Tuesday, June 25, 2019

योग से जुड़ना और जोड़ना दोनों लाभकारी

                                                    - मिलन  सिन्हा, योग विशेषज्ञ व मोटिवेशनल स्पीकर
27 सितम्बर, 2014 को हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा  संयुक्त राष्ट्र संघ में रखे गए प्रस्ताव, जिसका 192 देशों  ने समर्थन किया, के परिणामस्वरुप 21 जून 2015 से हर वर्ष इसी तारीख को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” मनाया जाता है. स्वाभाविक रूप से हर भारतीय के लिए  यह उल्लास, उमंग और उत्सव का विशेष मौका होता है.  इस वर्ष भी 21 जून को विश्व के 170 से ज्यादा देशों में इसका आयोजन होगा जिसमें करोड़ों लोग भाग लेकर योगाभ्यास करेंगे. इस मौके पर आइए जानते हैं योग विषयक कुछ विचारणीय बातें : 
1. योग एक सम्पूर्ण विज्ञान है. 
2. योग हमेशा योग्य प्रशिक्षक के मार्ग दर्शन में ही सीखें.
3. योग सिर्फ कुछ क्रियाओं का अभ्यास नहीं, सम्पूर्ण जीवनशैली है
4. जितनी नियमितता, तन्मयता और निष्ठा से योगाभ्यास करेंगे, उतना  ही अधिक लाभ होगा.
5. योग हर अच्छाई से जुड़ने, जोड़ने और जीवन में संतुलन कायम करने का दूसरा नाम है. सच कहें तो यह सबकी भलाई का समावेशी विचार है.
6. आसन के बाद और ध्यानाभ्यास से पहले प्राणायाम करना चाहिए.
7. योगाभ्यास हमेशा खुले और साफ़-सुथरे परिवेश में करें.
8. योगाभ्यास से पूर्व शौच आदि से निवृत हो लें. खाली पेट और खुले मन से योगाभ्यास करना बेहतर.
9. सारी योग क्रियाएं सामान्य गति से करें, किसी झटके से नहीं.
10. योग कोई धार्मिक कर्म-काण्ड नहीं है. यह स्वस्थ जीवन जीने की प्राकृतिक कला है. 
 अब जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण  योग क्रिया और  रोगोपचार : 
1. योग क्रिया: भ्रामरी प्राणायाम  
किस-किस रोग में लाभप्रद: स्ट्रेस,  हाई बीपी, गले का रोग 
विधि: किसी भी आरामदायक आसन जैसे सुखासन, अर्धपद्मासन में बैठ जाएं. मेरुदंड सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. आंख बंद कर लें. अब प्रथम अँगुलियों से दोनों कान बंद कर लें. दीर्घ श्वास ले और भौंरे की तरह ध्वनि करते हुए मस्तिष्क में इन ध्वनि तरंगों का अनुभव करें. यह एक आवृत्ति है . इसे 5 आवृत्तियों से शुरू कर यथासाध्य रोज बढ़ाते रहें. रोजाना 10 मिनट तक करें तो बेहतर परिणाम मिलेंगे.
अवधि: रोजाना 5-10 मिनट रोजाना 
सावधानी: जल्दबाजी न करें. श्वास क्रिया व  ध्वनि लयबद्ध हो  
2. योग क्रिया: पश्चिमोत्तानासन 
किस-किस रोग में लाभप्रद: मधुमेह (डायबिटीज), मोटापा, कब्ज, 
विधि: दोनों हथेलियों को जांघ पर रखते हुए पांवों को सामने फैला कर सीधा बैठ जाएं. श्वास छोड़ते हुए सिर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकाते हुए हाथ की अंगुलियों से पैर के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें और माथे को घुटने से स्पर्श करने दें. शुरू में जितना झुक सकते हैं, उतना ही झुकें. थोड़ी देर अंतिम स्थिति में रहें और फिर श्वास लेते हुए प्रथम अवस्था में लौटें. इसे 5-10 बार करें. 
अवधि: रोजाना 5-8 मिनट 
सावधानी: पीठ दर्द, साइटिका और उदर रोग से पीड़ित लोग इसे न करें.
3. योग क्रिया: उज्जायी प्राणायाम 
किस-किस रोग में लाभप्रद: ह्रदय रोग, स्ट्रेस (तनाव), हाई बीपी 
विधि: आराम के किसी भी आसन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. अब अपने जीभ को मुंह में पीछे की ओर इस भांति मोड़ें कि उसके अगले भाग का स्पर्श ऊपरी तालू से हो. अब गले में स्थित स्वरयंत्र को संकुचित करते हुए मुंह से श्वसन करें और और अनुभव करें कि श्वास क्रिया नाक से नहीं, बल्कि गले से संपन्न हो रहा है. ध्यान रहे कि श्वास क्रिया गहरी, पर धीमी हो. इसे 10-20 बार करें.  
अवधि: रोजाना 5-8 मिनट 
सावधानी: जल्दबाजी न करें. मन को श्वास क्रिया पर केन्द्रित करें 
4. योग क्रिया: भुजंगासन
किस-किस रोग में लाभप्रद: पीठ व कमर दर्द, किडनी रोग, अनियमित मासिक धर्म  
विधि: पांव को सीधा करके पेट के बल लेट जाएं. माथे को जमीन से सटने दें. हथेलियों को कंधे के नीचे जमीन पर रखें. अब श्वास लेते हुए धीरे-धीरे सिर तथा कंधे को हाथों के सहारे जमीन से ऊपर उठाइए. सिर और कंधे को जितना पीछे की ओर ले जा सकें, ले जाएं. ऐसा लगे कि सांप अपना फन उठाये हुए है. श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे वापस प्रथम अवस्था में लौटें. इसे 5 बार दोहरायें.  
अवधि: रोजाना 5 मिनट 
सावधानी: हर्निया, आंत संबंधी रोग से ग्रसित लोग इसे न करें.
5. योग क्रिया: शशांक आसन 
किस-किस रोग में लाभप्रद: गुर्दा रोग (किडनी प्रॉब्लम),साइटिका, कब्ज 
विधि: वज्रासन यानी घुटनों के बल पंजों को फैला कर सीधा ऐसे बैठें कि  घुटने पास-पास एवं एड़ियां अलग-अलग रहे. हथेलियों को घुटनों पर रखें. श्वास लेते हुए धीरे-धीरे हांथों को ऊपर उठाएं. अब श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे धड़ को सामने की ओर पूरी तरह झुकाएं जिससे कि माथा और सामने फैले हाथ जमीन को स्पर्श करें. उस अवस्था में थोड़ी देर रुकें. अब श्वास लेते हुए धीरे-धीरे प्रथम अवस्था में लौटें. इसे रोजाना 10 बार करें.   
अवधि: रोजाना 6-8 मिनट 
सावधानी: स्लिप डिस्क से पीड़ित लोग इसका अभ्यास न करें.
6. योग क्रिया: अनुलोम-विलोम प्राणायाम 
किस-किस रोग में लाभप्रद: सिरदर्द, माइग्रेन, उच्च रक्तचाप, न्यूरो प्रॉब्लम  
विधि: सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर रख लें. आँख बंद कर लें और श्वास को आते-जाते महसूस करें. अब दाहिने हाथ के प्रथम और द्वितीय  अँगुलियों को ललाट के मध्य बिंदु पर रखें और तीसरी अंगुली (अनामिका) को नाक के बायीं छिद्र के पास और अंगूठे को दाहिने छिद्र के पास रखें. अब अंगूठे से दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से दीर्घ श्वास लें और फिर अनामिका से बाएं छिद्र को बंद करते हुए दाहिने छिद्र से श्वास को छोड़ें. इसी भांति अब दाहिने छिद्र से श्वास लेकर बाएं से छोड़ें. यह एक आवृत्ति है. इसे कम –से-कम 10 बार करें.  
अवधि: रोजाना 5-7 मिनट
सावधानी: जल्दबाजी या बलपूर्वक न करें. मन को श्वास क्रिया पर केन्द्रित करें 

अंत में विश्व प्रसिद्ध योग एवं आध्यात्मिक गुरु सदगुरु जग्गी वासुदेव के विचार : "भले ही आप किसी एक साधारण आसन का अभ्यास करें या योग के दूसरे आयाम को अपनाएं, सबका एकमात्र मकसद है आपके बोध को निखारना."               (hellomilansinha@gmail.com)
                                                                                 
              और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
   
 # लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 30.06.2019 अंक में प्रकाशित
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Thursday, June 20, 2019

मोटिवेशन : योग का साथ हो तो सब मुमकिन है

                                                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
“अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के अवसर पर 21 जून को देश के हर हिस्से में स्कूल-कॉलेज- यूनिवर्सिटी के करोड़ों विद्यार्थी भी योग पर्व में भाग लेंगे. विश्व विख्यात योग गुरु स्वामी सत्यानन्द  सरस्वती लिखते हैं, "शिक्षा का तात्पर्य है मनुष्य का सर्वंगीण विकास. ऐसा नहीं होना चाहिए  कि विद्यार्थी में केवल किताबी ज्ञान भर दिया जाय, जो उसकी बुद्धि के ऊपर तैरता रहे -जैसे तेल पानी के ऊपर तैरता है. लोगों को अपने अंदर के विचारों, मान्यताओं और भावनाओं के प्रति जागरूक रहना चाहिए. इस प्रकार की शिक्षा किसी प्रकार के दबाव में प्राप्त नहीं हो सकती. यदि ऐसा होता है तो वह उधार  ली हुई शिक्षा होगी, न कि अनुभव द्वारा प्राप्त.  सच्चा ज्ञान अपने अंदर से ही शुरू हो सकता है और अपने अंदर के ज्ञान की परतों को खोलने के लिए योग ही माध्यम है.... .... योग स्वयं में एक परिपूर्ण शिक्षा है, जिसे सभी बच्चों को सामान रूप से प्रदान किया जा सकता है. क्यों कि नियमित योगाभ्यास से बच्चों में शारीरिक क्षमता का विकास होता है, भावनात्मक स्थिरता आती है तथा बौद्धिक और रचनात्मक प्रतिभा विकसित होती है. योग एक ऐसा एकीकृत कार्यक्रम है, जो बच्चों के समग्र व्यक्तित्व का संतुलित तथा बहुमुखी विकास करता है.... ..."

दरअसल, योग की महिमा का जितना बखान करें, उतना कम है. योग हमें अधूरेपन से पूर्णता की ओर तथा अन्धकार से प्रकाश की ओर सतत ले जानेवाली क्रिया है. योग आज के विद्यार्थियों के लिए जीवन को समग्रता में जीने का रोडमैप देता है जिससे वे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से एक सार्थक जीवन जी सकें. तथापि शिक्षा व संचार क्रांति के इस युग में अब भी योग को लेकर कहीं न कहीं यह भ्रान्ति है कि इसके अभ्यासी को संत या सन्यासी जीवन व्यतीत करना पड़ेगा और वह एक पारिवारिक व्यक्ति का सामान्य जीवन नहीं जी पायेगा, जब कि सच्चाई इसके उलट है. योग तो एक ऐसी जीवनशैली है जो जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को व्यापक एवं  समग्र बनाता है जिसके कारण हम अपने अलावा दूसरों की समस्याओं को अधिक आसानी से समझने तथा उसका समाधान ढूंढने लायक बन पाते हैं. ऐसा करके हम अपने  परिवार एवं समाज के लिए भी एक बेहतर इंसान साबित होते हैं. यही कारण है कि बड़े से बड़ा नेता, अभिनेता, ड़ॉक्टर, अधिकारी, उद्योगपति, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, लेखक-पत्रकार  सभी ने योग के महत्व को स्वीकारते हुए अपनी दिनचर्या में योगाभ्यास - आसान, प्राणायाम और ध्यान, को  निष्ठापूर्वक शामिल किया है. लिहाजा, उनका सुबह का समय योगाभ्यास में बीतता  है जिससे वे दिनभर पूरी जीवंतता के साथ अपनी जिम्मेदारियों का अबाध निर्वहन कर पाते हैं. देश-विदेश में योग के प्रति लोगों का बढ़ता विश्वास इसका  प्रमाण है. आधुनिक चिकित्सा पद्धति  ने भी अनेक रोगों के उपचार में योग की अहम भूमिका को स्वीकार किया है.  फिर सभी छात्र-छात्राएं ऐसा क्यों नहीं करते हैं या योग दिवस आदि कतिपय आयोजनों में ही योग करते दिखते हैं ? 

दरअसल, न्यूटन का जड़ता का सिद्धान्त यहां भी लागू होता है. जिस कार्य को हम करते रहते हैं, वह हमें आसान लगता है. इसके विपरीत किसी नए काम को करने से पहले तमाम तरह की भ्रांतियां तथा शंकायें हमारे सामने अवरोध बन कर खड़ी हो जाती हैं.  ऐसा कमोवेश सबके साथ होता है.  लेकिन खुले दिमाग से सोचने वाले विद्यार्थी अच्छे -बुरे का आकलन करते हुए एक नए जोश व संकल्प के साथ जड़ता को तोड़ कर सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं.  जीवन में यही तो योग है, और क्या? वास्तव में नियमित योगाभ्यास से छात्र -छात्राएं  न केवल जीवन में नूतनता एवं  ताजगी का अनुभव करेंगे बल्कि वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से पहले की अपेक्षा अधिक शक्ति का भी अनुभव करेंगे. विद्यार्थियों में एकाग्रता प्रखर होगी, उनकी स्मरण शक्ति में इजाफा होगा, उनके व्यवहार में संतुलन स्पष्ट दिखाई देगा और इन सबके समेकित प्रभाव से परीक्षा में उनका  परफॉरमेंस  उतरोत्तर अच्छा होता जाएगा.

 तो फिर क्यों न हमारे देश का हर  विद्यार्थी योग को अपनी रूटीन का हिस्सा बनाकर जीवन को स्वस्थ, सरस, सफल और सानंद बनाने का सार्थक प्रयास करे?                 (hellomilansinha@gmail.com) 
                                                                           
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
   
 # लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 23.06.2019 अंक में प्रकाशित
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Sunday, June 9, 2019

मोटिवेशन : दिमाग को साफ़-सुथरा रखना जरुरी

                                                                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर...
हमारा देश युवाओं का देश है. यहां संभावनाओं और क्षमताओं की कोई कमी नहीं है. यह देश के लिए ख़ुशी की बात है. सूचना और संचार क्रांति के इस युग में हमारे युवाओं को चारों दिशाओं से प्रति क्षण असंख्य सूचना-समाचार मिलते रहते हैं. मोबाइल और इंटरनेट की सुलभता से यह काम और भी आसान हो गया है. सोशल मीडिया पर पुष्ट-अपुष्ट, सही-गलत, वांछित-अवांछित, शील-अश्लील सब तरह की सामग्री की बाढ़ से बेशक सभी हैरान हैं, बहुत से युवा परेशान भी.

मनुष्य मूल रूप से एक संवेदनशील प्राणी है. उसके दिमाग की कार्यक्षमता असीमित है, ऐसा मेडिकल साइंस भी मानता है. हमारे वेद-पुराण में इस तथ्य को साबित करने के अनेकानेक उद्धरण मौजूद हैं. आधुनिक युग में भी संसारभर में जिन लाखों विलक्षण लोगों ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में सर्वथा असाधारण कार्य किये हैं और कर रहे हैं वह स्वामी विवेकानन्द के इस उक्ति को संपुष्ट करते हैं कि सभी शक्तियां आपके अन्दर मौजूद हैं. आप कुछ भी कर सकते हैं. 

कंप्यूटर परिचालन में शुरू में ही बताया जाता है कि गार्बेज इन, गार्बेज आउट. अर्थात कचड़ा अन्दर डालेंगे तो कचड़ा ही बाहर आएगा. कहने का मतलब जैसा अन्दर डालेंगे, वैसा ही बाहर आएगा. कमोबेश यही सिद्धांत मनुष्य के दिमागी कंप्यूटर के साथ भी होता है, ऐसा सामान्यतः स्पष्ट दिखाई पड़ता है. इसी कारण हर समाज में शिक्षा और संस्कार के महत्व पर सभी एकमत रहे हैं. अच्छी शिक्षा और संस्कार से  सोच और बुद्धि का सीधा संबंध होता है. 

बहरहाल, चिंता की बात है कि इतना सब जानते-समझते-मानते हुए भी जाने-अनजाने बहुत सारे युवा नकारात्मक एवं अवांछित बातों-विचारों को अपने दिमाग में घुसने और अपने दिमाग को कचड़ा घर बनने दे रहे हैं. उनके दैनंदिन आचार-व्यवहार में इसकी झलक मिलती रहती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि बच्चों, किशोरों और युवाओं के सरल एवं स्वच्छ मन-मानस को इस महामारी से बचाना बहुत मुश्किल है. इसके लिए समेकित प्रयास की जरुरत होगी. निःसंदेह, अभिभावकों एवं गुरुजनों का इस मामले में बहुत बड़ी भूमिका होगी, लेकिन पहल तो युवाओं को ही करना होगा.    

सबसे पहले स्वयं युवाओं के लिए  यह विचार करना जरुरी है कि उनके दिमाग में जो चीजें जा रही हैं वे बातें उनके लिए हितकारी हैं या नहीं, क्यों कि उसमें से अनेक बातें दिमाग में ठहर जाती है और उन्हें  कारण-अकारण व्यस्त रखती हैं. कई बार इसमें उनका  बहुत-सा समय यूँ ही खर्च होता है और वे समझ भी नहीं पाते. सोचनेवाली बात यह भी है कि जो अहितकारी बातें रोजाना उनके  पास आती हैं, आखिर वह किस स्रोत से ज्यादा आती हैं - किसी दोस्त, परिजन, सोशल मीडिया या अन्य किसी माध्यम से. युवाओं के लिए इसका गहराई से विश्लेषण करना निहायत जरुरी है. बेहतर तो यह होगा कि विश्लेषण एवं नियमित समीक्षा की प्रक्रिया उनके  रुटीन का हिस्सा बन जाए जिससे कि  दिमाग को प्रदूषित करने वाले स्रोत को पहचान कर तुरत उसे गुडबाय कर सकें. बुद्धिमान लोग तो  ऐसे कचड़े को आने से रोकने के लिए दिमाग के दरवाजे पर एक सशक्त स्कैनर लगा कर रखते हैं. उसे वहीँ  से बिदा कर दिया जाता है. 

एक अहम बात और. यह देखना भी जरुरी है कि वैसे कौन-कौन से विचार हैं जो उनके  दिमाग को अनावश्यक रूप से उलझाते हैं और परेशान करते हैं. उनकी पहचान कर लेने के बाद उनसे मुक्ति के लिए जरुरी है कि वे रोजाना अपने दिन की शुरुआत सकारात्मक सोच के साथ करें. सुबह जल्दी उठने का प्रयत्न करें. जो भी उनके आदर्श हों - माता-पिता, गुरुजन या कोई महान व्यक्ति, उन्हें याद कर उनका नमन करें. फिर सूरज की ओर देखें और महसूस करें कि आपके शरीर के  अन्दर दिव्य प्रकाश का प्रवेश हो रहा है और अँधेरा मिट रहा है. अब एक बार अपने शरीर के सारे अंगों- पैर की उंगलियों से सिर तक, को ठीक से देखें और सोचें कि आप कितने भाग्यशाली हैं कि आपके सारे अंग क्रियाशील हैं. इस शुरुआती पांच मिनट में ही आप आशा और विश्वास से भरने लगेंगे.  कहते हैं न ‘वेल बिगन इज हाफ डन’ यानी अच्छी शुरुआत आधा काम पूरा कर देता है. फिर दिनभर अच्छे कार्यों में व्यस्त रहें. बीच में अगर कोई नेगेटिव विचार या व्यक्ति आ जाए, उससे जल्द छुटकारा पा कर पॉजिटिव जोन में लौटें. नियमित अभ्यास से यह सब करना आसान होता जाएगा. रात में भी सोने से पूर्व फिर सकारात्मक सोच-विचार में थोड़ा वक्त गुजारें, उसका चिंतन-मनन करें. 

स्वभाविक है कि जो स्रोत उनके  लिए अच्छे हैं, ऐसे स्रोतों की संख्या बढ़ती रहे तो स्कूल-कॉलेज की परीक्षा हो या कोई कम्पटीशन, हर जगह प्रदर्शन बेहतर होना सुनिश्चित है. फिर तो लम्बी जीवन यात्रा में सफलता और खुशी उनके साथ-साथ चलती रहेगी और सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे विचारों को फलने-फूलने का सुअवसर भी मिलता रहेगा. 
                                                                                   (hellomilansinha@gmail.com)
               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
   
 # लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 09.06.2019 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, June 4, 2019

मोटिवेशन : समय को दें महत्व

                                                                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर...
आमतौर पर यह देखा गया है कि किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा का समय नजदीक आते ही प्रतिभागियों और विद्यार्थियों को समय की कमी महसूस होने लगती है, जब कि प्रतियोगिता परीक्षा की तारीख अधिकांश मामलों में पहले से घोषित होती है.  यह अस्वाभाविक नहीं है. अब बचे हुए समय में सारे बाकी बचे चैप्टर पढ़ने, दोहराने, सबको याद रखने  और फिर परीक्षा में अच्छा स्कोर करने की चुनौती सामने जो होती है. 

आज के युवाओं में सामान्यतः मेधा की कमी नहीं है. और अब तो सूचना और जानकारी पाने के न जाने कितने सरल और सुलभ माध्यम उपलब्ध हैं. समय के साथ परीक्षा के तरीके भी आधुनिक तकनीक के कारण सरल और  पारदर्शी हो गए हैं. कहने का अभिप्राय यह कि आज के युवा के पास संसाधन की उपलब्धता कमोबेश एक सामान है और  परीक्षा में भी कोई भेदभाव नहीं. अब तो सवाल है सिर्फ तैयारी के प्रति प्रतिबद्धता के साथ समय के सदुपयोग का, उसके यथोचित प्रबंधन का. 

दिनभर में 24 घंटे का समय सबको सामान रूप से उपलब्ध है, न किसी को थोड़ा भी कम या ज्यादा. सो समय की कमी की बात करना सही नहीं लगता है. तभी तो एच जैक्सन ब्राउन फरमाते हैं, "आप यह कैसे कह सकते हैं कि आपके पास पर्याप्त समय नहीं है ? आपके पास एक दिन  में उतने ही घंटे हैं, जितने हेलेन केलर, लुई पाश्चर, माइकल एंजेलो, लियोनार्डो द विंची, थॉमस जेफ़र्सन और अल्बर्ट आइंस्टीन के पास थे." 

बहरहाल, समय के बारे में सबने यह सुना है, 'टाइम एंड टाइड वेट फॉर नन'. अर्थात समय और समुद्र की लहरें किसी का इन्तजार नहीं करती. ग़ालिब के इस कथन, 'मै कोई गया वक्त तो नहीं कि लौट कर वापस आ न सकूं'  से स्पष्ट है कि बीते हुए समय को किसी भी तरह दोबारा हासिल करना असंभव है.  लुइस ममफोर्ड ने तो समय के महत्व को समझाने के लिए इसे इन शब्दों में व्यक्त किया है ,'आधुनिक औद्योगिक युग की सबसे प्रमुख मशीन भाप का इंजन नहीं, बल्कि घड़ी है.'

विशषज्ञों का कहना है कि समय प्रबंधन दरअसल जीवन प्रबंधन का एक प्रमुख हिस्सा है. लिहाजा आवश्यकता इस बात की है कि आप पहले यह तय करें कि आपको अपने समय का सर्वथा सदुपयोग करना है. जहां चाह, वहां राह. अब जिन कार्यों को आप अहम मानते हैं यानी जो आपके लिए ज्यादा जरुरी है, उसका एक लिस्ट बना लें. अमूमन रोजाना उन कार्यों को करने के लिए कितने समय की जरुरत होगी, इसका आकलन कर उसे भी लिख लें. इसके बाद अपने मौजूदा दिनचर्या की सूक्ष्मतम समीक्षा करें और यह जानें कि दिनभर में आपके पॉजिटिव, नेगेटिव और आइडिल इंगेजमेंट कितने हैं और उसमें आपका कितना समय व्यय होता है. नेगेटिव और आइडिल इंगेजमेंट को तिलांजलि देकर पॉजिटिव कार्य के लिए अतिरिक्त समय निकालना निश्चित रूप से बुद्धिमानी और फायदे का काम है. हां, इस मामले में हर व्यक्ति की स्थिति भिन्न होगी, लेकिन फायदा तो बेशक सबको होगा.  

अमूमन यह देखा गया है कि युवाओं और छात्रों का समय चार हिस्सों में बंटता है. शैक्षणिक संस्थान में, स्वाध्याय में, दैनंदिन कार्य मसलन स्नान, व्यायाम, खाने, मनोरंजन आदि में और सोने में. इन चारों कार्यकलाप में ही सामन्यतः आपका समय व्यतीत होता है, किसी में थोड़ा ज्यादा, किसी में उससे कम. दिलचस्प बात है कि ये चारों व्यस्तताएं हमारे जीवन को समग्रता में जीने के लिए जरुरी है. समयावधि बेशक परिवर्तनशील हों. उदाहरण के तौर पर परीक्षा के समय सोने और मनोरंजन में आप समय कम बिताते हैं और पढ़ने में ज्यादा. 

आइये, अंत में पैरेटो के 20/80 के सिद्धांत की चर्चा भी कर लें. इस सिद्धांत के अनुसार लोग अस्सी फीसदी कार्य अपने बीस फीसदी समय में संपन्न करते हैं. दूसरे शब्दों में, लोग अस्सी फीसदी समय अपना मात्र बीस फीसदी कार्य पूरा करने में लगाते हैं. अब अगर वे लोग  यह जान सकें कि वे कौन से बीस प्रतिशत कार्य हैं जिनको पूरा करने के लिए अस्सी फीसदी समय का व्यय करना पड़ता है, तो समझिये कि बेहतर  समय प्रबंधन की ओर उनका पहला कदम बढ़ गया.  अब अगर लोग इस समझ को दैनंदिन जीवन में अमल में ला सकें तो उनका समय प्रबंधन बेहतर से और बेहतर होता जायगा और साथ में हर क्षेत्र में उनकी उत्पादकता में इजाफा भी दर्ज होता रहेगा. 

कहने की जरुरत नहीं कि कम समय में ज्यादा हासिल करनेवाला ही जीत का हकदार बनता है, चाहे वह प्रतियोगिता परीक्षा हो  या अन्य कोई कार्य क्षेत्र. निःसंदेह, इसे हासिल करने के लिए तन्मयता से पढ़ने, लगातार प्रैक्टिस करने और परीक्षा में पूरे आत्मविश्वास के साथ सवालों का तय समयावधि में सही-सही उत्तर देने की जरुरत तो होगी ही.  

सच कहें तो समय के महत्व की सीख हम प्रकृति से भी लें सकते हैं. देश-विदेश के महान व्यक्तियों की दिनचर्या को गौर से देखने पर भी यह आसानी से सीखने को मिल सकता है. (hellomilansinha@gmail.com)

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

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