Thursday, January 31, 2013

आज की कविता : विडंबना

                                                            - मिलन सिन्हा 
विडंबना 
कल तक 
वह 
कुछ  नहीं था 
कोई महत्व नहीं था उसका 
हमारे समाज के लिए 
पर, 
आज जब कि 
उसे 
उसके कल के कामों के लिए ही 
सरकारी  प्रतिष्ठा प्राप्त  हुई है 
वह एकाएक 
महत्वपूर्ण हो उठा है 
महान हो गया  है  
सबके लिए 
न जाने क्यों ?

('समग्रता' में अगस्त '79 में प्रकाशित )

                                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Saturday, January 26, 2013

आज की कविता : कहाँ जाऊँ, क्या करूँ

                                       - मिलन सिन्हा
पहले भी कई बार
काम दो, रोटी दो का नारा लगाया था
प्रदर्शन किया था 
आन्दोलन तक किया था
पर उन्होंने न तो काम दिया
और
न ही आजादी के साथ रोटी
हाँ, इस अपराध में
जेल में जरूर डाल दिया 
वहाँ कभी बेहद नमकवाला खिचड़ी मिला 
तो कभी जली हुई या अधपकी रोटी 
जिसे खाते हुए लगता 
जैसे अपनी आजादी खा रहा हूँ 
अपना अस्तित्व चबा रहा हूँ 
फिर भी भरता रहा पेट आधा ही सही 
लेकिन, 
अब तो प्रदर्शन - आंदोलन की बात से 
कुछ चिन्ता  होती है 
आँखें फोड़े जाने का डर होता है 
तो पिस्सूवाली दाल न खाने की बात पर 
गोली खाने की संभावना रहती है 
ऐसे में, अब मैं कहाँ जाऊँ,  क्या करूँ 
कोई मुझे ज़रा बता दे ! 

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Sunday, January 20, 2013

हास्य व्यंग्य कविता : आरोप और आयोग

                                          - मिलन सिन्हा 
आरोप और आयोग 
हमारे महान देश में 
जब जब घोटाला होता है 
और
हमारे  मंत्रियों , नेताओं  आदि पर
गंभीर आरोप लगाया जाता है
तब तब सरकार  द्वारा
पहले तो इसे बकवास
बताया जाता है
लेकिन,
ज्यादा हो-हल्ला होने पर
एक जांच आयोग
बैठा दिया जाता है
आयोग का कार्यकाल
महीनों, सालों का होता है
आयोग में
ऐसे-ऐसे  लोग रक्खे जाते  हैं
जो जल्दबाजी में
विश्वास नहीं करते हैं
और
गोल-मोल अनुशंसा करने में
बहुत दक्ष माने जाते हैं
फिर देश की
सरकारी व्यवस्थाओं की भांति
लोगों की यादाश्त भी
काफी कमजोर होती है
सो, कुछ ही दिनों के बाद
सारी बातें
आई गई  हो जाती हैं
और फिर
आयोग का जो भी रपट
जब भी आता है
उसका कुल योग
यह होता है  कि
उनके सुझाओं को
सरकार  कैसे लागू करे
इसके लिए
एक नया आयोग
फिर गठित  होता है
इस  तरह
इस महान देश में
घोटाले होते रहते हैं
विवाद उठते रहते हैं
और
आयोग बैठते रहते हैं !

# प्रवक्ता .कॉम पर प्रकाशित 
                                                   और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं। 

Monday, January 14, 2013

आज की कविता : नजरिया

                                                        - मिलन सिन्हा
नजरिया
मैं
जब था
टुकड़ों में
बादलों की तरह
बिखरा हुआ
तब
कुछ लोग
उनकी छवि
उतार रहे थे
विभिन्न प्रकार की
कलाकृतियों की झलक
मिल रही थी उन्हें
पर
अब
जब  कि
ये टुकड़े  जुड़कर
एक हो गए  हैं
और
बरसने के लिए
गरजने  लगे हैं
तो
उन लोगों को
सिर्फ
बाढ़ की ही संभावना
नजर आ रही है !

('राष्ट्रधर्म ' में सितम्बर '80 में प्रकाशित )
                                                            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Sunday, January 6, 2013

आज की कविता : जीने का रहस्य

                                - मिलन सिन्हा 
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न जाने कितनी रातें आखों  में  काटी  हमने
प्रेम में नहीं, मुफलिसी में रातें ऐसे काटी हमने


खाते-खाते मर  रहें  हैं  न जाने कितने बड़े लोग
एक नहीं, हजारों को भूखों मरते देखा  हमने

दोस्त  जो  कहने  को तो थे  बिल्कुल  अपने
वक्त पर उन्हें मुंह फेर कर जाते देखा हमने

कल रात अन्तरिक्ष की  बात  कर  रहे थे  वे  लोग
अलस्सुबह फिर सड़क पर खुद को पाया हमने

साल-दर-साल सड़क पर रहते और ठोकर खाते हुए
मर-मर कर जीने  का  रहस्य बखूबी जाना हमने

बिछुड़न ही  नियति रही है हमारी अब तक

मत  पूछिए, क्या-क्या नहीं यहाँ खोया हमने .

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं