- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
भगवान बुद्ध कहते हैं, "ख़ुशी इसपर निर्भर नहीं करती कि आपके पास क्या है या आप क्या हैं. ये पूरी तरह से इस पर निर्भर करती है कि आप क्या सोचते हैं." सच कहें तो यह विचार हमें दुःख की मानसिकता से बाहर निकालने में भी बहुत मदद करता है. जीवन गतिशील है और हर विद्यार्थी को अपने सपनों को साकार करने और अपने छोटे-बड़े लक्ष्यों तक पहुंचने की स्वाभाविक इच्छा होती है. स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत बड़ी है. विद्यार्थियों में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विविधता भी बहुत है. लेकिन हर साल या हर सेमेस्टर के रिजल्ट के दिन रिजल्ट शीट में वही विद्यार्थी टॉप टेन या ट्वेंटी में जगह हासिल कर पाते हैं, जो हमेशा सोच के स्तर पर पॉजिटिव और यथार्थवादी बने रहते हैं. महात्मा गांधी का स्पष्ट कहना है, "व्यक्ति अपने विचारों के सिवाय कुछ नहीं है. वह जो सोचता है, वह बन जाता है." सचमुच, इन महापुरुषों के विचारों पर गौर करें तो विद्यार्थियों के लिए जीवन पथ पर दृढ़ता और ख़ुशी-ख़ुशी बढ़ते जाना आसान हो जाएगा. भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी का जीवन इसका ज्वलंत प्रमाण है.
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कभी ख़ुशी, कभी गम के मिलेजुले दौर से हर विद्यार्थी गुजरता है. यह सही है कि सभी छात्र-छात्राएं ऐसा जीवन जीना चाहते हैं जहां ज्यादा-से-ज्यादा ख़ुशी हो और कम-से-कम गम. इसके लिए सब अपने-अपने तरीके से जीवन जीने का प्रयास करते हैं. ज्ञानीजन बराबर कहते रहे हैं कि पूरी निष्ठा और विश्वास से यथासंभव प्रयास करते रहें. कभी भी किसी काम को बीच में न छोड़ें. फल क्या होगा इसकी चिंता कार्य करते वक्त कदापि ना करें. एक किसान के बारे में सोचें. अगली फसल के लिए जमीन को जोतते या तैयार करते वक्त या जमीन में बीज डालते या पौधा लगाते समय वह फल के विषय में ज्यादा नहीं सोचता है. वह बस इस आत्मविश्वास से काम करता है कि जो कुछ हमारे अख्तियार में है, उसे सर्वश्रेष्ट तरीके से करते हैं. उसे अच्छी तरह मालूम होता है कि मौसम सहित कतिपय बाहरी फैक्टर्स अपेक्षित फल पाने में अवरोध बन सकते हैं. ऐसा कई बार होता भी है. लेकिन इस कारण किसान अपना 100 % देने से बचने की कोशिश नहीं करता. देखा गया है कि अधिकांश समय उसे अपनी कोशिशों के अनुरूप ही फल मिलता है. अनेकानेक विद्यार्थी किसान की मानसिकता से ही अध्ययन में जुटे रहते हैं. खूब मेहनत करते हैं. नकारात्मकता से भरसक दूर रहते हैं और इसी कारण खुश भी रहते हैं. कामयाबी तो मिलती ही है.
एक सच्ची घटना बताता हूँ. एक दिन दो मित्र अपने-अपने घर से एक ही ऑटो में रेलवे स्टेशन की ओर चले. उन्हें एक प्रतियोगिता परीक्षा के लिए प्रदेश की राजधानी जाना था. घर से स्टेशन के बीच जाम के कारण वे लोग कुछ देर से स्टेशन पहुंचे. टिकट लेकर जब तक वे प्लेटफार्म पर पहुंचते उनकी ट्रेन निकल चुकी थी. दोनों को बहुत अफ़सोस हुआ. लेकिन उनमें से एक ने तुरत उस गम को पीछे छोड़कर यह सोचना शुरू किया कि जो होना था वह तो हो गया, अब विकल्प क्या है? वह मोबाइल के जरिए यह पता करने में जुट गया कि ट्रेन या बस या टैक्सी से समय से राजधानी पहुंचना संभव है या नहीं. दूसरी ओर उसका साथी थोड़ी देर तो माथा पकड़ कर बैठा रहा, फिर ऑटोवाले और सड़क पर जाम के लिए पुलिसवाले और न जाने किसको-किसको कोसने लगा. इसके बाद ट्रेन मिस करने के विषय में विस्तार से किसी दोस्त को बताता रहा. उसने तो गम की दरिया में न जाने इस बीच कितने गोते लगाए. और फिर जब साथ चल रहे लड़के को घर लौटने को कहने लगा तब उसे बताया गया कि चिंता की कोई खास बात नहीं है, क्यों कि एक ट्रेन जो तीन घंटे लेट चल रही है वह अगले बीस मिनट में आनेवाली है जिससे वे लोग गंतव्य तक कमोबेश ठीक समय से पहुंच जायेंगे. इस वाकया से यह साफ़ है कि एक ही घटना को दो अलग-अलग मानसिकतावाले विद्यार्थी ने अलग-अलग रूप में लिया और तदनुसार रियेक्ट किया.
विचारणीय बात है कि परेशानी या गम का वक्त सभी छात्र-छात्राओं को हमेशा एक मौका देता है खुद को संयत और शांत रखकर उस समय उपलब्ध संभावित विकल्पों पर विचार करने का और उनमें से सबसे अच्छे विकल्प का उपयोग करके मंजिल तक पहुंचने का. परेशानी के समय परेशान होने, उत्तेजित होने, खुद को और परिस्थिति को कोसने का कोई लाभ नहीं होता. नुकसान तो अवश्य होता है. कहने का मतलब यह कि विद्यार्थीगण ख़ुशी या गम को जीवन का महज एक पड़ाव मानकर पॉजिटिव सोच के साथ बस अपना मूल काम करते रहें तथा जीवन को एन्जॉय करते चलें. जो होगा, सब बढ़िया होगा.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 09.02.2020 अंक में प्रकाशित
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