Monday, May 29, 2017

मोटिवेशन : सफलता और असफलता जीवन का एक हिस्सा है

                                                                      -मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर 
सीबीएसई 12वीं के परीक्षार्थियों की प्रतीक्षा ख़त्म हो गई.  रिजल्ट की घोषणा हो चुकी.  स्वभाविक रूप से  कुछ बच्चे खुश हैं, तो कुछ बच्चे नाखुश. माता-पिता, शिक्षक, अभिभावक के लिए भी कहीं खुशी और कहीं गम का माहौल है. जिन बच्चों का रिजल्ट अच्छा नहीं हुआ, वे तो स्वयं मायूस, परेशान और तनाव ग्रस्त होंगे. सोच-विचार कर रहे होंगे कि अपेक्षित मार्क्स क्यों नहीं आये, कहां चूक हो गई, अभिभावक और शिक्षक क्या सोचेंगे, लोग क्या कहेंगे, आगे कहां और क्या पढ़ पायेंगे आदि. बावजूद इसके ज्यादातर अभिभावक अपने ऐसे मायूस बच्चों को पीटने-डांटने-कोसने से बाज नहीं आते हैं, जब कि वे भी जानते हैं कि बच्चे पर इसका नकारात्मक असर होगा और यह भी कि इससे बच्चे के इस रिजल्ट में कोई बदलाव नहीं होने वाला है. जो होना था, हो गया है. अब तो इसे खुले मन से स्वीकारने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं. 

बेहतर ये होता है कि ऐसे मौके पर अभिभावक अपने-अपने बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से खड़े रहें और दिखें भी. उन्हें प्यार करें; उनकी क्षमता पर भरोसा जताएं. एक काम और करें. ऐसे समय में  'पर-पीड़ा सुख' पाने के इच्छुक ऐसे सभी पड़ोसी और सगे-संबंधी से बच्चों को बचा कर रखना अनिवार्य है. बच्चों को भी गम के दरिया में डुबकियां लगाने, अंधेरे कमरे  में बैठ कर खुद को कोसने और अपने दोस्तों के रिजल्ट से तुलना करने और  दूसरे को दोष देने  के बजाय 'टेक-इट-इजी'  सिद्धांत  का पालन करते हुए शांत रहने की कोशिश करनी चाहिए. 

जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं. यह जीवन अनमोल है. अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी, अल्बर्ट आइंस्टीन एवं  ए पी जे अब्दुल कलाम सहित अनेकानेक महान लोगों की जिंदगी असफलताओं के बीच से होकर अकल्पनीय सफलता-उपलब्धि हासिल करने की कहानी कहता है. ऐसे भी, हम सभी जानते हैं कि सफलता-असफलता सभी के जीवन में आते रहते हैं. बेहतर उपलब्धि के लिए सतत कोशिश करते रहना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. 

हां, अब तो अपने देश में 12वीं के बाद बहुत सारे रोजगार उन्मुखी कोर्स शुरू हो गए हैं. सोच-समझ कर दाखिला लेने से भविष्य में कई फायदे होंगे.   

ऐसे, रिजल्ट खराब अथवा आशा के अनुरूप नहीं होने के एक नहीं, अनेक कारण हो सकते हैं.  किसी भी कारण से इस बार अगर अपेक्षित परिणाम नहीं मिले, तो उन कारणों की गहन समीक्षा खुले मन और ठंढे दिमाग से अर्थात निरपेक्ष भाव से तीन-चार  दिनों के बाद करनी चाहिए, तुरन्त तो कदापि  नहीं. 

तो अगले दो दिनों तक क्या करें ? पहला तो, अपने रिजल्ट को पूरी तरह स्वीकार करें. दूसरा, किसी के भी डांट- फटकार, कटाक्ष, आलोचना, व्यंग्य आदि को दिल से न लें. तीसरा, अच्छे से स्नान कर पसंदीदा ड्रेस पहनकर आईने के सामने जाकर मुस्कुराएं और खुद को देर तक निहारते हुए मन ही मन दोहरायें - जो हुआ, ठीक ही हुआ. मैंने जैसी परीक्षा दी, परिणाम कमोबेश उसी के अनुरूप आया. ऐसे भी, मुझे जीवन में अनेक छोटी -बड़ी परीक्षाएं देनी हैं, सफलता-असफलता के अलग-अलग दौर से गुजरना है, तो अब मायूसी किस बात की. पीछे कोई भूल  हुई है तो उसे आगे नहीं दोहराएंगे, खूब मेहनत करेंगे. आगे हम जरुर  कामयाब होंगे, मन में है मेरे यह विश्वास....मन हल्का हो जायगा, हैप्पी-हैप्पी फील होगा. माता-पिता सहित घर के सभी बड़ों का आशीर्वाद  लें और उन्हें आगे बेहतर रिजल्ट का आश्वासन दें. फिर खुशी -खुशी खाना खाएं, टीवी में कॉमेडी शो या फिल्म देखें और रात में जल्दी सो जाएं. यकीन मानिए, आपका कल आज से जरुर बेहतर होगा. आप सफल तो होंगे ही, स्वस्थ भी रहेंगे और आनंदित भी.     
                                                                                       ( hellomilansinha@gmail.com)
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

Tuesday, May 16, 2017

यात्रा के रंग : अब पुरी में -5 ‘श्री जगन्नाथ मंदिर’ और उसके आसपास-2

                                                                                          - मिलन सिन्हा 
गतांक से आगे... हमें पुरी के “श्री जगन्नाथ मंदिर” में प्रवेश करते ही एक पंडा जी मिल गए, जो हमें मंदिर के सभी महत्वपूर्ण भागों में न केवल ले गए, बल्कि उसके धार्मिक-आध्यात्मिक पृष्ठभूमि की जानकारी दी. ज्ञातव्य है कि मुख्य मंदिर के आसपास तीस छोटे-बड़े मंदिर भी स्थित हैं. श्री जगन्नाथ मंदिर काम्प्लेक्स में ही माँ लक्ष्मी का भी मंदिर है, जहां जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद जाने की परंपरा है.  

कहा जाता है कि चार धामों में शुमार “श्री जगन्नाथ मंदिर” की अनेक विशेषताएं हैं, जिनके विषय में जानकर अचरज में पड़ जाना अस्वाभाविक नहीं है. मसलन, मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है; इस विशाल रसोईघर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोइए एवं उनके 300 सहयोगी एकसाथ काम करते हैं; मिट्टी के बर्तनों में सारा खाना पकाया जाता है; रसोईघर  में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के सात बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं तथा  इंधन के रूप में लकड़ी का ही इस्तेमाल किया जाता है;  दिन के किसी भी वक्त मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया अदृश्य ही रहती है; पुरी शहर के किसी भी भाग से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखें तो यह चक्र आपको हमेशा सामने से ही लगा हुआ दिखाई पड़ेगा; 214 फुट ऊँचे इस मंदिर के ऊपरी हिस्से में दिखने वाला ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता रहता है आदि.

जानने योग्य बात यह भी है कि अष्टधातु से निर्मित सुदर्शन चक्र को, जिसकी परिधि करीब 36 फुट है, नीलचक्र भी कहा जाता है एवं इसे बहुत ही पवित्र -पावन माना जाता है. ऐसी और भी अनेक ज्ञानवर्द्धक  बातें इस मंदिर के साथ जुड़ी है.

मंदिर के गर्भ गृह में एक रत्न मंडित चबूतरे पर भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान हैं. ये तीनों मूर्तियां लकड़ी से बनी हैं, जिन्हें अनुष्ठानपूर्वक बारह वर्षों में एक बार बदला जाता है. 

मंदिर के शिखर पर लहराते ध्वज को बदलने का कठिन काम प्रतिदिन अपराह्न काल में करीब चार बजे के आसपास, यानी सूर्यास्त से पहले, किया जाता है. मंदिर के शिखर पर स्थित सुदर्शन चक्र के ऊपर सूर्य और चन्द्र अंकित लगभग 25 फुट लम्बा लाल या पीला एक बड़ा ध्वज लगाया जाता है, जो करीब 12 फुट ऊँचे सुदर्शन  चक्र से करीब 25 फुट और ऊपर सदैव लहराता रहता है. नील चक्र से नीचे की ओर अन्य अनेक छोटे –बड़े ध्वज लटकते –लहराते रहते हैं. सभी ध्वजों को रोज बदला जाता है. सौभाग्य से हमें इस पूरी प्रक्रिया को संपन्न होते हुए देखने का मौका मिला. हमारे तरह हजारों लोग इस रोमांचक दृश्य को देखने वहां मौजूद थे. कहते हैं, ऐसी भीड़ वहां उस वक्त हर रोज देखी जा सकती है. वाकई, इतनी ऊंचाई पर इतने ध्वजों को लेकर चढ़ना-उतरना, उन्हें उतारना–नए ध्वज लगाना,  बहुत ही जोखिम का काम है, तथापि इस कार्य को बड़ी कुशलता से मंदिर द्वारा अधिकृत दो व्यक्ति रोजाना नियमपूर्वक  करते हैं. मंदिर परिसर में ही “श्री जगन्नाथ जी” का प्रसाद प्राप्त करने की सुविधाजनक व्यवस्था कायम है.            ... ....आगे जारी.   (hellomilansinha@gmail.com)

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित 
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Tuesday, May 9, 2017

यात्रा के रंग : अब भुवनेश्वर की ओर - 1

                                                                                    - मिलन सिन्हा 
सुबह सात बजे ही निकल पड़े हम पुरी से ओड़िशा या उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर की ओर जिससे भुवनेश्वर तथा उसके आसपास अवस्थित कुछेक पर्यटन स्थलों को देखने एवं उनके विषय में अपना ज्ञानवर्धन करने का मौका मिल सके. धूप खिल चुकी है. मौसम खुशनुमा है ...

पुरी शहर से निकल कर भुवनेश्वर मार्ग पर आने के लिए हम एक पुराने पुल से गुजरते हैं. कार चालाक ने बताया कि  इस पुराने पुल के साथ अब अब एक नया पुल भी बन गया है, पर नाम वही पुराना ही है -  ‘अट्ठारह पाया पुल’.

पुरी –भुवनेश्वर सिक्स लेन सड़क पर चलते हुए हमें आसपास धान के खेत, नारियल के हजारों कतारबद्ध पेड़, कच्चे-पक्के छोटे मकान, मुर्गी-बत्तक, गाय, बकरी, पोखर आदि के साथ-साथ सामन्य देहाती लिबास में औरत, मर्द और बच्चे दिखाई पड़े. सड़क किनारे छोटे चाय दुकानों में या उसके आसपास नारियल पानी यानी डाब सुलभ था.  ताजे और सस्ते. नारियल पानी पीकर एवं उसका मलाई खाकर हमलोग आगे बढे. 

पुरी से भुवनेश्वर के बीच की करीब 60 किलोमीटर की दूरी एक्सप्रेस मार्ग से करीब 75-80 मिनट में आराम से तय की गई. कहना न होगा कि भुवनेश्वर शहर में प्रवेश करते ही हमें यह महसूस होने लगा कि हम पौराणिकता एवं आधुनिकता को समेटे एक बेहतर व विकसित स्थान में भ्रमण  का आनंद  ले पायेंगे.

कुछ ही देर में हम उदयगिरि तथा खंडगिरि गुफाओं के पास थे, जो ऐतिहासिक एवं  धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. दिलचस्प तथ्य यह है कि सड़क के एक ओर खंडगिरि पर्यटन स्थल है तो दूसरे तरफ उदयगिरि. दोनों के बीच करीब 60-70 फीट की दूरी है. ये दोनों पर्वत गुफाएं भुवनेश्वर शहर के उत्तर-पश्चिमी भाग में है. खंडगिरि पर्वत गुफा की ऊंचाई 133 फीट है, तो उदयगिरि की 110 फीट. उदयगिरि में कुल 44 गुफाएं हैं, जब कि खंडगिरि में 19 गुफाएं. कहा जाता है कि इनमें से  कुछ गुफाएं प्राकृतिक हैं. तो कुछ कृत्रिम रूप से निर्मित. दोनों ही पर्वत गुफाओं के आसपास हजारों छोटे- बड़े पेड़ इनकी खूबसूरती बढ़ाते हैं. आइये देखें दोनों पर्वत गुफाओं के ये फोटो :

खंड गिरि पर चढ़ने- उतरने की व्यवस्था बेहतर है. बच्चों, युवाओं  और  बुजुर्गों को भी पर्वत के शिखर पर चढ़ते और उस स्थान का आनंद लेते देखा जा सकता है. उदय गिरि गुफाओं को देखने के लिए कुछ दूर तक आप सीढ़ियों से चढ़ कर अच्छी तरह ऊपर जा सकते हैं, किन्तु बाकी की चढ़ाई पत्थर की बेतरतीब सीढ़ियों से संभल-संभल कर. उदय गिरि के शिखर पर एक सफ़ेद खूबसूरत दिगम्बर जैन मंदिर  है, जो दूर से ही दिखाई पड़ता है. इस मंदिर के परिसर से भुवनेश्वर शहर का एक विहंगम दृश्य आप देख सकते हैं. 

उदय गिरि पर्वत गुफाओं को देखने के क्रम में आपको कुछेक मिनट तो बंदरों के साथ गुजारना ही पड़ेगा, जो आपके लिए एक सुखद अनुभव होगा. ये बंदर – छोटे-बड़े सभी, आपके साथ कमोबेश शालीनता से ही पेश आयेंगे, अगर आप भी उनके साथ मानवोचित व्यवहार करें. आप उन्हें उपहार स्वरुप खाने के लिए बादाम के दो-चार छोटे पैकेट प्रेम से भेंट करें – उन्हें अच्छा लगेगा और यकीनन आपको भी. 

हाँ, इसी क्रम में हमें उनके बीच के आत्मीय रिश्ते के कई दुर्लभ दृश्य अपने मोबाइल कैमरे में कैद करने का अवसर मिल गया, जिसमे एक वयस्क बंदर दूसरे के शरीर में से ढील यानी जुएँ बीनते दिखता है, तो एक दूसरे दृश्य में माता बंदर अपने छोटे से बच्चे को अपनी गोद में सुरक्षित दूध पिलाते हुए. कुछ ऐसे ही आत्मीय दृश्य हमें हमारे कई प्रदेशों के ग्रामीण इलाकों में दोपहर बाद अनायास ही दिख जायेंगे, बेशक कई फर्क के साथ.


यहाँ हमने कई युवक –युवतियों के अलावे कई बुजुर्गों को बंदर एवं उनके परिजनों  के साथ  सेल्फी लेते भी देखा. अपने पूर्वजों की मौजूदा पीढ़ी के साथ दिखने –दिखाने का अभिनव दृश्य !
 (hellomilansinha@gmail.com)

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com