- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर...
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हाल ही में 'परीक्षा पर चर्चा' कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री ने करीब दो हजार विद्यार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं अभिभावकों से करीब दो घंटे तक रूबरू बातचीत की. करोड़ों विद्यार्थियों ने इस कार्यक्रम को टीवी और रेडियो पर देखा और सुना. उस दौरान प्रधानमंत्री ने अपने नायाब अंदाज में परीक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण, आम माता-पिता एवं शिक्षकों का व्यवहार, बच्चों की अपेक्षाएं, तनाव-अवसाद, सफलता-असफलता, डिजिटल क्रांति आदि अनेक विषयों पर खुलकर बात की और अपने विचार साझा किए. इसी क्रम में उन्होंने विद्यार्थियों से कहा, "दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा मत कीजिए, बल्कि खुद के साथ अनुस्पर्धा कीजिए."
बिलकुल सही है. ऐसा इसलिए कि किसी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में भी व्यक्ति मूलतः अपनी क्षमताओं का यथोचित उपयोग करने के बजाय बस अपने प्रतिस्पर्धी से आगे रहने की मंशा से कार्य करता है. इस प्रक्रिया में कई बार लोग यह तक भूल जाते हैं कि इस प्रतिस्पर्धा में आगे रहकर वे वस्तुतः क्या पाना चाहते हैं या पाते भी हैं.
हमारे देश में भी हर वर्ष अनेक विद्यार्थी तनाव और अवसाद के शिकार हो जाते हैं और एक बड़ी संख्या तो परीक्षा और उसके रिजल्ट के समय जीवन से हारकर मौत को गले लगा लेते हैं, जब कि वे भी भलीभांति जानते हैं कि उनका जन्म जीने के लिए हुआ है, इस तरह अप्राकृतिक मौत को अंगीकार करने के लिए नहीं.
सभी जानते हैं कि प्रतिस्पर्धा किसी दूसरे से ही की जाती है. आमतौर पर विद्यार्थी अपने साथी -सह्पाठी से प्रतिस्पर्धा करते हैं. उनसे आगे बढ़ने पर अपना सारा ध्यान लगा देता है, अलबत्ता यह आगे बढ़ना कितना छोटा ही क्यों न हो. उसका सहपाठी भी वैसा ही करता है. गौर करनेवाली बात है कि इस प्रतिस्पर्धा के कारण उनके बीच संवाद में खुलापन और सरलता दुष्प्रभावित होने लगती है, वे एक दूसरे से कई अहम बातें छुपाने लगते हैं, झूठ बोलते हैं और कई लोग तो मित्र से दुश्मन तक बन जाते हैं. कई बार तो यह प्रतिस्पर्धा इतना गलाकाट हो जाती है कि उनके लिए इसे सह पाना मुश्किल हो जाता है. इस सबके कारण उनको समय,उर्जा और एकाग्रता की क्षति उठानी पड़ती है. मानसिक उलझन एवं तनाव में वृद्धि होती है, सो अलग.
चाहे कोई भी वजह हो या कोई भी इच्छा हो, इसके दवाब में आप प्रतिस्पर्धा के दौड़ में शामिल हो जाते हैं और फिर जायज-नाजायज किसी भी तरीके से जीत हासिल करना चाहते हैं, जब कि आप स्वयं जानते हैं कि प्राप्त जीत से कहीं बड़ी जीत हासिल करने की क्षमता आपमें है और वह भी सही तरीके से. लेकिन प्रतिस्पर्धा के दवाब में आप उतनी सी जीत से ही तात्कालिक रूप से खुद को विजयी मानने की गलती कर बैठते हैं. विचारणीय सवाल है कि कहीं आप इस प्रकार के रेस में फंसकर अपनी स्वभाविक क्षमता धीरे-धीरे कम तो नहीं करते जाते हैं, क्यों कि इसका सीधा असर आपके आत्मविश्वास और उत्साह पर पड़ना लाजिमी है?
इसके विपरीत अगर आप अनुस्पर्धा के मार्ग पर चल पड़ें तो आप खुद में छिपी असीम क्षमता के अनुरूप अपने प्रदर्शन को दिन-पर-दिन उन्नत करने को सचेष्ट हो जायेंगे और कालान्तर में आप सफलता की उन ऊँचाइयों पर पहुंचने में सक्षम होंगें जो आपको पहले नामुमकिन और दुरुह लगता था. ऐसा इसलिए कि आपके स्ट्रांग पॉइंट्स, आपकी कमजोरियों, आपके सामने उपलब्ध संभावनाओं और आपके सम्मुख उपस्थित होनेवाले जोखिमों के विषय में आपसे बेहतर कोई और शायद ही जान सकता है और उसका विश्लेषण कर सकता है.
अब अगर उक्त परिप्रेक्ष्य में आप सदैव अपने परफॉरमेंस को बीते हुए कल से बेहतर बनाने का संकल्प ले लें और फिर खुद को उस कसौटी पर कसते हुए यथोचित परिश्रम और लगन से आगे बढ़ते रहें, तो कोई कारण नहीं आप किसी से भी अच्छा मुकाम हासिल न कर पायें. ओलिंपिक खेलों में अबतक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करनेवालों में शामिल उक्रेन के सर्गेई बुबका और जमैका के उसैन बोल्ट ने इसको बखूबी साबित किया है. जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं.
सार संक्षेप यह कि आप दूसरों से स्पर्धा करने के बजाय स्वयं से स्पर्धा करने का संकल्प लीजिए और ऐसा करने की आदत डालिए. अपनी अच्छाइयों को पहचान कर उसमें निरंतर सुधार सुनिश्चित करें. साथ-ही-साथ अपनी कमजोरियों को भी पहचान कर उसे कम करने और अंततः ख़त्म करने की पूरी कोशिश करें. एक आदत के रूप में रोज कुछ अच्छा और बेहतर जानें, सीखें और अमल में लाएं. नियमित रूप से किसी-न-किसी महान व्यक्ति की आत्मकथा या जीवनवृत पढ़ें. इससे आपका यह मत सुदृढ़ होता जायगा कि अनुस्पर्धा के मार्ग पर चलते हुए किस तरह ऐसे लोगों ने खुद को सतत उन्नत करते हुए असंभव को भी संभव कर दिया. खुद हमारे प्रधानमंत्री इसका ज्वलंत उदाहरण हैं. (hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com