Tuesday, December 28, 2021

स्टार्टअप - संभावना ही संभावना

                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

135 करोड़ की आबादीवाले हमारे देश में युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है. स्वाभाविक रूप से उनके लिए शिक्षा के साथ-साथ नौकरी, रोजगार, व्यवसाय, व्यापार, उद्यमिता आदि के मायने अहम हैं. हर दृष्टि से बदलाव के स्वर्णिम दौर से गुजरते भारत में विकास की गति अपेक्षाकृत ज्यादा तेज है. युवाओं में नौकरी से स्व-रोजगार की ओर उन्मुख होने के मामले में भी यह स्पष्ट है और स्टार्टअप की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण. गौर करनेवाली बात है कि पिछले कुछ वर्षों  में युवाओं में एंटरप्रेन्योरशिप के प्रति बढ़ते रुझान के कारण देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम में अच्छी उन्नति देखी गई है.
अवसर, जोखिम, संभावना, नवाचार आदि के प्रति उनके सकारात्मक जज्बे के कारण यह विश्वास निरंतर मजबूत हो रहा है. टेक्नोलॉजी  का सपोर्ट भी देश में स्टार्टअप की वृद्धि को गति प्रदान कर रहा है.  इंटरनेट की सुलभता, इसका उपयोग करने वालों की संख्या में तेज वृद्धि और इंटरनेट चार्जेज में कमी ने स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूती प्रदान की है. 


खुशी और गर्व की बात है कि  देश में तकनीक का समावेश और उपयोग  जितनी तेजी से बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से यूनिकॉर्न स्टार्टअप की संख्या में भी वृद्धि हो रही है.
यूनिकॉर्न स्टार्टअप का मतलब ऐसा स्टार्टअप है जिसका वैल्यूएशन एक अरब डॉलर तक पहुंच गया हो. 10 अरब डॉलर के वैल्यूएशन से अधिक के स्टार्टअप को डेकाकॉर्न कहा जाता है और 100 अरब डॉलर के वैल्यूएशन तक पहुंचने वाले स्टार्टअप को हेक्टोकॉर्न. वेंचर कैपिटल इंडस्ट्री में इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है. उपभोक्ता की जरुरत, सुविधा और प्रोडक्ट की प्राइसिंग को केन्द्र में रख कर उत्तम बदलाव व नवाचार के माध्यम से हर यूनिकॉर्न, डेकाकॉर्न या हेक्टोकॉर्न ने सफलता की उच्च मंजिल को हासिल किया है. कहने की जरुरत नहीं कि देश के स्टार्टअप जैसे फ्लिपकार्ट, पेटीएम, ओला कैब या जोमैटो ने जिस तरह हमारे शॉपिंग, पेमेंट, आवागमन या खाने के सिस्टम व कल्चर को चेंज किया, उससे उनके डायनामिक बिज़नस मॉडल की पुष्टि होती है. 

 
यूनिकॉर्न क्लब में शामिल होने वाला भारत का पहला स्टार्टअप इनमोबी था जिसे 2011 में यह सम्मान हासिल हुआ था. 2011 से 2014 के बीच देश का  केवल चार स्टार्टअप ही यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो पाया. उसके बाद इसमें वृद्धि तेज हुई और 2020 तक यह संख्या बढ़कर 37 तक पहुंच गई. काबिलेगौर तथ्य यह है कि इंडियन स्टार्टअप्स के लिए 2021 का साल अब तक बेहतरीन और बहुत उत्साहवर्धक रहा है. इस साल यानी वर्ष 2021 के पहले दस महीने में फर्स्ट क्राई, मीशो, फार्म इजी, ग्रो, भारत पे, अपग्रेड, ब्लैक बक, ऑफ बिज़नेस, ग्रोफर्स, कारदेखो सहित अब तक भारत के 33 स्टार्टअप यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो चुके हैं.
अगर इसी गति से स्टार्टअप की यात्रा आगे बढ़ती रही तो ये संख्या साल के अंत तक 40 से ज्यादा हो जाएगी. 

 
ज्ञातव्य है कि स्टार्टअप इंडिया भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसकी घोषणा 15 अगस्त, 2015 को प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी ने लाल किले से की थी. इसका  उद्देश्य देश में स्टार्टअप्स और नये विचारों के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम का निर्माण करना है जिससे देश का आर्थिक विकास हो एवं बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सके. हाल ही में नैसकॉम के टेक्नोलॉजी एंड लीडरशिप फोरम को संबोधित करते हुए प्रधान मंत्री ने  कहा कि इस समय दुनिया भारत की तरफ अधिक भरोसे और उम्मीद से देख रही है.
कोरोना महामारी के इस दौर में  भारत के ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलॉजी ने न केवल खुद को साबित किया है बल्कि खुद को इवॉल्व भी किया है. ऐसे में स्टार्टअप को ऐसे इंस्टीट्यूशंस का निर्माण करना चाहिए जो ऐसे विश्व स्तरीय उत्पाद तैयार करे  जो उत्कृष्टता  के मामले में एक बेहतर मानक स्थापित कर सके.


यह सर्वमान्य तथ्य है कि तेज आर्थिक विकास और हमारी विशाल जनसंख्या देश को एक बड़ा उपभोक्ता बाजार बनाती है. स्टार्टअप के लिए यहां अपार अवसर और संभावना है. देश के युवाओं ने इसे पहचाना है और अब बड़ी संख्या में युवा इस दिशा में अग्रसर हो रहे हैं. आज जरुरत इस बात की है कि देशभर के सभी शैक्षणिक संस्थानों में शैक्षणिक व प्रशासनिक कार्य से जुड़े लोगों को स्टार्टअप कल्चर और प्रमोशन की पूरी जानकारी हो, जिससे कि वे न केवल छात्र-छात्राओं को इस दिशा में जागरूक करें, बल्कि उन्हें इस ओर अग्रसर होने को निरंतर प्रोत्साहित भी करें.   

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             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            पाक्षिक पत्रिका "यथावत" के 01-15 दिसम्बर , 2021 अंक में प्रकाशित  

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Friday, December 10, 2021

जीवन और सेहत को ऊर्जा से भर देता है ब्रह्ममुहूर्त

                                          - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट 

आजकल अनेक  लोग जरुरत-बेजरूरत और जाने-अनजाने रात में देर तक जागते हैं और सुबह देर से सोकर उठते हैं. कई मेडिकल रिसर्च और सर्वे में पाया गया है कि बराबर रात में देर से सोनेवाले लोगों को ह्रदय रोग सहित कई अन्य रोगों का शिकार होना पड़ता है. हाल ही में यूरोपियन हार्ट जर्नल में एक सर्वे के हवाले से बताया गया है कि रात के बारह बजे के बाद सोनेवालों में दिल की बीमारी का खतरा करीब 25 प्रतिशत ज्यादा होता है, जब कि 10 से 11 बजे के बीच सोनेवालों को इसका खतरा सबसे कम होता है. स्वाभाविक रूप से देर से सोनेवाले सुबह देर से उठेंगे भी. इससे बायोलॉजिकल क्लॉक का संतुलन  बिगड़ता है और नतीजतन कई अन्य शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं.


अंग्रेजी में कहते हैं, “अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज मेक्स ए मैन हेल्दी, वेल्दी एंड वाइज” अर्थात रात में जल्दी सोनेवाले और सुबह जल्दी उठनेवाले लोग स्वस्थ, समृद्ध और बुद्धिमान होते हैं. सदियों पहले आयुर्वेद में ब्रह्ममुहूर्त अर्थात सूर्योदय से पहले सोकर उठने को स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम बताया गया है. आइए, इसके पीछे जो रोचक और ज्ञानवर्धक तर्क और तथ्य हैं, उस पर थोड़ी चर्चा करते हैं. 


दिनभर के 24 घंटों में से हर 48वें मिनट में मुहूर्त बदलता है. इस हिसाब से हर एक दिन में कुल 30 मुहूर्त होते हैं. इन्हीं तीस मुहूर्तों में से एक मुहूर्त है ब्रह्म मुहूर्त जो  सुबह के 4.24 बजे से 5.12 के मध्य का समय होता है. ज्ञानीजन कहते हैं कि इस समय उठनेवाले लोगों को आंतरिक शक्ति, बुद्धि, सेहत आदि के मामले में अप्रत्याशित लाभ मिलता है.


धर्मग्रंथों की बात करें तो ऋग्वेद के अनुसार 'प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृनिधत्तो, तेन प्रजां वर्धयुमान आय यस्पोषेण सचेत सुवीर:” अर्थात सूर्योदय से पहले उठनेवाला व्यक्ति स्वस्थ रहता है. कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति  इस समय को सोकर बर्बाद नहीं करेगा. इस समय उठने वाले लोग हमेशा सुखी, ऊर्जावान बने रहते हैं और उनकी आयु लंबी होती है. सामवेद में लिखा गया है, “यद्य सूर उदितो नागा मित्रो र्यमा,  सुवाति सविता भग:”. अर्थात व्यक्ति को सूर्योदय से पहले ही शौच और स्नान आदि करके ईश्वर की उपासना करनी चाहिए. इस समय व्याप्त अमृत तुल्य हवा से स्वास्थ्य और लक्ष्मी दोनों में वृद्धि होती है. तभी तो इसे सिख धर्म में अमृत बेला कहा गया है.


सामान्य ज्ञान और चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से देखें तो इस समयावधि में वातावरण शांत और ज्यादा ऑक्सीजनयुक्त होता है. वायु और ध्वनि प्रदूषण कम होता है. शुद्ध   हवा   में  सांस   लेने से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं. पूरे शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा का संचार होता है. ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है. परिणाम स्वरुप मस्तिष्क की सक्रियता बढ़ती है, पाचन तंत्र मजबूत होता है और रोगप्रतिरोधक क्षमता उन्नत होती  है. इतना ही नहीं, ब्रह्ममुहूर्त में उठनेवाले लोगों में वात, पित्त और कफ में बेहतर संतुलन बना रहता है, जिससे शरीर को निरोगी रखने में बहुत मदद मिलती है. 


क्या है वात, पित्त और कफ


आयुर्वेद के अनुसार, मानव शरीर की प्रकृति तीन मुख्य तत्व के अनुसार होती है - 1. वात (वायु व आकाश), 2. पित्त (अग्नि व जल) और 3. कफ (पृथ्वी व जल) हैं. इन तत्वों की मात्रा समय के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है.
वात- मांसपेशियों, सांस प्रणाली, ऊत्तकों की गतिविधियों से जुड़ा है.
पित्त- पाचन, उत्सर्जन, चयापचय और शरीर के तापमान प्रक्रियाओं से जुड़ा है.
कफ- शरीर की संरचना यानी हड्डियों, तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों से संबंधित है, जो कोशिकाओं के बेहतर संचालन और जोड़ों को लूब्रिकेशन में अहम भूमिका निभाता है.


शौच आदि से निवृत होकर योग, मेडिटेशन, प्रार्थना और अध्ययन  करने के मामले में यह समय सबसे अच्छा  माना गया है. इससे अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखना आसान होता है जिसके बहुआयामी लाभ हैं. वैज्ञानिक तथ्य है कि इस समय उठनेवालों एवं सकारात्मक एक्टिविटी में समय बिताने वालों का मेमोरी पॉवर और एकाग्रता उन्नत होता है. यही कारण है कि विद्यार्थियों को इस समय अध्ययन करने को प्रेरित किया जाता है. इसके अलावे यह भी पाया गया है कि ब्रह्ममुहूर्त में उठने लोग अपना समय प्रबंधन बेहतर ढंग से कर पाते हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता में उछाल देखा जाता है. हां, यहां इस बात का ध्यान रखना निहायत जरुरी है कि ब्रह्ममुहूर्त में उठने के लिए और खुद को तरोताजा महसूस करने के लिए आप रात में कम-से-कम छह से सात घंटे की अच्छी नींद का आनंद उठाएं. सार संक्षेप यह कि आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में जागने और  पॉजिटिव सोच के साथ काम करने से हम लोग  ज्यादा सक्रिय एवं रोग मुक्त रह कर लम्बी उम्र तक जीवन का आनंद ले सकते हैं. 

 (hellomilansinha@gmail.com)

                  
             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.              # "प्रभात खबर हेल्दी लाइफ " में 01.12.21 को प्रकाशित   

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Tuesday, November 23, 2021

ठान लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं

                           - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

कोरोना महामारी से आम जन को सुरक्षा प्रदान करने के असंभव से प्रतीत होने वाले लक्ष्य को सामने रखकर सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत इसी साल 16 जनवरी को हुई थी और आश्चर्यजनक रूप से सिर्फ 279 दिनों में विविधताओं और विषमताओं से भरे 135 करोड़ आबादी वाले हमारे देश ने 100 करोड़ वैक्सीन डोज लगाने का एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया. इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए देशवासियों का अभिनन्दन किया और उन्हें हार्दिक बधाई दी. यहां अगर हम पीछे मुड़ कर देखें तो हमें बहुत गर्व होगा कि किन-किन अप्रत्याशित और अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से एक-एक कर निबटते हुए देश ने यह अपूर्व कीर्तिमान बनाया. कहने की जरुरत नहीं कि प्रधानमन्त्री के कुशल नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने इस बात को सिद्ध कर दिया कि मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए. बेशक इसमें राज्य सरकारों ने भी कमोबेश अपनी-अपनी भूमिका का निर्वहन किया. क्या छात्र-छात्राएं इससे सीख लेकर अपने छात्र जीवन की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबट सकते हैं? अगर हां तो इसके लिए क्या-क्या करना होगा? 


यह बिल्कुल सही बात है कि जितनी बड़ी चुनौती, उतनी बड़ी तैयारी. ऐसे समय अपनी सारी ऊर्जा को एकीकृत और केन्द्रित करने की आवश्यकता होती है. चुनौती बड़ी और तैयारी  छोटी हो तो परिणाम का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. यह भी उतना ही सही है कि चुनौती कितनी भी बड़ी हो, घबराने से उससे निबटने की पहल ही कमजोर पड़ जाती है. मनोबल ऊँचा रहे तो चुनौती का सामना करने में मजा आता है और राह आसान प्रतीत होता है. इस स्थिति में तैयारी में पूरा मन लगा रहता है. नतीजतन तैयारी बेहतर हो पाती है और परिणाम सुखद.

 
फुल प्रूफ प्लानिंग के बगैर सफलता की कामना बेमानी है. लॉक डाउन हो या अनलॉक की प्रक्रिया, हर समय केन्द्र सरकार ने फुल प्रूफ प्लानिंग से कार्य को अंजाम देने का पूरा प्रयास किया. छिटपुट दुर्घटनाएं बेशक हुई, लेकिन हर बार स्थिति को जल्दी काबू में कर लिया गया.  विद्यार्थियों को अध्ययन काल में कुछ ऐसे ही सब कुछ सुनिश्चित करना चाहिए. मसलन पढ़ाई प्लानिंग के हिसाब से चले, फिर भी अगर किसी अप्रत्याशित कारण से व्यवधान उपस्थित हो जाय तो डैमेज कण्ट्रोल की व्यवस्था अपनाई जा सके. यह भी प्लानिंग का हिस्सा होता है.  

  
व्यवहारिक कार्य योजना का स्पष्ट मतलब है कि प्लानिंग के अनुसार हम हर कार्य को अंजाम दे पाएं. इस मामले में खुद की क्षमता और योग्यता के हिसाब से कार्य योजना बनानी चाहिए. हर विद्यार्थी अपने आप में अनोखा होता है. उसके अध्ययन का तरीका, समय प्रबंधन, शारीरिक संरचना आदि दूसरे से जुदा होती है. ऐसे में देखादेखी करने की कोई जरुरत नहीं है. बस अपनी प्लानिंग के मुताबिक़ कार्य योजना बनाएं और उस पर निष्ठापूर्वक अमल करें. 

 
आंतरिक संसाधनों का समुचित उपयोग किस तरह किया जाय, यह हमें कोरोना महामारी के रोकथाम और रिकॉर्ड टाइम में स्वदेशी वैक्सीन विकसित करने के मामले में अच्छी तरह दिखाई पड़ी. कुछ इसी तरह हर विद्यार्थी अपने पास उपलब्ध संसाधन जैसे पैसे, पाठ्य पुस्तक, रहने-खाने आदि से संबंधित संसाधन का समुचित उपयोग करें. ऐसा पाया गया है कि कई विद्यार्थी हर समय संसाधन के अभाव का रोना रोते रहते हैं, जब कि उनकी जरुरत के लिए जरुरी संसाधन उनके पास पहले से ही उपलब्ध होते हैं. अच्छा करने के लिए और संसाधन चाहिए की मानसिकता से बेहतर है कि जो उपलब्ध है, पहले उसका भरपूर उपयोग सुनिश्चित करें. 

 
देखा गया है कि समावेशी सोच और समयबद्ध कार्यान्वयन से सफलता की राह आसान हो जाती है. कोरोना टीकाकरण के देशव्यापी अभियान में आरम्भ से ही इस बात पर पूरा ध्यान दिया गया है. गरीब-अमीर किसी के साथ कोई भेदभाव किए बगैर सबको नियमानुसार एक निर्धारित टाइम फ्रेम में वैक्सीन लगाने का कार्य किया गया. सभी विद्यार्थियों को अपने जीवन में इसी सोच को उतारने की बहुत जरुरत है. सिर्फ हम ही सुविधा या साधन संपन्न हों, बाकी साथी-सहपाठी नहीं, यह सोच सही नहीं है. सामजिक प्राणी होने के नाते हमें मानवता की कसौटी पर खुद को कसना जरुरी है. तभी हम सही मायने में सफल होंगे और सुखी भी.  

 (hellomilansinha@gmail.com)      

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के  16-30 नवम्बर , 2021 अंक में प्रकाशित

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Tuesday, November 9, 2021

नशा को कहें ना और जिंदगी को हां

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

नशे के शिकार विद्यार्थियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. नशे के अवैध व्यवसाय में संलिप्त लोगों और अपराधी तत्वों के लिए स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी सॉफ्ट टारगेट हैं. देश को आर्थिक, सामजिक, शैक्षणिक और सामरिक दृष्टि  से कमजोर करना भी उनके एजेंडा में शामिल है. यह बहुत चिंता का विषय है. हाल ही में मुंबई में नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो ने छापेमारी करके जिस तरह कुछ युवक-युवतियों को पकड़ा है और उनके पास से जो जानकारी मिल रही है, उससे इस भयानक संक्रमण के बढ़ते दायरे का अनुमान लगाया जा सकता है. बताते चलें कि नशीला पदार्थ विद्यार्थियों के शारीरिक तथा मानसिक स्थिति को बहुत दुष्प्रभावित  करता है. आमतौर  पर इसकी शुरूआत मौजमस्ती, उत्सुकता, मजबूरी या प्रलोभन, दोस्तों के दबाव या बहकावे जैसे एकाधिक कारणों से होती है, जो धीरे-धीरे आदत में बदलने के बाद व्यक्ति इसका आदी हो जाता है. आंकड़े बताते हैं कि  चरस, गांजा, अफीम, कोकीन, हेरोइन जैसे खतरनाक नशीली चीजों  के सेवन से लाखों विद्यार्थियों की जिंदगी बर्बाद हो रही है. इसी सन्दर्भ में आइए आज उन अहम बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं जिससे छात्र-छात्राएं नशीले पदार्थों के सेवन से बचे रह सकें. 


किसी भी प्रलोभन में न पड़ें. अधिकतर मामलों में यह पाया गया है कि छात्र-छात्राएं किसी-न-किसी  प्रलोभन के चक्कर में नशे का शिकार होते हैं. प्रलोभन आर्थिक सहित कुछ भी हो सकता है. प्रलोभन देनेवाला व्यक्ति विद्यार्थी विशेष की मजबूरी और कमजोरी का आकलन कर उसे अपने जाल में आसानी से फंसाता है. यह व्यक्ति आपका कोई दोस्त, सहपाठी या परिचित हो सकता है. अतः इस पर विचार करना अनिवार्य है कि कोई यूँ ही रुपया-पैसा या अन्य प्रलोभन क्यों दे रहा है? 

 
क्षणिक मौज-मस्ती के लिए अपने भविष्य को दांव पर न लगाएं. आजकल रात में दोस्तों के साथ पार्टी में जाना कोई अनहोनी बात नहीं रह गई है. पहली बार इन पार्टियों में जानेवाले विद्यार्थियों पर अपराधी तत्वों की पैनी नजर रहती है और उनकी यह कोशिश होती है कि किसी तरह उन्हें नशीले पदार्थ का सेवन करवाया जाय, बेशक मुफ्त में ही सही. सिगरेट, गांजा, बीयर, शराब आदि आम नशीले पदार्थों से शुरुआत होती है और एक बार जब नशा न करने का बंधन टूट जाता है तो फिर आगे नशे की अंधेरी सुरंग में विचरण में कोई संकोच नहीं रहता है. शातिर अपराधी तत्व इन अवसरों का विडियोग्राफी कर लेते है और जरुरत पड़ने पर ब्लैकमेलिंग के लिए उसका बखूबी इस्तेमाल करते हैं. लिहाजा ऐसे मौज-मस्तीवाले पार्टी और ऐसे दोस्तों से बराबर दूर रहें. 

 
अध्ययन पर पूरा फोकस  बनाए रखें. आजकल पढ़ाई का इतना प्रेशर होता है कि अगर कोई भी विद्यार्थी अपने अध्ययन के लक्ष्य को सामने रखकर आगे बढ़े तो  मौज-मस्ती और नशाखोरी की ओर उसका ध्यान कतई नहीं जा सकता है. उसके लिए तो अच्छी तरह पढ़ना किसी नशे से कम नहीं होता. खुद को इस कार्य में संलग्न रखने के लिए वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने की कोशिश करता है. इसके लिए वह पौष्टिक खानपान और व्यायाम के प्रति भी गंभीर रहता है.  

 
बराबर घरवालों के संपर्क में रहें. कई सर्वेक्षणों में यह बात उभर कर आई है कि भावनात्मक रूप से परिवारजनों से जुड़े रहनेवाले विद्यार्थी अपेक्षाकृत कम संख्या में नशे के शिकार होते है. एकाकीपन और घर-परिवार से दुराव की भावना नशे की ओर किसी-न-किसी रूप से प्रेरित  करती है, ऐसा देखने में आता है. अपने घर से दूर दूसरे शहर और वह भी हॉस्टल में रहकर पढ़नेवाले विद्यार्थियों को पर्व-त्यौहार और लम्बी छुट्टियों में घर जरुर जाना चाहिए, जिससे कि उन्हें रिश्तों की महत्ता की अनुभूति हो और वे खुशी के पलों को  भरपूर जी सकें. 

  
भूल-चूक हो जाए तो तुरत स्वीकार कर सही रास्ते पर चलना शुरू करें. सावधानी बरतने के बावजूद भी कोई दुर्घटना हो जाए और आप नशा करने लगें, तो उस चक्कर से यथाशीघ्र निकलें. इसमें किसी दोस्त से कुछ पूछने या खुद किसी दुविधा में रहने की कोई जरुरत नहीं है. बेहतर यह होगा कि तुरत घर जाएं और अपने अभिभावक से सब कुछ साफ-साफ बता दें. वे नाराज हों या गुस्सा करें तो सब कुछ सहन करें और उनके सुझाए रास्ते पर चलें. पीछे मुड़कर देखने और उस आत्मघाती मार्ग पर लौटने की बात सोचना भी गलत होगा. जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं होता. नशे की लत क्षणिक मजा दे सकता है, लेकिन यह जीवन को नरक बनाने का अहम जरिया है. 

 (hellomilansinha@gmail.com)

                  

             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            पाक्षिक पत्रिका "यथावत" के 01-15 नवम्बर, 2021 अंक में प्रकाशित  

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Friday, October 29, 2021

विवाद, संवाद और समाधान

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

जीवन में कभी विवाद की स्थिति न आए, ऐसा नामुमकिन है. किसी भी विषय पर मतभेद होना  भी बहुत स्वाभाविक है. लेकिन हमेशा या अधिकांश समय विवाद में पड़ना या रहना और मनभेद का शिकार हो जाना विद्यार्थियों के लिए मुनासिब नहीं है. यह भी जानना और उसे आचरण में शामिल करना उतना ही जरुरी है कि हर विवाद का अंत संवाद से ही संभव हो पाता है. संवाद की मानसिकता से काम करने पर जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है. यह जानते हुए भी बहुत सारे विद्यार्थी जाने-अनजाने विवाद से घिरे और उसमें उलझे रहते हैं. काबिले गौर बात है कि अच्छे विद्यार्थी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि विवाद से फायदा कम होता है. बहुमूल्य समय और ऊर्जा की क्षति बहुत होती है. वे यह भी जानते हैं कि बेवजह विवाद पैदा करनेवाले तत्व एक के बाद दूसरे विवाद में विद्यार्थियों को उलझाकर  अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं. उनकी मंशा यह भी होती है कि विद्यार्थियों को किस तरह विवाद के मकड़जाल में फंसाया जाए, जिससे कि उनका ध्यान अध्ययन से हटे और उनका रिजल्ट खराब हो जाए. हर शैक्षणिक संस्थान में मौजूद ऐसे लोगों से आप सभी परिचित होंगे. वे बात-बेबात ज्यादातर विद्यार्थियों के लिए अप्रासंगिक विषयों को  विवाद का मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं. बेशक ऐसे विवादों से दूर रहना जरुरी है. यहां यह जानना भी जरुरी है कि छात्र जीवन में छात्र-छात्राएं विवादों से आम तौर पर कैसे निबटें, जिससे कि वे अध्ययन पर ज्यादा फोकस कर सकें? 


अध्ययन से जुड़े विषय पर ही बात करें: मित्र मंडली में या अन्यत्र हर वक्त इसका ध्यान रखें कि चर्चा का विषय अध्ययन से संबंधित हो. वहां भी सीखने-सीखाने पर बात हो तो अच्छा, अन्यथा वहां से प्रस्थान करना बेहतर है. इससे कुछ साथी-सहपाठी बेशक नाराज हो सकते हैं, लेकिन ऐसा करना ही सबके लिए हितकर होता है, क्यों कि इससे आपका फोकस नहीं बिगड़ता और मित्रों को भी सोचने और समीक्षा करने का एक और मौका मिल जाता है. इससे "हम भी रहें अच्छे, तुम भी रहो अच्छे" के सिद्धांत पर अमल भी हो जाता है.   


जाति, धर्म, राजनीति जैसे विषयों से दूर रहें: देखा गया है कि इन विषयों पर विवाद होने पर सार्थक चर्चा कदाचित ही हो पाती है. तर्क और तथ्य से परे भावना, अनुमान, पूर्वाग्रह व  संभावना पर बहस होने लगती है. कमोबेश सब अपने-अपने स्टैंड पर कायम रहते हैं. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है. लिहाजा बातचीत का शायद ही कुछ निष्कर्ष निकलता है. 

 
विवाद को सुलझाने पर फोकस करें: अधिकतर मामलों में विवाद पर सिर्फ बहस होती रहती है. उसको सुलझाने या उसका समाधान खोजने पर फोकस नहीं रहता.  कई बार तो मूल मुद्दा ही गौण हो जाता है और अनावश्यक बातों में लोग उलझे रहते है, जैसा कि आम तौर पर आजकल प्राइम टाइम टीवी शो पर अहम मुद्दों पर चर्चा का हश्र होता है. अतः ऐसे अवसरों पर अपने व्यवहार और संवाद कौशल से समाधान तक पहुंचने का रास्ता तलाश लेना बुद्धिमानी है. 

 
असीमित समय खर्च न करें: समय अमूल्य है. बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता. इस बात को दिमाग में रखकर चर्चा में शामिल हों. बेहतर यह होता है कि किसी एक मुद्दे पर, चाहे वह कितना ही विवादित हो, चर्चा का समय अधिकतम एक या दो घंटा नियत कर लें. हर विद्यार्थी को बोलने और उन्हें शांतिपूर्वक सुनने की शर्त सख्ती से लागू हो. ऐसा न होने पर पूरी संभावना होती है कि बहस असीमित समय तक चलता रहे, जिसका पश्चाताप बाद में ज्यादातर विद्यार्थियों को होता है.


आपसी कटुता से बचें: किसी विवाद पर बात करते-करते हमलोग  जाने-अनजाने व्यक्तिगत टिप्पणी या आक्षेप करने लगते हैं. इससे माहौल बिगड़ता है और अनावश्यक रूप से आपसी कटुता और मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इसका बहुआयामी नुकसान सबको कम या अधिक मात्रा  में उठाना पड़ता है. सब जानते हैं कि अच्छे रिश्ते बनाने में बहुत समय लगता है, लेकिन ऐसे मौके पर उसके टूटने-बिखरने में समय नहीं लगता. देखा गया है कि विवादित विषय पर पेशेवर तरीके से चर्चा करने पर न केवल कई बिन्दुओं पर सहमति बन जाती है और आपसी कटुता से बचना संभव होता है, बल्कि आगे संवाद से समाधान तक पहुंचने के दरवाजे खुले रहते हैं. राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर विवाद को सुलझाने में यही दृष्टिकोण अपनाया जाता है.     

 (hellomilansinha@gmail.com)

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के  16-31 अक्टूबर, 2021 अंक में प्रकाशित

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Tuesday, October 12, 2021

होंगे कामयाब की मानसिकता

                         - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

मन में है विश्वास, हम होंगे कामयाब की मानसिकता के साथ जीवनपथ पर चलनेवाले विद्यार्थियों की दिनचर्या और जीवनशैली पर गौर करना दिलचस्प है और सबके लिए लाभदायक भी. किसी भी संस्थान में ऐसे विद्यार्थियों की संख्या हो सकता है कि बहुत ज्यादा न हो, पर यही विद्यार्थी अपने-अपने क्षेत्र में देर-सवेर बड़ी सफलता हासिल करते हैं और नए-नए कीर्तिमान भी बनाते हैं. हाल में ही संघ लोक सेवा आयोग द्वारा घोषित सिविल सर्विसेज का रिजल्ट भी इसी तथ्य को संपुष्ट करता है. रैंकिंग में टॉप फिफ्टी में शामिल सफल लड़के-लड़कियों के बायोडाटा पर गौर करने पर यह बात साफ हो जाती है कि पहले, दूसरे या तीसरे प्रयास में असफल होने के बावजूद उनके मन में यह विश्वास बना रहा कि हम होंगे कामयाब और फलतः बेहतर कोशिश के जरिए उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया. सवाल है कि आखिर ऐसे विद्यार्थी जीवन में कौन सी रणनीति अपनाते हैं. आइए जानते हैं. 


लक्ष्य के प्रति अटूट समर्पण: खूब सोच-समझ कर एक बार जो लक्ष्य तय करते हैं उसके प्रति पूर्णतः समर्पित रहते हैं. कोई द्वन्द या दुविधा का फिर कोई सवाल खड़ा नहीं होता. अब बस लक्ष्य को हासिल करने के लिए फुलफ्रूफ कार्ययोजना बनाकर उसपर अमल करने का हर संभव प्रयास करते रहते हैं. दूसरे क्या कर रहे हैं या करेंगे या कहेंगे, इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं होती. इसके बजाय वे क्या कर सकते हैं और करेंगे उस पर ही उनका पूरा फोकस होता है. वे सोते-जागते बस अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में ध्यान केन्द्रित करते हैं और तदनुरूप एक्शन लेते हैं.   


खुद पर विश्वास: अपने आत्मविश्वास को हमेशा उच्च स्तर पर बनाए रखने के लिए खुद पर विश्वास करना अनिवार्य है. हर विद्यार्थी यह बेहतर जानता है कि उसके अध्ययन में कहां-कहां कमी है, उसमें कैसे गुणात्मक सुधार किया जा सकता है और यह भी कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में वह खुद सक्षम है. किसी परीक्षा, टेस्ट या प्रतियोगिता में असफल होने की स्थिति में यह आकलन और खुद पर विश्वास बनाए रखना आगे की यात्रा को ज्यादा फलदायक बनाने की बुनियादी शर्त है. इसे वे बराबर याद रखते हैं और साथ ही सदा आशावान बने रहते हैं.  


उत्साह और ऊर्जा: अपने अध्ययन के प्रति सदैव बहुत उत्साहित रहना  सफलता का एक अहम पायदान होता है. उत्साह का स्पष्ट मतलब होता है लक्ष्य के प्रति आपका लगाव और समर्पण. और जब किसी चीज के प्रति यह लगाव और समर्पण रहता है तो उस चीज को हासिल करने के लिए आगे की कार्ययोजना आप खुद बनाने में जुट जाते हैं. हां, केवल उत्साह से काम संपन्न नहीं होता. इसके लिए अपेक्षित ऊर्जा की जरुरत होती है. ऐसे अनेक उदाहरण  मिल जायेंगे जब कोई विद्यार्थी अभीष्ट कार्य तो करना चाहता है, लेकिन ऊर्जा की कमी के कारण उसे कर नहीं पाता है. अतः अच्छे विद्यार्थी खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखते हैं.  

  
नियमित कड़ी मेहनत: सब जानते हैं कि कड़ी मेहनत को कोई विकल्प नहीं है. फिर भी सभी विद्यार्थी ऐसा नहीं करते. ज्ञानीजन सही कहते हैं कि जैसा करेंगे, वैसा भरेंगे. कहने का तात्पर्य यह कि बिना अपेक्षित मेहनत के अपेक्षित रिजल्ट की कामना बेमानी है. सफलता को अपनी मुट्ठी में करने के लिए सजगता के साथ अध्ययन में अपना अधिकांश समय लगाना है. सफलता का परचम लहराने वाले विद्यार्थी हर विषय के एक-एक चैप्टर को न केवल समझ कर पढ़ते हैं,  बल्कि उसे बीच-बीच में दोहराते भी रहते हैं. हर संभावित सवाल का उत्तर लिखकर प्रैक्टिस करना उनकी  मेहनत को चार चाँद लगाता है. ऐसा नहीं कि वे परीक्षा से कुछ दिन या हफ्ते पहले रातभर जगकर पढ़ते हैं. उनके लिए तो नियमित रूप से कड़ी मेहनत करना दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा होता है. 


असफलता से कभी घबराते नहीं: देखा  गया है कि असफल होने पर ज्यादातर विद्यार्थी दूसरे लोगों के टिप्पणियों को बहुत गंभीरता से लेने की भूल करते हैं. अच्छे विद्यार्थी  ऐसा नहीं करते. ऐसे समय उन्हें भी बुरा तो लगता है लेकिन वे बिना घबराए और कंफ्यूज हुए असफलता के कारणों का स्वयं विश्लेषण करके लक्ष्य के प्रति अपने संकल्प को और दृढ़ बनाना जरुरी समझते हैं. बिना समय गंवाए और बिना किसी पर दोषारोपण किए अपनी गलती का पता लगाते हैं, उससे सीख लेते हैं और बेहतरी के प्रयास में जी-जान से जुट जाते हैं. तभी तो कामयाबी उनके कदम चूमती है. 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 अक्टूबर, 2021 अंक में प्रकाशित

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Tuesday, September 28, 2021

स्मरण शक्ति उन्नत करना है आसान

                           - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

आमतौर पर यह पाया जाता है कि ज्यादातर विद्यार्थी अपेक्षित मेहनत करने के बाद भी अपेक्षित रिजल्ट के हकदार नहीं बन पाते. व्यक्तिगत काउंसलिंग में अनेक विद्यार्थी मुझसे  पूछते हैं कि ऐसा क्यों होता है. इस समस्या की गहराई में जाकर विद्यार्थियों से बातचीत करने और फिर उसका विश्लेषण करने पर एक कॉमन बात जो सामने आती है, वह है यादाश्त की समस्या. छात्र-छात्राएं बेशक पढ़ते हैं, पर दो-चार दिन के बाद वह पूर्णतः याद नहीं रहता, कई बार तो बिल्कुल ही याद नहीं रहता. मीडिया में मेमोरी पॉवर को बढ़ाने के लिए कई तरह के उपायों और प्रोडक्ट्स के विज्ञापन हम सब अक्सर देखते रहते हैं. सच मानिए, अपनी स्मरण शक्ति को उन्नत करना हर विद्यार्थी के अपने हाथ में है. प्रस्तुत है कुछ आसान उपाय.    

     
पढ़ाई के समय बस पढ़ना: दिनभर में जब-जब पढ़ने बैठें, बस पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करें. उस समय कोई दूसरा काम न करें. मोबाइल को ऑफ कर दें. जिस विषय के जिस चैप्टर को पढ़ना है, उसके विषय में पहले दो-चार मिनट चिंतन करें और अपने मन को उस टास्क के लिए तैयार करें. कई बार कोई चीज हमें पहली बार पूरी समझ में नहीं आती है. तो यह सोच कर कि यह विषय कठिन है, उसे छोड़ने की गलती न करें. इसके बजाय इस संकल्प के साथ उसे पूरे मनोयोग से दोबारा पढ़ें. आप पायेंगे कि इस बार आपको ज्यादा समझ में आया है. अब उसी संकल्प और मनोयोग से आप जब उसे फिर पढ़ेंगे तो 100 से 90 फीसदी बात पूरी तरह समझ में आ जाएगी. अगर 10 प्रतिशत बात जो किसी कारणवश समझ में नहीं आई तो उसे चिंतन का हिस्सा बनाने के साथ-साथ एक कॉपी में नोट कर लें, जिससे कि बाद में टीचर से आप उसका समाधान पा सकें. जब पूरी बात एक बार अच्छी तरह समझ में आ जाए तो अगले कदम के रूप में उसे लिखने का प्रयास करें. आप पायेंगे कि अच्छी तरह समझने के बावजूद आप उस चैप्टर को सौ फीसदी उसी रूप में नहीं लिख पा रहे हैं, कहीं अटक रहें हैं तो कभी भटक रहे हैं. यह अस्वाभाविक नहीं है. अतः परेशान होने की जरुरत नहीं है. यहां जरुरत है उसे फिर से पढ़ने, समझने और लिखने का अभ्यास करने की. दिलचस्प बात है कि किसी एक विषय को ठीक से याद कर लेने से यह गारंटी नहीं मिल जाती कि हमेशा आपको वह वैसे ही याद रहे. लिहाजा समय-समय पर इसे टेस्ट करके देखना बेहतर होता है. ऐसे भी कहा जाता है कि दिमाग को आप जिस विषय में जितना सक्रिय रखेंगे, वह चीज उतना ज्यादा याद रहेगी. कहने का तात्पर्य यह कि नियमित अभ्यास से बातें हमारे स्मृति में अच्छी तरह बैठ जाती हैं. 


सुबह जल्दी उठें और रात में अच्छी तरह सोएं: सुबह जल्दी उठें और दिन की शुरुआत पॉजिटिव सोच से करें. शरीर को हाइड्रेटेड करें यानी आराम से बैठकर कम-से-कम आधा लीटर पानी पीएं और फिर नित्य क्रिया से निवृत होकर सुबह एक-दो घंटा पढ़ने की आदत डालें. एकाधिक मेडिकल रिसर्च बताते हैं कि सुबह पढ़ी हुई चीजें हमें ज्यादा अच्छी तरह याद रहती हैं. इसके कई कारण हैं, जैसे दिमाग फ्रेश रहता है, शरीर ऊर्जावान, वातावरण अपेक्षाकृत साफ़ और ऑक्सीजनयुक्त आदि. सच तो यह भी है कि सुबह की बेहतर शुरुआत से मन प्रसन्न हो जाता है और आत्मविश्वास व यादाश्त में वृद्धि. इसका पॉजिटिव असर हमारे दिनभर के सभी एक्टिविटी पर पड़ता है. देर रात तक जगकर पढ़ने की आदत मेमोरी को कमजोर करती हैं और शरीर को दुर्बल. अतः रात में जल्दी सोना चाहिए. रात में सात-आठ घंटे की अच्छी नींद मेमोरी पॉवर को उन्नत करने में अहम भूमिका निभाती है. अंग्रेजी के एक प्रसिद्द कहावत का भावार्थ है कि रात में जल्दी सोने और सुबह जल्दी उठने वाले लोग स्वस्थ, समृद्ध और बुद्धिमान होते हैं.

    
हमेशा कुछ नया सीखने की कोशिश करें: हमारे दिमाग की क्षमता असीमित है, लेकिन  सामान्यतः  हम उसका बहुत कम उपयोग करते हैं. हम एक कम्फर्ट जोन में रहना पसंद करते हैं. अतः अनेक नई चीजें नहीं सीख पाते हैं. पाया गया है कि हम अपने दिमाग को जितना नई चीजों को सीखने में लगायेंगे, दिमाग की सक्रियता उतनी बढ़ेगी और स्मरण शक्ति भी. यह शतरंज जैसा कोई नया खेल हो सकता है या सिलेबस में शामिल कोई नया विषय या शब्द पहेली का नया टास्क या अन्य कोई सकारात्मक विधा. करके देखिए, बहुत लाभ होगा.  

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             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            पाक्षिक पत्रिका "यथावत" के 16-30 सितम्बर, 2021 अंक में प्रकाशित  

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Friday, September 17, 2021

जीवन में एक हॉबी जरुरी है

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट  कंसलटेंट

मेरे मोटिवेशनल एवं वेलनेस सेशन में छात्र-छात्राएं अमूमन यह सवाल जरुर पूछते हैं कि अपने खाली समय का सदुपयोग कैसे करें जिससे कि जीवन में खुशी मिलती रहे और तनाव को मैनेज करना आसान हो. वाकई यह सवाल अमूमन हर विद्यार्थी से किसी-न-किसी रूप में जुड़ा है. इस प्रश्न का जवाब यह है कि हर विद्यार्थी का एक-न-एक हॉबी होना जरुरी है, जिसमें उसकी रूचि हो और अध्ययन के बाद बचे हुए समय में उसमें समय बिताने में वह आनंद महसूस करे. यहां यह स्पष्ट करना जरुरी है कि हॉबी का मतलब कोई पॉजिटिव एक्टिविटी जो व्यक्ति और समाज दोनों के लिए हितकारी हो.


इसमें कोई दो मत नहीं है कि विद्यार्थियों के लिए पूरे समय घर के अंदर रहकर केवल पढ़ाई करना कठिन होता है, खासकर इस महामारी के दौर में, जब बाहर जाने में पाबंदी है और गए तो बहुत सावधानी बरतने की बाध्यता होती है. काबिले गौर बात है कि इनमें से अधिकतर विद्यार्थियों के पास अपने खाली समय में करने को ज्यादा कुछ नहीं होता सिवाय अपने स्मार्ट फोन या कंप्यूटर-लैपटॉप पर व्यस्त होने और वह भी ज्यादातर समय नकारात्मक बातों या अप्रासंगिक साइट्स पर घूमते रहने के. इसके विपरीत वे विद्यार्थी जो अपेक्षाकृत स्मार्ट, बुद्धिमान और कुछ हद तक भाग्यवान  भी होते हैं  उनका  एक या ज्यादा हॉबी होता है. वैसे विद्यार्थी एकाधिक तरीके से बहुत फायदे में रहते हैं. ऐसा पाया गया है कि वे ज्यादा स्वस्थ, खुश और सफल भी रहते हैं. खुशी की बात है कि हॉबी की सूची बहुत बड़ी है और इन्हें इंडोर या आउटडोर एक्टिविटी के रूप में एन्जॉय किया जा सकता है. खासकर महामारी जैसे कठिन समय में कोई ऐसा हॉबी जिसे घर में रहकर ही एन्जॉय किया जा सकता है, वाकई  किसी वरदान से कम नहीं है. कहने की जरुरत नहीं कि  संगीत, नृत्य, पेंटिंग, अच्छी किताबें पढ़ना, कार्टून बनाना, सिलाई, कढ़ाई, ब्लॉग लिखना, शतरंज, कैरम बोर्ड जैसे कई अन्य हॉबी को अपना कर इसे अमल में लाया जा सकता है. बाहर जाकर अपने शौक को पूरा करने में हर तरह के मैदानी खेल जैसे हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट से लेकर लॉन टेनिस, कबड्डी, वॉलीबॉल तक कोई खेल या कोई  सामाजिक-सांस्कृतिक एक्टिविटी जैसे अनेकानेक हॉबी में छात्र-छात्राएं खुद को सकारात्मक रूप से व्यस्त रख सकते हैं.  


दिलचस्प तथ्य यह है कि विश्वभर में जितने भी विभूतियों  ने आम लोगों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया है और कर रहे हैं, उन लोगों ने अपने मूल कार्यकलाप के अलावे अपने खाली  समय में एक या ज्यादा हॉबी में भी खुद को व्यस्त रखा है. प्रसिद्द वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम को वीणा बजाने का शौक था. महात्मा गांधी को चरखे पर सूत कातना और प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े जन कल्याण का शौक था. महान भौतिकशास्त्री और नोबेल  पुरस्कार विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन को वायलिन बजाने और नौकायन की हॉबी थी. कभी-कभार जब वे किसी वैज्ञानिक गुत्थी को सुलझाने के क्रम में उलझ जाते थे, तो माइंड को रिफ्रेश करने के लिए वायलिन बजाते थे. उसी तरह दो बार नोबेल पुरस्कार हासिल करनेवाली महिला  वैज्ञानिक मैरी क्यूरी को लम्बी दूरी तक साइकिल चलाने का शौक था. मजेदार बात है कि अपने हनीमून के दिन क्यूरी दम्पति ने उत्तरी फ्रांस में बहुत देर तक साइकिल चलाकर आनंद उठाया. धोनी, कपिल देव और इआन बोथम जैसे कई क्रिकेटर हॉबी के रूप में नियमित रूप से फुटबॉल खेलते रहे हैं.


दरअसल, अपने हॉबी के माध्यम से छात्र-छात्राएं अपने पसंदीदा एक्टिविटी में क्वालिटी टाइम  बिता सकते हैं और अपने स्ट्रेस को भी अच्छी तरह मैनेज कर सकते हैं. इससे न केवन वे मानसिक   रूप से मजबूत और उन्नत होते हैं, बल्कि दिमाग से नकारात्मक विचारों को कम करने में सक्षम होते  है. बोनस के रूप में उनकी पॉजिटिव सक्रियता बढ़ती है और वे इनोवेटिव, क्रिएटिव और हैप्पी फील करते हैं. प्रसिद्द ब्रिटिश रचनाकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ तो कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने हॉबी के साथ जीता है वह वाकई खुश रहता है. तो विद्यार्थियों के लिए संदेश एकदम स्पष्ट है कि अपने दिमाग को खाली मत  छोड़ें क्यों कि कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है; अपने अध्ययन के अलावे किसी हॉबी में रोजाना कुछ समय व्यतीत करें, जिससे कि आप खुद को रिफ्रेश कर सकें और अपने मुख्य एक्टिविटी यानी अध्ययन आदि को ज्यादा उत्साह और उमंग से जारी रख सकें. निसंदेह इससे जीवन में सफलता व खुशी में इजाफा होना निश्चित है.  

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 सितम्बर, 2021 अंक में प्रकाशित

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Friday, September 10, 2021

स्ट्रेस मैनेजमेंट: कहीं आप बेवजह तो तनावग्रस्त नहीं

                                               - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट 

हाल ही में एक व्यक्ति ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि जब भी वे मार्केट जाते हैं या किसी ऑफिस आदि में और वहां लोगों को गलत काम या व्यवहार करते देखते हैं, तो गुस्सा आता है. उन्हें कुछ कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पाते. खुद अंदर-ही-अंदर उबलते हैं और कई दिन यही सोचकर तनाव में रहते हैं. इससे बचने के लिए क्या करें? 

दरअसल, यह उस व्यक्ति की समस्या मात्र नहीं है. ऐसा अनेक लोग फील करते हैं. विचारणीय बात यह है कि यह स्थिति आपके नियंत्रण क्षेत्र में है या नहीं. अधिकांश मामलों में  नहीं. यह सही है कि आपको कुछ गलत होते हुए देखना अच्छा नहीं लगता. आपका नाराज होना या क्रोधित होना भी गैर वाजिब नहीं है. उस कारण तनाव ग्रस्त होना जरुर गैर मुनासिब है. ऐसे सभी मामलों में जो गलत कर रहा है, उसे न तो आपके बुरा लगने से कोई फर्क पड़ता है और न ही उसमें  कोई सुधार होता है. कई बार तो आपकी नाराजगी का उसे भान भी नहीं होता. इधर आप नाराज, क्रोधित और तनावग्रस्त होकर अपना ढेर सारा नुकसान कर लेते हैं. है कि नहीं? 

लक्ष्मण रेखा तय करें और बहस में न उलझें: ऐसी स्थिति में आपको जो करना चाहिए वह यह कि आप गलत काम में संलग्न व्यक्ति को पूरी शालीनता और शान्ति से बस यह बता दें कि उनका गलत काम या व्यवहार आपको बुरा लगा. इसके रिएक्शन  में वह कुछ भी कहे, आप उससे बहस में न उलझें. यही आपकी लक्ष्मण रेखा है. समझनेवाली बात यह है कि आपका अपने कार्य या आचरण पर तो कंट्रोल हो सकता है, लेकिन बाहर के किसी व्यक्ति पर शायद नहीं. हां, गलत करनेवाले को टोकने की एक जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य जरुर निभाएं. इसके अच्छे परिणाम मिल जाए तो खुश हो लें, न मिले तब भी इस बात से खुश होने का प्रयास करें कि आपने कोशिश तो की. किसी भी अवस्था में खुद तनावग्रस्त होने का तो कोई अर्थ नहीं है. अमेरिकी विचारक रेनहोल्ह निबुहर सही कहते हैं, "हे ईश्वर, मुझे उन चीजों को स्वीकार करने की स्थिरता दें जिन्हें मैं बदल नहीं सकता, उन चीजों को बदलने का साहस दें जिन्हें मैं बदल सकता हूँ और दोनों में अंतर करने की बुद्धि दें."  

  (hellomilansinha@gmail.com) 


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            "प्रभात खबर हेल्दी लाइफ " में  01 सितम्बर , 2021 को प्रकाशित   

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Monday, August 30, 2021

स्वतंत्रता और देशप्रेम

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट

हर साल पन्द्रह अगस्त को देशभर के विद्यार्थी भी ब्रिटिश शासन से देश की आजादी का उत्सव मनाते हैं. देश के हर भाग में राष्ट्रगान के साथ-साथ तिरंगा फहराने का कार्यक्रम हर्ष व उल्लास  से संपन्न होता है. देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत गीत दिनभर आपको आल्हादित, उत्साहित  और उत्प्रेरित करते रहते हैं. कहने की जरुरत नहीं कि देशप्रेम की भावना साधारण लोगों को असाधारण कार्य करने को सदा प्रोत्साहित और प्रेरित करती रही है. देश आजादी के 75वें साल में प्रवेश कर रहा है. इस वर्ष को बड़े स्तर पर और यादगार तरीके से सेलिब्रेट करने की योजना सरकार और समाज की प्राथमिकता में है.
इस ऐतिहासिक अवसर पर आइए देश के उन तीन सपूतों को याद करते चलें जिन्होंने देश की आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया, पर आजादी के जश्न में शामिल नहीं हो सके. अगर वे लोग कुछ और वर्ष जीवित रहते तो शायद देश को 1947 से पहले ही आजादी मिल जाती. ऐसा मेरे अलावे करोड़ों अन्य देशवासियों की मान्यता है. 


भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जो मात्र  साढ़े 23 वर्ष के छोटे से जीवन में ही ब्रिटिश शासन को आजादी के मुत्तलिक अपने फौलादी इरादे बता दिए. भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब प्रांत के बावली गाँव मे हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था. 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी दुखी और विचलित किया था. भगत सिंह का कहना था कि "यदि बहरों को सुनाना  है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा. जब हमने विधान सभा में बम फेंका तो हमारा लक्ष्य  किसी को मारना नहीं था. हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था. अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और देश को तुरत आजाद  करना चाहिए." देश की आजादी के लिए जान की परवाह किये बिना लड़ने वाला यह  नायाब योद्द्धा अपने साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ गया, पर दुनिया के लिए स्वतंत्रता और देशप्रेम की एक प्रेरक मिसाल छोड़ गया.  


चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा में पंडित सीताराम तिवारी के घर हुआ था. मां जगरानी देवी उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थीं. इसी कारण किशोरावस्था में ही शिक्षा ग्रहण हेतु उन्हें  बनारस भेजा गया. जलियावाला बाग नरसंहार सहित ब्रिटिश शासन के अन्य दमनकारी कृत्यों से आजाद का युवा मन काफी उद्वेलित था. गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के दौरान उन्हें  गिरफ्तार कर जज के समक्ष प्रस्तुत किया गया. जज ने जब उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा, आजाद है मेरा नाम. पिता का नाम पूछने पर बोले, 'स्वतंत्रता'. घर का पता पूछने पर कहा, "जेल." उन्हें सरेआम 15 कोड़े लगाने की सजा सुनाई गई. जब उनकी पीठ पर कोड़े बरस रहे थे तब वे "वंदे मातरम्" का उदघोष कर रहे थे. तभी से उन्हें सब लोग आजाद के नाम से जानने लगे. आजाद कहते थे कि "दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे." इस बात को उन्होंने 27 फरवरी, 1931 को साबित कर दिया, जब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेज पुलिस ने उनपर अचानक हमला कर दिया.उस समय वे साथी क्रांतिकारी सुखदेव राज के साथ कुछ विचार–विमर्श कर रहे थे. आजाद ने पुलिस पर गोलियां चलाईं ताकि उनके साथी सुखदेव बचकर निकल सकें. पुलिस से लोहा लेते हुए उन्होंने पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और देश के लिए प्राण की आहुति दे दी. 


लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को  महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ. पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक अपने समय के नामचीन शिक्षक थे. दुर्भाग्यवश युवा तिलक 16 वर्ष की उम्र में अनाथ हो गए, लेकिन कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अध्ययन जारी रखा और आगे बी.ए. आनर्स की डिग्री पूना के डेक्कन कॉलेज से और कानून की डिग्री बंबई विश्वविद्यालय से हासिल की. वे कई विषयों के ज्ञाता थे. 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूँगा' का नारा देनेवाले और उसे जन-जन तक पहुँचानेवाले तिलक ताउम्र  देश को आजाद करने में तन-मन से जुटे रहे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे जिनसे ब्रिटिश सरकार खौफ खाती थी. स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षभरे दौर में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा. 1 अगस्त 1920 को उनका देहांत हुआ. लोकमान्य तिलक कहते थे कि अगर आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार और प्रयास संवैधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी सफलता निश्चित है. 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 16-31 अगस्त, 2021 अंक में प्रकाशित

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Tuesday, August 24, 2021

बच्चों को दीजिए संस्कार युक्त, रोगमुक्त, सानंद जीवन

                                     - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ... 

कहते हैं स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन का आधार होता है. यह भी कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश की आबादी का 20 % हिस्सा स्कूली बच्चों का है, यानी 25 करोड़ से भी ज्यादा. लिहाजा, हमारे बच्चों को शिक्षित करने के साथ–साथ तन्दुरस्त बनाए रखना अनिवार्य है, तभी आने वाले समय में वे एक समर्थ इंसान के रूप में जीवन की तमाम चुनौतियों से निबटते एवं अपनी जिम्मेदारिओं को निबाहते हुए समाज एवं देश को भी मजबूत बना पायेंगे. लेकिन ऐसा कैसे संभव होगा?


यह एक तथ्य है कि हमारे देश में आजादी के करीब सात दशक बाद भी हमारे गांवों की   अधिकांश  आबादी  आधुनिक चिकित्सा पद्धति के दायरे से बाहर हैं और वे अब तक  मुख्यतः पारम्परिक चिकत्सा पद्धति पर निर्भर रहे हैं. ऐसा इसलिए कि हमारा देश पारम्परिक ज्ञान के मामले  में अत्यधिक समृद्ध रहा है  और हजारों सालों से चली आ रही पूर्णतः स्थापित परम्पराओं की  एक पूरी श्रृंखला सामाजिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपलब्ध रही है. लेकिन हमारी  शहरी आबादी कारण–अकारण  स्वास्थ्य ज्ञान के इस असीमित स्त्रोत का उपयोग अपने व्यवहारिक जीवन में नहीं करते हैं  और फलतः सामान्य शारीरिक परेशानियों या बीमारियों, जैसे सर्दी-जुकाम, डायरिया –कब्ज, सिर दर्द –बदन दर्द आदि   से ग्रसित होने पर भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति (यानी एलोपैथी) को अपनाने को विवश हो जाते हैं, जब कि आज की हमारी  आधुनिक चिकित्सा काफी मंहगी है और उसके कई नकारात्मक आयाम भी हैं.


फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है ? दरअसल बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के सामाजिक प्रभावों के अलावे लगातार तेजी से संयुक्त परिवारों  के टूटने  और उतनी ही तेजी से एकल परिवारों के बढ़ते जाने के कारण  दादा–दादी , नाना–नानी जैसे बुजुर्गों के मार्फ़त बच्चों में स्वतः हस्तांतरित होने वाले व्यवहारिक स्वास्थ्य ज्ञान का सिलसिला ख़त्म हो रहा है. ऐसे में, घरेलू उपचार की इस समृद्ध धरोहर को फिर से किसी –न- किसी रूप में पुनर्स्थापित करने  की आवश्यकता है, जिससे एक बड़ी आबादी को सामान्य रोगोपचार के मामले में कुछ हद तक आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

 
कहना न होगा, इस महती कार्य को प्रभावी ढंग से लक्ष्य  तक ले जाने में स्कूलों की भूमिका अहम है. इसके लिए  एक सुविचारित व सुनियोजित जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से कक्षा -7 से लेकर  कक्षा -12 तक के बच्चों को प्रेरित कर उनसे अपने घर के बुजुर्गों से सामान्य बिमारियों में किये जाने वाले घरेलू  उपचारों की जानकारी प्राप्त करने के लिए कहा जाएगा  और फिर उन तमाम जानकारियों पर चर्चा कर उन्हें उसके वैज्ञानिक आधार से परिचित करवाया जाएगा. इससे एक तो स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता बढ़ेगी, घरेलू उपचारों की जानकारी होगी और उनका परिवार के बुजुर्गों के साथ जुड़ाव बढ़ेगा. साथ ही बढ़ेगा बुजुर्गों के प्रति बच्चों का सम्मान भी. इसके फलस्वरूप परिवार संस्कारयुक्त, रोग मुक्त, स्वस्थ एवं सानन्द रहेगा. बच्चों के सर्वांगीण विकास में इसका अहम योगदान तो रहेगा ही.

 (hellomilansinha@gmail.com)


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            "प्रभात खबर हेल्दी लाइफ " में  11 अगस्त , 2021 को प्रकाशित   

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Tuesday, August 17, 2021

खेलकूद और व्यक्तित्व विकास

                        - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

टोक्यो ओलिंपिक में विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का दौर जारी है. विश्व व्यापी कोरोना महामारी के घटते-बढ़ते ग्राफ के बीच खेल के इस महाकुम्भ का आयोजन खेल भावना के बुनियादी मूल्यों को बखूबी दर्शाता है. कोरोना महामारी के कारण छाए मायूसी, उदासी, चिंता और आशंका के माहौल में ओलिंपिक का आयोजन आशा और उत्साह का एक बड़ा परिवर्तन लेकर आया है.
सच्चाई यह है कि वास्तविक एवं संभावित सभी तरह की चुनौतियों से मुकाबला करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना छात्र-छात्राएं खेल के मैदान में अनायास ही सीख लेते है. इससे उनका स्वस्थ मनोरंजन भी होता है. लेकिन क्या विश्व के सबसे युवा देश के सभी विद्यार्थी  इसका समुचित लाभ उठा पा रहे हैं? यह बहुत विचारणीय विषय है. बहरहाल, यह जानना सभी विद्यार्थियों के लिए जरुरी है कि खेलकूद के जरिए वे कौन-कौन सी अहम बातों से लाभान्वित हो सकते हैं, जो उनके व्यक्तित्व विकास में बहुत सहायक होंगी. हां, इसके लिए उन्हें निष्ठापूर्वक इंडोर या आउटडोर किसी भी खेल का नियमित अभ्यास करना पड़ेगा. 


1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: अध्ययन सहित हर क्षेत्र में अपेक्षित ऊर्जा और उत्साह से जुटे रहना अनिवार्य होता है. इसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना आवश्यक है. खेलकूद के जरिए यह हासिल करना आसान होता है.  रोजाना एक घंटे के नियमित अभ्यास से भी आपके शरीर का हर अंग सक्रिय हो जाता है, आपका मेटाबोलिज्म और इम्यून सिस्टम बेहतर होता है और आपमें ऊर्जा व उत्साह की कमी नहीं रहती. जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण व्यापक और सकारात्मक बनता है. आपके खानपान में भी एक बेहतर अनुशासन दिखाई पड़ता है. आपको रात में नींद भी अच्छी आती है. कुल मिलाकर इससे आपका मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहता है. तनाव प्रबंधन सहित इसके अन्य कई लाभ आपको बराबर मिलते रहते हैं.  

   
2. लक्ष्य के प्रति समर्पण:
बिना समर्पण की भावना के लक्ष्य तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है, कई बार तो असंभव भी. स्पोर्टस आपको अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण हेतु प्रेरित करता है. लुईस ग्रीज़र्ड ने सही कहा है कि "ज़िन्दगी का खेल काफी कुछ फुटबॉल की तरह है. आपको अपनी समस्याओं से जूझना पड़ता है, अपने डर को ब्लॉक करना पड़ता है, और जब मौका मिले तब अपना पॉइंट स्कोर करना होता है." सभी खेलों में कमोबेश यही सिद्धांत लागू होता है. 


3. योजना और कार्यान्वयन: सब जानते हैं कि किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए यथोचित कर्म करना बहुत जरुरी होता है. इसके लिए पहले फुलप्रूफ योजना बनाना और फिर उस योजना  को सही ढंग से कार्यान्वित करना उतना ही अनिवार्य होता है. अनेक उदाहरण आसपास ही मिल जायेंगे जहां विद्यार्थी विशेष ने लक्ष्य  तो बड़ा तय कर लिया लेकिन उसे हासिल करने के लिए अपेक्षित प्लानिंग  एंड एग्जिक्युसन के मामले में सही कदम नहीं उठा पाए. खुशी की बात  है कि खेलते-खेलते आप प्रबंधन के ये अहम सूत्र  मैदान में स्वतः सीखते रहते हैं. 

  
4. समय प्रबंधन और आत्मविश्वास:
  किसी भी खेल में इनका अतिशय महत्व होता है. यह अकारण नहीं है. अगर 90 मिनट के फुटबॉल मैच में या 70 मिनट के हॉकी मैच में तय समय के अन्दर गोल कर सकें तो यह बेहतर खेल का परिचायक होता है. आपकी टीम ने शुरुआती कुछ मिनटों में या मध्यांतर से पहले दो-तीन गोल करके बढ़त हासिल कर ली तो प्रतिद्वंदी टीम पर दवाब बनाना आसान हो जाता है, जिसका असर खेल के अंत तक रहता है. बेहतर समय प्रबंधन  से हासिल सफलता से आपका और पूरी टीम का आत्मविश्वास भी बढ़ता है.  


5. टीम वर्क एवं समावेशी सोच:
क्रिकेट से लेकर कबड्डी तक ज्यादातर खेल टीम के रूप में खेले जाते हैं. आप कितने भी योग्य हों और आपका व्यक्तिगत योगदान कितना भी  महत्वपूर्ण हो , लेकिन उसकी कीमत तब कम हो जाती है जब आप एक टीम के रूप में अपना 100 % नहीं दे पाते हैं.  ऐसे एकल प्रतियोगिताओं में भी कोच, मैनेजर और कई सहायक होते हैं जो आपकी एक्सटेंडेड टीम होती है. देखा गया है कि व्यक्तिगत रूप से सभी खिलाड़ियों का स्तर बेहतर होते हुए भी टीम मैच नहीं जीत पाती है क्यों कि खिलाड़ियों में टीम भावना की कमी थी. कहने की जरुरत नहीं कि खेल के मैदान में हमें यह अहम सीख मिलती है कि हम कैसे टीम वर्क और समावेशी सोच के साथ न केवल खेल प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल करें, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकें.

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय पाक्षिक "यथावत" के 01-15 अगस्त, 2021 अंक में प्रकाशित

#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com     

Tuesday, August 10, 2021

लाइफ स्किल: पहचानें अपनी क्षमता

                          -मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एंड स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट

मनुष्य की हार तब होती है, जब वह खुद पर यकीन करना छोड़ देता है.  वास्तविकता यह है कि  आप जैसा दूसरा कोई नहीं है; आप किसी का कॉपी-पेस्ट वर्सन नहीं हैं; आप में असीम क्षमताएं हैं, केवल उनका समुचित दोहन किया जाना शेष है. इस तथ्य को अच्छी तरह जान लें और मान लें तो एक अच्छी शुरुआत स्वतः हो जाएगी. दरअसल अपनी क्षमताओं को जो पहचान लेगा और उसके अनुरूप काम करने लगेगा, सफलता का साथ उसे मिलता रहेगा.

 
क्षमताओं को उपलब्धियों में तब्दील करने के लिए जरुरी है कि आप जीवन को सजगता से जीएं और इसके हर मिनट का आनंद लें.
सदा सीखने की कोशिश करते रहें और खुद को हमेशा युवा ही समझें. ऐसे भी रोचक तथ्य तो यही है कि मनुष्य कभी भी बूढ़ा नहीं होता, सिर्फ उसकी उम्र बढ़ती है. अगर आप खुद को तन-मन से स्वस्थ रखेंगे तो न सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा का विकास होगा, बल्कि आपका जीवन भी उत्साह, उमंग और आनंद से भर उठेगा. 


खुद के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए एक सरल मंत्र है. इसे आजमाकर जरुर देखें. सुबह सो कर उठने के बाद सबसे पहले कुछ पल आईने के सामने खड़े होकर खुद को निहारें और एक प्यारभरी मुस्कान से खुद का अभिवादन करें.  इसके बाद खुद से कई बार कहें "आइ एम द बेस्ट", "आई केन एंड आई विल." अर्थात मैं सबसे अच्छा हूँ, मैं कर सकता हूँ और मैं करूंगा. इससे न सिर्फ शरीर में स्फूर्ति महसूस होगी, बल्कि आत्मविश्वास बढेगा और विचार भी बेहतर बनेंगे. दरअसल, मन को जैसा समझाएंगे, मानस भी वैसा बनेगा और व्यक्तित्व भी वैसा ही बनेगा. 


एक और दिलचस्प बात.
संघर्ष और सफलता दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं और करीब-करीब साथ ही चलते हैं. दुनिया के किसी भी सफलतम व्यक्ति का इतिहास उठाकर अगर हम देखेंगे तो पायेंगे कि उन्होंने जीवन में संघर्ष का मार्ग कभी नहीं छोड़ा और न ही कभी असफलता से घबराए. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि एकाधिक असफलताओं के बाद ही उन्होंने सफलता का स्वाद चखा है. कहने का सीधा अर्थ यह है कि यदि आप असफलता से बिना डरे, संघर्ष का दामन थामे रहे तो सफलता ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकती है. फल मिलने में वक्त लग सकता है, लेकिन मिलता जरूर है. 

  (hellomilansinha@gmail.com)


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.            "दैनिक जागरण" के राष्ट्रीय संस्करण में  7 अगस्त , 2021 को प्रकाशित   

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