठा पाते? 


दरअसल, जो अनदेखा, अनसुना और अनजाना है उसके प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा मनुष्य मात्र में होती है. प्राचीन काल से ही मनुष्य जाति इसको अपना सबसे प्रिय साथी और औजार बनाकर निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर होती रही है. वास्तव में, जिज्ञासा मनुष्य को हमेशा कुछ नया सोचने और करने को प्रेरित करती रहती है. यह नायाब मानवीय गुण एक ओर जहां निराशा और गम से जूझते लोगों को झकझोरती है और समाधान के नए रास्ते तलाशने को प्रेरित करती है, वहां  दूसरी ओर सुख-सुविधा से संपन्न व्यक्ति को जीवन का सही अर्थ जानने को विवश भी कर देती है. इसके बहुत सारे उदाहरण दुनिया में मौजूद हैं. एक बड़े उदाहरण के रूप में महात्मा बुद्ध और उनके अनमोल विचार दुनिया के सामने हैं. जरा सोचिए, अगर कोई विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा को विस्तार देते हुए एक बड़ा लक्ष्य रखे कि उसे तो इस ब्रह्माण्ड को समझने की कोशिश करनी है; पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सूरज-चाँद-सितारे, देश-विदेश आदि से जुड़ी हर बड़ी बात को जानने-समझने का प्रयास करते रहना है, तो उसे कितना ज्ञान और अनुभव हासिल होगा.  

    
विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात साफ़ तौर पर उभर कर आती है कि अधिकांश विद्यार्थी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद एक अच्छी नौकरी की तलाश में रहते हैं, जब कि अपनी शिक्षा, जिज्ञासा और क्षमता के आधार पर अपना व्यवसाय या उद्द्योग शुरू करने हेतु आगे आनेवाले युवाओं की संख्या अभी भी बहुत कम है. इस स्थिति में बदलाव जरुरी है.
अच्छी बात है कि नई शिक्षा नीति का एक बड़ा उद्देश्य विद्यार्थियों में जिज्ञासा की प्रवृति को उत्प्रेरित करना है जिससे कि छात्र-छात्राएं छात्र जीवन में और उससे आगे भी अपने सोच-विचार तथा कार्य-कलाप को उन्नत करते रहें. 


हर विद्यार्थी में जिज्ञासा का गुण विद्यमान होता है. बस हमेशा यह कोशिश करते रहने की जरुरत होती है कि किसी भी कारण जिज्ञासा की आग ठंडी न हो जाय. इसके लिए विद्यार्थियों को इन अहम बातों पर फोकस करना चाहिए.
पहली बात यह कि कभी भी प्रश्न पूछने से संकोच न करें. हां, प्रश्न पूछने का अंदाज शालीन और मर्यादित हो तो बेहतर. यह सच है कि कई बार विद्यार्थी यह सोचकर प्रश्न नहीं पूछते कि साथी-सहपाठी या शिक्षक बाद में उसका मजाक तो नहीं उड़ायेंगे. इस मामले में किसी ने बहुत सही कहा है कि जो विद्यार्थी प्रश्न पूछता है उसका कुछ देर के लिए तो मजाक उड़ाया जा सकता है या थोड़े समय के लिए तो वह मूर्ख प्रतीत हो सकता है, लेकिन जो विद्यार्थी इस डर से प्रश्न ही नहीं  पूछते, वे तो जीवन भर मूर्ख बने रहते हैं. दूसरा, अपने प्रश्न का उत्तर ठीक से सुनें और उसे समझने का यत्न करें. पूरी तरह न समझने की स्थिति में या उस विषय में कोई और प्रश्न दिमाग में आने पर उसका भी समाधान प्राप्त करें. तीसरा, जिज्ञासा के दायरे को सीमित न करें. कहने का आशय यह कि कोर्स में आपके जो भी सब्जेक्ट्स हैं उनके केवल कुछ प्रश्नों को सॉल्व करके संतुष्ट न हो जाएं, बल्कि अन्य सभी संभावित प्रश्नों के प्रति जिज्ञासु बनकर समाधान तक पहुंचने की चेष्टा करें. इसके लिए आपको को उस विषय के साथ गहरी दोस्ती निभानी पड़ेगी. निसंदेह, आपको अपनी जिज्ञासा के मैजिकल परिणाम मिलते रहेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 04.10.2020 अंक में प्रकाशित
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Thursday, November 19, 2020

चलेगा कार्यशैली के मायने

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सभी विद्यार्थियों ने यह गौर किया होगा कि उनके स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में कुछ शिक्षक-प्राध्यापक अपने क्लास में जिस विषय  या चैप्टर को पढ़ाने आते हैं, उसे किसी तरह आधा-अधूरा पढ़ा कर घंटी बजते ही झट क्लास से निकल जाते हैं. क्लास के बाहर आप उनसे कुछ पूछने-समझने जाएं तो वहां भी वे आपको यथाशीघ्र चलता करते हैं. दिलचस्प बात है कि  वे अपनी संस्थान से कम वेतन नहीं लेते हैं और न ही अपने को किसी दूसरे शिक्षक-प्राध्यापक से कमतर ही समझते हैं. उसी तरह कुछ विद्यार्थी अपना क्लास जैसे-तैसे अटेंड करते हैं - कभी करते हैं, कभी नहीं करते हैं, देर से आते हैं, जल्दी निकलने की ताक में रहते हैं, कॉपी में कुछ नोट करते हैं, ज्यादा नहीं करते हैं. कई विद्यार्थियों को आप हर काम को किसी भी तरह निबटाते देखते हैं.  उनके रिजल्ट के समय अपनी असफलता का दोष किसी और पर मढ़ने की कोशिश करते भी आप देख सकते हैं.  आपके  आसपास  इस तरह के लोग अनायास ही मिल जायेंगे. दुःख की बात है कि देश में ऐसे लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.
हां, ये सारे लोग जाने-अनजाने  "चलेगा कार्यशैली या संस्कृति" के पक्षधर व समर्थक होते है और कुछ तो प्रमोटर भी होते हैं. इनसे कोई इनके इस रवैये के विषय में सवाल करे तो उसका एक ही उत्तर होता है  कि सब चलता है और सब चलेगा. कमोबेश हर सरकारी दफ्तर और कई प्राइवेट संस्थान में इस कार्यशैली या संस्कृति से  चालित लोग कम या ज्यादा संख्या में मौजूद रहते हैं. वे लोग हर काम चलताऊ तरीके से निबटाते हैं. उनके कारण उन दफ्तरों का माहौल बिगड़ता है और छवि भी. सम्प्रति केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारें इस कार्यशैली को बदलने की कोशिश में जुटे हैं. यह बहुत अच्छी बात है. 


चलेगा कार्यशैली या संस्कृति से प्रेरित व प्रभावित विद्यार्थियों में ये ख़ास लक्षण पाए जाते हैं.
1) इनकी जीवनशैली बेतरतीब होती है. रात में सोना, सुबह उठना, खानपान, अध्ययन, ड्रेस, आचरण से लेकर जीवन को जीने का इनका पूरा अंदाज मानक सिद्धांतों से मेल नहीं खाता. हर मामले में ये विद्यार्थी चलेगा का दामन थामे रहते हैं.  2) ये अपनी असफलताओं से कोई सीख नहीं लेते हैं. रिजल्ट के दिन भी वे उतने दुखी या उदास नहीं होते क्यों कि ज्यादातर मामलों में उन्हें अपने परीक्षा या टेस्ट के फलाफल का अनुमान रहता है. फिर भी कोई इनसे खराब रिजल्ट को लेकर कोई सवाल करे तो बहानेबाजी और दोषारोपण को अपना हथियार बनाते हैं  3) ये विद्यार्थी अपने अभिभावक या शिक्षक की बात या तो सुनते नहीं हैं या चुपचाप सुनकर उसे अनसुना कर देते हैं.  4) जीवन में अनुशासन के महत्व को नहीं समझते हैं. लिहाजा अनुशासनहीनता के कई छोटे-बड़े मामले में फंसते रहते हैं. 5) समय की पाबंदी के वैल्यू को नहीं मानते. क्लास हो या समय से ट्रेन, बस या फ्लाइट पकड़ने या कहीं और पहुंचने की बात, ये अमूमन लेट से ही पहुंचते हैं.  


स्वाभाविक रूप से ऐसे विद्यार्थी इस चलेगा कार्यशैली के अनेकानेक दुष्परिणामों से रूबरू होते  हैं, जिनमें से ये अहम हैं.
1) इनकी आदत बिगड़ जाती है और ये कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाते हैं. स्वास्थ्य भी दुप्रभावित होता है.  2) आम परीक्षा हो या कोई भी प्रतियोगिता परीक्षा, इनका  रैंक नीचे ही होता है. लिहाजा एडमिशन या सेलेक्शन बहुत मुश्किल होता है.  3) इनकी इस कार्यशैली का बुरा असर इनके साथ-साथ इनके साथी-सहपाठी, परिजनों और आसपास के लोगों, खासकर घर के छोटे भाई-बहनों पर भी पड़ता है. 4) अपने संस्थान के अलावे घर या समाज में इन्हें लोग एवरेज स्टूडेंट मानते हैं और सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं. 5) आगे के जीवन में नौकरी या कारोबार में ये लोग रोजाना आठ-दस घंटे काम करने के बाद भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते हैं.  


"विश्व एक व्यायामशाला है जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं" - स्वामी विवेकानंद  की इस बात को सदा याद रखते हुए सभी छात्र-छात्राओं को चलेगा कार्यशैली से दूर रहने और इन पांच बातों को पूर्णतः अमल में लाने की जरुरत है.
1) शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने का हर संभव प्रयास करें तथा अपने स्टडी पर पूरा फोकस करें 2) वर्तमान समय को लाइफ का प्राइम टाइम मानकर समय का सदुपयोग करें 4) आवरण हो या आचरण या खानपान या रहन-सहन, सब मामले में स्वच्छता, सकारात्मकता और संतुलन रखें. 4) हर काम को बहुत अच्छी तरह करने की आदत डालें यानी परफेक्शन और क्वालिटी पर ध्यान दें. 5) हमेशा याद रखें कि जीवन में एक्सीलेंस एक यात्रा है. इस विचार पर चलनेवाले विद्यार्थी बराबर सफलता प्राप्त करते रहते हैं. 

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Monday, November 16, 2020

नींद की अहमियत को भी समझें

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सभी विद्यार्थी इस बात पर एकमत होंगे कि अध्ययन आदि के कारण उनकी दिनभर की जो व्यस्तता होती है उसके बाद रात की अच्छी नींद न केवल उनकी जिन्दगी में सुख का बेहतरीन समय होता है, बल्कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उनकी आवश्यकता भी है.
कोरोना महामारी  के मौजूदा समय में जब दुश्चिंता, भय, दहशत, अनिश्चितता आदि से विद्यार्थीगण भी बहुत दुष्प्रभावित है, नींद की अहमियत और भी बढ़ जाती है. लेकिन क्या सभी छात्र-छात्राएं  रात में 7-8 घंटे अच्छी तरह सो पाते हैं? कई हेल्थ और मेडिकल सर्वे बताते हैं कि बड़ी संख्या में विद्यार्थी रात में अच्छी नींद का आनंद नहीं ले पाते हैं और इसके बहुआयामी दुष्परिणाम के हकदार बनते हैं. इसके अनेक जाने-पहचाने कारण हैं. काबिले गौर है कि यहां नींद का मतलब अच्छी नींद से है, बिछावन पर मात्र लेटे रहने से नहीं है. हां, यह भी सच है कि कम सोना और बहुत ज्यादा सोना दोनों सेहत के लिए ठीक नहीं होता है. यहां भी संतुलन जरुरी है. 


स्मार्ट फोन, लैपटॉप, इंटरनेट, डिजिटल लर्निंग, ऑनलाइन क्लासेज, सोशल मीडिया आदि के मौजूदा दौर में बहुत सारे विद्यार्थी "अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज यानी जल्दी सोओ और जल्दी उठो" के सिद्धांत पर अमल नहीं करते हैं
. कहने का मतलब यह कि ऐसे विद्यार्थी रात के दस बजे तक नहीं सोते हैं और न ही सुबह छह बजे से पहले जग पाते हैं. दरअसल, वे रात में देर से सोते हैं और सुबह देर से उठते हैं. नतीजतन उनके बॉडी क्लॉक का प्राकृतिक क्लॉक से सामंजस्य बिगड़ जाता है. इसका गंभीर दुष्प्रभाव उनके मेटाबोलिज्म, मेमोरी और इम्युनिटी पर पड़ता है. लिहाजा  पौष्टिक आहार लेने और एक्सरसाइज वगैरह करने के बाद भी वे कई रोगों के चपेट में आ जाते है. प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को जरुरी मानता है कि रात में अपर्याप्त या अनियमित नींद छात्र-छात्राओं के अध्ययन आदि पर बुरा असर डालती है. उन्हें थकान और आलस्य का बोध होता है. चाह कर भी वे अपने कार्य पर फोकस नहीं कर पाते हैं.  


सवाल है कि रात में अच्छी नींद का इतना महत्व क्यों है?
दरअसल, रात में नींद के दौरान हमारे शरीर में क्लीनिंग, रिपेयरिंग और रिचार्जिंग का काम होता है. इसी समय शरीर में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं यानी डब्लू बी सी, जो हमें रोग संक्रमण से बचाने का काम करती हैं, का रीजेनरेशन टाइम होता है. इतना ही नहीं, रात में अच्छी नींद के कारण हमारे शरीर में मेलाटोनिन नामक हॉर्मोन का स्राव बढ़ता है जो हमारे बायोलॉजिकल क्लॉक को दुरुस्त रखता है. यह हार्मोन अपने एंटीऑक्सिडेंट क्वालिटी के लिए भी प्रसिद्ध है. एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर की कोशिकाओं को मजबूत और स्फूर्तिवान बनाए रखता है. इससे शरीर सक्रिय और स्वस्थ रहता है. दिलचस्प बात है कि अच्छी नींद हमारे स्ट्रेस को कम करता है और हमारे लिए मूड-बूस्टर का काम भी करता है. अच्छी नींद के कारण हमारे सारे ऑर्गन अच्छे ढंग से काम करते हैं. उनका रेगुलेशन और रीसेटिंग अच्छे से हो जाती है. ब्रेन को जरुरी ब्रेक और रेस्ट मिल जाता है. इससे हमारा मानसिक और भावनात्मक संतुलन बेहतर बना रहता है. फील गुड और फील हैप्पी हॉर्मोन स्रावित होते हैं. इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है. सुबह हम तरोताजा और हैप्पी फील करते है. इसका  समेकित असर हर मामले में हर विद्यार्थी के लिए बहुत ही पॉजिटिव साबित होता है.


अब सवाल है कि आज के चुनौतीपूर्ण दौर में अच्छी नींद का लाभार्थी बनने और अनिद्रा की समस्या से बचे रहने के लिए कौन से सरल उपाय हैं, जिससे विद्यार्थियों  का इम्यून सिस्टम  स्ट्रांग बना रहे और वे दिनभर उर्जावान और उत्साहित बने रहें?
रात में 10 से 11 बजे के बीच सोने की और सुबह 6 बजे से पहले उठने की कोशिश करें. इसके लिए रात का खाना सोने से कम-से-कम एक घंटा पहले खा लें. अच्छी नींद के लिए रात का खाना हल्का और सुपाच्य होना चाहिए. हो सके तो सोने से पहले दूध में थोड़ा हल्दी या शहद या दालचीनी मिलाकर पी लें. इससे  नींद अच्छी आती है. सोने से घंटे भर पहले मोबाइल-लैपटॉप-टीवी आदि से नाता न रखें. संभव हो तो सोने से पहले  15-20 मिनट ही सही, कोई मोटिवेशनल किताब पढ़ें. मोबाइल को बेड से थोड़ा दूर रखें. टाइट कपड़े पहनकर ना सोएं. कपड़े कॉटन के हों तो बेहतर. बिछावन साफ़-सुथरा और कमरा हवादार हो. सोने के लिए बिछावन में जाने से पूर्व पैर धोकर पोंछ लें. फिर तलवों में सरसों के तेल से हल्का मालिश करें. सोते वक्त लाइट बंद कर दें. यकीनन, नींद अच्छी आएगी.  

 (hellomilansinha@gmail.com)   

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 20.09.2020 अंक में प्रकाशित
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Thursday, November 12, 2020

जैसी सोच वैसे हम, कैसे संभव है?

                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...

कोविड -19 महामारी के इस लम्बे दौर में अनेक अप्रत्याशित कारणों से बड़ी संख्या में हर उम्र के लोग हैरान-परेशान, चिंतित और तनावग्रस्त हैं. होम आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग, नेगेटिव न्यूज़, खानपान में असंतुलन, बेरोजगारी, आर्थिक तंगी, सामान्य रूटीन में असामान्य एवं अघोषित परिवर्तन और ऐसी अनेक बातों से आम लोगों का जीवन बहुत दुष्प्रभावित हुआ है.
लेकिन जीवन तो चलने का नाम है और जीवन में छोटी-बड़ी समस्याएं आती-जाती रहती हैं. सो, इन तमाम परेशानियों और चुनौतियों के बीच भी बहुत सारे  लोग हैं, जो आज भी कमोबेश संतुलित ढंग से जी रहे हैं और हंस-हंसा भी रहे हैं. यही है हमारी सोच और नजरिए का जीवन पर प्रभाव. हां, यूँ ही नहीं कहा जाता है कि सही सोच-विचार से हम जीवन को नई दिशा दे सकते हैं.


विश्व विख्यात मैनेजमेंट गुरु डेल कार्नेगी ने बताई जीवन की अहम बातें : जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही बनने लगते हैं. खुद को ताकतवर मानेंगे तो ताकतवर बनेंगे. डेल कार्नेगी ने जीवन की अहम बातें तीन वाक्यों में बताई हैं. 1) हम जो सोचते हैं, वही प्रमुख है.  2) हमारे  विचार ही हमें  वह बनाते हैं जो हम वास्तव में होते हैं और 3) अपनी सोच को बदलकर हम जिंदगी को भी बदल सकते हैं.  


जीने के प्रति प्रतिबद्धता और संकल्प को हमेशा स्ट्रांग बनाए रखनेवाले ये लोग  अंधेरे में भी रोशनी देख लेते हैं. जीवन के प्रति ये लचीला रुख रखते हैं. जिन बातों या सिचुएशन को ये कंट्रोल कर सकते हैं, उनका फोकस उन पर रहता है. जिनपर उनका कोई कंट्रोल नहीं होता उसे लेकर परेशान नहीं होते, बल्कि उसे स्वीकार करते हुए अपनी स्थिति को थोड़ा एडजस्ट करके चलने का प्रयास करते हैं. 


पॉजिटिव सोच वाले लोग गैर जरुरी बातों में समय और ऊर्जा नहीं गंवाते हैं. उनका समय व्यर्थ की बातों पर चिंता करने के बजाय अच्छी बातों के चिंतन-मनन में व्यतीत होता है. स्वाभाविक  रूप से उनकी रचनात्मकता और कल्पनाशीलता को इससे जरुरी माहौल और पोषण उपलब्ध होता है. परिणाम स्वरुप वे कठिनाई के कठिन दौर में भी नए रास्ते तलाशने में कामयाब होते हैं. 


दरअसल, अच्छी और संतुलित सोच से हमारे शरीर में डोपामाइन, सेरोटोनिन, ऑक्सीटोसिन, एंडोर्फिन जैसे फील गुड और फील हैप्पी होरमोंस का स्राव होने लगता है, जिससे हम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रिलैक्स्ड, शांत, संयत और खुश रह पाते हैं. स्वाभाविक रूप से हमारी पॉजिटिव एक्टिविटी बढ़ जाती है.
जाहिर है कि हमारा खानपान, रहन-सहन, आचरण सब जब बदलने लगे और एक ख़ास सकारात्मक दिशा में हो तो जीवन पर इसका सुंदर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 


            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# "दैनिक जागरण" और "नई दुनिया" के सभी संस्करणों में एक साथ (12.11.20) प्रकाशित  
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Monday, November 9, 2020

अपना अनोखापन बनाए रखें

                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सब जानते हैं कि हर व्यक्ति अपने-आप में अनोखा है. विश्व की सात सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी में कोई भी व्यक्ति दूसरे के बिलकुल एक जैसा नहीं है और न ही हो सकता है. यह शाश्वत सत्य है. जुड़वां भाई-बहनों में भी अनेक समानताओं के बावजूद कई स्पष्ट असमानताएं भी होती हैं. बड़े होने पर यह और साफ़ हो जाता है. एक तरह की परवरिश के बाद भी उनका अनोखापन उनके स्वभाव, व्यवहार, पसंद-नापसंद, जीवनशैली, कार्यशैली आदि से रिफ्लेक्ट होता है. जुड़वां भाइयों और जुड़वां बहनों को लेकर कई हिन्दी और अन्य भाषाओं की फिल्में बनी हैं, जिसमें ऊपर कही गई बातों को रोचक तरीके से दर्शाया गया है.
गौरतलब  बात है कि अनोखेपन का यह संसार बहुत ही बड़ा, अदभुत और सुंदर है. छात्र-छात्राएं अबतक के अपने-अपने जीवन पर गंभीरता से गौर करें तो उन्हें खुद इस बात की सत्यता की अनुभूति हो जाएगी. उनके सपने और लक्ष्य, उनकी सोच, उनका विचार, रहन-सहन, खानपान आदि सब मामले में वे एक दूसरे से कुछ-न-कुछ अलग हैं और रहेंगे. 


जॉब मार्केट में या प्रतियोगिता परीक्षा के इंटरव्यू में आम तौर पर प्रतिभागियों से उनके  यूएसपी  के बारे में पूछा जाता है.
यह यूएसपी आखिर है क्या? इसका फुल फॉर्म है यूनिक सेलिंग प्रोपोजीशन या पॉइंट. सरल शब्दों में कहें तो आप दूसरे की तुलना में यूनिक या अनोखे कैसे हैं? कहने का आशय यह कि किसी भी व्यक्ति का अनोखापन उसकी एक स्पेशल क्वालिटी और आइडेंटिटी  होती है, जिसे हर नियोक्ता या चयनकर्ता कैंडिडेट में देखना चाहता है. दरअसल, यह एक लीडरशिप क्वालिटी भी है, जिससे आप भीड़ का हिस्सा होते हुए भी भीड़ से अलग दिखते हैं. हां, यह विशेष गुण और पहचान आपके लिए दिखावे या अहंकार की वस्तु नहीं बने, इसका ध्यान रखना अच्छा साबित होता है.  


विचारणीय विषय यह है कि यह सब जानते हुए भी बहुत सारे विद्यार्थी किसी दूसरे की तरह ही बनना चाहते हैं, उनकी नक़ल करते हैं, बिना सोचे-समझे दूसरे के पीछे चलते रहते हैं. यह दूसरा व्यक्ति कोई भी हो सकता है - कोई नेता, अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, कलाकार, दोस्त, सहपाठी  या अन्य कोई. इतना ही नहीं, नए कोर्स में एडमिशन लेने की बात हो या किसी कॉलेज-यूनिवर्सिटी  विशेष में पढ़ने की बात हो या किसी आन्दोलन या जुलूस  में शामिल होने की बात, छात्र-छात्राएं बस एक जैसा काम करने लगते हैं.
यकीनन यह उनके हित में नहीं होता है क्यों कि वे अपने मौलिकता को छोड़कर कॉपी-पेस्ट कल्चर को अपनाने लगते हैं.  सभी विद्यार्थी इस बात से सहमत होंगे कि वे किसी के गुलाम नहीं बनना या रहना चाहते हैं. उनमें चीजों को अपने तरीके से देखने-समझने की स्वाभाविक जिज्ञासा होती है. वे यह भी मानेंगे कि उनकी जिंदगी बेशकीमती है और वे अपनी जिंदगी को अपने तरीके से पूरी सार्थकता और जीवंतता  के साथ  जीना चाहते हैं. सवाल है कि ऐसा जीवन जीने के लिए छात्र-छात्राओं को क्या करना चाहिए?


पहले तो प्रत्येक विद्यार्थी अपनी समझ के मुताबिक़ जीवन के अपने छोटे-बड़े लक्ष्य को स्पष्ट रूप से तय करें. फिर उसके अनुरूप अपनी कार्ययोजना बनाकर उस ओर बढ़ना शुरू करें. अध्ययन, कैरियर या अपने जीवन से जुड़ी अहम बातों पर थोड़ी गहराई में जाकर चिंतन करें. बहुत सारे कनफ्यूजन क्लियर हो जायेंगे. खुद की बुद्धि और क्षमता पर भरोसा बढ़ने लगेगा.  छात्र-छात्राएं हमेशा यह भी सोचें कि हर प्रॉब्लम का निदान कहीं-न-कहीं है और वे भी उस निदान तक पहुंच सकते हैं, बेशक कई बार उनके लिए वहां तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल भी हो सकता है.
इससे चीजों को देखने, परेशानियों से निबटने और समस्याओं का समाधान तलाशने में वे दक्षता हासिल करते जायेंगे. इसका पॉजिटिव असर उनके स्टडी और कैरियर सहित कई मामलों में दिखेगा ही.  


जानने-सीखने के मामले में खुले मन से काम करें. सीखें सबसे, परन्तु अन्धानुकरण किसी का नहीं करें. जब-जहां महसूस हो, सलाह-सुझाव-मार्गदर्शन जरुर प्राप्त करें, लेकिन खुद उस पर सोच-विचार करके ही अंतिम निर्णय लें. ऐसे भी जब कोई विद्यार्थी अपने को यूनिक मानता है, जो कि वह वास्तव में होता है तो उसका जो भी यूएसपी है उसे आधार बनाकर भविष्य की कार्ययोजना बनाना बेहतर होता है. 
खेल का मैदान हो, गीत-संगीत-नृत्य की प्रतियोगिता, रंगमंच या पेंटिंग की दुनिया, राजनीति या कूटनीति का फील्ड, भाषण या लेखन प्रतियोगिता, वर्कप्लेस या शोध संस्थान सभी स्थान पर लोग अपने यूएसपी की बुनियाद पर दूसरे की अपेक्षा बेहतर रिजल्ट हासिल करते हैं. अतः जरुरी है कि हर विद्यार्थी अपने अनोखेपन को बनाए रखें. फायदे में रहेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com)   

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 13.09.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Thursday, November 5, 2020

आज की बात: बिहार चुनाव - मेरे विचार

                                                          - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर व लेखक 

बिहार में सबकुछ है - अत्यन्त गौरवशाली अतीत, जिसका उल्लेख वेदों, पुराणों एवं महाकाव्यों तक में प्रचुरता में मिलता है; उर्वरा जमीन, नदियों का जाल और पानी की बहुलता; बिहारियों की मेधा और सादगी, मेहनत व संघर्ष के बूते आगे बढ़ने की क्षमता व जज्बा, राजनीतिक जागरूकता आदि. फिर भी अपेक्षाकृत बेहतर स्टेट जीडीपी दर का अपेक्षित फायदा गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार आदि क्षेत्रों और राज्य के सभी इलाकों और समुदायों को समावेशी रूप में नहीं मिल पाया है; बिहार की प्रति व्यक्ति आय पिछले एक दशक में बेहतर तो हुई है, परन्तु यह अब भी देश के अग्रणी राज्यों के मुकाबले आधे से भी कम है. लिहाजा बिहार में मानव विकास सूचकांक कमजोर है. इस स्थिति में गुणात्मक बदलाव के लिए यह जरुरी है कि प्रशासन की कार्यशैली पूर्णतः पारदर्शी, जनोन्मुख और  भ्रष्टाचारमुक्त - व्यक्तिगत और संस्थागत हो. समाज को भी जागरूक और सचेत रहकर गलत करनेवालों को टोकने और रोकने के मामले में आगे आना पड़ेगा.  

 
पिछले दो विधानसभा चुनाव (2010 और 2015) में वोटिंग 60 प्रतिशत से कम रहा है. इस बार भी पहले दो चरणों में वोटिंग लगभग 56 प्रतिशत रही. लोकतंत्र के इस बड़े उत्सव में करीब 44 प्रतिशत वोटरों की भगीदारी न होना गंभीर चिंता का विषय है. सभी संबंधित पक्ष - समाज, सरकार, राजनीतिक दल, चुनाव आयोग आदि  को इस पर सार्थक चर्चा-विमर्श करने और इसमें गुणात्मक सुधार (वोटिंग प्रतिशत कम-से-कम 80%) करने हेतु ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. बहरहाल, बिहारवासियों से यही अपेक्षा है कि वे तीसरे चरण के मतदान में  बड़ी संख्या में मताधिकार का प्रयोग करें तथा अच्छे व सच्चे प्रतिनिधि का चुनाव सुनिश्चित करें. तभी लोकतंत्र मजबूत और सफल होगा और बिहार का भविष्य बेहतर भी. 


मुझे विश्वास है कि बिहार के लोग जो ठान लेंगे, उसे कर लेंगे और सरकार से करवा भी लेंगे.     


               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.  

Thursday, October 29, 2020

रिश्तों की अहमियत

                               - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

स्वतंत्रता दिवस पर प्रसिद्ध क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी ने जैसे ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से खुद को स्वतंत्र करने यानी सन्यास लेने की घोषणा की, वैसे ही उनके करोड़ों प्रशंसकों की प्रतिक्रिया आने लगी. इतना ही नहीं, उसी शाम एक अन्य जानेमाने क्रिकेटर और धोनी के साथी खिलाड़ी सुरेश रैना ने भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया. सबको ज्ञात है कि रैना और धोनी के रिश्ते कितने प्रगाढ़ रहे हैं.
खैर, धोनी के इस अप्रत्याशित घोषणा के बाद उनके बचपन के साथी और उनके स्कूल के कोच से लेकर सौरव गांगुली, कपिल देव, शेन वार्न, विराट कोहली सहित देश-विदेश के अनेकों खिलाड़ियों ने धोनी के साथ उनके मधुर रिश्ते की बात  कही है. यह सचमुच बहुत ही अच्छी बात है और धोनी की सबसे बड़ी पूंजी - रिश्तों की पूंजी. 

 
रिश्तों की शुरुआत हमारे जन्म से ही हो जाती है और समय के साथ इसका दायरा निरंतर बढ़ता जाता है. घर-परिवार, आस-पड़ोस, अपना समाज, स्कूल, कॉलेज से होते हुए देश-विदेश तक प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से यह व्यापक  होता जाता है. भारतीय संस्कृति में तो  'वसुधैव कुटुम्बकम्' यानी "पूरा संसार है मेरा परिवार" की बात कही जाती है.
अच्छी बात है कि रिश्ते बनाने और निभाने में माहिर बहुत सारे लोग आपको हर क्षेत्र में मिल जायेंगे जो बिना किसी अपेक्षा के लोगों से जुड़ने का काम करते रहते हैं, क्यों कि वे मानते हैं कि रिश्तों का जीवन में सबसे अधिक महत्व है. क्या सभी विद्यार्थी इस बात को समझते हैं और रिश्तों को यथोचित महत्व देते हैं?  छात्र-छात्राओं के लिए यह गंभीर विचारणीय विषय है, क्यों कि संयुक्त परिवार के टूटने, एकल परिवार के बढ़ते जाने, पैसे के प्रति अतिशय आसक्ति जैसे कारणों से हमारे आपसी संबंधों में जो गिरावट और कड़वाहट आई है, उसके कई  दुष्परिणामों  से उन्हें भी रूबरू होना पड़ता है. अतः उनके लिए इसकी अहमियत को ठीक से जानना-समझना और उसे जीवन में उतारना हर मायने में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है. दूसरे शब्दों में सभी विद्यार्थियों के लिए सकारात्मक तौर पर रिश्ते बनाने और उसे अच्छी तरह निभाने की कला में पारंगत होना शिक्षा को सार्थक करना है.


विद्यार्थीगण अपने घर में रिश्तों के बारे में जानना शुरू करते हैं. बचपन से उन्हें यह शिक्षा स्वतः मिलती रहती है कि कैसे माता-पिता का सम्मान किया जाता है, कैसे सभी बड़े-बुजुर्गों का आदर-सत्कार किया जाता है, कैसे हमउम्र लोगों के साथ दोस्ती निभाई जाती है, कैसे अपने से छोटे उम्र के लोगों के प्रति अनुराग प्रदर्शित किया जाता है और तो और अनजाने लोगों व जीव-जंतुओं के साथ भी कैसे पेश आया जाता है. जैसा वे देखते हैं, उनका मानस वैसा  ही तैयार होता जाता है. यही बड़ा कारण है कि हर विद्यार्थी का व्यवहार एक ही सिचुएशन में भिन्न होता है. कोई तो साधारण सी बात पर बहुत गुस्सा हो जाता है, अपशब्द कहता है और मारपीट तक करने लगता है, वहीँ  एक अन्य विद्यार्थी शांति से रियेक्ट करता है, बुद्धिमानी से और हंसकर मामले को रफादफा करता है और अनजाने स्थान पर अनजाने लोगों से प्रेम का रिश्ता कायम कर लेता है. सोच कर देखें तो इन दो विद्यार्थियों के व्यवहार के पीछे सामान्यतः संबंधों से संबंधित उनकी सीख ही रिफ्लेक्ट होती है. हां, अनेक मामलों में समझदारी में उन्नति के साथ रिश्तों की अहमियत समझ में आने लगती है.
रोचक बात है कि स्थायी और मजबूत रिश्ते  पैसे, प्रलोभन, डर-आतंक, झूठ-फरेब, शॉर्टकट आदि के जरिए कायम नहीं रह सकते हैं. इसकी बुनियाद तो सच्चाई-अच्छाई, म्यूच्यूअल अंडरस्टैंडिंग, ट्रस्ट, रेस्पेक्ट और भाईचारे की भावना होती है. 


रिश्ते बनाना और निभाना एक बड़ा लीडरशिप क्वालिटी माना जाता है. अलग-अलग बैकग्राउंड से आए विभिन्न लोगों की छोटी या बड़ी टीम को कप्तान के रूप में एकजुट रखकर एक कॉमन गोल को हासिल करने का काम वाकई चुनौतीपूर्ण और रोमांचक होता है. तभी तो  देश-विदेश के मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में रिलेशनशिप मैनेजमेंट की पढ़ाई होती है; प्रोफेशन, हेल्थ एंड हैप्पीनेस में इस लाइफ स्किल की भूमिका के विषय में विस्तार से चर्चा होती है. कॉरपोरेट सेक्टर के साथ-साथ सरकारी विभागों में भी कर्मियों को इसके बहुआयामी पॉजिटिव रिजल्ट के बारे में बताया जाता है.
कहने की जरुरत नहीं कि राजनीति से लेकर कूटनीति तक अच्छे संबंध कायम करने, निभाने और उसके माध्यम से बड़ी-से-बड़ी समस्या का समाधान निकालने और देश को विकास पथ पर तेजी से आगे ले जाने में दक्ष हमारे प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. 

(hellomilansinha@gmail.com)     


            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" में 06.09.2020 को प्रकाशित
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