Friday, November 29, 2013

आज की कविता : कारण

                                                          - मिलन सिन्हा
खून को
पसीना बनाकर
आदमी
आदमी को
खींचता है
पेट के लिए
गरीब
रिक्शा चलाता है
जाड़े की रात में
गर्मी के दोपहर में
फिर
आदमी
रिक्शे पर
क्यों कर चढ़ता है
सुना है
लोहिया
ऐसा कहते थे
सो
रिक्शे पर
कभी नहीं चढ़ते थे
आज के नेता को
परहेज नहीं
पूछने पर
अट्टाहास करते हैं
फिर कहते हैं
आदमी
जानवर को तो
खींच सकता है
इसी कारण
मेरे जैसा नेता
रिक्शे पर
मजे से चढ़ सकता है !

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Friday, November 22, 2013

आज की कविता : जरा सोचो तो, क्यों ?

                                               - मिलन सिन्हा

जरा सोचो तो !
आज 
न जाने 
क्या हो गया है ?

कलतक 
जिनके शब्द 
आपस में 
इस कदर गुंथे थे 
कि 
उनको अलग -अलग करके 
पहचानना मुश्किल पड़ता था 
आज वही 
दो विपरीत दिशाओं में 
दुर्गन्ध बिखेरते 
चले जा रहे हैं !

कलतक 
जो एक दूसरे के 
हाथ में हाथ डाले 
घूमा करते थे 
उनके वे हाथ 
आज शस्त्रों में 
कैद हैं !

कलतक 
जो एक दूसरे के 
मुंह में मुंह डाले 
बतियाते थे 
वे ही आज 
एक दूसरे का मुंह 
सदा के लिए 
बंद करने पर 
तुले हैं !

लेकिन 
इतना सब होने के बावजूद
वे सभी एक हैं 
सबों को 
इस जमीन से 
बेहद लगाव है 
जरा सोचो तो, क्यों ? 

  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

#  'मध्य प्रदेश संदेश' के सितम्बर'80 अंक में प्रकाशित

Friday, November 15, 2013

आज की बात: बाल दिवस की सार्थकता

                                                                           -- मिलन सिन्हा
 कल (14 नवम्बर)  बाल दिवस था और चाचा नेहरु का जन्म दिवस भी। अनेक  सरकारी आयोजन हुए, स्कूलों में  पिछले वर्षों की भांति कई कार्यक्रम हुए, बहुत  बातें हुई,  बच्चों की  भलाई के   लिए ढेर सारे वादे किये गए, तालियां बजी ।  हां, आजाद  देश के पहले प्रधान मंत्री और बच्चों के चाचा नेहरू के जन्म दिन के उपलक्ष्य में भी अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये । और क्या ?  

ज़रा सोचिये, इस मौके पर  पूरे  देश में  जितने रूपये सारे सरकारी आयोजनों में खर्च हुए दिखाए जायेंगे, उतना अगर कुछ गरीब, बेसहारा, कुपोषित बच्चों  के भलाई के लिए  कुछ बेहद पिछड़े गांवों में   खर्च किये जाते तो कुछ तो अच्छा होता।

आजादी के 66  साल बाद भी  पूरी आजादी से गरीब छोटे बच्चे सिपाही जी को रेलवे के किसी स्टेशन पर या चलती ट्रेन में मुफ्त में गुटखा, सिगरेट,बीड़ी या तम्बाकू खिलाता,पिलाता दिख जायेगा। वैसे ही दिख जाएगा  नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों  के घर में भी  नौकर के रूप में काम करते हुए  लाचार,  बेवश  छोटे गरीब बच्चे। सड़क किनारे छोटे होटलों, ढाबों, अनेक छोटे-मोटे कारखानों, दुकानों आदि में ऐसे छोटे बच्चे सुबह से शाम तक हर तरह का काम करते मिल जायेंगे, तथाकथित  बचपन बचाओ अभियान को अंगूठा दिखाते हुए। हमारे देश में जन्म से ही गरीब तबके के  बच्चों के साथ  लापरवाही या जैसे-तैसे पेश आने का प्रचलन  रहा हो ऐसा प्रतीत  होता है, यह सब देख कर।

इस मौके पर निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करना प्रासंगिक होगा :

 बच्चों के अधिकार पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के लड़का और लड़की को बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है।  भारतवर्ष में बच्चों की कुल संख्या देश की आबादी का 40% है, यानी करीब 48 करोड़।  देश में हर घंटे 100 बच्चों की मृत्यु होती है।  भारत में बाल मृत्यु  दर (प्रति 1000 बच्चों के जन्म पर ) अनेक राज्यों में 50 से ज्यादा है जब कि इसे 30 से नीचे लाने की आवश्यकता है।  दुनिया के एक तिहाई  कुपोषित  बच्चे भारत में रहते हैं।   देश में आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण  मरते हैं।   पांच साल तक के बच्चों में 42% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।    जो बच्चे स्कूल जाते है  उनमें  से 40% से ज्यादा बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं जब कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत उनके स्कूली शिक्षा के लिए सरकार को हर उपाय  करना है।  हाल के वर्षों  में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि हुई है।

 इस तरह  के अन्य अनेक तथ्यों से रूबरू होते रहते है हम पढ़े-लिखे, खाते-पीते लोग। कभी- कभी वक्त मिले तो थोड़ी चर्चा भी कर लेते हैं। लेकिन, अब  सरकार के साथ-साथ भारतीय समाज को भी इस विषय पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा और संविधान/कानून  के मुताबिक  जल्द ही कुछ  प्रभावी कदम  उठाने पड़ेंगे, नहीं तो इन गरीब, शोषित, कुपोषित,अशिक्षित बच्चों की बढती आबादी आने वाले वर्षों  में देश के सामने बहुत  बड़ी और बहुआयामी चुनौती पेश करनेवाले हैं।ऐसे  भी, हम कब तक सिर्फ  सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) और शाइनिंग इंडिया  की चर्चा से देश की आम जनता को बहलाते रहेंगे।

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Tuesday, November 12, 2013

हेल्थ मोटिवेशन : जाड़ा और दिल का दौरा

                                                                  - मिलन  सिन्हा 
heart भारत में ह्रदय रोग से पीड़ित लोगों  की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 
हर साल देश में 30 लाख से ज्यादा लोग इस रोग के कारण मारे जाते हैं। दुनिया के 60 % ह्रदय रोगी भारत में हैं।  इसी कारण हमारे देश को ह्रदय रोग की विश्व राजधानी कहा जाता है। वास्तव में इसके एक नहीं अनेक कारण हैं जिसमें एक महत्वपूर्ण कारण इस रोग से जुड़ी सामान्य जानकारी से अनभिज्ञता के साथ-साथ हमारी दोषपूर्ण जीवनशैली है।   

हाल ही में ब्रिटेन (यू.के.) में हुए एक नए शोध के मुताबिक़ जाड़े के मौसम में अपेक्षाकृत ज्यादा लोगों को दिल का दौरा पड़ता है। ऐसा पाया गया है कि मात्र 0.67 डिग्री से. तापमान के गिरने पर एक दिन में औसतन 200 ज्यादा लोगों को दिल का दौरा पड़ा। 

ज्ञातव्य है कि गर्मी की तुलना में जाड़े के मौसम में 53 % से अधिक दिल के दौरे के मामले प्रकाश में आते हैं। जनवरी में तो यह संख्या जुलाई के अनुपात में दोगुनी हो जाती है। 

डॉक्टर बताते हैं, ऐसा इसलिए होता है क्यों कि ठण्ड के कारण हमारी रक्त धमनियां थोड़ी सिकुड़ जाती हैं जिससे रक्त प्रवाह दुष्प्रभावित होता है और साथ -साथ धमनियों में खून के थक्के बनने की संभावना भी बढ़ जाती है।

कहने का तात्पर्य यह कि शीतकालीन मौसम में हमें ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए। बड़े -बुजुर्गों, खासकर  दिल की बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए तो हर सम्भव एहतियात  बरतना नितांत आवश्यक है।ऐसा इसलिए कि बढ़ती उम्र के साथ शरीर के तापमान को यथोचित स्तर पर बनाये रखने की हमारी क्षमता कम होती जाती है।  ऐसे में कृत्रिम रूप से शरीर को गर्म बनाये रखना अनिवार्य है।

विटामिन डी की कमी जिसका गहरा सम्बन्ध ह्रदय रोग से है, को धूप का सेवन कर(वो भी  मुफ्त में) पूरा कर सकते हैं। खाने -पीने के मामले में भी मौसम के अनुरूप व अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बदलाव अपेक्षित है। किसी तरह की  शंका -आशंका की स्थिति में तुरत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। 
  
                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

#  प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :01.12..2013