Sunday, October 27, 2013

आज की कविता : सच्चाई

                                           - मिलन सिन्हा 
बिहार की राजधानी में आज 
कई बम विस्फोट हुए 
महत्वपूर्ण स्थानों में हुए 
कई लोग मारे गए 
दर्जनों जख्मी हुए 
तो क्या हुआ ?

मुम्बई में आतंकी हमला हुआ 
लोकल ट्रेन में बम फटे 
महानगर  दहशत में जीता रहा 
सैकड़ों लोग मारे गए 
हजारों लोग घायल हुए 
तो क्या हुआ ?

देश की  राजधानी  में 
कई बार दहशतगर्दों ने 
खूनी खेल खेला 
जहाँ चाहा, वहाँ खेला 
संसद भवन को भी नहीं छोड़ा 
तो क्या हुआ ?

कश्मीर में जब तब 
गोलाबारी होती है 
रॉकेट से हमले भी होते हैं 
सीमा पर तनाव बढ़ता है 
जनजीवन असामान्य हो जाता है 
तो क्या हुआ ?

हर मामले में हर जगह 
निर्दोष लोग, कर्तव्यनिष्ठ सिपाही 
मारे जाते हैं, आहत होते हैं 
परिवार पर विपत्ति आती है 
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें कवर करते हैं 
तो क्या हुआ ?

सरकार सख्त कारवाई का राग अलापती है 
संवेदना भी प्रदर्शित करती है 
मुआवजे की त्वरित घोषणा होती है 
घड़ियाली आंसू बहते हैं, जांच आयोग बैठते हैं 
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें भी कवर करते हैं  
तो क्या हुआ ?

अब तो ऐसा अमूमन 
हर जगह होने लगा है 
कभी कभार नहीं, बराबर होने लगा है 
परन्तु खबरों के अलावा 
इनका और क्या महत्व रह गया है 

हाँ, सत्य तो बस इतना है कि 
आम आदमी तो होता ही है 
आश्वासनों एवं घोषणाओं के साथ जीने के लिए 
वोट देने के लिए 
प्रजातंत्र को  ढोने के लिए 
और ऐसी घटनाओं ( दुर्घटनाओं नहीं ) का 
शिकार होने के लिये !

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Tuesday, October 22, 2013

आज की कविता : जीवन एक नाव, तैयारी

                           - मिलन सिन्हा 
एक 
जीवन 
एक नाव है,
मौत 
सागर सामान है
कब कोई 
उफान आवे 
और 
लील ले 
नाव  को 
कोई कैसे 
कह सकता है ?

दो 
हमें 
'आज' को 
'कल' के लिए 
तैयार करना है,
क्यों कि 
'कल' के 
भरोसे ही तो 
हमें जीना है !

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
# 'जीवन साहित्य' में प्रकाशित 

Tuesday, October 15, 2013

आज की कविता : ऐसा क्यों होता है

                                                    - मिलन सिन्हा
क्यों होता है ऐसा
जो खुद को
कहते नहीं थकते
दबंग, स्वस्थ, समर्थ
सर्वप्रिय नेता
सब मर्जों की दवा
दोषी साबित होते ही
जेल में कदम धरते ही
हो जाते हैं बीमार
बदहाल, लाचार
लगाते हैं  कोर्ट में
दया की गुहार
बताकर खुद को
कई रोगों के शिकार
खाए कोई अठारह-बीस गोली
तो कोई दिन में अस्सी गोली
असहाय लगे हैं दिखने
बदल गयी है बोली
तो क्या कल तक जो
दिखते थे शानदार,
दमदार और जानदार
वो होते हैं वाकई 
शाश्वत बीमार और लाचार
कहाँ  तब  यह सवाल 
कि जनता करे उन्हें स्वीकार !

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

#  प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :14.11.2013

Saturday, October 12, 2013

आज की कविता : जीवन का हिसाब

                                                             - मिलन सिन्हा 
life









तुमसे बेहतर  
तुम्हें जाने कौन 
मुझसे बेहतर 
मुझे जाने कौन 
लोग कहें न कहें 
मानें  न मानें 
जानें न जानें 
पहचानें न पहचानें 
क्या फर्क पड़ेगा 
जैसे हम हैं  
वैसे हम हैं 
जैसा आगे करेंगे 
वैसा ही बनेंगे 
सच है, झूठ से सच 
कैसे साबित करेंगे   
गलत तरीके से 
जब जोड़ेंगे संपत्ति 
दूर कैसे रहेगी तब 
हमसे  विपत्ति 
गवाह है मानव इतिहास 
होता है अपने-अपने 
कर्मों का यहीं हिसाब 
इसी जीवन में 
जीना है सबको 
अपने हिस्से का स्वर्ग 
अपने हिस्से का नर्क 
करें क्यों तब छल-प्रपंच 
और अपना ही बेड़ा गर्क !

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

Tuesday, October 8, 2013

आज की कविता : खिलौना

                                                          - मिलन सिन्हा

neta














समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ
एक बार फिर
खून से रंगे पड़े हैं  
दर्जनभर दबे-कुचले लोगों को मारकर
आधे दर्जन दबंग
असलहों के साथ
सैकड़ों मूक दर्शकों के सामने
निकल पड़े हैं वीर ( ? ) बने
राजनीतिक बयानबाजी का टेप 
बजने लगा है अनवरत 
इधर, सत्ता प्रतिष्ठान की आँखों से
बह निकली है
ड़ियाली अश्रुधारा
चल पड़ी है फिर
मुआवजे की वही धूर्त राजनीति
उधर मातहत व्यस्त हो गए हैं
करने वो सारा इंतजाम
जिससे दबंगों - साहबों की
रंगीन बनी  रहे शाम
चौंकिए नहीं, 
आज के तंत्र आधारित लोकतंत्र में
ऐसी ही परंपरा है आम  
गरीब शोषित जनता को समझते हैं ये  
बस अपने हाथ का खिलौना 
जिनके हाथ में थमा देते हैं यदा-कदा  
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का झुनझुना। 

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :08.10.2013

Sunday, October 6, 2013

आज की कविता : आम के पेड़ के नीचे

                                                       - मिलन सिन्हा 
बाग़ में आम के पेड़ के नीचे 
किताबों और अजीजों के साथ 
अच्छे - अच्छे शेर सुनना 
किसे सुकून नहीं देता 

बाग़ में आम के पेड़ के नीचे 
ठंडी -ठंडी हवा में 
रसभरे आम चूसना 
किसे अच्छा नहीं लगता 

बाग़ में आम के पेड़ के नीचे 
शाम को झूला झूलते हुए 
सूरज को नदी में डूबते हुए देखना 
किसे कवि नहीं बनाता !

   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Friday, October 4, 2013

हास्य व्यंग्य कविता : नया खेल

                                               - मिलन सिन्हा

तिकड़म सब हो गए फेल
नेताजी पहुँच ही गए जेल
बनने लगे हैं नए समीकरण
बाहर शुरू हो गया है नया खेल

खूब खाया था, खिलाया था 
पीया था, खूब पिलाया था
राजनीति को ढाल बनाया था
परिवार को आगे बढ़ाया था

जिनका खूब साथ दिया
उन्होंने ही दगा किया
भ्रष्टाचार के नाम पर
शिष्टाचार तक त्याग दिया

आगे क्या होगा, कितनी होगी सजा
पक्षवाले चिंतित, तो विपक्ष ले रहा मजा
पर एक बात पर हैं सब एकमत 
बुरे काम का होता ही  है बुरा नतीजा। 

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं


 # प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :02.10.2013

Wednesday, October 2, 2013

आज की कविता : सत्य

                                 - मिलन सिन्हा 
मैं 
एक 
सत्य हूँ 
तुम 
मुझे 
काट-छांट कर 
कितना भी 
छोटा 
क्यों न 
कर दो,
फिर भी 
मैं 
एक तत्व के 
परमाणु की तरह 
बराबर 
वही गुण 
प्रदर्शित करता रहूँगा !

              और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
# 'जीवन साहित्य' में प्रकाशित