Tuesday, November 21, 2017

आज की कविता : बोझ

                                                                                                   - मिलन सिन्हा 

हाथ पसारे आते हैं
हाथ पसारे जाते हैं
जीवन के इस कटु सत्य को
फिर क्यों भूल जाते हैं ?
लूट-खसोट में लग जाते हैं
धरती पर बस
एक बोझ बनकर रह जाते हैं.

और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Tuesday, November 14, 2017

आज की बात : आलू -प्याजवाला रिश्ता

                                                                                         - मिलन सिन्हा 
आलू सभी सब्जी का साथी है. हर मौसम में मिलता है, हर जगह मिलता है. गरीब-अमीर सबका पसंदीदा है. कारण-अकारण न जाने कितने तरह के व्यंजन में आलू की उपस्थिति अहम होती है. घर में और कोई सब्जी नहीं हो तब भी आलू का भरता, भुजिया, आलू दम जैसे तुरत तैयार होने वाले व्यंजन से गृहणियां भोजन करनेवाले छोटे-बड़े सबको संतुष्ट कर पाती है. 

आलू -प्याज के चिरंतन दोस्ती से भी हम सब वाकिफ हैं. शायद ही कोई दुकान हो जहाँ दोनों चीजें साथ-साथ बिकती न हों? स्थानीय सब्जी बाजार के ऐसे ही एक दुकान में आज आलू खरीदने के क्रम में मोहन जी का गुस्सेवाला रूप देखा, हँसता हुआ चेहरा तो कई बार देखा है.  

मोहन जी बिहार के भोजपुरी इलाके महाराजगंज के मूल निवासी हैं, पर अब काफी अरसे से रांची में रहकर आलू-प्याज  आदि बेचते हैं. उनकी दुकान में साथ काम करते हैं एक बुजुर्ग व्यक्ति जो अलग-अलग साइज और क्वालिटी के आलू-प्याज  को ग्राहकों के लिए बीन-चुन कर विभिन्न खाने या बड़ी-बड़ी टोकरी में रखते हैं. मोहन जी का काम ग्राहकों को सामान  बेचना और गल्ला मैनेज करने का है. दोनों के बीच मोटे तौर पर श्रम का बंटवारा ऐसा ही है. सामान्यतः मोहन जी मृदुभाषी और हंसमुख हैं, व्यवहारकुशल भी. भोजपुरी में 'का हाल बा' कहते ही उनका चेहरा खिल जाता है. महराजगंज की चर्चा कर दें तो फिर क्या कहना! 

आज सुबह जब मैं पहुंचा तो मोहन जी उन बुजुर्ग सहकर्मी पर बिगड़ रहे थे- 'क्यों नहीं मेरी बात सुनते हैं; कितनी बार एक ही बात कहें; ऐसे दुकानदारी कैसे चलेगी.....'

बुजुर्ग व्यक्ति चुपचाप अपना काम करते रहे, लेकिन उनके चेहरे पर नाराजगी दिख रही थी. मोहन जी के बार-बार वही बात कहने पर धीरे से सिर्फ इतना कहा कि कर ही तो रहे हैं काम जैसे आप कहते हो. 

मैंने मोहन जी को शांत होने को कहा और पूछा कि यह बुजुर्ग कौन है.  वो मेरे सगे बड़े भाई सोहन हैं. इस पर मैंने जब यह कहा कि मोहन जी बचपन में बड़े भाई के डांट-फटकार का हिसाब चुकता कर रहे हो क्या,  तो मोहन हंस पड़े और सोहन भी. 

'कहा, न बाबू वो बात नहीं है. हम लोग में अब बड़ा-छोटा कोई नहीं है. अब तो हम यहाँ घर से दूर दोस्त के तरह रहते हैं. जिससे जब कोई गलती होती है, तब दूसरा उस पर थोड़ा बिगड़ जाता है. फिर तो वही दोस्ती- मस्ती.  बस समझिये तो आलू-प्याज वाला रिश्ता, और क्या?'

आलू -प्याज लेकर लौटते हुए मैं अच्छा महसूस कर रहा था, कारण तनाव प्रबंधन और रिश्तों की गर्माहट के एक छोटे सत्र का हिस्सा जो बन पाया था.
                                                                           (hellomilansinha@gmail.com)
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं