- मिलन सिन्हा

पुरी शहर से निकल कर भुवनेश्वर मार्ग पर आने के लिए हम एक पुराने पुल से गुजरते हैं. कार चालाक ने बताया कि इस पुराने पुल के साथ अब अब एक नया पुल भी बन गया है, पर नाम वही पुराना ही है - ‘अट्ठारह पाया पुल’.
पुरी –भुवनेश्वर सिक्स लेन सड़क पर चलते हुए हमें आसपास धान के खेत, नारियल के हजारों कतारबद्ध पेड़, कच्चे-पक्के छोटे मकान, मुर्गी-बत्तक, गाय, बकरी, पोखर आदि के साथ-साथ सामन्य देहाती लिबास में औरत, मर्द और बच्चे दिखाई पड़े. सड़क किनारे छोटे चाय दुकानों में या उसके आसपास नारियल पानी यानी डाब सुलभ था. ताजे और सस्ते. नारियल पानी पीकर एवं उसका मलाई खाकर हमलोग आगे बढे.
पुरी से भुवनेश्वर के बीच की करीब 60 किलोमीटर की दूरी एक्सप्रेस मार्ग से करीब 75-80 मिनट में आराम से तय की गई. कहना न होगा कि भुवनेश्वर शहर में प्रवेश करते ही हमें यह महसूस होने लगा कि हम पौराणिकता एवं आधुनिकता को समेटे एक बेहतर व विकसित स्थान में भ्रमण का आनंद ले पायेंगे.


उदय गिरि पर्वत गुफाओं को देखने के क्रम में आपको कुछेक मिनट तो बंदरों के साथ गुजारना ही पड़ेगा, जो आपके लिए एक सुखद अनुभव होगा. ये बंदर – छोटे-बड़े सभी, आपके साथ कमोबेश शालीनता से ही पेश आयेंगे, अगर आप भी उनके साथ मानवोचित व्यवहार करें. आप उन्हें उपहार स्वरुप खाने के लिए बादाम के दो-चार छोटे पैकेट प्रेम से भेंट करें – उन्हें अच्छा लगेगा और यकीनन आपको भी.
हाँ, इसी क्रम में हमें उनके बीच के आत्मीय रिश्ते के कई दुर्लभ दृश्य अपने मोबाइल कैमरे में कैद करने का अवसर मिल गया, जिसमे एक वयस्क बंदर दूसरे के शरीर में से ढील यानी जुएँ बीनते दिखता है, तो एक दूसरे दृश्य में माता बंदर अपने छोटे से बच्चे को अपनी गोद में सुरक्षित दूध पिलाते हुए. कुछ ऐसे ही आत्मीय दृश्य हमें हमारे कई प्रदेशों के ग्रामीण इलाकों में दोपहर बाद अनायास ही दिख जायेंगे, बेशक कई फर्क के साथ.
यहाँ हमने कई युवक –युवतियों के अलावे कई बुजुर्गों को बंदर एवं उनके परिजनों के साथ सेल्फी लेते भी देखा. अपने पूर्वजों की मौजूदा पीढ़ी के साथ दिखने –दिखाने का अभिनव दृश्य !
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com
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