Saturday, February 23, 2019

मोटिवेशन : खुद से प्रतिस्पर्धा करें !

                                                                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर...
हाल ही में 'परीक्षा पर चर्चा' कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री ने करीब दो हजार विद्यार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं  एवं अभिभावकों से करीब दो घंटे तक रूबरू बातचीत की. करोड़ों विद्यार्थियों ने इस कार्यक्रम  को टीवी और रेडियो पर देखा और सुना. उस दौरान प्रधानमंत्री ने अपने नायाब अंदाज में परीक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण, आम माता-पिता एवं शिक्षकों का व्यवहार, बच्चों की अपेक्षाएं, तनाव-अवसाद, सफलता-असफलता, डिजिटल क्रांति आदि अनेक विषयों पर खुलकर बात की और अपने विचार साझा किए. इसी क्रम में उन्होंने विद्यार्थियों से कहा, "दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा मत कीजिए, बल्कि खुद के साथ अनुस्पर्धा कीजिए."

बिलकुल सही है. ऐसा इसलिए कि किसी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में भी व्यक्ति मूलतः अपनी क्षमताओं का यथोचित उपयोग करने के बजाय बस अपने प्रतिस्पर्धी से आगे रहने की मंशा से कार्य करता है. इस प्रक्रिया में कई बार लोग यह तक भूल जाते हैं कि इस प्रतिस्पर्धा में आगे रहकर वे वस्तुतः क्या पाना चाहते हैं या पाते भी हैं. 

हमारे देश में भी हर वर्ष अनेक विद्यार्थी तनाव और अवसाद के  शिकार हो जाते हैं और एक बड़ी संख्या तो परीक्षा और उसके रिजल्ट के समय जीवन से हारकर मौत को गले लगा लेते हैं, जब कि वे भी भलीभांति जानते हैं कि उनका जन्म जीने के लिए हुआ है, इस तरह  अप्राकृतिक मौत को अंगीकार करने के लिए नहीं.

सभी जानते हैं कि प्रतिस्पर्धा किसी दूसरे से ही की जाती है. आमतौर पर विद्यार्थी अपने साथी -सह्पाठी से प्रतिस्पर्धा करते हैं. उनसे आगे बढ़ने पर अपना सारा ध्यान लगा देता है, अलबत्ता यह आगे बढ़ना कितना छोटा ही क्यों न हो. उसका सहपाठी भी वैसा ही करता है. गौर करनेवाली बात है कि इस प्रतिस्पर्धा के कारण उनके बीच संवाद में खुलापन और सरलता दुष्प्रभावित होने लगती है,  वे एक दूसरे से कई अहम बातें छुपाने लगते हैं, झूठ बोलते हैं और कई लोग तो मित्र से दुश्मन तक बन जाते हैं. कई बार तो यह प्रतिस्पर्धा इतना गलाकाट हो जाती है कि उनके लिए इसे सह पाना मुश्किल हो जाता है. इस सबके कारण उनको समय,उर्जा और एकाग्रता की क्षति उठानी पड़ती है. मानसिक उलझन एवं तनाव में वृद्धि होती है, सो अलग. 

चाहे कोई भी वजह हो या कोई भी इच्छा हो, इसके दवाब में आप प्रतिस्पर्धा के दौड़ में शामिल हो जाते हैं और फिर जायज-नाजायज किसी भी तरीके से जीत हासिल करना चाहते हैं, जब कि आप स्वयं जानते हैं कि प्राप्त जीत से कहीं बड़ी जीत हासिल करने की क्षमता आपमें है और वह भी सही तरीके से. लेकिन प्रतिस्पर्धा के दवाब में आप उतनी सी जीत से ही तात्कालिक रूप से खुद को विजयी मानने की गलती कर बैठते हैं. विचारणीय सवाल है कि कहीं आप इस प्रकार के रेस में फंसकर अपनी स्वभाविक क्षमता धीरे-धीरे कम तो नहीं करते जाते हैं, क्यों कि  इसका सीधा असर आपके आत्मविश्वास और उत्साह पर पड़ना लाजिमी है? 

इसके विपरीत अगर आप अनुस्पर्धा के मार्ग पर चल पड़ें तो आप खुद में छिपी असीम क्षमता के अनुरूप अपने प्रदर्शन को दिन-पर-दिन उन्नत करने को सचेष्ट हो जायेंगे और कालान्तर में आप सफलता की उन ऊँचाइयों पर पहुंचने में सक्षम होंगें जो आपको पहले नामुमकिन और दुरुह लगता था. ऐसा इसलिए कि आपके स्ट्रांग पॉइंट्स, आपकी कमजोरियों, आपके सामने उपलब्ध संभावनाओं और आपके सम्मुख उपस्थित होनेवाले जोखिमों के विषय में आपसे बेहतर कोई और शायद ही जान सकता है और उसका विश्लेषण कर सकता है.

अब अगर उक्त परिप्रेक्ष्य में आप सदैव अपने परफॉरमेंस को बीते हुए कल से बेहतर बनाने का संकल्प ले लें और फिर खुद को उस कसौटी पर कसते हुए यथोचित परिश्रम और लगन से आगे बढ़ते रहें, तो कोई कारण नहीं आप किसी से भी अच्छा मुकाम हासिल न कर पायें. ओलिंपिक खेलों  में अबतक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करनेवालों में शामिल उक्रेन के सर्गेई बुबका और जमैका के उसैन बोल्ट ने इसको बखूबी साबित किया है. जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं.  

सार संक्षेप यह कि आप दूसरों से स्पर्धा करने के बजाय स्वयं से स्पर्धा करने का संकल्प लीजिए और ऐसा करने की आदत डालिए. अपनी अच्छाइयों को पहचान कर उसमें निरंतर सुधार  सुनिश्चित करें. साथ-ही-साथ अपनी कमजोरियों को भी पहचान कर उसे कम करने और अंततः ख़त्म करने की पूरी कोशिश करें. एक आदत के रूप में रोज कुछ अच्छा और बेहतर जानें, सीखें और अमल में लाएं. नियमित रूप से किसी-न-किसी महान व्यक्ति की आत्मकथा या जीवनवृत पढ़ें. इससे आपका यह मत सुदृढ़ होता जायगा कि अनुस्पर्धा के मार्ग पर चलते हुए किस तरह ऐसे लोगों ने खुद को सतत उन्नत करते हुए असंभव को भी संभव कर दिया. खुद हमारे प्रधानमंत्री इसका ज्वलंत उदाहरण हैं.                 (hellomilansinha@gmail.com) 
                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
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Tuesday, February 12, 2019

मोटिवेशन : समय प्रबंधन से मिलेंगे अच्छे अंक

                                                                            - मिलन  सिन्हामोटिवेशनल स्पीकर...
स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं को मोटिवेट करने के क्रम में मैं "3 आर" को ठीक से साधने की बात करता रहा हूँ. यहाँ "3 आर" का मतलब रीडिंग, रिटेंशन और रिप्रोडक्शन से है. आम तौर पर यह पाया गया है कि पढ़ने, दिमाग में रख पाने तथा इम्तिहान में उसका उपयोग करने का अनुपात यानी  "3 आर"  का अनुपात 10 : 6 : 3 रहता है. इसका मतलब यह हुआ कि आपने 10 पेज पढ़ा, 6 पेज दिमाग में अंकित हुआ और मात्र 3 पेज के बराबर परीक्षा में लिख पाए. इसमें भी तारतम्य की गड़बड़ी रहती है सो अलग. यह कहने की जरुरत नहीं कि अच्छे विद्यार्थी का यह अनुपात यकीनन बेहतर होता है और तारतम्य भी. तो अब सवाल उठता है कि "3 आर" अनुपात को अच्छे ढंग से साधने के लिए वास्तव में क्या करना चाहिए?

पहले तो तन्मयता से पढ़ने की आदत डालनी चाहिए. तन्मयता से पढ़ने का मतलब यह है कि आप जब पढ़ने बैठते हैं, उस समय पूरे मनोयोग से आप उस चैप्टर को पढ़ें. पढ़ते वक्त आपका ध्यान आप जो पढ़ रहे हैं, मुख्यतः उसपर रहे. कोई भी दूसरा काम आपके ध्यान को बाधित नहीं कर पाए. कहने का अभिप्राय यह कि महाभारत में वर्णित श्रेष्ठ धनुर्धर पांडव पुत्र अर्जुन की तरह एकाग्रचित्त हो कर कार्य करें. अगर दो घंटे लगातार पढ़ने का मन बनाकर बैठते हैं तो उन दो घंटों में मोबाइल को साइलेंट मोड में कर लें और उसे पढ़ाई के टेबल से दूर रखें. ऐसे ही दूसरे अवरोधों से बचें. पढ़ने के लिए सुबह का समय कई कारणों से बेहतर माना जाता है. देखा गया है कि शाम तक जो विद्यार्थी दिनभर के लिए निर्धारित पढ़ाई कर लेते हैं, उन्हें रात में नींद भी अच्छी आती है. कारण सोने से पहले वे तनावमुक्त रहते हैं. इसके विपरीत दिनभर दूसरे क्रियाकलाप में व्यस्त रहनेवाले विद्यार्थी के लिए देर रात तक पढ़ने का प्रेशर रहता है, जब कि दिनभर के कार्य से शरीर थका रहता है और आराम खोजता है. ऐसे विद्यार्थियों के अस्वस्थ होने की संभावना भी ज्यादा रहती है. इसके अलावे एक और बात का ध्यान रखना लाभदायक होता है. शोरगुलवाले स्थान से अलग शांत माहौल में पढ़ने से एकाग्रता में खलल नहीं पड़ता है, फलतः चीजों को समझना और याद रखना आसान होता है. इस तरह एक बार विषय पर फोकस करके पढ़ने की आदत हो जाती है तो फिर आगे उसे जारी रखना आसान भी होता जाता है. 

पढ़ी हुई बातों को दिमाग में संजो कर रखने का अर्थ है कि वे बातें आपके दिमागी हार्ड डिस्क में ठीक से अंकित हो जाय. इसके लिए अपने दिमाग को उन बातों के स्वागत के लिए तैयार करने की जरुरत होती है. पढ़ी हुई बातों को दिमाग में अच्छी तरह सहेज कर रखना बहुत फलदायी साबित होता है. इससे जब भी जरुरत हो वह हमारे दिमागी स्क्रीन पर तुरत दिखने लगता है. कहते हैं "प्रैक्टिस मेकस ए मैन परफेक्ट" अर्थात अभ्यास आदमी को पूर्णता प्रदान करता है. जिन चीजों को तन्मयता से एक बार समझ पढ़ा-समझा, उसे छोटे-छोटे अंतराल में अगर फिर पढ़ और समझ लिया जाय, बिना देखे फिर उसको लिखने का अभ्यास कर लें, किसी दूसरे को वही बातें बता दें, पढ़ा दें, सिखा दें, तो यकीन मानिए आपके दिमाग में वह दृढ़ता से अंकित हो जाता है. कविवर वृंद ने सही कहा  है कि "करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान." लिखने के सतत अभ्यास से आपको यह भी पता चल जाता है कि एक प्रश्न का उत्तर लिखने में कितना समय लगता है, जिससे कि परीक्षा के समय सब कुछ बेहतर ढंग से संपन्न हो सके. 

अब बात करते हैं किसी भी परीक्षा में अपेक्षानुसार या तैयारी के अनुरूप परफॉर्म करने की यानी पढ़ी और समझी हुई बातों की बुनियाद पर प्रश्नों का उत्तर लिखने की. इसके लिए पहले तो आपको शारीरिक एवं मानसिक रूप से संयत, संतुलित और शांत रहने की आवश्यकता होगी. अंतिम समय में पढ़कर या रटकर कुछ बेहतर हासिल करने की कवायद इच्छित फल नहीं देता है. इसके उलट ज्यादातर मामलों में आपका कनफूजन बढ़ जाता और साथ में उत्तेजना भी. परिणामस्वरूप, पहले जो कुछ अच्छे से पढ़ा है, उसे भी याद रखना मुश्किल लगने लगता है. फिर तो परीक्षा हॉल में नियत समय में सारे प्रश्नों का उत्तर देना नामुमकिन हो जाता है, जब कि प्रश्नों का उत्तर आपको मालूम होता है. इसलिए हर विषय की परीक्षा से पहली रात को जल्दी सो जाएं, 10 बजे से 11 बजे के बीच. सबेरे उठकर कर सामान्य दिनचर्या पर अमल करें. परीक्षा सेंटर पर समय से थोड़ा पहले पहुंचें. प्रश्नपत्र मिलने पर सभी प्रश्नों को पहले अच्छी तरह पढ़ें और हर प्रश्न के उत्तर पर कितने अंक मिलेंगे उस पर ध्यान देकर समय प्रबंधन की रुपरेखा बना लें. इसमें सभी प्रश्नों का जवाब लिखने के बाद अंत में 10-15 मिनट का समय रिवीजन के लिए रखें. अब उन सवालों को हल करते चलें जिन्हें कम समय में कर सकते हैं. जैसे-जैसे आप सवाल हल करते जायेंगे, आपका आत्मविश्वास बेहतर होता जाएगा और साथ में आपका दिमागी कंप्यूटर ज्यादा प्रभावी ढंग से काम भी करने लगेगा. रिप्रोडक्शन प्रक्रिया बेहतर होगी और अंतिम परिणाम भी. 
                                                                                     (hellomilansinha@gmail.com) 
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Tuesday, February 5, 2019

मोटिवेशन : प्लान करके चलें, सपनों को साकार करें

                                                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर...
स्कूल, कॉलेज और  यूनिवर्सिटी में आपने भी शिक्षकों को यह कहते सुना होगा कि बेहतर परिणाम पाना चाहते हैं तो प्लान करके चलें. यही बात कॉरपोरेट जगत में बॉस और विशेषज्ञों भी कहते पाए जाते हैं. किसी खास समय जैसे कि इम्तिहान के वक्त हर विद्यार्थी आम दिनों से कुछ ज्यादा प्लान करके चलता है. बुद्धिमान और अच्छा रिजल्ट करनेवाले तो सामान्य  तौर पर बराबर ही प्लान करके चलते हैं. सच कहें तो प्लानिंग उनके दैनंदिन जिन्दगी का अभिन्न अंग हो जाता है; आदत का हिस्सा बन जाता है. वे इसके लिए हमेशा जागरूक रहते हैं. कल कौन-कौन से काम कब और कैसे करना है, उसे वे पहले से ही सूचीबद्ध कर लेते हैं और कमोबेश उसी के अनुसार कार्य संपादित करते हैं. उन्हें आप कदाचित ही फायर फाइटिंग मोड में देखेंगे. जब कि प्लान करके नहीं चलनेवालों को आप अधिकतर समय फायर फाइटिंग मोड में ही पायेंगे अर्थात घर में आग लग जाने पर उसे बुझाने के लिए भागमभाग करना, हो-हल्ला मचाना, अस्त-व्यस्त रहना. ऐसे लोग कम सफल और कम उत्पादक तो होते ही हैं, अनावश्यक तनाव में भी रहते हैं. और सभी जानते हैं, बराबर तनाव में रहना सेहत के लिए बिलकुल ही ठीक नहीं. इसके बहुआयामी दुष्प्रभाव हैं.

अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की प्लानिंग से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. कैसे सब कुछ निर्धारित समय में पूरी सूक्ष्मता एवं गुणवत्ता के उच्चतम मानकों के साथ होता है जिससे काउंट डाउन ख़त्म होते ही अन्तरिक्ष यान अपने गंतव्य की ओर चल पड़ता है. कितनी प्लानिंग से सब कुछ आगाज से अंजाम तक पहुंचाया जाता है; एक बड़ी टीम में कितने लोग किस तरह प्लान करके चलते हैं कि एक नियत तिथि को सब कुछ सफलतापूर्वक संपन्न किया जाता है. वास्तव में,  हर प्रोजेक्ट प्लानिंग अपने आप में एक अनोखी एवं विचार समृद्ध प्रक्रिया होती है.

बेंजामिन फ्रैंकलिन कहते हैं, ‘अगर आप प्लान करने में असफल रहते हैं तो आप वाकई असफल होने का प्लान कर रहे हैं.’ सपनों को साकार करने के लिए तथा अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमारे युवा जितनी मेहनत और लगन से लगे रहते हैं, उन्हें फ्रैंकलिन की बात की अहमियत अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है. 

हम यह सब जानते और मानते हैं कि जहां भी संसाधनों की किल्लत रहती है, चाहे वह समय, उर्जा, धन, अवसर, मशीन, श्रमिक आदि ही क्यों न हो, वहां प्लान करके चलना निहायत जरुरी है. दूसरे शब्दों में कहें तो जब भी, जहाँ भी सीमित संसाधनों से एक नियत समयावधि में किसी भी कार्य को संपन्न करने की चुनौती होती है, तब-तब योजना की अनिवार्यता और स्पष्ट होती है. लेस्टर राबर्ट बिटल तो  कहते हैं, ‘अच्छी योजना अच्छे निर्णय का द्योतक है जिससे सपनों को साकार करना आसान हो जाता है.’ 

युवाओं के साथ -साथ यह बात नौकरी पेशा लोगों सहित उन सब पर लागू होता है, जो सहज और सुचारू ढंग से अपने दैनंदिन जीवन में अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं. यह तब और अहम हो जाता है जब प्रतिस्पर्धा के इस युग में युवाओं को कई बार मल्टी-टास्किंग से रूबरू होना पड़ता है यानी एक साथ एकाधिक कार्य करने का प्रेशर होता है. तभी तो प्रसिद्ध फुटबॉल कोच पॉल ब्रायंट कहते हैं, ‘योजना बनायें, उसे ईमानदारी से अमल में लायें और फिर देखें कि आप कितने सफल हो सकते हैं. अधिकतर लोगों के पास कोई योजना नहीं होती. इसी कारण उन्हें हराना आसान  होता है.’ 

तो प्रश्न यह है कि विद्यार्थी इम्तिहान के इस मौसम में कैसे प्लान करें कि वे अपेक्षा के अनुरूप परीक्षा में परफॉर्म कर सकें ? 

परीक्षा से पहले अब जितना दिन बचा है और किसी दो विषयों की परीक्षा के बीच जो अंतराल है, उस दौरान जितना घंटा मिलता है, सबको जोड़ लें. अब उसमें से सोने के औसतन 7-8 घंटे तथा अन्य दैनिक दिनचर्या के लिए 3-4 घंटे  रोज के हिसाब से निकालने के बाद जितने घंटे बचते हैं, उसे विषय विशेष की जरुरत के मुताबिक़ आबंटित कर उस प्लान पर अमल करना शुरू करें. इस प्लान में कुछ घंटे खाली भी रखें यानी प्लान में थोड़ा लचीलापन रखें जिससे कि सभी विषयों पर यथोचित ध्यान दिया जा सके. ऐसे बनाए गए प्लान को पहले दो -तीन तक अमल में लाने के बाद आपकी  शारीरिक घड़ी एवं मन-मानस इस प्लान से एडजस्ट हो जाती है. फिर तो आगे उस प्लान के अमल से होनेवाले फायदे आपको खुद पता चलने लगते हैं और आपके उर्जा, उत्साह और उमंग में उछाल स्वतः आता रहता है. निःसंदेह, प्लान करके चलने की मानसिकता परीक्षा हॉल में भी आपको बहुत लाभ पहुंचाता है.  
                                                                                       (hellomilansinha@gmail.com)   
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