Tuesday, July 11, 2017

यात्रा के रंग : अब पुरी में -6 "रथ यात्रा की बात और कुछ"

                                                                                                           -मिलन सिन्हा 
गतांक से आगे... पुरी में रथयात्रा सबसे बड़े  उत्सव के रूप में मनाया जाता है. नौ दिनों तक चलनेवाले इस अदभुत धार्मिक-आध्यात्मिक त्यौहार में स्थानीय लोगों के अलावे देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पूरे आस्था और उत्साह से शरीक होते हैं. इस मौके पर श्री जगन्नाथ, श्री बलभद्र और देवी सुभद्रा को लाखों श्रद्धालु इतने नजदीक से देख पाते हैं. रथयात्रा उत्सव आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को शुरू होता है. इस दिन अलग-अलग रथों में श्री जगन्नाथ, श्री बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा को पूरे विधि –विधान से बिठाया जाता है और फिर  बड़ी संख्या में भक्तगण रथों को खींच कर दो किलोमीटर दूर गुंडिचा मन्दिर तक ले जाते हैं.

गुंडिचा मन्दिर बहुत ही खूबसूरत है जिसका निर्माण कलिंग वास्तुकला पर आधारित है. यह मंदिर श्री जगन्नाथ के मौसी घर के रूप में भी प्रसिद्ध है. श्री जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मन्दिर तक की सड़क बहुत ही चौड़ी और अच्छी है. सही है क्यों कि 60 फुट से ज्यादा चौड़े और 40 फुट से ज्यादा ऊँचे तीन रथों के साथ चलनेवाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए ऐसी व्यवस्था अनिवार्य है. लकड़ी से बने रथों को तैयार करने का काम हफ़्तों चलता है और फिर अंत में तीनों रथों को अत्यन्त कलात्मक ढंग से सजाया जाता है. इस यात्रा में सबसे आगे श्री बलभद्र का ताल ध्वज रथ, बीच में देवी सुभद्रा का पद्म ध्वज रथ और उसके पीछे श्री जगन्नाथ का गरुड़ ध्वज रथ रहता है. एकादशी को वापसी यात्रा यानी बहुडा के बाद तीनों प्रतिमाओं को जगन्नाथ मंदिर के गर्भ गृह में आस्था और भक्तिभाव से फिर से स्थापित किया जाता है. हर साल इसी समय यह  कार्य पूरे धूमधाम से संपन्न होता है. ऐसे अब तो देश-विदेश में अनेक स्थानों में इसी समय रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. 

पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर और समुद्र तट श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए सबसे बड़े आकर्षण के केन्द्र रहे हैं, तथापि कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं जहाँ सालों भर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. श्री लोकनाथ मंदिर इनमें से एक है.  यह श्री जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर है. यह पुरी का सबसे पुराना मंदिर है जहाँ श्री लोक नाथ जी के नाम से भगवान शंकर की पूजा-अर्चना की जाती है. शिव रात्रि के मौके पर तो प्रत्येक वर्ष  यहां एक बड़ा मेला भी लगता है. 


नरेन्द्र या चंदन तालाब भी काफी खूबसूरत और लोकप्रिय पर्यटक स्थल है. यह स्थान श्री जगन्नाथ मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है. हर वर्ष अक्षय तृतीया से 21 दिनों तक यहां  श्री जगन्नाथ का जल विहार उत्सव मनाया जाता है. यह तालाब 873 फुट लम्बा और 834 फुट चौड़ा है. यह स्थान श्री जगन्नाथ के बुआ के घर के रूप में भी जाना जाता है. इस परिसर में छोटे-छोटे कई मंदिर हैं जिनमें देवी –देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान हैं. आपके पास समय हो तो आप बेदी हनुमान मंदिर, सुदर्शन क्राफ्ट म्यूजियम और श्री सोनार गौरांग मंदिर भी जा सकते हैं. 

अंत में एक और बात. पुरी में घूमते हुए हमें बड़े-बड़े शॉपिंग सेंटर या मॉल दिखाई नहीं पड़े. सांस्कृतिक, पारम्परिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जड़ें आज भी ज्यादा मजबूत हैं यहां, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है.           (hellomilansinha@gmail.com)   

                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलतेअसीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित 

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

Wednesday, July 5, 2017

आज की बात: स्वच्छता क्या सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है ?

                                                                  - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर...
कल रात की हल्की बारिश के बाद आज सुबह जब बाजार की ओर निकला तो सामने की सड़क थोड़ी साफ़ लगी. देख कर अच्छा लगा. बारिश ने अपना काम किया था. लेकिन, थोड़ा और आगे बढ़ा तो खुशी गायब हो गई. एक बड़े मकान के सामने सड़क पर कचड़ा बिखरा पड़ा था. दो–तीन कुत्ते वहीं जमे थे. गाड़ियां    कचड़े का कचूमर निकालती, कचड़े को और दूर तक फैलाती बेपरवाह दौड़ लगा रही थी. यह दृश्य मुख्य सड़क पर पहुंचने तक कई जगह दिखा. आते-जाते लोग कचड़े से बच कर निकल रहे थे; कुछ संभ्रांत किस्म के लोग नाक पर रुमाल भी रखे दिखाई पड़े. 

आगे चौराहे पर एक नई बड़ी गाड़ी में बैठे चार-पांच पुलिस कर्मी खैनी मलने या मोबाइल में व्यस्त थे. ट्रैफिक पुलिस की ड्यूटी का समय अभी नहीं हुआ था. सड़क किनारे नियमित लगने वाले सब्जी-फल बाजार में अव्यवस्था का आलम था. गौर से इधर –उधर नजर दौड़ाई और कुछ सब्जी विक्रेताओं से पूछा तो पता चला कि कल दिन में नाले की उढ़ाई हुई और फिर जो रात में बारिश हुई, तो यह गन्दगी चारों ओर इस तरह बिखरनी ही थी. सभी विक्रेता नगर निगम को इस हाल के लिए दोष दे रहे थे. उनका कहना था कि नगर निगम टैक्स तो लेती है, लेकिन काम ठीक से नहीं करती. नाले की साप्ताहिक सफाई भी नहीं होती. जब भी सफाई- उढ़ाई होती है, नाले से निकले बदबूदार कचड़े का ढेर दो-तीन दिनों तक ऐसे ही पड़ा रहता है; भोर में कचड़ा उठाने के बजाय दुकानदारी शुरू होने के बाद नौ-दस बजे नगर निगम सड़क पर ट्रेक्टर लगा कर कचड़ा उठाती है और बदबू फैलाते हुए खुला ही ले जाती है. 

दरअसल, शहर को साफ़ –सुथरा रखने के नाम पर नगर निगम ऐसे ही कार्य करता रहा है. विडम्बना है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार है, प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान की खूब दुहाई दी जाती है, सफाई के मद में पहले से ज्यादा राशि खर्च करने की बात भी अखबारों में दिखती है, पर हकीकत कुछ और ही बयाँ करती है. 

यह तो हुई नगर निगम या सरकार के कार्यशैली की बात. पर स्वच्छता के मुत्तलिक बड़ा सवाल यह है कि एक जागरूक शहरी और समाज के रूप में हम सब क्या कर रहे हैं? स्वच्छता तो ‘स्व’ अर्थात  खुद से शुरू होता है न.

तो फिर चलते हैं वहीं जहां से यह चर्चा प्रारंभ हुई थी - अपनी गली में. गली में कचड़ा जिनके भी घर के सामने पड़ा और बिखरा हुआ मिले, क्या वे इसका समाधान अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर आसानी से नहीं निकाल सकते? एक छोटी-सी पहल तो प्लास्टिक का कूड़ेदान रखकर कर ही सकते हैं, क्यों? फिर नगर निगम को नरक निगम कहना छोड़ उसके सफाई कर्मियों से कचड़े की नियमित सफाई का अनुरोध नहीं, आग्रह करें, जरुरत हो तो मिलकर करें. सार्थक परिणाम न निकले तो बात को आगे तक ले जाएं – मौखिक और लिखित दोनों स्तर पर. आखिर हमारे टैक्स के पैसे से ही नगर निगम के कर्मियों को वेतन मिलता है. यकीन मानिए, स्थिति सुधरेगी, बेशक कछुआ गति से. 

अब चलें सब्जी-फल के बाजार में. जिस भी कारण से और जिसकी भी अनुमति या सहमति से सड़क किनारे ये लोग दुकान लगाते हैं, अपने आसपास की सफाई का ध्यान तो रख ही सकते हैं. सड़ी-गली सब्जियां, सूखे-गले फल, बेकार पत्ते-कागज़ आदि जहां-तहां न फेंक कर, बगल के नाले में न डाल कर उन्हें छोटे-बड़े डस्टबीन में डाल सकते हैं. शाम को घर लौटने से पहले अपनी जगह की सफाई कर अवशेष को कूड़ेदान के सुपुर्द कर दें. जो लोग ऐसा न करें, उन्हें सब मिलकर समझाने का प्रयास करें. झगड़ने की जरुरत नहीं. बिलकुल न समझें तो निगम के अधिकारी से आग्रह करें. इतने से भी स्वच्छता के अभियान में कुछ योगदान तो कर ही लेंगे. 

मेरी तो स्पष्ट मान्यता रही है कि देश के एक आम नागरिक के रूप में हमें जो करना चाहिए, उसे हम करने का प्रयास करें, यथासाध्य करें. हर बात के लिए सरकार का मुखापेक्षी होना और सरकार पर निर्भर रहना कहां तक मुनासिब है. एक बात और, जब हम अपना कर्तव्य का निर्वाह करेंगे, तभी तो पूरी नैतिकता के साथ सरकार पर भी सही जोर डाल पायेंगे.             
                                                                                    (hellomilansinha@gmail.com)
                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं