Tuesday, September 29, 2020

दोस्ती के मायने

                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... 

कई अवसरों पर गुरुजनों को आपने यह कहते हुए सुना होगा कि हम बाकी सभी रिश्तों के साथ पैदा होते हैं, लेकिन  दोस्ती ही एक मात्र रिश्ता है जिसे हम खुद बनाते हैं. बिलकुल सही बात है. दोस्त हम खुद बनाते हैं, कारण कई हैं. औपचारिक रूप से यह सिलसिला अमूमन स्कूल में एडमिशन के बाद शुरू हो जाता है, जो किशोरावस्था में थोड़ा तेज हो जाता है. उस समय हार्मोनल चेंज के साथ घरेलू रिश्ते में बदलाव दिखने लगता है. माता-पिता, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार से कहीं ज्यादा प्रगाढ़ता दोस्तों के साथ नजर आने लगती है. ऐसा कमोबेश सभी छात्र-छात्राओं  के साथ होता है. शहरों-महानगरों में पढ़नेवाले विद्यार्थियों में यह चेंज काफी साफ़ नजर आता है. इसके एकाधिक सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारण हैं.
कुछ लोग सहपाठी को दोस्त की संज्ञा दे  देते हैं, पर हर सहपाठी दोस्त नहीं होता और न ही सब दोस्त सहपाठी. हां, यह पाया गया है कि कई सालों तक एक साथ पढ़ाई करने के कारण ज्यादातर दोस्त स्कूल-कॉलेज में ही बनते हैं और सबसे ज्यादा टिकाऊ और भरोसेमंद होते हैं. इसके पीछे का मनोविज्ञान भी साफ़ और सरल है.
 
ऐसे तो दोस्ती का दायरा बहुआयामी होता है, तथापि आमतौर पर घर के लोगों के अलावे अधिकांश विद्यार्थी सबसे ज्यादा समय अपने दोस्तों के साथ बिताते हैं और यह उनकी स्वाभाविक इच्छा भी होती है. सिनेमा हॉल हो या मॉल या पिकनिक स्पॉट या स्पोर्ट्स स्टेडियम, हर जगह अपने दोस्तों के साथ विद्यार्थियों को देखना आम बात है. दरअसल, हर विद्यार्थी सामान्यतः अपनी हर छोटी-बड़ी बात पहले दोस्त से ही शेयर करता है. दोस्त नजदीक न भी हो तो करीब ही लगता है. कहते हैं कि एक मजबूत दोस्ती के लिए हर रोज बात करने या आसपास रहने की ज़रुरत नहीं होती. दोस्ती का यह संबंध जब तक  दिल में जिंदा रहता है, दोस्ती बनी रहती है. दिलचस्प बात है कि हर विद्यार्थी किसी-न-किसी मामले में दूसरे से अलग होता है. कई मामलों में तो उनके मत बिलकुल भिन्न होते हैं, फिर भी वे एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त होते हैं. उनके बीच अमीरी-गरीबी, जाति-धर्म, भाषा-क्षेत्र जैसी कोई बात दीवार नहीं बन पाती है. तभी तो कई बार तकरार और छोटे-मोटे झगड़े के बाद भी उनकी दोस्ती मजबूत बनी रहती है. शायद वे जाने-अनजाने प्रख्यात अंग्रेजी कवि-नाटककार विलियम शेक्सपीयर की इस उक्ति को चरितार्थ करते हैं कि "एक दोस्त वो होता है जो आपको वैसे ही जानता है जैसे आप हैं, आपके बीते हुए कल को समझता है, आप जो बन गए हैं उसे स्वीकारता है और आपकी उन्नति में साथ होता है." लेकिन क्या सबका सबके साथ दोस्ती एक समान चलती है साल-दर-साल? 

जरा सोचिए, बचपन से लेकर अबतक आपके जितने दोस्त बने, क्या सबके साथ आप आज भी जुड़े हुए हैं और वह भी उसी प्रगाढ़ता के साथ. नहीं न. कितने  दोस्तों के नाम तक भूल गए होंगे और कुछ के चेहरे तक. इसका मतलब यह कि समय और परिस्थिति के साथ दोस्ती की परिभाषा और मायने भी कम या ज्यादा बदलते गए. लेकिन इस बीच कुछ दोस्त बराबर आपके साथ बने रहे. कभी मौका निकाल कर इस बात पर सोच-विचार जरुर करें. बहुत सारी बातें  एकदम साफ़ हो जाएंगी. सकारात्मक दृष्टि से सोचें तो आप पायेंगे कि वही दोस्त रह गए और शायद आगे भी रहेंगे जो सच्चे दोस्त हैं. प्रसिद्ध लेखक विलीयम पेन सच्चे दोस्त को इन  शब्दों में परिभाषित करते हैं- एक सच्चा दोस्त उचित सलाह देता है, तुरत मदद करता है, संयम से सब कुछ करता है, हिम्मत से आपकी रक्षा करता है तथा बिना बदले दोस्ती कायम रखता है. कहने का अभिप्राय यह कि सच्चा व अच्छा दोस्त ही आपके दर्द को अपना मानता है, आप पर विश्वास करता है, आपको अच्छाई से जोड़ता है और बिना किसी अपेक्षा के हर मौसम और मुसीबत में आपके साथ रहता है.
 
इसके विपरीत दोस्ती के नाम पर कई विद्यार्थी सिर्फ अपना मतलब साधने का काम करते हैं. मतलब निकल गया तो फिर पहचानने से भी वे इनकार कर देते हैं. ऐसे लोग ही आपको गलत रास्ते पर ले जाते हैं. इससे अच्छे विद्यार्थियों को नाहक बहुत नुकसान होता है. महात्मा बुद्ध का तो इस विषय में स्पष्ट मत है कि "एक जंगली जानवर की अपेक्षा एक धूर्त एवं  दुष्ट दोस्त से अधिक डरना चाहिए. जंगली जानवर तो सिर्फ आपके शरीर को नुकसान पहुंचाएगा, लेकिन एक बुरा दोस्त आपके माइंड को भी दूषित कर देगा." अतः सभी छात्र-छात्राओं को ऐसे कथित दोस्तों को पहचानने और उनसे सावधान रहने की सख्त जरुरत है. निसंदेह, जीवन में  दोस्तों की बहुत अहमियत है, लेकिन सिर्फ सच्चे और अच्छे दोस्तों की, बेशक उनकी संख्या कुछ कम ही हो. 

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           और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
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Thursday, September 24, 2020

सिर्फ विज्ञापन नहीं

                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

बाजारवाद के मौजूदा दौर में कमोबेश सभी विद्यार्थियों के जीवन में विज्ञापन का असर देखा जा सकता है. यह एकदम सामान्य बात है. देश-विदेश की छोटी-बड़ी कम्पनियां अपने प्रोडक्ट्स और सर्विसेस को बाजार में स्थापित करने और उस कारोबार के मार्फ़त अच्छा लाभ कमाने के उद्देश्य से विज्ञापन का इस्तेमाल करती हैं.
बोतल बंद पीने के पानी से लेकर टूथपेस्ट, साबुन, जूते, कपड़े, कोल्ड ड्रिंक्स, कलम, मोबाइल, लैपटॉप, साइकिल, स्कूटर, कार, आटा, दाल, चावल, मसाला कोई भी ऐसी वस्तु या सेवा नहीं है जिसका विज्ञापन नहीं हो रहा है और विद्यार्थियों सहित सब लोग  उससे कम या ज्यादा प्रभावित नहीं हो रहे हैं. इतना ही नहीं, कोरोना काल में जब क्लास रूम पढ़ाई नहीं हो पा रही है, ऑनलाइन स्टडी और क्लासेज के लिए कई बड़ी कम्पनियां जाने-माने फ़िल्मी कलाकारों से भी विज्ञापन करवा रहीं हैं. 


विज्ञापन का व्यवसाय बहुत बड़ा और अत्यंत डायनामिक होता है. उपभोक्ता की पसंद-नापसंद, उनका मनोविज्ञान, आसपास के लोगों का उनपर असर, उनकी महत्वाकांक्षा, उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति, मौजूदा परिस्थिति आदि सभी पक्षों का विस्तृत अध्ययन-विश्लेषण किया  जाता है. बाजार में प्रतिस्पर्धी प्रोडक्ट या सर्विसेस की प्राइसिंग, मार्केट शेयर, डिमांड-सप्लाई का अर्थशास्त्र और अन्य स्थिति का आकलन-विवेचन भी गंभीरता से किया जाता है. हां, प्रोडक्ट या सर्विसेस की क्वालिटी का ध्यान भी रखा जाता है, लेकिन विज्ञापन और प्रचार में उसे यथार्थ से ज्यादा अच्छा बताने का प्रचलन आम है. ऐसा इसलिए कि देश में उपभोक्ता संरक्षण कानून और गलत विज्ञापन देने पर दंड का प्रावधान होने के बावजूद प्रोडक्ट या सर्विसेस की विज्ञापित गुणवत्ता को जांचने-परखने की मौजूदा व्यवस्था कारगर तरीके से काम नहीं करती है. परिणाम स्वरुप बहुत सारी सब-स्टैण्डर्ड चीजें और सर्विसेस विज्ञापन और प्रचार के बलबूते बाजार में न केवल कायम है, बल्कि अच्छा बिज़नस भी कर रही हैं. 


सभी विद्यार्थी जानते हैं कि हर कंपनी चाहती है कि उसके ग्राहकों की संख्या निरंतर बढ़े और प्रॉफिट भी.
भारत जैसे युवा देश में छात्र-छात्राएं एक  बड़ा ग्राहक वर्ग है. यह वर्ग कभी भी बाजार में किसी वस्तु या सेवा को मजबूत या कमजोर स्थिति में लाने का बड़ा कारण बन सकता है. अतः कम्पनियां छात्र-छात्राओं द्वारा उपयोग में लानेवाली चीजों के विज्ञापन पर बहुत ज्यादा फोकस करती हैं, जिससे कि उनके अवचेतन मन पर उसकी गहरी छाप पड़े और वे उसे खरीदने को आतुर हो जाएं. यहां सभी विद्यार्थियों के लिए यह जानना जरुरी है कि अच्छी क्वालिटी के प्रोडक्ट्स और सर्विसेस के कारोबार में संलग्न कम्पनियां न्यूनतम विज्ञापन से सालों-साल तक मार्केट में अपना स्थान बनाए रखती हैं, क्यों कि वे इस शाश्वत सत्य को जानते हैं  कि किसी भी उत्पाद या सर्विस का संतुष्ट ग्राहक ही उसका चलता-फिरता एवं अत्यंत प्रभावी विज्ञापन होता है. तो सवाल है कि विज्ञापन से भरे इस बाजार में विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए? 


इन पांच अहम बातों को याद रखकर कार्य करें.
1) सिर्फ विज्ञापन और प्रचार से आकर्षित होकर  किसी भी प्रोडक्ट और सर्विस का उपयोग करने के बजाय गुणवत्ता और कीमत के आधार पर उनका इस्तेमाल करने का संकल्प लें. 2) किसी भी दोस्त या सहपाठी के देखादेखी तुरत कोई निर्णय न लें. खुद सोच-विचार और तुलना-विश्लेषण करें और फिर जो उचित लगे, वहां पैसा खर्च करें. 3) शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए कौन सी चीजें इस समय एकदम जरुरी है, इसका ध्यान रखते हुए क्वालिटी चीजें ही खरीदें. कहने का अभिप्राय यह है कि किसी सेलेब्रिटी को किसी ब्रांड का कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स, कॉस्मेटिक्स आदि का उपयोग करते देख या किसी फिल्म स्टार को किसी ऑनलाइन क्लास को उत्कृष्ट बताने पर बिना सोचे-समझे उन प्रोडक्ट्स का उपयोग करना या उस ऑनलाइन क्लास को ज्वाइन करना कोई समझदारी नहीं  है. 4) सेल या डिस्काउंट के आकर्षण-प्रलोभन में एक साथ बहुत चीजें न खरीदें. सिर्फ वही खरीदें जिसका फिलहाल उपयोग करना है और 5) कभी न भूलें कि जो भी कंपनी अपने प्रोडक्ट या सर्विस के विज्ञापन और प्रचार में बहुत ज्यादा पैसा खर्च करती है, वह सामान्यतः क्वालिटी से समझौता करती है और आखिरकार इस सबकी वसूली उपभोक्ता के पॉकेट से ही करती है. कहने का आशय यह कि छात्र-छात्राएं अपनी शिक्षा का सही उपयोग करते हुए सदा एक जागरूक और समझदार उपभोक्ता का रोल अदा करें और विज्ञापन को जानकारी का सिर्फ एक माध्यम समझें.

  (hellomilansinha@gmail.com)       

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 12.07.2020 अंक में प्रकाशित
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Monday, September 21, 2020

दो कल के बीच वर्तमान का उपहार

                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं कि 'कल से सीखो, आज के लिए जीओ, कल के लिए सपने देखो और सबसे जरुरी बात यह कि कभी भी रुको मत.'
सचमुच सभी छात्र-छात्राओं का समय सपने देखने और उनको सच करने के क्रम में कल, आज और कल के बीच से गुजरता है. अपने काउंसलिंग सेशन में वैसे हर विद्यार्थी से जो समय की कमी और बेहतर परफॉर्म न कर पाने की बात करते हैं, आग्रह करता हूँ कि सिर्फ एक हफ्ते तक रोजाना रात में सोने से पहले एक नोट पैड में ईमानदारी से यह लिखें कि उन्होंने कितने घंटे अतीत की दुखभरी बातों को याद करने में बिताए, भविष्य के सोच में आशंका व चिंता से ग्रस्त रहे और कितने घंटे वाकई तन्मयता से अध्ययन में बिताए. सामान्यतः  यह बात साफ़ तौर पर सामने आती है कि पास्ट और फ्यूचर की बातों में उनका ज्यादातर समय गुजर जाता है और उन्हें पता भी नहीं चलता. कदाचित वे महसूस करते हैं कि यह ठीक नहीं है, लेकिन अगले दिन उनका समय अतीत की कुछ ऐसी ही नेगेटिव बातों को याद करने में या भविष्य की दुश्चिंताओं में गुजरता है. परिणाम स्वरुप अपने लक्ष्य के अनुरूप सकारात्मक सोच के साथ आज को जीने के लिए उनके पास समय कम पड़ जाता है. 

 
हां, यह सही है कि किसी भी विद्यार्थी के लिए शायद ही संभव होगा कि वह दिनभर में कभी भी अतीत या भविष्य में विचरण न करें, लेकिन क्या यह मुनासिब नहीं है कि एक बार ठीक से अतीत और भविष्य यानी दोनों कल के विषय में अपना माइंड क्लियर कर लें? 
चलिए, अभी कुछ सोच-विचार कर लेते हैं. मजेदार बात है कि एक दिन पहले के आज को बीता हुआ कल यानी अतीत कहते है और एक दिन बाद आनेवाले आज को भी कल ही कहते है, लेकिन मतलब भविष्य होता है. यही न. तो साफ़ है कि दोनों कल वाकई आज ही था या होगा समय के एक अंतराल के बीच. फिल्म "हम हिन्दुस्तानी" का यह गाना कि " छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी..." या फिल्म "कसमे-वादे" का यह गाना "कल क्या होगा किसको पता अभी जिंदगी का ले लो मजा..." दोनों गानों में अतीत और भविष्य की बातों को छोड़कर आज में जीने का संदेश साफ़ है. फिर विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए?


महात्मा बुद्ध का कहना है कि 'मन और शरीर दोनों के लिए स्वास्थ्य  का रहस्य यह है कि  अतीत पर शोक मत करो और ना ही भविष्य की चिंता करो, बल्कि बुद्धिमानी तथा  ईमानदारी  से वर्तमान में जीओ.' 
तो  छात्र-छात्राएं सर्वप्रथम  यह संकल्प करें कि अभी से वे वर्तमान यानी प्रेजेंट में जीयेंगे. प्रेजेंट का एक अर्थ उपहार भी है और शायद इसी को रेखांकित करता है आज का समय यानी वर्तमान, जो वाकई  एक अमूल्य उपहार है. हां, इस संकल्प को हमेशा याद रखना है और मन ही मन दोहराना भी है. ऐसा इसलिए कि जब भी मन अतीत या भविष्य में जाए और नेगेटिविटी के जाल में फंसने लगे तो वे प्रेजेंट में तुरत लौट सकें.  यहां इस बात को नहीं भूलना चाहिए  कि अतीत का पूरा समय बीते हुए वर्तमान का कुल योग होता है और भूतकाल के इस बड़े काल खंड में सभी विद्यार्थियों ने अनेक काम किए हैं और बहुत-सा अच्छा-बुरा अनुभव प्राप्त  किया है. ये अनुभव  उनके  धरोहर हैं  और आगे बहुत काम आनेवाले हैं अगर वे  इनसे मिले सबक और सीख को वर्तमान में अर्थात आज उपयोग में ला सकें. अतीत की असफलताओं और गलतियों को सिर्फ याद कर निराश और दुखी होने का कोई फायदा नहीं. आगे वही गलती न करें तो कुछ बात बने. दूसरा, अतीत की जो सफलताएं या अच्छी यादें आपके स्मृति में हैं, उन्हें अच्छी तरह संजो कर रखें. उन्हें जीवंत बनाए रखना आपको अच्छे कार्य में संलग्न रहने को उत्प्रेरित करता रहेगा. तीसरा यह कि भविष्य के लिए जो सपने देखें हैं या जहां पहुंचना चाहते हैं यानी जो आपका बड़ा लक्ष्य है, उसके लिए एक प्रैक्टिकल और फुलप्रूफ कार्ययोजना तैयार करके चलें. यकीनन, इन्हें साधने के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को आज पर पूरा फोकस करना होगा क्यों कि वे आज जो कुछ करते हैं, वही हकीकत है और सबसे अधिक अहम.  


महात्मा गांधी भी कहते हैं कि 'हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम आज क्या करते हैं.'  आपने यह भी सुना ही है कि 'काल करो सो आज कर, आज करो सो अभी.' तो बस इस सिद्धांत को दृढ़ता से अपनाकर हर दिन को एक महत्वपूर्ण दिन मानें और फिर आज यानी वर्तमान के अच्छे कार्य व प्रयास को खूब एन्जॉय करते हुए अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बढ़ते चलें. निसंदेह, सफलता और ख़ुशी दोनों मिलेगी. 

 (hellomilansinha@gmail.com)    

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 05.07.2020 अंक में प्रकाशित
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Thursday, September 17, 2020

हेल्थ मैनेजमेंट: अच्छी नींद से मजबूत बनेगा इम्यून सिस्टम

                         - मिलन  सिन्हा,   हेल्थ मोटिवेटर, स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट  ...

कोविड 19 वैश्विक महामारी के मौजूदा दौर में इम्युनिटी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा चर्चा के केंद्र  में आ गया है. इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कई तरीके बताए जा रहे हैं, जिससे कि कोविड19 वायरस से बचाव हो सके. रोचक बात है कि इम्युनिटी बूस्टर के नाम से इस समय बाजार में अनेक  सामान भी बिक रहे हैं, जिनमें अधिकतर  पहले भी उपलब्ध थे, बगैर इस कथित विशेषता के विज्ञापन के. बहरहाल, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्र में काम करनेवाले विशेषज्ञों के साथ-साथ स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नागरिकों को सेहतमंद बने रहने और रोगों से बचे रहने  में मजबूत इम्यून सिस्टम की अहमियत अच्छी तरह मालूम है.
यकीनन, इसमें जीवनशैली से जुड़ी कई बातों का योगदान होता है, जिसमें नींद की बड़ी भूमिका है, जिसे व्यवहारिक जीवन में हम अपेक्षित महत्व नहीं देते.


काबिले गौर है कि यहां नींद का मतलब अच्छी नींद से है, बिछावन पर मात्र लेटे रहने से नहीं है. और अच्छी नींद का सरल अर्थ है रात में अच्छी तरह सोना जिससे कि सुबह उठने पर आप अच्छा और तरोताजा महसूस करें.

 
बताते चलें कि लाइफ में सोना यानी गोल्ड नहीं, सोना यानी स्लीप (नींद) कहीं ज्यादा अहम है.
नींद न केवल हमारी जिन्दगी में सुख का बेहतरीन समय होता है, बल्कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से यह हमारी आवश्यकता है, कोई विलासिता नहीं. नींद के दौरान शरीर रूपी इस जटिल, किन्तु अदभुत मशीन की रोजाना सफाई, रेपियरिंग और रिचार्जिंग  होती रहती है. तभी तो दिनभर की थकान,  रात की अच्छी नींद से काफूर हो जाती है और हमारी सुबह पुनः भरपूर ऊर्जा, उत्साह एवं उमंग से भरी हुई महसूस होती है. इसलिए नींद को अनेक विशेषज्ञों ने दवाइयों का महाराजा तक की उपाधि दी है.


हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि आधुनिक जीवनशैली एवं तकनीक आधारित कार्यशैली के समेकित प्रभाव ने नींद को  दुष्प्रभावित किया है. देर रात तक मोबाइल-लैपटॉप आदि पर व्यस्त रहना और सुबह देर तक सोना या चार-पांच घंटे की नींद के बाद ही किसी कारणवश जल्दी उठने की बाध्यता, आज के बहुत सारे लोगों, खासकर कामकाजी  युवाओं एवं अध्ययनरत विद्यार्थियों की आम दिनचर्या हो गई है.
इस तरह की जीवनशैली व कार्यशैली के कारण बड़ी संख्या में लोग अनेक प्रकार के स्लीप डिसऑर्डर  से परेशान रहते हैं. ऐसे लोग कई बार 7-8 घंटे तक सोने के बाद भी सुबह आलस्य, तनाव व थकान महसूस करते हैं. अच्छी तरह और मोटे तौर पर नियमित रूप से पर्याप्त नींद के अभाव में नींद का बकाया या सोने का कर्ज यानी स्लीप डेट की परेशानी होती है. इसके परिणाम स्वरुप आदमी को बराबर नींद  की तलब होती है और वह अपने काम में फोकस नहीं कर पाता है. इसके हेल्थ संबंधी अनेक दुष्प्रभाव हैं, जिसमें हमारे इम्यून सिस्टम पर होने वाला दुष्प्रभाव भी शामिल है. 


अनेक हेल्थ एवं मेडिकल रिसर्च के साथ-साथ समय-समय पर किए जानेवाले सर्वेक्षण स्पष्ट रूप से यह बताते रहे हैं कि अपर्याप्त और अनियमित नींद से जुड़ी समस्याओं से बड़ी संख्या में लोग पीड़ित हो रहे हैं. सोना चाहें और सो नहीं पाएं, यह वाकई विकट समस्या है. इससे निजात पाने के लिए  कुछ  लोग तो नियमित रूप से शराब या नींद की गोली का सेवन करते हैं, जिससे उन्हें फौरी तौर पर लाभ मिलता प्रतीत होता है, लेकिन यह आदत कई अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा करता है. इस चक्रव्यूह में फंसकर वे लोग अपना और अधिक नुकसान कर लेते हैं. ऐसा इसलिए कि अनिद्रा की समस्या से ग्रसित लोगों की इम्युनिटी तो ऐसे ही कमजोर हो जाती है और उपर से शराब और नींद की गोली का सेवन.
जाहिर तौर पर अनिद्रा से ग्रसित ऐसे लोगों के  विभिन्न शारीरिक व मानसिक प्रोब्लम्स के चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है. मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, ब्रेन स्ट्रोक, अस्थमा, डिप्रेशन, मेमोरी लॉस, स्ट्रेस, मोटापा आदि  इनमें शामिल हैं.  

   
अब सवाल है कि आज के चुनौतीपूर्ण दौर में अनिद्रा की समस्या से बचे रहने के लिए कौन से सरल उपाय हैं, जिससे हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत बना रहे? आइए जानते हैं:


- दिनभर के रूटीन में रात की नींद के लिए कम-से-कम सात घंटा नियत कर लें.

- सोच सकारात्मक, खानपान संतुलित और शारीरिक सक्रियता जरुरी है. 

- वाकिंग, व्यायाम, योगासन, प्राणायाम और ध्यान को रूटीन का हिस्सा बनाएं.

- शरीर को बराबर हाइड्रेटेड एंड ऑक्सीजिनेटेड यानी जलयुक्त व ऑक्सीजनयुक्त रखें.  

- रात का खाना हल्का और सुपाच्य हो. 

- डिनर टाइम सोने से कम-से-कम एक घंटा पहले हो.

- रात में 10 से 11 बजे के बीच सोने की और सुबह 6 बजे से पहले उठने की कोशिश करें.  

- सोने से घंटे भर पहले मोबाइल-लैपटॉप-टीवी आदि से नाता न रखें. मोबाइल को बेड से दूर रखें और साइलेंट मोड में भी. 

- सोने से पहले कोई मोटिवेशनल या अध्यात्मिक किताब पढ़ें या लाइट म्यूजिक सुनें.

- दिन में ज्यादा देर तक न सोएं. 

- सोने से पहले चाय, कॉफ़ी, शराब, सिगरेट, गुटखा आदि का सेवन न करें. 

- बिछावन साफ़-सुथरा और कमरा हवादार हो. सोते वक्त लाइट बंद कर दें.

- सोने से पहले दूध में थोड़ा हल्दी या शहद या दालचीनी मिलाकर पीने से नींद अच्छी आती है. इसके और कई लाभ हैं. 

- सोने के लिए बिछावन में जाने से पूर्व पैर धोकर पोंछ लें. फिर तलवों में सरसों के तेल से मालिश करें. नींद अच्छी आएगी. 

(hellomilansinha@gmail.com)    


                       और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं. 

# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" के सभी संस्करणों में 29.07.2020 को प्रकाशित

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Monday, September 14, 2020

योगाभ्यास के लाभ अनेक

                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अपने मोटिवेशनल सेशन के दौरान विद्यार्थियों से मिलने और उनसे विचार-विमर्श का सुअवसर मिलता रहा है. ऑनलाइन काउंसलिंग में भी उनसे जुड़ने और उनके विचारों से अवगत होने का लाभ मिलता है. इन अवसरों पर मेरी यह छोटी-सी जिज्ञासा रहती है कि छात्र-छात्राओं के दिनचर्या में योग शामिल है या नहीं अर्थात वे नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं या नहीं. कारण जो भी हो, तथ्य यह है कि योगाभ्यास अब भी बहुत सारे विद्यार्थियों के रूटीन का हिस्सा नहीं है, जब कि सदियों से योग हमारी गौरवशाली परंपरा और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग रहा है. और-तो-और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के सत्प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ) के तत्वावधान में 21 जून 2015 से प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन पूरे विश्व में होता रहा है. कोविड-19 महामारी के मद्देनजर इस वर्ष हरेक देश में इसका आयोजन सार्वजनिक रूप से तो नहीं हो पा रहा है, लेकिन यह तय है कि योग की महत्ता से परिचित सभी लोग उस दिन पूरी सावधानी के साथ इसे जीवन के एक अहम उत्सव के रूप में जरुर मनाएंगे.


कहने की जरुरत नहीं कि
विद्यार्थियों के लिए योगाभ्यास के अनगिनत लाभ हैं, चाहे वह  एकाग्रता, मेमोरी पॉवर, माइंड मैनेजमेंट, स्ट्रेस मैनेजमेंट  या शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक स्वास्थ्य से जुड़ी कोई बात हो. छात्र जीवन में योग से जुड़ने और इसके नियमित अभ्यास से छात्र-छात्राएं आज और आनेवाले अनेक वर्षों तक स्वस्थ, सानंद और सफल बने रह सकते हैं.  वैश्विक महामारी के सन्दर्भ में जब सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञ इम्युनिटी को स्ट्रांग बनाए रखने की अनिवार्यता पर जोर दे रहे हैं, तब तो योगाभ्यास की अहमियत और भी बढ़ जाती है. सवाल है कि 24 घंटे के समयावधि में छात्र-छात्राएं योगाभ्यास में कितना समय दें और कौन-कौन से योग क्रियाएं करें, जिससे  कि  उन्हें मुख्यतः अध्ययन और हेल्थ के मामले में यथोचित लाभ मिल सके. इन बातों पर चर्चा करने से पहले कुछ चीजों को जान लेना अच्छा होगा. 


योग कोई धार्मिक कर्म-काण्ड नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण विज्ञान है. यह स्वस्थ जीवन जीने की प्राकृतिक कला है. सच कहें तो योगविद्या में लोकतांत्रिक, सर्व कल्याणकारी  और समावेशी  विचार समाहित है.
छात्र-छात्राएं  जितनी नियमितता और निष्ठा से योगाभ्यास करेंगे, उन्हें उनता ही अधिक फायदा होगा. योगाभ्यास हमेशा खुले और स्वच्छ परिवेश में करें. योगाभ्यास से पूर्व आवश्यक दैनिक क्रियाकलाप से निवृत हो लें. खाली पेट और खुले मन से योगाभ्यास करना बेहतर रिजल्ट देता है. सारी योग क्रियाएं सामान्य गति से करें, किसी झटके से नहीं. हां, योग्य प्रशिक्षक के मार्ग दर्शन में योग करना सीखें तो बेहतर होगा. सूर्योदय के आसपास योग करने से बेहतर लाभ के भागी बनेंगे. अतः सुबह कम-से-कम 30 मिनट योगाभ्यास करें. इसमें 10-15 मिनट आसन, 10-15 मिनट प्राणायाम और अंत में 5-10 मिनट ध्यान यानी मेडीटेशन में लगाएं.


पहले थोड़ा फ्री हैण्ड एक्सरसाइज करके शरीर को सक्रिय और लचीला बना लें. अब 5 राउंड सूर्य नमस्कार कर लें. सूर्य नमस्कार अपने-आप में पूर्ण आसन है. विकल्प के रूप में भुजंगासन, नौकासन, ताड़ासन, त्रिकोणासन और  पाद हस्तासन में से तीन-चार आसन कर लें. इसके पश्चात दो मिनट शवासन में लेट कर रिलैक्स कर लें जिससे आपका श्वास सामान्य हो जाए. प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले यह जरुरी है. प्राणायाम में अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, कपालभति, शीतली और भ्रामरी में से कोई दो या तीन का अभ्यास जरुर करें. समय की कमी हो तो अनुलोम-विलोम और भ्रामरी अवश्य करें. इसके बाद मेडीटेशन करें.
इसके लिए सुखासन, अर्द्ध पद्मासन या पद्मासन की मुद्रा में आराम से बैठें. आखं बंद कर लें और अपने मन को बस श्वास लेने और छोड़ने पर केन्द्रित करें. मन भटके तो परेशान न हों और कोशिश करके उसे अभीष्ट कार्य में लगाएं. नियमित अभ्यास से मन को केन्द्रित या एकाग्रचित्त करना आसान होता जाएगा.  


योगाभ्यास के प्रति जैसे-जैसे विद्यार्थियों की निष्ठा बढ़ती जाएगी, उनको  इसके अधिक-से-अधिक लाभ मिलते जायेंगे. हां, इस दौरान उनको अपने विचार, आहार और व्यवहार को भी उन्नत करते रहना पड़ेगा. सबका समेकित लाभ असीमित होगा, जिसका शुरू में सही अनुमान लगाना भी मुश्किल होगा. अंत में प्रसिद्ध योग गुरु बी. के. एस. आयंगर के अनमोल वचन : योग वह प्रकाश  है जो एक बार जला दिया जाए तो कभी कम नहीं होता. जितना अच्छा आपका अभ्यास होगा, उतनी ही उसकी लौ उज्जवल होगी.

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 28.06.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com   

Monday, September 7, 2020

जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं

                   - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

जीवन है तो छोटी-बड़ी समस्या से सामना होता रहेगा, ऐसा मानकर चलना बेहतर होता है.
स्वामी विवेकानंद तो कहते हैं कि "किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं." समस्या कैसी भी हो सकती है -छोटी या बड़ी, खुद से हल होनेवाली या दूसरे किसी की मदद से सुलझनेवाली या कभी-कभी खुद-ब-खुद ख़त्म हो जानेवाली. हां, ऐसी बहुत ही कम  समस्या होती है जिसका समाधान हमारे पास नहीं होता है. फिर भी ऐसी समस्या अगर  सामने आ ही जाए, जैसा  कि आजकल कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न समस्या, तो उसके साथ बस सावधानी से जीना पड़ता है जिससे कि कम-से-कम नुकसान हो. जो भी हो एक बात तो तय है कि समस्या के सामने आने पर जो घबरा जाते हैं, उन्हें समस्या ज्यादा तंग करती है. संयम और समझदारी  से समस्या के सामने  खड़ा रहनेवाले  व्यक्ति को वह ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाती है. 


कोरोना महामारी के परिणामस्वरूप कई चीजें बदल रही हैं. कुछ मामलों में अनिश्चितता व कनफूजन से विद्यार्थी परेशान हैं. परीक्षाएं देर से हो रही हैं या कब होगी कई बार इसका ठीक से पता नहीं चलता  है. परीक्षाएं पूर्ववत होंगी या ऑनलाइन होंगी,  परीक्षा के बाद रिजल्ट कब और कैसा आएगा, सेशन लेट होगा तो उसका आगे दुष्परिणाम क्या होंगे? फाइनल इयर के विद्यार्थियों को यह चिंता सता रही है कि नौकरी के लिए कैंपस  प्लेसमेंट होगा भी या नहीं,  क्यों कि आर्थिक संकट के इस दौर में कई कम्पनियां पहले ही लोगों को नौकरी से निकाल रहे हैं. अगर सौभाग्य से प्लेसमेंट का चांस मिलता है तो बदली हुई परिस्थिति में पैकेज क्या होगा और जॉइनिंग कितने दिनों के बाद होगा? टेली काउंसलिंग में विद्यार्थियों के साथ बात करते हुए मुझे ज्ञात हुआ कि तमाम ऐसे  और अन्य अनेक सवाल सम्प्रति लगभग सभी विद्यार्थियों को कम या ज्यादा परेशान कर रहे हैं.
निसंदेह आगे भी कुछ दिनों तक ऐसे सवाल उन्हें परेशान करते रहेंगे. वर्तमान समय में यह बिलकुल भी अस्वाभाविक नहीं है. अस्वाभाविक यह होगा कि वे इससे बहुत घबरा जाएं और यह भूल कर कि जीवन का यह भी एक फेज है जो जल्द ही गुजर जायगा, आवेग-आवेश में कोई जानलेवा या गलत कदम उठा लें. दोहराने की जरुरत नहीं कि  कोई भी आत्मघाती कदम समस्या का समाधान नहीं, समस्या से पलायन है. समस्या को ख़त्म करने का प्रयास करने का प्रयास करते रहना चाहिए, न कि इस अनमोल जीवन को नष्ट करने का. 


सच तो यह है कि कोई भी स्थिति-परिस्थिति हमेशा एक समान  नहीं रहनेवाली. जैसे रात के बाद सवेरा होता है जो अंधेरे को मिटा कर दुनिया को प्रकाश से भर देता है, कुछ वैसा ही सबके जीवन में होता है. शांति से रात में नींद का आनंद लेकर सुबह एक नए आशा और उत्साह के प्रकाश से भर जाने के पीछे का दर्शन यही तो है.
हां, शाश्वत सत्य है कि जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं. जान है तभी जहान है. यूँ भी हम सबका जन्म जीने के लिए हुआ है, मरने के लिए नहीं. मरना तो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. सो, सब ध्यान जीने पर लगाना है कि कैसे इस अमूल्य जीवन को पूरी सक्रियता और सार्थकता से जी सकें? इसके लिए इस समय ही क्यों, कभी भी हड़बड़ी में कोई निर्णय नहीं लेना है और निम्नलिखित पांच अहम बातों को हमेशा याद रख कर कार्य करना है. 

 
1) उतार-चढ़ाव, सफलता-असफलता, सुख-दुःख हरेक विद्यार्थी के जीवन का हिस्सा होता है. 2) असामान्य स्थिति में शांत रहना और खुद से प्यार करते रहना बहुत लाभप्रद है. 3) दूसरे से तुलना और प्रतिस्पर्धा के बजाय खुद को बेहतर बनाने की हर संभव कोशिश लगातार करते रहें. सकारात्मक सोच और सक्रियता का  परिणाम अंततः पॉजिटिव ही होता है. 4) कुछ तो लोग कहेंगे, पर आपसे बेहतर आपको कोई नहीं जानता. सो, खुद पर अटूट भरोसा बनाए रखें. कभी भी असफलता को दिल से न लें, दिमाग से लें. बेहतर विश्लेषण कर पायेंगे और  एक बेहतर शुरुआत भी. और 5) जब भी कोई बड़ी समस्या या मानसिक परेशानी हो तो खुलकर अपने अभिभावक और अच्छे दोस्तों से मामला साझा करें. इससे दिल हल्का होगा और समाधान पाना आसान भी.


सब विद्यार्थी जानते हैं कि देश-विदेश के अनेकानेक महान लोगों की जिंदगी कई असफलताओं  के बीच से होकर अकल्पनीय सफलता-उपलब्धि-सम्मान हासिल करने की कहानी कहता है.  दरअसल, उन्होंने हर समस्या का डटकर सामना किया, मैदान छोड़कर कभी भागे नहीं. अतः  लाइफ को हमेशा कहें एक विशाल हां और नेगेटिव विचारों को उतना ही बड़ा ना. सब अच्छा होगा.

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                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 21.06.2020 अंक में प्रकाशित
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Thursday, September 3, 2020

प्रकृति से जुड़ने के असीमित फायदे

                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

कोविड 19 से बचावरूपी लॉक डाउन के कारण बेशक हमें कई छोटी-बड़ी तकलीफों से गुजरना पड़ा हो, लेकिन इसी अवधि में प्रकृति ने अपना जो रूप हम सबको दिखाया है, वह बेहद उत्साहवर्धक और खूबसूरत है. दिल्ली में दशकों से प्रदूषण से जूझती यमुना नदी तक स्वच्छ दिखने लगी, तीन सौ किलोमीटर दूर से हिमालय पर्वत श्रृंखला के छोटे-बड़े पहाड़ साफ़ नजर आने लगे, तितली- चिड़िया-जानवर उन्मुक्त विचरण करते दिखे, ध्वनि-जल-वायु प्रदूषण से दुष्प्रभावित रहनेवाले अनेकानेक मरीज बिना किसी मेडिसिन के अच्छा फील करने लगे. यकीनन, इससे हमें  प्रकृति के अनेक संदेश प्राप्त हुए.
सभी ज्ञानीजन बारबार कहते हैं कि प्रकृति हम सबका उत्तम  शिक्षक, मार्गदर्शक और सखा है, जो हमेशा हमारे कल्याण हेतु समर्पित है. जिसको भी प्रकृति को जानने, समझने और उससे सीखने की आदत लग जाती है, उसे ज्ञान और बुद्धि का अभाव नहीं रहता. 


जीने के लिए हमें क्या चाहिए सवाल के उत्तर में लगभग सभी विद्यार्थी पहले रोटी, कपड़ा और मकान की बात करते हैं. लेकिन क्या यही सबसे जरुरी चीजें हैं या और कुछ? सोचनेवाली बात है कि वे उन तीन चीजों की चर्चा नहीं करते जिसके बिना  जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते और रोटी, कपड़ा और मकान भी इन्हीं तीन चीजों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है. क्या है ये तीन चीजें? हवा, पानी और धूप. चूंकि ये तीनों चीज प्रकृति द्वारा सबको  मुफ्त में मिल जाती हैं, शायद इसलिए कोई इन्हें गिनती में नहीं रखता. सभी विद्यार्थियों के लिए यह चिंतन का एक अहम विषय होना चाहिए, खासकर विश्वव्यापी संकट की इस घड़ी में कि क्या हम हवा के बिना जी सकते हैं, क्या हम पानी के बिना रह सकते हैं और क्या धूप और सूरज की किरणों के बिना जीवन संभव है? मुझे विश्वास है कि इस चिंतन-विश्लेषण के बाद लगभग सभी विद्यार्थियों को प्रकृति की महिमा का बेहतर एहसास होगा और वे खुद प्रकृति के साथ जुड़ने और अपने आसपास के लोगों को जोड़ने का सार्थक प्रयास अवश्य करेंगे. सच कहें तो प्रकृति से जुड़ने और जोड़ने का काम बहुत आसान, आनंददायक और हर दृष्टि से लाभप्रद है. आइए जानते हैं, कैसे? 


सदियों से विविधता में एकता में विश्वास करनेवाले इस प्राचीन तथा प्रगतिशील देश में जैव विविधता की आवश्यकता और खूबसूरती दोनों की बहुत अहमियत है. लिहाजा जैव विविधता  को बचाए और बनाए रखने के लिए विद्यार्थियों को कुछ-न-कुछ करना चाहिए. सनातन भावना यह है कि हम साथ-साथ हैं और मिलकर प्रगति पथ पर अग्रसर होंगे. कहते हैं अच्छा काम करने के लिए हर वक्त अच्छा होता है. सो, विद्यार्थी आज से ही शुरू करें प्रकृति से सार्थक रिश्ता बनाने का सिलसिला. सुबह  सूर्योदय के समय उठें और अपने कमरे से बाहर निकल कर सूरज को उगते हुए देखें. आसपास की प्राकृतिक सक्रियता को महसूस करें. मसलन पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों और पेड़-पौधों की सक्रियता. ऐसा अनुभव होगा कि सब कुछ प्रकृति द्वारा निर्धारित एक अलिखित नियम के तहत स्वतः हो रहा है. अब एक छोटी शुरुआत करें. जहां हैं - गांव, क़स्बा, नगर, महानगर वहां एक छोटा पौधा लगाएं. तुलसी, नीम, पीपल, आम, कटहल, नींबू, आंवला या अन्य कोई  पौधा जो फलदार, फूलदार या छायादार प्रजाति का हो. उसे रोज पानी दें, उसे निहारें, उसमें होनेवाले हर परिवर्तन को गौर से ऑब्जर्व करें, रोज 5-10 मिनट ही सही. विश्वास करें, जिस दिन उस पौधे से आपका भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाएगा, उसके नए पत्ते, फूल आदि सब आपको आकर्षित और आनंदित करेंगे. प्रकृति से जुड़ने के इन प्रयासों को दिनचर्या का हिस्सा बना लें. 


हमारे देश के शहर-महानगर में रहनेवाले लोग छुट्टियों में अपने गांव या किसी प्राकृतिक स्थान में कुछ वक्त बिताकर हैप्पी और हेल्दी फील करते हैं. स्कूल-कॉलेज के अनेक विद्यार्थियों को स्टडी टूर में प्राकृतिक परिवेश में कुछ समय बिताने और एक अभिनव आनंद का भागी बनने का मौका मिलता है. तालाब, झील, नदी और सागर की  निकटता से  क्रिएटिविटी को पंख लगते हैं. इसका सबूत है करोड़ों रचनाएं और असंख्य कलाकृतियां. इतना ही नहीं न्यूटन सहित कई वैज्ञानिकों  ने प्रकृति के मिजाज एवं रीति-नीति को जानने-समझने के क्रम में कई बड़े आविष्कार किए. सच कहें तो प्रकृति विद्यार्थियों के लिए असीमित ज्ञान और प्रेरणा का स्रोत है. प्रकृति के सानिद्ध में रहने से आंतरिक और अध्यात्मिक उर्जा में वृद्धि होती है. उनका सोच ग्लोबल, इंक्लूसिव और डेमोक्रेटिक बनता है. उन्हें प्रकृति और हर जीव के बीच के अत्यंत गहरे संबंध का बोध होता है.
तभी तो अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं, "प्रकृति में गहराई से देखिये और आप हर एक चीज बेहतर ढंग से समझ सकेंगे."  

 (hellomilansinha@gmail.com)     

     
               
                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
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