Thursday, March 23, 2017

प्रेरक प्रसंग : नमक और सत्याग्रह

                                                                                   - मिलन सिन्हा 
मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही राममनोहर लोहिया अपने पिता श्री हीरालाल लोहिया के साथ गाँधी जी से पहली बार मिले थे. पिता तो गाँधी भक्त थे ही, पुत्र  भी प्रथम दर्शन में ही प्रभावित  हुए. फिर तो लोहिया जी ने अपनी शक्ति और बुद्धि के अनुसार राजनीति में प्रवेश के अपने प्रथम चरण में बी. ए. पास करने तक देश में गाँधी जी के नेतृत्व में चल रहे आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई. उसके बाद बर्लिन में अपने शोधकार्य के दौरान भी उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण अवसरों पर गाँधी जी के कार्यक्रमों एवं देश में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम के औचित्य की सशक्त वकालत की. गाँधी जी के प्रति उनकी श्रद्धा एवं उनके कार्यक्रमों के प्रति उनकी आस्था का इससे अच्छा और क्या प्रमाण होगा कि लोहिया जी ने 'नमक और सत्याग्रह' विषय पर वर्ष 1932 में अपना शोध प्रबंध पूरा कर बर्लिन विश्वविद्द्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. 
                                                                                 (hellomilansinha@gmail.com)
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

डॉ. राममनोहर लोहिया  के  जन्मदिन  के अवसर पर 
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

Monday, March 13, 2017

बातों-बातों में : होली के मौके पर थोड़ी तुकबंदी (सन्दर्भ : उत्तर प्रदेश चुनाव-2017)

                                                                        - मिलन  सिन्हा 

सब कुछ हो गया शांत,
थम गया चुनाव का शोर. 
ढूंढें जरा,कहाँ छुपे हैं पीके,
सबके चहेते प्रशांत किशोर. 

जानना चाहते है सभी यूपीवासी,  
पीके ने ऐसा करतब कैसे कर दिखाया?
साइकिल पर सवार दो युवाओं को 
कैसे हार के गर्त में पहुंचाया?

.....होली की असीम शुभकामनाएं.
                                                          (hellomilansinha@gmail.com)
                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

Saturday, March 11, 2017

बातों-बातों में : उत्तर प्रदेश चुनाव-2017 के नतीजे

                                                                                          - मिलन सिन्हा 
उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गए. सुबह से देश-प्रदेश के ढेर सारे न्यूज़ चैनल्स (मूलतः राजनीतिक न्यूज़ को समर्पित) लगातार रुझान और फिर परिणाम पर घनघोर चर्चा कर रहे हैं, नेताओं -पत्रकारों के विचार ले रहे हैं. यह सिलसिला अभी जारी रहेगा, कुछ कम -ज्यादा तीव्रता के साथ जब तक इन राज्यों में नई सरकार स्थापित नहीं हो जाती.

दीगर बात है कि चुनाव परिणाम आने से पहले तक सभी बड़ी पार्टियां अपने-अपने जीत का दवा करती हैं. फिर चुनाव परिणाम आने के बाद हार -जीत के हिसाब से उनके नेताओं का बयान -स्पष्टीकरण भी आ जाता है - ज्यादातर तर्क व तथ्य से परे. एक-दो बानगी देखिए:

22 करोड़ की आबादी वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 403 सीटों में से भाजपा ने 312 सीटों पर विजय प्राप्त की है, लेकिन बसपा की नेता मायावती जी कहती हैं कि ऐसा इवीएम (वोटिंग मशीन) में छेड़छाड़ करके किया गया यानी उत्तर प्रदेश की सपा सरकार और उनके अधीन काम करने वाला प्रशासन सत्तारूढ़ पार्टी और बसपा को चुनाव में हराने के लिए वोटिंग मशीन के साथ छेड़छाड़ करता रहा और खुद मुख्यमंत्री तथा निर्वाचन आयोग मूक दर्शक बना रहा..... 

2. सपा सरकार और निवर्तमान मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश जी कहते है कि प्रदेश के मतदाता बहकावे में आ गए यानी कल तक जो मतदाता समझदार था, "हाथ" से हाथ मिला रहा था और "साइकिल" की सवारी करने को प्रतिबद्ध था, मतदान के दिन बहक गया, नासमझ हो गया. ...

उत्तर प्रदेश में चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद से आज सुबह तक सोशल मीडिया या न्यूज़ चैनल्स या समाचार पत्रों में आये ज्यादातर हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकारों व संपादकों (कुछ पूर्व संपादकों जो अपने अतीतगान में लगे रहते हैं, सोशल मीडिया पर रोज न जाने क्या-क्या लिखते रहते हैं) के विचारों-रपटों पर गौर कर लें, तो आपको उनके Intellectual dishonesty का अंदाजा लग जाएगा. शायद यही कारण रहा कि पूरे उत्तर प्रदेश का दौरा करने व वहां के मतदाताओं का मिजाज समझने का दावा करने के बावजूद ये लोग भाजपा के इस अभूतपूर्व जीत का संकेत तक नहीं दे पाए. ऐसे लोग खुद को समाचार जगत के नामचीन प्रतिनिधि तो बताते रहते हैं, लेकिन क्या इनका आचरण सम-आचार के बुनियादी सिद्धांत के अनुरूप है ? Either they fail to see the obvious or reporting otherwise even by seeing the truth or knowing the real fact.

इसे आप क्या कहेंगे ?

अंत में एक  छोटा-सा तथ्य आपके विचारार्थ व आपके निरपेक्ष मंतव्य हेतु : 
इन पांच राज्यों में हुए चुनाव में कुल 690 सीटों, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश में 403 हैं, के लिए चुनाव हुए और इनमें  से सिर्फ भाजपा ने अकेले करीब 406 सीटों (58 .84%) पर जीत हासिल की, जब कि भाजपा ने सभी 690 सीटों पर चुनाव नहीं लड़े. एक बात और. पहले भाजपा को इन राज्यों में  मात्र 110 सीटें हासिल थी. 

....इसे आप किसी भी पार्टी के लिए कैसी उपलब्धि मानते हैं? 
                                                                         (hellomilansinha@gmail.com)
                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

Wednesday, March 8, 2017

आज की बात: पांच राज्यों में चुनाव के बहाने कुछ सवाल

                                                                                        - मिलन सिन्हा 
पांच राज्यों के चुनाव में अंतिम दौर का मतदान आज समाप्त हो गया. चुनाव परिणाम 11 मार्च को आयेंगे. कल से टीवी चैनल नतीजों का आकलन एवं भविष्यवाणी करने लगेंगे. चर्चा में भाग लेनेवाले राजनीतिक दलों के अधिकांश प्रवक्ता तो तथ्यों व प्रमाणित आंकड़ों तक को झुठलाते हुए पार्टी लाइन पर बोलते कम, चीखते-चिल्लाते ज्यादा नजर आयेंगे, उनके साथ पैनल में बैठे ज्यादातर पत्रकार-संपादक भी पूर्वाग्रह से प्रेरित बातें करते स्पष्ट नजर आयेंगे. एंकर तो ऐसे भी कार्यक्रम के लिए पहले से तय एजेंडे पर बने रहकर अपनी-अपनी नौकरी कर रहे होंगे. कमोबेश हर राष्ट्रीय हिन्दी-अंग्रेजी चैनल का यही हाल रहता है, रहेगा. 

कहने का सबब यह कि वहां अपना ज्यादा  वक्त लगाना मेरे लिए संभव नहीं होता. मेरी तो कोशिश होगी कि इन चुनावों के जरिए अपने देश एवं समाज के मौजूदा हालात और भविष्य की संभावनाओं पर विचार-विमर्श के लिए थोड़ा ज्यादा समय दे सकूं, कुछ सवालों का उत्तर तलाश सकूं. बहरहाल, चलिए देखते हैं कि इन पांच राज्यों में मतदान प्रतिशत कैसा रहा:

1. मणिपुर - 86 %
2. गोवा - 83 %
3. पंजाब - 77 %
4. उत्तराखंड - 66 %
5. उत्तर प्रदेश - 61 % 
  • हाँ, तो मतदान का यह प्रतिशत क्या दर्शाता है ? 
  • किस राज्य के लोग अपने मताधिकार के प्रति ज्यादा जागरूक और तत्पर हैं ? 
  • कहाँ के लोग लोकतंत्र के सच्चे सिपाही हैं? मणिपुर और गोवा या उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश ? 
  • इसका उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेशों के पिछड़ेपन और इन राज्यों (पंजाब भी) में सदियों से फलते-फूलते भ्रष्टाचार से कोई लेना -देना भी है क्या ?
  • क्या मतदान के प्रतिशत का उन प्रदेशों के शिक्षा-साक्षरता, आम आदमी के सामान्य जीवन स्तर से कोई सीधा संबंध है?
  • 14 % (मणिपुर) से लेकर 39 % (उत्तर प्रदेश) वोट न देनेवाले लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करने हेतु चुनाव आयोग सहित वहां की मुख्य राजनीतिक दलों की क्या भूमिका रही ?      

ज्ञातव्य  है कि 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत केवल 57% था, जब कि देश के लगभग सारे पत्रकार व राजनीतिक नेता बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों की राजनीतिक समझ और जागरूकता का बखान करते नहीं थकते. आखिर ऐसा क्यों होता है ? 

....देश के समाज विज्ञानी और चुनाव आयोग के विशेषज्ञ इसे कैसे देखते हैं ?
....क्या कल यह विषय न्यूज़ चैनल पर बहस का बड़ा मुद्दा बनेगा?
....और आप का क्या कहना है?
                                                                             (hellomilansinha@gmail.com)
                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं