Friday, May 29, 2020

हेल्थ मैनेजमेंट: लॉक डाउन में छूट से बचाव की बढ़ी चुनौती

                                         - मिलन  सिन्हा, वेलनेस कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
कई आर्थिक-सामाजिक कारणों से कोविड 19 लॉक डाउन में ढील देने का सिलसिला शुरू हो चुका है, लेकिन कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा बरकरार है. लाखों की संख्या में कामगारों और मजदूरों का सामान्य-असामान्य तरीके से घर लौटना जारी है. कार, बस, ट्रेन और फ्लाइट का परिचालन प्रारंभ हो चुका है. अगले कुछ दिनों में मार्केट और अन्य सार्वजनिक स्थानों में लोगों की भीड़ बढ़ेगी जब धीरे-धीरे आर्थिक और अन्य गतिविधियां सामान्य होने लगेंगी.  दूसरी ओर कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, बेशक कोरोना पॉजिटिव लोगों के स्वस्थ होकर घर लौटने का प्रतिशत भी बढ़ रहा है. चिकित्सा एवं हेल्थ विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिन बहुत चुनौतीपूर्ण होंगे. बड़ा सवाल है कि करोड़ों लोग जो लॉक डाउन के कारण चाहे-अनचाहे घर में सुरक्षित रहने के आदी हो चुके हैं, जब उनमें से एक बड़ी संख्या को घर से बाहर जाना पड़ेगा तो फिर उन्हें कोरोना के संक्रमण से खुद बचे रहने और अपने परिवार के लोगों को बचाए रखने के लिए क्या करना चाहिए जिससे कि सभी रोगमुक्त और हेल्दी रह सकें? 

यकीनन यह चुनौती लॉक डाउन वाली चुनौती से भिन्न है और एक प्रकार से बड़ी भी. अब कामकाजी लोगों को अपने-अपने काम के सिलसिले में हफ्ते में 5-6 दिन रोजाना 8-10 घंटे घर से बाहर रहना पड़ेगा. किसी-न-किसी कारण से घर में भी बाहरी लोगों का आना-जाना कमोबेश  शुरू हो जाएगा. घर की महिलाओं और बच्चों को भी मार्केट, कोचिंग, ट्यूशन आदि के लिए निकलना पड़ेगा. इन सारी परिस्थिति में लोगों को कुछ अहम बातों का अनुपालन स्वयं काफी जिम्मेदारी और सख्ती से करना पड़ेगा. 

स्वस्थ तन सुन्दर मन:

बेहतर होगा कि चार कहावत को हमेशा याद रखें और तदनुरूप कार्य करें. पहला यह कि "जान है तो जहान है," दूसरा "हेल्थ इज वेल्थ अर्थात स्वास्थ्य ही संपत्ति  है,"  तीसरा "सावधानी गई और दुर्घटना घटी" और चौथा यह कि "रोकथाम इलाज से बेहतर" है. इसके बाद भी अगर किसी दुर्घटनावश संक्रमित और बीमार हो गए तो तनिक भी घबराए बगैर तुरत यथोचित मेडिकल ट्रीटमेंट करवाएं. अनावश्यक रूप से घबराना आपके साथ-साथ आपके परिवार के लिए अन्य कई हेल्थ प्रॉब्लम का कारण बन सकता है. ऐसे भी हमारे देश में कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव होनेवालों की संख्या उत्साहवर्धक है. आनेवाले महीनों में वैक्सीन तथा सही मेडिसिन की खोज और उपलब्धता की पूरी उम्मीद भी है. 

हां, सबको समय-समय पर यह बताना जरुरी है कि अपवादों को छोड़कर लॉक डाउन का ऑफिसियल दौर ख़त्म  हो रहा है और उसी के साथ स्व-अनुशासन वाला लॉक-डाउन अर्थात  "अपना लॉक डाउन" शुरू हो गया है. इस दौर में ज्यादा सावधान, सचेत, शांत और अंदर से पूर्णतः स्वस्थ और स्ट्रांग बने रहना जरुरी है. 
    
तो आइए संकट के इस पड़ाव पर मुख्यतः सेहत की दृष्टि से इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं. 

पहले घर से शुरू करते हैं : रहें सदा सेहतमंद 

- लॉक डाउन से मिले सबक से अपने और अपने परिवार के हेल्थ को अपने एजेंडा में सदा पहले नंबर पर रखें. घर के लिए कुछ बुनियादी बातों को तय कर एक रूटीन बना लें जिसे मोटे तौर पर आगे फॉलो करना है. इसे बैलेंस्ड लाइफस्टाइल के सूत्र कह सकते हैं. परिवार के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए प्रेरित करें, क्यों कि एक की गलती अन्य सबके लिए आफत बन सकती है.  
- लॉक डाउन के पिछले करीब साठ दिनों की अवधि में आपने जो भी अच्छी आदतें दिनचर्या में शामिल की हैं, उन्हें दृढ़ता से आगे जारी रखें. इसके हेल्थ बेनिफिट आगे भी आपको ही मिलेंगे.  
- इस समय रात में 7-8 घंटे की नींद का आनन्द लेने का सुनहरा मौका है. नींद एक अदभुत मेडिसिन है. इससे स्वास्थ्य को बहुत लाभ होता है. 
- सुबह नींद से उठने के बाद बैठ कर आराम से गुनगुना पानी पीएं. अच्छी सेहत के लिए हाइड्रेटेड और ऑक्सीजिनेटेड रहना लाजिमी है. 
- नित्य कर्मों से निवृत होकर कम-से-कम 20-30 मिनट फ्री हैण्ड एक्सरसाइज या पवनमुक्तासन समूह के कुछ आसन कर लें. सारे अंग सक्रिय होंगे. इससे आप हल्का और अच्छा फील करेंगे. 
- कोविड 19 संकट के मौजूदा वक्त में शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए प्राणायाम और मेडीटेशन का नियमित अभ्यास बहुत लाभकारी है. इससे हमारा रेस्पिरेटरी और नर्वस सिस्टम सहित सभी तंत्र बेहतर काम करते हैं. अभी सुबह-शाम नाश्ते से थोड़ा पहले 20-30 मिनट इनका अभ्यास करें. 
- तुलसी, काली मिर्च, लोंग, दालचीनी और अदरक से बना एक कप काढ़ा  सुबह - शाम चाय  की तरह पीएं. आंवला, नींबू सहित विटामिन सी बहुल चीजों के सेवन के साथ-साथ अन्य आसान तरीकों से अपने इम्यून सिस्टम को हमेशा स्ट्रांग बनाए रखने का प्रयास जारी रखें. सम्प्रति इसकी जरुरत अपेक्षाकृत अधिक है. 
- घर का बना सात्विक एवं पौष्टिक खाना ही खाएं, बेशक मन फ़ास्ट फ़ूड या नॉन वेजीटेरियन या चटपटा खाने के लिए मचलता हो. "हम बीमार तो घर परेशान" वाली बात को बराबर ध्यान में रखें. खाने में मौसमी फल और सब्जी को जरुर शामिल करें. रोज रात में सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी पाउडर डाल कर पीएं. 
- संभव हो तो जरुरी घरेलू कार्यों को आपसी सहयोग से कर लें, जिससे कि अगले कुछ हफ़्तों तक घरेलू काम करनेवालों (डोमेस्टिक हेल्प) को घर बुलाने की जरुरत न हो.     
- लॉक डाउन के दौरान अस्थमा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, ह्रदय रोग, किडनी, लीवर आदि के जो मरीज, खासकर सीनियर सिटीजन अपने डॉक्टर से रेगुलर चेकअप से वंचित रह गए थे और किसी तरह पहले बताई गई दवाइयों से काम चला रहे थे, अब वे एक बार डॉक्टर से बात करके जांच करवा लें. इससे शारीरिक लाभ के साथ-साथ मानसिक संतोष व शांति भी मिलेगी.

अब बाहर की बात: घर से बाहर जाने पर बरतें ये सावधानियां 

- स्थानीय प्रशासन द्वारा समय-समय जारी निर्देशों का पूर्णतः पालन करें. मसलन जब भी घर से बाहर निकलें मास्क जरुर पहनें, दो गज दूरी बनाकर रखें, भीड़वाले जगह में जाने से बचें, हाथ मिलाने या गले मिलने से तौबा करें. संभव हो तो दस्ताने और चश्मा का उपयोग भी करें. 
- टहलने का मन करे तो अभी कुछ और दिनों तक छत पर या अपने कंपाउंड में ही टहल लें. विकल्प के रूप में कहीं भी स्पॉट जम्पिंग या रनिंग कर सकते हैं. 
- बिलकुल जरुरी हो तभी मार्केट जाएं और वह भी उस समय जब भीड़ की संभावना कम जान पड़े.  एक छाता लेकर बाजार जाएं. इससे धूप व बारिश से बचाव होगा और एक-दूसरे से दूरी भी बनी रहेगी. पेमेंट डिजिटल तरीके से करने का प्रयास करें. मार्केट का काम जल्द पूरा कर घर लौटें. दोस्त आदि मिल भी जाएं तो वहां रुककर लंबी बात करने के बजाय घर लौट कर फोन पर पूरी बात कर लें.  
- घर में आकर पहले खुद को अच्छी तरह स्वच्छ एवं सेनिटाइज करें. जूते-चप्पल बाहर निकाल दें. ये बातें लॉक डाउन के वक्त बारबार बताई गई हैं. बस उसे याद रखकर काम करना है. 
- संभव हो तो कम भीड़वाले रास्ते से अपने वर्क प्लेस पहुंचे, बेशक दूरी थोड़ी ज्यादा तय करनी पड़े. बस, लोकल ट्रेन, कैब आदि में सरकारी गाइड लाइन फॉलो करें और अतिरिक्त एहतियात बरतें. ऑफिस पहुंचकर साबुन से हाथ व चेहरा धो लें. साथ में एक हैण्ड सेनिटाइजर तो रखें ही. 
- वर्क प्लेस में ऐसे आरामदेह और वाशेवल कपड़े पहनकर जाएं जिससे शरीर कमोबेश ढका रहे. मसलन पूरे बांह की कमीज और फुल पेंट. इसे घर लौटकर तुरत वाश कर लें. मतलब एक ड्रेस को बिना साबुन या डिटर्जेंट से धोए दुबारा न पहनें.    
- अपने कार्य स्थल पर खाना और पानी फिलहाल घर से ही ले जाएं. जो ले गए हैं उसे ही खाएं. दूसरों को न अपना खाना शेयर करें और न ही उनके प्लेट या टिफ़िन से कुछ लें. फिलहाल भावनात्मक भाईचारा निभाएं. इस दौरान बाहर की चीजें बिलकुल न खाएं. हां, गुनगुना पानी  पीने की आदत डालें. इससे स्वास्थ्य संबंधी अनेक लाभ होंगे. ठंडा पानी या सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने से अभी जितना बच सकें, उतना अच्छा. 
- ऑफिस या कार्य स्थल में अपना सब काम यथासंभव ऑफिस टाइम के भीतर ख़त्म करने का प्रयास करें. और फिर वहां से सीधे घर के लिए निकलें. अगर आप बॉस भी हैं तो यह भी सुनिश्चित करें कि ऑफिस टाइम के बाद ऑफिस बंद हो जाए, जिससे सब लोग समय से घर पहुँच सकें. इससे सारे स्टाफ का स्ट्रेस कम होगा और वे अपना व अपने परिवार का बेहतर ख्याल रख पायेंगे.
- ऑफिस के नाम पर अनावश्यक रूप से बाहर समय बिताना और मद्दपान, धुम्रपान आदि के चंगुल में फिर से फंसना आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है. घरवालों को भी इस पर नजर रखनी चाहिए.    
- घर लौट कर हेलमेट, चाभी, लैपटॉप, फाइल आदि को सेनिटाइज कर बच्चों की पहुँच से दूर एक सुरक्षित स्थान पर रखें. बहुत जरुरत हो तभी घर में उनका इस्तेमाल करें वह भी दुबारा सेनिटाइज करके. हेल्दी लाइफ हेतु पर्सनल हाइजीन की अहमियत को तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं.
- फ्रेश होकर टीवी में नेगेटिव न्यूज़ में व्यस्त हो जाने के बजाय परिवार के लोगों के साथ बातें करें, लूडो, कैरम आदि खेल खेलें या कॉमेडी सीरियल-फिल्म देखें या एनिमल प्लानेट चैनल देखें या कोई साहित्यिक-अध्यात्मिक-मोटिवेशनल किताब पढ़ें या संगीत का आनंद लें. कहने की  जरुरत नहीं कि एकाधिक मामलों में संगीत बेहद प्रभावी औषधि का काम करता है.
- स्थिति सामान्य होने तक पार्टी या सोशल गेदरिंग से दूर रहें, पर इमोशनल क्लोजनेस बनाए रखें. जिसकी जितनी मदद कर सकते हैं, जरुर करें. इस क्रम में खुद को भी महफूज रखें.  
- सबसे अहम बात यह कि अपने सोच को सदा पॉजिटिव रखें. इसका हमारी सेहत पर गहरा असर होता है. देखा गया है कि कोविड 19 से पीड़ित हों या अन्य किसी रोग से, पॉजिटिव सोचवालों की रिकवरी अधिक फ़ास्ट होती है. 
 (hellomilansinha@gmail.com)

   
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" के सभी संस्करणों में 27.05.2020 को प्रकाशित
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Tuesday, May 19, 2020

मोटिवेशन: मदद करना मानवता है

                                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...
खुद को जाने बिना, दुनिया को जानने का प्रयास वांछित फल नहीं देता है. मूल को जानेंगे तभी विराट को जानना आसान होगा. क्षिति जल पावक गगन समीरा अर्थात पंच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से निर्मित हर मनुष्य जब तक इन मूल तत्वों की प्रकृति से खुद को जोड़ेगा नहीं और उन्हें अच्छी तरह जानेगा नहीं, तब तक उसे खालीपन, असंतुलन  और अपूर्णता का एहसास होता रहेगा. 

अगर हम प्रकृति को ठीक से जाने-समझें और उसकी रीति-नीति का अनुसरण करें तो दंभ और आडम्बर से पीड़ित होने और रहने के बजाय सदाशयता-उदारता के भाव  से भरते जायेंगे और धीरे-धीरे आर्ट ऑफ़ गिविंग में भी पारंगत होते जायेंगे. ऐसे देखा जाए तो मानव का मूल स्वभाव प्रकृति के समान ही है. जीयो और जीने दो का सिद्धांत. उसमें दूसरे को मदद करने का भाव विद्दमान होता है.  बेशक कई तरह के प्रदूषण के कारण व्यवहार में वे  वैसा नहीं कर पाते. गुरुजन कहते हैं कि जरुरतमंदों की सहायता करना हर धर्म का मूल आधार है और मानव के आत्मविकास की पूर्व शर्त. जिस व्यक्ति में सहायता-सहयोग-सेवा का  भाव भरा होता है वह अन्य मानवीय गुणों से संपन्न होता जाता है. परिणामस्वरुप वह जरुरतमंदों की मदद करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देता है. गौरतलब बात है कि यह  निष्काम कर्म से प्रेरित कार्य है अर्थात मदद के कार्य में न तो दिखाने की बात होती है और न ही उसके एवज में कुछ पाने की. हमारे वेदों, उपनिषदों व अन्य धार्मिक ग्रंथों में इससे जुड़ी अनेक शिक्षाप्रद बातें दर्ज हैं जिनसे अनेक लोग प्रेरणा ग्रहण करते रहे हैं. 

स्वामी विवेकानंद का कहना है कि लोगों के दर्शन और धर्म में कितना ही भेद क्यों न हो, जो व्यक्ति अपना जीवन दूसरों के लिए अर्पित करने को उद्दत रहता है, उसके प्रति समग्र मानवता श्रद्धा और भक्ति से नत हो जाती है... ...सभी उपासनाओं का यही धर्म है कि मनुष्य शुद्ध रहे तथा दूसरों के लिए  सदैव भला सोचे और करे. वह मनुष्य जो भगवान शिव को निर्धन, दुर्बल तथा रुग्ण व्यक्ति में भी देखता है वही सचमुच शिव जी की सच्ची उपासना करता है, परन्तु यदि वह उन्हें केवल मूर्ति में ही देखता है तो कहा जा सकता है कि उसकी उपासना अभी नितांत प्रारंभिक अवस्था में ही है. यदि किसी मनुष्य ने किसी एक निर्धन मनुष्य की सेवा व देखभाल  बिना जाति-पांति अथवा ऊँच-नीच के भेद-भाव के केवल इस विचार के अधीन की है कि उसमें  साक्षात भगवान शिव विराजमान हैं, तो शिव जी उस मनुष्य से अधिक प्रसन्न होंगे, बनिस्पत उस व्यक्ति के जो शिव जी को सिर्फ मंदिर में देखता है.

वैश्विक महामारी के कठिनतम दौर में देश-विदेश के करोड़ों लोगों को अप्रत्याशित मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. अपने देश में दिहाड़ी मजदूर हो या कॉन्ट्रैक्ट कामगार या असंगठित क्षेत्र में काम में लगे अन्य करोड़ों लोग, सबको रोटी, कपड़ा और आवास की मूलभूत आवश्यकताओं से जूझना पड़ रहा है. महामारी और अन्य बीमारी से ग्रसित होने का खतरा तो सिर पर है ही. स्वाभाविक रूप से ऐसे समय समाज के समृद्ध लोगों के साथ-साथ मदद की भावना से भरे सज्जन लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे आगे आ कर गरीब, लाचार और बीमार लोगों की दिल खोलकर मदद करें. यह मदद खाना या कपड़ा या आश्रय या दवा आदि मुहैया करके की जा सकती है. सच तो  यह है कि जब हम दूसरों की मदद करते हैं और उन्हें कुछ राहत पहुंचाते हैं, तब न केवल मदद पानेवाले लोगों को संतोष और सुकून के कुछ पल दे पाते हैं, बल्कि खुद भी इसे महसूस कर अच्छा फील करते हैं. इतना ही नहीं ज्ञानीजनों का तो कहना है कि ईश्वर उन्हीं पर कृपा बनाए रखते हैं जो औरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं. अच्छा कभी सोचा है आपने कि भगवान ने उन बेसहारा और जरूरतमंद लोगों की मदद करने का मौका देकर आपको उनके प्रतिनिधि बनकर काम  करने का कितना  बड़ा गौरव प्रदान किया है. विचारणीय सवाल  यह भी है कि अगर ईश्वर ने आपको  इस लायक बनने में अपना आशीर्वाद  दिया है या आपकी कोई मदद की है तो उनके भक्त या अनुयायी या समर्थक या प्रशंसक बनकर आप भी अपने आसपास के लोगों को यथासंभव सहायता करें - धन से, ज्ञान से, मार्गदर्शन से या किसी अन्य तरीके से. 

सच तो यह है कि दूसरों की सहायता करने के लिए सिर्फ  धन की जरूरत नहीं होती. उसके लिए  एक अच्छे मन की ज्यादा जरूरत होती हैं. हां, मानव सभ्यता का इतिहास परोपकार के प्रति आसक्त राजाओं और अन्य लोगों के प्रेरक कार्यों  के वर्णन से भरा है. सूर्यवंश के राजा हरिश्चंद्र के सत्य और सहायता के प्रति सम्पूर्ण  समर्पण की कथाओं से तो आमजन भी परिचित हैं. ख़ुशी की बात है कि विश्वभर में  ऐसे बहुत से लोग हैं जो सही तरीके से धन उपार्जित करते हैं और उसका एक हिस्सा परोपकार के निमित्त खर्च भी करते हैं. हम सबने देखा-सुना है कि ऐसे लोग इसी  भावना से प्रेरित होकर समाज और देश हित में स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, धर्मशाला, अनाथालय  आदि के निर्माण व संचालन के साथ-साथ कई अन्य तरीके अपनाते रहे हैं. सेवा, सहयोग और समानुभूति से प्रेरित ऐसे लोग सदैव दूसरे की मदद करके संतोष और सुख  अनुभव करते हैं. हम सब भी इस अनुभव के हकदार बन सकें तो सबका मंगल होगा. 
 (hellomilansinha@gmail.com)

     
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय अखबार "प्रभात खबर" के सारे संस्करणों में 20.04.2020 को प्रकाशित
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Friday, May 15, 2020

सप्तरंग: कभी कमजोर न हो मनोबल

                                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...
इस समय पूरा विश्व एक वैश्विक महामारी के मुश्किल दौर से गुजर रहा है. यह अभूतपूर्व स्थिति है. विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित हर देश की सरकार इससे मुकाबला करने और अपने लोगों को इस महामारी से सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं. विश्व इतिहास गवाह है कि किसी भी विपदा के समय हर व्यक्ति, परिवार और समाज सब अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाए तो उससे पार पाना आसान हो जाता है और देश-समाज  में सामान्य स्थिति जल्द लौट आती है. ऐसे देखा जाए तो हर व्यक्ति, परिवार, समाज और देश के लिए हर वक्त एक जैसा नहीं होता. परिवर्तनशील दुनिया में उतार-चढ़ाव से होकर गुजरना हमारी नियति है. लेकिन कहते हैं कि नीयत ठीक हो तो नियति भी ठीक-ठाक होती है और अगर "सर्वे भवन्तु सुखिनः और सर्वे सन्तु निरामया" से प्रेरित नीति का समावेश हो जाय तो अनेक समस्याएं स्वतः सुलझ जाती हैं.

दरअसल, सर्वे भवन्तु सुखिनः और सर्वे सन्तु निरामया की भावना स्वयं से यानी अपने अंदर से उत्पन्न होकर सबके कल्याण की कामना और उस कामना के फलीभूत होने के लिए किए जानेवाले कर्म से जुड़ा है. एक इकाई के रूप में अगर हम तन-मन से स्वस्थ और आनंदित रह पाते हैं, स्थिति-परिस्थिति अनुकूल या प्रतिकूल जैसी भी हो, तभी हम मम से आगे ममेतर के कल्याण के लायक बन पाते हैं और तभी कुछ सार्थक कर भी पाते हैं. प्रख्यात उद्द्योगपति और समाजसेवी जे.आर.डी टाटा का यह विचार काबिले गौर है कि जब आप कोई काम करें तो इस जिम्मेदारी से करें कि सब कुछ आप पर निर्भर है और जब भी आप भगवान की प्रार्थना करें तब यह सोचें कि सब कुछ उनपर निर्भर है. कहने का अभिप्राय यह कि हम अपना काम पूरी निष्ठा और तन्मयता से  करें और ईश्वर की कार्ययोजना पर हमेशा विश्वास बनाए रखें. अर्थात आत्मा और परमात्मा के बीच अदृश्य लेकिन प्रगाढ़ और शाश्वत  रिश्ते को जानकार और मानकर कर्मपथ पर ख़ुशी-ख़ुशी आगे बढ़ते रहें. सब ठीक होगा. आइए, इस अदभुत रिश्ते को एक बोध कथा  के माध्यम से समझते हैं. 

एक गांव में एक छोटा मंदिर था. मंदिर में एक व्यक्ति रहता था जो पूजा-अर्चना के साथ-साथ  मंदिर की सफाई आदि सब काम खुद ही करता था. लोगों की भलाई के लिए वे सदा प्रयत्नशील रहते. भगवान पर उनकी अटूट आस्था थी. उनके विचार, रहन-सहन और व्यवहार से उस गांव और आसपास के अनेक गांवों के लोग बहुत प्रभावित थे और उनका बहुत सम्मान करते थे. सब लोग उन्हें संत जी कहकर ही बुलाते थे. एक दिन वे एक सत्संग के सिलसिले में बगल के गांव में अकेले ही जा रहे थे. अचानक उन्होंने यह गौर किया कि गांव के उस कच्चे रास्ते पर पैरों के चार निशान हैं जब कि उनके दो पैरों के निशान ही रहने चाहिए. उन्हें पहले तो विश्वास नहीं हुआ, पर दुबारा देखने पर अचरज हुआ कि वाकई दो के स्थान पर चार पदचिन्ह हैं. मन में सवाल उठा कि आखिर मेरे साथ दो पदचिन्ह किसके हैं. सोच-विचार चलता रहा. सत्संग के समापन पर वे अपने गांव लौट आए. आने-जाने के इस क्रम में उनके साथ दो और पदचिन्ह मार्ग में अंकित होते रहे. शाम की प्रार्थना में संत जी ने अपने इष्ट देव  के सामने यह जिज्ञासा व्यक्त की. भगवान ने उनकी जिज्ञासा का निवारण करते हुए कहा, "तुम मेरे सच्चे भक्त हो जो अच्छे कर्म में सदा संलिप्त रहता है और साथ ही दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित भाव से यथासाध्य लगा रहता है. मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ और इसी कारण बराबर तुम्हारे साथ रहता हूँ. तुम्हें जो दो अतिरिक्त पदचिन्ह दिखाई पड़े वे मेरे थे." अपने इष्ट देव के स्नेहवचन से संत जी  धन्य हो गए. भक्त और भगवान के बीच यह अदभुत सिलसिला कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा. संत जी को निर्मल आनंद की अनुभूति  हो रही थी. समय ने करवट बदली और संत जी के जीवन में कुछ समस्या आई. संत जी  ने सोचा शायद उनके किसी बुरे कर्म का फल अब मिल रहा हो. कई बार हमें पता नहीं होता कि जो कुछ हम रोजाना कर रहे हैं उनमे से कितने का कौन-सा फल अभी आना बाकी है. बहरहाल, संत जी ने संयम और आस्था को कमजोर नहीं होने दिया. भगवान के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण पूर्ववत बनी हुई थी. लेकिन आश्चर्यजनक बात यह थी कि इस दौरान  संत जी  को कहीं भी आते-जाते अब सिर्फ दो ही पैरों के निशान दिख रहे थे. एक क्षण के लिए वे विचलित हुए और सोचने लगे कि इस मुश्किल  वक्त में क्या भगवान ने भी उनका साथ छोड़ दिया. मन में तुरत विचार आया कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता. शाम की प्रार्थना में संत जी ने  भगवान से पूछ ही लिया,  "हे  देव, मैं मुश्किल वक्त से गुजर रहा हूँ. मेरे प्रियजन मुझसे मुंह मोड़ रहे हैं. क्या अब आपने भी मेरे साथ चलना छोड़ दिया? आपके पदचिन्ह मुझे क्यों नहीं दिखाई पड़ रहे हैं? भगवान ने संत जी से कहा, "नहीं, ऐसा नहीं है. मैं अपने सच्चे भक्तों को कभी नहीं छोड़ता. उनसे कभी दूर नहीं रहता. इस समय तुम्हे जो दो पदचिन्ह दिखाई पड़ते हैं, वे मेरे पदचिन्ह हैं, तुम्हारे नहीं, क्यों कि इस संकट की घड़ी में मैं तुम्हें अपने बाहों में उठा कर चल रहा हूँ. तुम्हें इस संकट से बचाकर ले जा रहा हूँ." भगवान की बातें सुनकर संत जी नतमस्तक होकर ख़ुशी से रोने लगे.

सार-संक्षेप-सीख यह है कि अपनी जीवन यात्रा में किसी भी स्थिति-परिस्थिति में अपना मनोबल कभी कमजोर मत होने दें. किसी भी समस्या से घबराए नहीं. बस सकारात्मक सोच के साथ यथाशक्ति और यथाबुद्धि सही काम को सही समय पर सही तरीके से करने की कोशिश करते रहें. समाधान-सफलता साथ चलते रहेंगे. हां, आप अपने आसपास के गरीबों और बेसहारा लोगों की जितनी मदद कर सकते हैं, जरुर करें. निर्मल आनंद की अनुभूति होगी. ज्ञानीजन कहते हैं कि जो व्यक्ति सहर्ष दूसरों का कल्याण  करता है और इस कार्य हेतु समाज के अन्य लोगों को प्रेरित भी करता है, उसे भगवान खुद मदद करने को तत्पर रहते हैं, बेशक अपने नायाब तरीके से. अपने आसपास नजर दौड़ाएंगे तो इस बात के कई प्रमाण मिल जायेंगे.  
 (hellomilansinha@gmail.com)

     
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" के सभी संस्करणों में 14.04.2020 को प्रकाशित
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Tuesday, May 12, 2020

हर दिन एक नया दिन

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
सभी जानते हैं कि पृथ्वी चौबीस घंटे में अपनी धूरी पर एक बार घूम जाती है और हमें  रोज सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुभव करवाती है. सुबह-सुबह रोज चिड़िया जोर-जोर से न जाने कौन-सा नया पाठ याद करती है या कौन-सा नया गाना गा कर हमें कौन-सा संदेश देकर न जाने कहां काम पर निकल जाती है और फिर शाम होते ही एक दूसरा गाना गाते हुए अपने घर लौट आती है. सचमुच इन सबके बीच जीवन में हमें रोज कई सदेश मिलते हैं. मसलन, जीवन चलने का नाम, जीवन के रंग हजार, जीवन परिवर्तनशील है, प्रकृति हमारा अच्छा दोस्त, बदलता रहता है मौसम - कभी ख़ुशी कभी  गम, हर दिन एक नया दिन आदि. 

वाकई हर दिन एक नया दिन होता है. हम लोग सभी,  खासकर छात्र-छात्राएं अगर इस यथार्थ को मान कर चलें तो जीवन के लिए बहुत जरुरी वेलनेस पॉइंट्स बिलकुल क्लियर हो जाते हैं. पहला तो यह कि आज का दिन आज ही ख़त्म होगा. इसे चाहकर भी हम आगे नहीं खींच सकते हैं. कल एक नया दिन होगा. अतः आज का जो भी काम है उसे आज ही पूरा करना है और अच्छे तरीके से करना है.  विद्यार्थीगण अगर इस विषय पर अच्छी तरह सोचें तो हर रात सोने से पहले उस समय तक का जो भी जरुरी काम होगा उसे 100% पूरा करने का प्रयत्न करेंगे. अब जब सब काम अप टू डेट रहेगा तो उसका परिणाम तो अच्छा होगा ही. सवाल है क्या सब विद्यार्थी ऐसा करते हैं?

आमतौर पर कई विद्यार्थी कुछ काम को कल पर टालते या छोड़ते हैं, जिससे धीरे-धीरे उनकी आदत कार्यों को लंबित रखने, टालने और देर से करने की बन जाती है. इससे वे कभी भी अपने लक्ष्य को नियत समय के भीतर हासिल नहीं कर सकते. बड़ा लक्ष्य हासिल करने की क्षमता होते हुए भी वे अपने अनेक साथियों से पीछे रह जाते हैं. कालान्तर में उनका आत्मविश्वास बहुत गिर जाता है. लेकिन अगर जीवन के किसी भी मोड़ पर  कोई भी विद्यार्थी सिर्फ यह सोच ले कि जो हुआ सो हुआ, तो वहीँ से एक नयी और बेहतर पारी की शुरुआत हो जाती है. 

बहरहाल, सबके लिए यह विचारणीय प्रश्न है कि जब हमें रोज एक नया दिन मिलता है तो उसका दिल खोलकर स्वागत क्यों न करें?  वाकई जब हमें कुछ नया और मन का मिलता है तो हमें बहुत ख़ुशी मिलती है. हम उस दिन को बहुत अच्छी तरह जीना चाहते हैं. कुछ अभिनव और बेहतर करना चाहते हैं. लिहाजा हम उत्साहित और आनंदित होते हैं. हर काम को मन से करते हैं. नकारात्मक सोच-विचार से दूर रहने से छोटे-बड़े अवरोधों से परेशान हुए बिना सिर्फ लक्ष्य पर फोकस करना संभव हो पाता है. इस तरह हर दिन को एक नया अवसर मानकर अध्ययन करनेवाले विद्यार्थी यकीनन दूसरों की अपेक्षा ज्यादा सफल और सुखी होते हैं.  हां, जब भी मैं अपने मोटिवेशनल सेशन में इन विचारों को विद्यार्थियों के सामने रखता हूँ और उनसे बातें करता हूँ तो एक सवाल जरुर मेरे सामने आता है और वह है कि इसे व्यवहारिक रूप से अमल में कैसे लाया जाए?  

देखिए, इस सोच का सबसे अहम पॉइंट है कि जीवन का हर पल अनमोल है, इसे यूं ही बर्बाद नहीं करना चाहिए. दिन-रात आयेंगे और जायेंगे. आप उन्हें आते-जाते रोक नहीं सकते. बस उस पल को सही तरीके से जीने और  उसको एन्जॉय करने का हरसंभव प्रयास कर सकते हैं. और सही तरीके से जीने का अर्थ है अपने जीवन की सार्थकता को पहचानना और तदनुरूप कर्म पथ पर चलते जाना. तो करना यह है कि अभी जो आपका लक्ष्य है उसको सामने रखते हुए जो भी कार्य महत्वपूर्ण और जरुरी हैं उन्हें बस अपनी क्षमता के अनुसार करते जाएं.  चिंता नहीं, चिंतन करें और जीवन को सम्पूर्णता में जीने  की कोशिश करते रहें. जो भी चिंता दिमाग में घर बनाकर बैठा है, उसे अपने दिमाग से निकालने का सतत प्रयत्न भी करते रहें. इस संबंध में प्रसिद्ध प्रबंधन विशेषज्ञ नार्मन विन्सेन्ट पील की  सलाह विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. वे कहते हैं कि "अपने दिमाग को हर दिन खाली करने का अभ्यास करें. आदर्श स्थिति में यह कार्य सोने जाने से ठीक पहले करनी चाहिए, ताकि आपकी चेतना में चिंता का नामोनिशान न रहे. नींद में विचार हमारे अवचेतन की गहराइयों में चले जाते हैं. इसलिए सोने से पहले के पांच मिनट हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, क्यों कि उस समय हमारा मस्तिष्क सुझावों के प्रति सबसे अधिक ग्रहणशील होता है.... ...." सार-संक्षेप यह कि हर दिन एक नया दिन है. उसे बस पॉजिटिव सोच के साथ जीएं. सब बढ़िया होगा.  
(hellomilansinha@gmail.com)
       
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 23.02.2020 अंक में प्रकाशित
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Friday, May 8, 2020

हेल्थ मैनेजमेंट: लॉकडाउन की लक्ष्मण रेखा में नशामुक्ति का मौका

                                          - मिलन  सिन्हा,  वेलनेस कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

सम्प्रति भारत सहित पूरा विश्व गंभीर दौर से गुजर रहा है. आर्थिक और  सामाजिक सहित अनेक क्षेत्रों में कई परिवर्तनों से हम सभी रूबरू हैं. आनेवाले दिनों में होनेवाले अनेक छोटे-बड़े बदलावों के स्पष्ट संकेत भी मिलने लगे हैं. अपने देश में लॉक डाउन के मौजूदा समय में कई तरह की  समस्या और संकट के बीच हमें अनेक नए व सुखद अनुभवों से गुजरने का मौका भी मिल रहा है, जो कदाचित मुमकिन नहीं था. पर्यावरण की बात करें तो वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण में अकल्पनीय कमी आई है. इससे पर्यावरण की सेहत अदभुत रूप से अच्छी हुई है. इस समय  तीन सौ किलोमीटर दूर से भी हिमालय पर्वत श्रृंखला का साफ़ दिखाई देना या गंगा, यमुना और अन्य नदियों में जल की गुणवत्ता में अप्रत्याशित सुधार होना या पक्षियों-तितलियों की बहुत बड़ी संख्या में उन्मुक्त विचरण करना इसके गवाह हैं. इन सबका समेकित सकारात्मक प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर गहरे रूप से पड़ना स्वाभाविक है. बेशक मज़बूरीवश लॉक डाउन के इस दौर में  आम लोगों, खासकर नियमित नशा करनेवाले लोगों के जीवनशैली में आए अच्छे बदलाव पर  गौर करना भी जरुरी है.
    
बताते चलें कि देश में नशा करनेवालों की संख्या में पिछले कई वर्षों से निरंतर वृद्धि होती रही है. नशीली चीजों की किस्में और प्रभावक्षेत्र दोनों में विस्तार हो  रहा है. अच्छी संख्या में महानगर से लेकर ग्रामीण  इलाके में रहनेवाले गरीब-अमीर लोग नशे की चपेट में आ रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि आम तौर पर सिगरेट, गुटखा, तम्बाकू, भांग, गांजा, ताड़ी, शराब, चरस, अफीम, कोकीन और  हेरोइन जैसे नशीली चीजों के लत में पड़े लाखों लोगों में से नियमित रूप से बड़ी संख्या में लोग फेफड़ा, ह्रदय, लीवर, किडनी, ब्रेन, त्वचा के रोगों के शिकार होते हैं. कैंसर पीड़ित लोगों में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. हां, घर में पौष्टिक आहार उपलब्ध होने पर भी बाहर का जंक, बासी और अस्वच्छ खाना खाने की आदत भी एक नशे के समान ही है. इस लत के कारण अपने बॉडी सिस्टम को प्रदूषित करते रहने और फिर बीमार पड़नेवाले लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है.
  
दरअसल, नशा करनेवालों के परिवारवाले  अपने स्वजनों से परेशान रहते हैं और उनको इससे दूर रहने को कहते भी हैं, अपने तरीके से प्रयास भी करते हैं. कई परिवारों में लड़ाई-झगड़े, अशांति और तनाव का यह एक बड़ा कारण भी रहा है. हां, यह भी सही है कि नशा के शिकार कई लोग खुद इसे छोड़ना चाहते हैं. तभी तो देशभर के नशामुक्ति केन्द्रों और डॉक्टरों के पास ऐसे लोगों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि नशा छोड़नेवाले लोगों की संख्या नशे के कारण विभिन्न रोगों से मरनेवालों की संख्या से अभी भी कम है. यह दुखद स्थिति है.

लॉक डाउन के कारण बाध्यतावश ही सही, नशा करनेवाले अधिकांश लोगों को इसकी आपूर्ति लगभग बंद हो गई. जिन्हें दिनभर में कम-से-कम चार-पांच सिगरेट या हर घंटे-दो घंटे में गुटखा का छोटा पैकेट, भांग का एक-दो गिलास या गांजा का दस-बीस कश या शराब का दो-चार पैग  का सेवन किए बगैर दिन काटना और रात में सोना मुश्किल होता था, अब चाहे-अनचाहे उनमें से ज्यादातर लोगों को इसके बिना जीने की आदत होने लगी है. गौर करनेवाली बात यह है कि  बिना किसी नशा मुक्ति केंद्र या डॉक्टर के पास गए या घरवालों के अतिशय दबाव के यह सब संभव हो गया. यह सकारात्मक एवं सुखद बदलाव है. यकीनन,  इसका बहुआयामी सकारात्मक असर उनके आर्थिक स्थिति के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.

अब एक बहुत अहम बात. जो लोग नशे की लत को इस बीच छोड़ चुके हैं, वे यकीनन संकल्प शक्ति के तो धनी हैं ही. तथापि इसे और मजबूत करने की जरुरत है, जिससे किसी भी कारण से वे पुनः इसके चपेट में न आ जाएं. बस मन को बराबर यह समझाते रहना है कि जो गलत था उसे जब इस लॉक डाउन के प्रभाव से ही सही एक बार छोड़ दिया तो बस छोड़ दिया. अब उससे कोई वास्ता नहीं रखना है, चाहे एकाध बार भी मन उसकी तरफ भागने की चेष्टा करे, चाहे दोस्त-मित्र इसके लिए कितना भी प्रलोभित या प्रेरित करें या चाहे लॉक डाउन में कुछ छूट के बाद नशे की ये वस्तुएं पूर्ववत आसानी से उपलब्ध हो. मन में हो विश्वास तो आप जरुर होंगे कामयाब. निसंदेह, ऐसे  समय घर के लोगों और अच्छे दोस्तों की भूमिका बहुत अहम साबित होती है. 
  
आइए जानते हैं स्वास्थ्य संबंधी इन पांच बड़े फायदों के बारे में.

1.आम तौर पर नशा छोड़ने पर खाने में सही स्वाद मिलता है और भोजन में शामिल पौष्टिक तत्वों के सही पाचन और अवशोषण का अपेक्षित लाभ भी. इससे शरीर के सारे सेल्स सक्रिय होते है और रक्त संचार में सुधार होता है. फलतः इम्यून सिस्टम और मेटाबोलिज्म में सुधार होने से दूसरे किसी बीमारी की चपेट में आने से बचे रहना भी आसान हो जाता है. व्यक्तिगत और घरेलू स्ट्रेस में आशातीत कमी आती है. 

2. सिगरेट या बीड़ी या गांजा के सेवन से मुक्त होनेवाले लोगों को टीबी, हाई बीपी, न्यूरो प्रॉब्लम,   और ह्रदय रोग के अलावे बड़े स्तर पर कैंसर से बचे रहने में मदद मिलती है. अगर इन रोगों में से किसी एक या ज्यादा रोग से पीड़ित हो चुके हैं तो उचित चिकित्सा द्वारा जल्दी ठीक होने की संभावना भी बढ़ जाती है. इससे श्वसन तंत्र में बहुत सुधार होता है. 

3. गुटखा, खैनी, जर्दा आदि के सेवन से छुटकारा पाने पर खासकर मुंह और गले के कैंसर से बचे रहना आसान हो जाता है. पाचन तंत्र ठीक से काम करने लगता है. रक्त प्रवाह में सुधार होता है इससे कई लाभ होते हैं.

4. शराब का सेवन करनेवाले लोग इससे मुक्त होने पर लीवर, किडनी और ह्रदय की बीमारी के अलावे मधुमेह में गुणात्मक सुधार के भागी बनते हैं. उनकी संकल्प शक्ति में बहुत सुधार होता है, जिसका सीधा लाभ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. अन्य कई छोटे-बड़े हेल्थ प्रोब्लम्स से भी बचे रहना संभव होता है. 
   
5. चरस, अफीम, कोकीन और हेरोइन के लत से मुक्त होने के बहुत लाभ हैं. आगे हर तरह के गंभीर बीमारियों से ग्रसित होने की प्रबल संभावना से बचे रहने और अब तक हो चुके नुकसान को ठीक करने का मौका मिल जाता है. इससे शरीर के श्वसन तंत्र से लेकर पाचन तंत्र तक सब को राहत मिलती है. इन नशीली वस्तुओं के उपयोग से गंभीर अवसाद और पागलपन की अवस्था में पहुंचे लोगों के लिए भी आगे एक हेल्दी लाइफ जीने के रास्ते खुल जाते हैं, बेशक समय थोड़ा ज्यादा लगता है. 
  
अंत में एक जरुरी बात और.

नशे की आदत से बाहर निकलने के दौर में ही अपनी जीवनशैली में सकारात्मक सक्रियताओं को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करना जरुरी होता है, जिससे बुरी आदत से एग्जिट सुगम होता  और यह महसूस भी होता है. कुछ दिनों तक नशे का हैंगओवर रहेगा जो दृढ़ निश्चय,  हेल्दी रूटीन और परिवारजनों के इमोशनल सपोर्ट से  शीघ्र समाप्त हो जाएगा. हां, इसके बावजूद भी अगर कभी मन घबराए तो घरवालों को बताने में संकोच न करे और साथ ही तुरत यह सोचें कि आखिर देश के 95 प्रतिशत से ज्यादा लोग अगर बिना नशे के हेल्दी और हैप्पी लाइफ लीड कर सकते हैं तो फिर मैं क्यों नहीं. जरुरत हो तो करके देखिएगा, अच्छा रिजल्ट मिलेगा. बहरहाल, पहले अपने शरीर की आंतरिक सफाई पर विशेष ध्यान दें, जिससे कि शरीर जल्द-से-जल्द डीटोक्सीफाई अर्थात विषैले तत्वों से मुक्त हो सके. यह महत्वपूर्ण काम सुबह की बेहतर शुरुआत से बहुत आसान हो जाएगा. ऐसे भी रात में जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठना हमेशा से ही स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी माना गया है. अच्छी नींद से स्वास्थ्य संबंधी बहुत सारी समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाता  है. सुबह जल्दी उठने से हमें अपने शरीर को अच्छी तरह जलयुक्त और ऑक्सीजन युक्त करने का अच्छा वक्त मिल जाता है. गुनगुना नींबू पानी या  तुलसी-नीम-गिलोय के जूस आदि के सेवन से बहुत लाभ महसूस होगा.  नाश्ते से पहले सुबह खुले परिवेश में निष्ठापूर्वक व्यायाम, योग और ध्यान में आधे घंटे बिताना तन-मन दोनों को  रिचार्ज और रिफ्रेश कर देता है. इसके बाद आराम से पूरा स्वाद लेकर पौष्टिक ब्रेकफास्ट करें. इस समय नियमित रूप से घर का ताजा और शुद्ध खाना खाने से अनायास ही बहुत लाभ मिल जाता है. हां, कोशिश करें कि खाली समय में अपने किसी हॉबी जैसे पेंटिंग, कुकिंग, रीडिंग, ब्लॉग या डायरी राइटिंग आदि में व्यस्त रह सकें. बहुत अच्छा लगेगा. कहने की जरुरत नहीं कि लॉक डाउन के इस पॉजिटिव रिजल्ट को आप ताउम्र याद रखेंगे और इससे लाभान्वित भी होते रहेंगे.  (hellomilansinha@gmail.com)

       
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में 6 मई, 2020 को प्रकाशित
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Sunday, May 3, 2020

स्मार्ट फोन और आपका जीवन

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
हाल ही में "परीक्षा पे चर्चा" प्रोग्राम में प्रधानमंत्री ने देशभर से आए स्कूली छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों-शिक्षकों से बात करते हुए अनेक अनुकरणीय बातें बताईं. बातों-बातों  में  प्रधानमंत्री ने बच्चों से कहा, "स्मार्ट फोन आपका जितना समय चोरी करता है, उसमें से 10 प्रतिशत कम करके आप अपने मां, बाप, दादा, दादी के साथ बिताएं.  तकनीक हमें खींचकर ले जाए, उससे हमें बचकर रहना चाहिए. हमारे अंदर ये भावना होनी चाहिए कि मैं तकनीक को अपनी मर्जी से उपयोग करूंगा." आइए, मोबाइल / स्मार्ट फोन की उपयोगिता पर थोड़े विस्तार से चर्चा करते हैं. 

हाल ही में एक चैनल में एक सर्वे के हवाले से कहा गया कि सामान्य तौर पर एक व्यस्क भारतीय एक साल में 1800 घंटे अपने मोबाइल / स्मार्ट फ़ोन पर बिताता है यानी साल के करीब ढ़ाई महीने. अगर दिनभर के चौबीस घंटों में नींद की अवधि के औसतन आठ घंटे को घटा दिया जाय, तो सालभर में मोबाइल को समर्पित समय लगभग चार महीना होता है. कई बड़े शहरों में किए गए सर्वे में यह बात निकल कर सामने आई है कि छात्र-छात्राएं आम तौर पर सालभर में इससे कहीं ज्यादा समय मोबाइल से चिपके रहते हैं. किसी भी महानगर या बड़े शहर में राह चलते या स्टेशन-बस स्टॉप-एअरपोर्ट पर प्रतीक्षारत विद्यार्थियों को देख लें,  मोबाइल पर उनकी बढ़ती निर्भरता का अंदाजा लग जायगा. देशभर में स्मार्टफ़ोन के कुल खरीददारों  में विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या भी इस ओर स्पष्ट संकेत करती हैं. खैर, अगर सालभर में 1800 घंटे को ही लेकर बात करें तो छात्र-छात्राएं दिनभर में करीबन इतने घंटे अध्ययन आदि में व्यतीत करने से चूक जाते हैं. लिहाजा, इसका दुष्परिणाम उनके कैरियर और रिजल्ट में दिखाई पड़ता है.

प्रसंगवश मोबाइल के लगातार और ज्यादा इस्तेमाल से विद्यार्थियों के सेहत - मानसिक और शारीरिक दोनों, को होनेवाले नुकसान पर संक्षिप्त  चर्चा करते चलते हैं. स्वास्थ्य संबंधी एकाधिक रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो तरंगों के दुष्प्रभाव के कारण  अनावश्यक थकान, पाचन की शिकायत, सिर दर्द, स्मरण शक्ति में गिरावट के साथ-साथ श्रवण और नेत्र दोष जैसी आम समस्याएं होती हैं. कालान्तर में इससे ब्रेन ट्यूमर, ह्रदय रोग, आंख-कान -पेट के रोग, डिप्रेशन आदि से ग्रसित होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है. 

बताने की जरुरत नहीं कि परीक्षा के मौसम में मोबाइल का सामान्य इस्तेमाल भी (यानी सालभर में 1800 घंटे के हिसाब से) विद्यार्थियों के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होता है. इस समय  उन पर परीक्षा में अच्छा करने का प्रेशर रहता है और इस कारण वे बहुत कुछ पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन मोबाइल का मोह और उससे चिपके रहने की बुरी आदत पीछा नहीं छोड़ती है. नतीजतन, संतुलन बिगड़ता है, तनाव बढ़ता है और वे अध्ययन पर फोकस नहीं कर पाते. दोस्तों को फोन करने या उनका फोन आने का सिलसिला भी शायद ही रुकता या कम होता है. हाल के हफ़्तों में स्ट्रेस मैनेजमेंट और मोटिवेशन के सेशन में कई बड़े स्कूलों में दसवीं और बारहवीं क्लास के विद्यार्थियों से बात करते हुए जब मैंने उनसे परीक्षा से कम-से-कम एक महीने पहले से मोबाइल से पूरी तरह दूर रहने के दसाधिक फायदे बताए, तो मेरे सुझावों से लगभग सभी विद्यार्थियों ने सहमति जताई. हां, मैंने उनसे कहा कि मोबाइल से उनके प्रगाढ़ रिश्ते के मद्देनजर इसपर अमल करना थोड़ा कठिन तो है, लेकिन असंभव नहीं. 
  
विद्यार्थियों के लिए यह  विचारणीय सवाल है कि क्या मोबाइल ही उनका जीवन है या उनके जीवन को बस थोड़ा आसान करनेवाला एक छोटा जरिया या उपकरण है? परीक्षा के समय और बाद में भी अगर वे मोबाइल/स्मार्ट फोन को जरुरी संचार और उपयोगी संवाद-जानकारी आदि का  माध्यम बना सकें तो यक़ीनन विद्यार्थियों को बहुत सारे जीवनोपयोगी फायदे होंगें. रिचार्ज  के लिए पैसे कम लगेंगे, समय की बड़ी बचत होगी, अपनी और दोस्तों की सेहत अच्छी रहेगी, मनोरंजन के नाम पर गैर-जरुरी और ज्यादातर नकारात्मक चीजों से बचना संभव होगा, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और अन्य परिजनों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और सीखने -सीखाने का अच्छा अवसर मिलेगा, जैसा कि प्रधानमंत्री ने उनसे कहा. इतना ही नहीं, रात में नींद अच्छी आएगी, स्वाद लेकर भोजन कर पायेंगे, अध्ययन के अलावे खेलकूद पर फोकस कर पायेंगे. इस सबका समेकित असर विद्यार्थियों की ख़ुशी, स्वास्थ्य और सफलता में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होगा. अतः मोबाइल को अपना जीवन नहीं, जीवन को थोड़ा सुविधाजनक बनाने का बस एक छोटा साधन मानें. बीच-बीच में बिना मोबाइल के जीवन जी कर तो देखें. वाकई अच्छा लगेगा. 
(hellomilansinha@gmail.com)
       
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 16.02.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Friday, May 1, 2020

हेल्थ मैनेजमेंट: शरीर को अंदर से सैनीटाइज करते हैं ये प्राणायाम व आसन

                                                - मिलन  सिन्हा,  वेलनेस कंसलटेंट एवं योग विशेषज्ञ 
नोवेल कोरोना वायरस यानी कोविड-19 वैश्विक महामारी से भारत सहित दुनियाभर के 200 से ज्यादा देश दुष्प्रभावित हैं. लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं. यह संख्या निरंतर बढ़ रही है और इससे पीड़ित लोगों की मरने की संख्या भी. विश्व के दूसरे सबसे आबादीवाले देश होने और कोविड-19 के जन्मदाता देश चीन का पड़ोसी होने के बावजूद भारत की स्थिति अबतक अपेक्षाकृत बेहतर है. केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ देशभर की सामाजिक और स्वयंसेवी संस्थाएं लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाए रखने और जो संक्रमित हो चुके हैं उनके उपयुक्त इलाज के लिए मिलकर काम कर रही हैं. केंद्र सरकार का आयुष मंत्रालय भी समय-समय पर लोगों को इसके संबंध में जरुरी जानकारी मुहैया करवा रही है. तथापि एकाधिक कारणों से बड़ी संख्या में आम लोग सशंकित, चिंतित और तनावग्रस्त हैं. इसका बुरा असर शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता और मेटाबोलिज्म पर पड़ना स्वाभाविक है. इसके दुष्परिणाम बहुआयामी हो सकते हैं. समाज और सरकार के सामने यह एक बड़ी चुनौती है. 

ज्ञातव्य है कि नोवेल कोरोना वायरस यानी कोविड-19 के संक्रमण से हमारी श्वसन प्रणाली बुरी तरह प्रभावित होती है. वायरस का  पहला हमला हमारे गले के आसपास की कोशिकाओं पर होता है  जो जल्दी ही हमारे सांस की नली और फेफड़ों को संक्रमित कर स्थिति को जानलेवा तक बना देती है. नियमित योगाभ्यास, खासकर निम्नलिखित पांच प्राणायाम के अभ्यास से खुद को अन्दर से सेनिटाइज करना और बराबर वायरस से लड़ने में खुद को सक्षम बनाए रखना आसान  हो जाता है, क्यों कि इससे श्वसन नली एवं फेफड़े के प्रोब्लम्स से बचाव के अलावे उच्च रक्तचाप, न्यूरो प्रॉब्लम, ह्रदय रोग, मधुमेह, मानसिक तनाव आदि में भी काफी लाभ मिलता है. 

विश्व प्रसिद्ध योगाचार्य स्वामी सत्यानन्द सरस्वती के अनुसार प्राणायाम प्रक्रियाओं की वह श्रृंखला है जिसका लक्ष्य शरीर की प्राणशक्ति को उत्प्रेरणा देना, बढ़ाना तथा उसे विशेष अभिप्राय से विशेष क्षेत्रों में संचारित करना है. प्राणायाम का अंतिम उद्देश्य सम्पूर्ण शरीर में प्रवाहित 'प्राण' को नियंत्रित करना भी है.

कोशिश करें कि प्राणायाम का अभ्यास अपेक्षाकृत खुले स्थान पर किए जाएं अर्थात ऑक्सीजन और प्रकाश युक्त माहौल में. आइए प्राणायाम के उन पांच अभ्यासों के बारे में  जानते हैं. 

1. योग क्रिया: अनुलोम-विलोम प्राणायाम 
विधि: सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में से ध्यान के किसी आसन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रख लें. आँख बंद कर लें. अब दाहिने हाथ के प्रथम और द्वितीय अँगुलियों को ललाट के मध्य बिंदु पर रखें और तीसरी अंगुली (अनामिका) को नाक के बायीं छिद्र के पास और अंगूठे को दाहिने  छिद्र के पास रखें. अब अंगूठे से दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से दीर्घ श्वास लें और फिर अनामिका से बाएं छिद्र को बंद करते हुए दाहिने छिद्र से श्वास को छोड़ें. इसी भांति अब दाहिने  छिद्र से श्वास लेकर बाएं से छोड़ें. यह एक आवृत्ति है. 
अवधि:  कम-से-कम 5 मिनट रोजाना
सावधानी: मन को श्वास क्रिया पर केन्द्रित करें. जल्दबाजी या बलपूर्वक न करें.  
लाभ: सर्दी, जुकाम, सायनस, अस्थमा, खांसी, टोन्सिल आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं. सिरदर्द, माइग्रेन, उच्च रक्तचाप, न्यूरो प्रॉब्लम, ह्रदय रोग आदि के लिए भी लाभप्रद. 
  
2. योग क्रिया: कपालभाति प्राणायाम  
विधि: सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में सीधा बैठ जाएं. पेट सहित पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रख लें. आँख बंद कर लें और श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब रेचक यानी श्वास छोड़ने की प्रमुखता रखते हुए श्वसन अभ्यास करें. चूंकि इस प्राणायाम में  रेचक क्रिया में थोड़ा जोर लगाया जाता है, अतः हमारा पेट स्वतः थोड़ा भीतर की ओर जाएगा. आप पूरा ध्यान केवल सांस को बाहर निकालने पर केन्द्रित करें. 
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना
सावधानी: जो लोग नेत्र रोग से पीडि़त हैं या जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, वे इस प्राणायाम को किसी योग प्रशिक्षक से सलाह लेकर ही करें.
लाभ: इससे फेफड़ा स्वच्छ होता है. दमा, एलर्जी, सायनस, कब्ज, जुकाम आदि रोग के साथ-साथ  ह्रदय एवं मस्तिष्क के रोगों में भी लाभ मिलता है. मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए भी लाभप्रद.

3. योग क्रिया: भस्त्रिका प्राणायाम
विधि: ध्यान के किसी आसन यानी सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में बैठ जाएं. अपने सिर और मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और दोनों हाथ घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रखें. आँख बंद कर लें और श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब थोड़ी तेज गति से बीस बार पूरक और रेचक यानी श्वास लें और छोड़ें. यह एक आवृति है. तीन आवृति से शुरू करें और अगले कुछ दिनों में सुविधानुसार बीस आवृति तक ले जाएं. इस क्रिया के अभ्यास से फेफड़ों का उपयोग लोहार की धौंकनी के तरह होता है. इससे फेफड़े से ऑक्सीजन से भर जाता है.  
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना
सावधानी: अगर हाई ब्लड प्रेशर या चक्कर आने संबंधी कोई बीमारी हो तो अपने डॉक्टर के एडवाइस से ही इस क्रिया को करें और वह भी किसी योग्य योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में. 
लाभ: फेफड़े को स्वच्छ, स्वस्थ और सबल रखने में बहुत लाभकारी. इस क्रिया से बहुत ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव होता है. गले के रोग, सर्दी-जुकाम, एलर्जी, दमा आदि में भी लाभप्रद. 

4. योग क्रिया: उज्जायी प्राणायाम 
विधि: आराम के किसी भी आसन में सीधा बैठ जाएं. अपने सिर और मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और दोनों हाथ घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. अब अपने जीभ को मुंह में पीछे की ओर इस भांति मोड़ें कि उसके अगले भाग का स्पर्श ऊपरी तालू से हो. इसके बाद  गले में स्थित स्वरयंत्र को संकुचित करते हुए मुंह से श्वसन करें और और अनुभव करें कि श्वास क्रिया नाक से नहीं, बल्कि गले से संपन्न हो रहा है. ध्यान रहे कि श्वास क्रिया गहरी, पर धीमी हो. इसे 10-20 बार करें.  
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना 
सावधानी: जल्दबाजी न करें. मन को श्वास क्रिया पर केन्द्रित करें 
लाभ: गले को ठीक और नीरोग रखने के लिए काफी फायदेमंद. सर्दी-खांसी, ह्रदय रोग, अस्थमा, कंठ विकार, टोन्सिल, अनिद्रा, मानसिक तनाव से पीड़ित लोगों के लिए लाभप्रद है.

5. योग क्रिया: भ्रामरी प्राणायाम  
विधि: ध्यान के किसी भी आसन जैसे सुखासन, अर्धपद्मासन आदि में बैठ जाएं. मेरुदंड सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. आंख बंद कर लें. श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब प्रथम अँगुलियों से दोनों कान बंद कर लें. दीर्घ श्वास ले और भौंरे की तरह ध्वनि करते हुए अविरल रेचक करें तथा मस्तिष्क में ध्वनि तरंगों का अनुभव करें. यह एक आवृत्ति है . इसे 5 आवृत्तियों से शुरू कर यथासाध्य रोज बढ़ाते रहें. रोजाना 10 मिनट तक करें तो बेहतर परिणाम मिलेंगे.
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना 
सावधानी: जल्दबाजी न करें. श्वास क्रिया तथा ध्वनि लयबद्ध हो, इसका ध्यान रखें.  
लाभ: गले का रोग, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग आदि में लाभप्रद. उत्तेजना और  मन की चंचलता दूर होती है. स्मरण शक्ति और सकारात्मक सोच बढ़ाने में सहायक.

तन-मन के रिलैक्सेशन के लिए शिथिलीकरण योग क्रिया :

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती कहते हैं कि "आधुनिक वैज्ञानिक युग में लोग अनेक तनावों एवं दुश्चिंताओं के अधीन हैं. उन्हें नींद में भी आराम नहीं मिलता. ऐसे लोगों को जिस प्रकार के विश्राम की आवश्यकता है, उसे वे शिथिलीकरण के आसनों द्वारा निश्चित ही प्राप्त कर सकते हैं." आइए ऐसे दो आसान आसनों के विषय में जानते हैं.

1. योग क्रिया: शवासन 
विधि: दोनों हाथों को शरीर के बगल में रखते हुए पीठ के बल सीधा लेट जाएं. हथेलियों को ऊपर की ओर खुला रखें. पैरों को थोड़ा अलग कर लें. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. शरीर को शव की तरह पड़ा रहने दें. श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब श्वास-प्रश्वास पर मन को केन्द्रित करते हुए उनकी गिनती शुरू कर दें. यानी श्वास को आते-जाते सजगता से अनुभव करें और गिनें भी. मन भटके तो उसे पुनः इस काम में लगाएं. कुछ मिनटों तक ऐसा करने पर तन-मन शिथिल हो जाएगा और आप बहुत रिलैक्स्ड फील करेंगे. 
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना. ऐसे आपको जब जरुरत महसूस हो इस क्रिया को करें.   
सावधानी: लेटने का स्थान समतल हो और आप श्वास-प्रश्वास के प्रति सचेत रहें.
लाभ: समस्त शारीरिक तथा मानसिक प्रणालियों को शिथिल करके विश्राम देता है. थकान, चिंता, तनाव और अवसाद में बहुत लाभकारी. सोने से पूर्व और योगाभ्यास के पश्चात इसका अभ्यास आदर्श माना जाता है.

2. योग क्रिया: मकरासन  
विधि: पेट के बल सीधा लेट जाएं. अब कुहनियों के सहारे सिर और कंधे को उठाएं तथा हथेलियों पर ठुड्डी को टिका दें. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. अब श्वास-प्रश्वास पर मन को केन्द्रित करते हुए उनकी गिनती शुरू कर दें. कुछ समय तक लगातार इस अवस्था में रहें. 
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना. ऐसे आपको जब जरुरत महसूस हो इसे आप करें.   
सावधानी: लेटने का स्थान समतल हो और आप श्वास-प्रश्वास के प्रति सचेत रहें.
लाभ: रिलैक्सेशन के अलावे इस आसन से दमा एवं फेफड़े के अन्य रोगों से ग्रसित लोगों को बहुत लाभ मिलता है. मेरुदंड की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए भी काफी लाभप्रद. (hellomilansinha@gmail.com)

     
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय दैनिक "प्रभात खबर" में 29.04.2020 को प्रकाशित
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