Sunday, August 30, 2020

आत्मनिर्भरता के मायने

                                         - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

कोरोना संकट से उत्पन्न आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य समस्याओं से निबटने के लिए केंद्र सरकार के स्तर पर अनेक कदम उठाए जा रहे हैं. इस अभूतपूर्व और अकल्पनीय संकट को भी अवसर में बदलने का आह्वान देश के प्रधानमंत्री ने किया है और देशवासियों से देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मिलकर काम करने का आग्रह भी किया है. निःसंदेह, यह बहुत बड़ा और चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है. विचारणीय सवाल है कि देश को आत्मनिर्भर बनाने में अपना योगदान सुनिश्चित करने के क्रम में खुद को भी आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास जरुरी है. विद्यार्थियों के लिए तो यह एक स्वर्णिम मौका है, जिससे अपने लक्ष्यों को हासिल करना और जीवन को आत्मविश्वास और सम्मान से जीना आसान होगा. आइए, जानते हैं कि छात्र-छात्राओं  के लिए आत्मनिर्भरता के मायने क्या हैं और उसके लिए वे कितना कुछ आसानी से सकते हैं?


आत्मनिर्भरता का सरल अर्थ है अपने पैरों पर खड़ा होना अर्थात स्वावलंबी बनना. जो काम खुद कर सकते हैं, उसे करने का  पूरा प्रयास करना. औपचारिक शिक्षा हो या स्किल डेवलपमेंट की बात, सबका मूल उद्देश्य विद्यार्थियों को उसी ओर ले जाना है.  लेकिन क्या व्यवहारिक स्तर पर  यह दिखाई पड़ता है ? स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में पढ़ने एवं अच्छी डिग्री लेने के बाद भी रोजगार के क्षेत्र तथा निजी जिंदगी में कई विद्यार्थी अच्छा मुकाम हासिल नहीं कर पाते हैं. वे आत्मनिर्भर होने के बजाय कई छोटे मामलों में भी घरवालों या अन्य किसी पर  निर्भर रहते हैं. तो फिर क्या करें? 
 
विद्यार्थियों को सबसे पहले खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाना पड़ेगा और साथ ही स्वयं को आत्मनिर्भरता के भाव से भरना पड़ेगा. इसके लिए अपनी दिनचर्या की समीक्षा करते हुए  नेगेटिव व्यस्तताओं (इंगेजमेंट) को बाय-बाय करें और  यथाशीघ्र पॉजिटिव इंगेजमेंट के साथ जुड़ना प्रारंभ करें. इस दृष्टि से एक व्यवहारिक टाइम टेबल बनाकर उसपर अमल शुरू कर दें. उसमें अपने लक्ष्य के अनुरूप प्राथमिकता यानी कौन काम पहले, कौन बाद में, का निर्धारण स्वयं करें. बहुत जरुरी हो तो अभिभावक-शिक्षक की सलाह लें.  
 
हर शैक्षणिक संस्थान में अध्ययनरत सभी अच्छे विद्यार्थी सेल्फ स्टडी पर ज्यादा ध्यान देते हैं. इसलिए उन्हें सामान्यतः कोचिंग और ट्यूशन पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है. इससे उनका पैसा, कोचिंग या ट्यूशन के लिए आने-जाने का समय और एनर्जी सब बच जाता है. खुद पढ़ने और समझने के अभ्यास से आत्मविश्वास में जो बढ़ोतरी होती है, वह तो बहुत अहम है ही.  


आजकल बहुत सारे कोर्स ऑनलाइन किए जा सकते हैं, जिनमें कुछ कोर्स नया स्किल सीखने से संबंधित भी हैं. ऐसे स्किल सीखकर विद्यार्थी घर बैठे कुछ धन उपार्जन कर सकते हैं जो उन्हें अध्ययनकाल में ही आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लायक बनाते हैं. इससे अनेक विद्यार्थियों के घरवालों को भी राहत मिलती है और उन्हें अपने संतान पर गर्व भी होता है. हां, छात्र जीवन  में अपनी पढ़ाई-लिखाई और धन उपार्जन में समय और उर्जा संतुलन कायम रखना बहुत जरुरी है. 


फ़ास्ट लाइफ के वर्तमान समय में हेल्दी खाने की अनिवार्यता से कोई इनकार नहीं कर सकता है. बाजारू खाना या जंक फ़ूड पर निर्भरता नुकसानदेह है. कहते हैं खाना पकाना एक कला है और आज लड़का-लड़की सबके लिए एक जरुरत भी. लॉक डाउन के समय या गर्मी की छुट्टी आदि के समय घर पर  कुकिंग आसानी से सीखी जा सकती है. ऐसा संभव न हो तो कुकिंग क्लास ज्वाइन करके इस कला में पारंगत हुआ जा सकता है. इसके अभी और आगे सालों तक बहुत लाभ मिलेंगे. 


कहते हैं मनी सेव्ड इज मनी अर्नड अर्थात पैसे बचाना एक प्रकार से पैसा कमाना है. यह भी उतना ही सच है कि सेविंग्स यूँ ही नहीं हो जाती. उसके लिए प्लान करना पड़ता है. इसका आसान तरीका है कि किसी भी स्थिति में निरपेक्ष भाव से अपने सभी खर्चों का विश्लेषण करें. उसमें जो जरुरी हैं, उन्हें एक पन्ने पर साफ-साफ़ लिख लें और बाकी के आइटम को एक अलग पन्ने पर बस लिखकर छोड़ दें. अब देखें कि अगर सिर्फ जरुरी आइटम पर खर्च किए जाएं तो कितना पैसा लगेगा. उस राशि में 10 प्रतिशत और जोड़कर बाकी के पैसे को बचत के मद में डालने का प्रयास करें. साल भर इस तरह फाइनेंसियल प्लानिंग से चलने पर आप पायेंगे कि आपने छोटी-छोटी राशि बचत करके एक बड़ा अमाउंट जमा कर लिया है जो अंततः आपके बहुत काम आनेवाला है. इसका एक और फायदा यह  होगा कि आप फिजूलखर्ची की आदत से छुटकारा पा सकेंगे. इससे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बने रहने में काफी मदद मिलेगी. आत्मनिर्भरता का अदभुत आंनद भी मिलेगा.

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 07.06.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com     

Monday, August 24, 2020

पुस्तक से बनाए रखें दोस्ती

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

बचपन से ही पुस्तकों से हमारा रिश्ता जुड़ जाता है. वर्णमाला की रंग-बिरंगी किताब से प्रारंभ हुई यह यात्रा धीरे-धीरे विस्तृत होती जाती है. हर काल में ज्ञान के प्यासे विद्यार्थियों के लिए यह यात्रा बहुत रोचक, सुखद और लाभकारी रही है. सब जानते हैं कि ज्ञान का सागर जितना विस्तृत है, उतना ही गहरा भी और पुस्तकें ज्ञान और कालान्तर में सफलता और सम्मान हासिल करने में  अहम भूमिका निभाती है. बहरहाल इन्टरनेट, फेसबुक, इन्स्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि के मौजूदा दौर में कोर्स की किताबों  के अलावे साहित्य, इतिहास, दर्शन, अध्यात्म आदि की किताबों को पढ़ने का चलन कुछ कम हो रहा है, अलबत्ता बहुत सारे विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार ऑनलाइन और ऑफलाइन  कुछ-कुछ पढ़ते रहते हैं. लेकिन क्या इतना काफी है और क्या सभी  विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में किताबों की अहमियत से पूर्णतः परिचित हैं ? सच पूछें तो  कुछ विद्यार्थियों को छोड़कर जो पुस्तकों को सिर्फ डिग्री पाने का साधन मानते हैं, बाकी सभी विद्यार्थी कमोबेश यह मानते  हैं कि आज के चुनौती भरे दौर में  पुस्तकों से दोस्ती बनाए रखना बीते सालों की तुलना में ज्यादा जरुरी है, बेशक  किताबों का स्वरुप और उसको पढ़ने का तरीका कुछ भिन्न ही क्यों न हो. 

 
दरअसल, मानव जीवन में पुस्तकों का बड़ा महत्व है. मानव सभ्यता के विकास का दस्तावेज हैं पुस्तकें, प्राचीन काल से अबतक के समय में असंख्य लोगों की रचनात्मकता, कल्पनाशीलता, वैज्ञानिकता, संघर्षशीलता आदि को बखूबी रेखांकित करती है पुस्तकें. साथ ही विनाश और आपदा के पलों का विश्लेषण भी यहां मौजूद है. जानेमाने रंगकर्मी सफदर हाशमी अपनी एक कविता में कहते हैं, "किताबें करती हैं बातें/बीते ज़मानों की/दुनिया की, इंसानों की/आज  की, कल की/एक-एक पल की/ख़ुशियों की, ग़मों की/फूलों की, बमों की/जीत की, हार की/प्यार की, मार की/क्या तुम नहीं सुनोगे/इन किताबों की बातें?/किताबें कुछ कहना चाहती हैं/तुम्हारे पास रहना चाहती हैं... ..." ज्ञातव्य है कि किताबों के माध्यम से संसार भर के देशों के साहित्य, उनका खानपान, उनकी जीवनशैली, वहां की जलवायु, उनकी शिक्षा और शासन पद्धति आदि न जाने कितनी बातें हम घर बैठे जान पाते हैं. इससे हम एक दूसरे के कॉमन लिंक्स और प्राथमिकताओं के विषय में जानकार परस्पर करीब आते हैं. एक प्रकार से पुस्तक हमारे लिए फ्रेंड, फिलोसफर और गाइड है.
अमेरिकी शिक्षाविद् चा‌र्ल्स विलियम एलियोट तो कहते हैं, "किताबें  दोस्तों में सबसे शांत और स्थिर हैं; वे सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान हैं, और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान." तो आइए आज जानते हैं कि पुस्तकों से  दोस्ती को कैसे बनाए रखा जाय और इस दोस्ती के कौन-कौन से बड़े लाभ हैं.  
    
दिनभर के टाइम टेबल की समीक्षा करते हुए कोर्स के किताबों के अलावा अन्य किताबों के लिए रोजाना कुछ समय निर्धारित कर दें. शुरू में अपने रूचि के विषयों से संबंधित केवल दो किताबों को साथ रख लें. दिन में साहित्य या मैनेजमेंट या जनरल स्टडीज  की एक अच्छी किताब लें. रात में सोने से पहले कोई मोटिवेशनल या अध्यात्मिक किताब पढ़ें. इससे आपको प्रेरणा, प्रोत्साहन और मन की शांति मिलेगी. दोनों तरह की किताबों से ज्ञानवर्धन तो होगा ही. हां, आपको  कोर्स की किताबों को पढ़ने के बाद जब भी ब्रेक या अवकाश मिले, तब भी इन किताबों को पढ़  सकते हैं. इस सिलसिले को अगले 60 दिनों तक जारी रखने  से यह आपकी आदत में शुमार हो जाएगा और फिर तो आप किताबों की मैजिकल संसार के आजीवन सदस्य बन जायेंगे. 


अब कुछ बातें इसके असीमित फायदों की. जब और जहां इच्छा हो पुस्तक पढ़ना आसान है. खासकर तन्हाई और लॉक डाउन जैसी स्थिति की सबसे अच्छी हमसफर होती हैं किताबें. अपनी रूचि की किताबों को पढ़ने से अच्छा फील होता है. इससे आगे पढ़ने की इच्छा बलवती होती है. इस प्रक्रिया में एकाग्रता से अध्ययन करने का अभ्यास हो जाता है. यकीनन अच्छी किताबें विद्यार्थियों को अच्छी जानकारी और ज्ञान देने के अलावे उन्हें प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मोटीवेट भी करती हैं. अच्छा वक्ता बनने में इससे बहुत मदद मिलती है. दिमाग अच्छे विचारों और पॉजिटिव बातों  में व्यस्त रहता है. नकारात्मकता में कमी से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है. परिणाम स्वरुप स्ट्रेस की समस्या नहीं होती और अच्छे कार्यों  में समय बिताना अच्छा लगता है. ऐसे में मेमोरी पॉवर भी उन्नत होता है. इन सब पॉजिटिव बातों का समग्र प्रभाव रात में अच्छी नींद के रूप में सामने आता है. किताबों से रिश्ते के और भी कई छोटे-बड़े फायदे हैं. तभी तो नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध
अमेरिकी उपन्यासकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे गर्व से कहते हैं, "एक किताब जितना वफादार कोई दोस्त नहीं है."

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 31.05.2020 अंक में प्रकाशित
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Friday, August 21, 2020

वर्ल्ड सीनियर सिटीजन्स डे: सुबह की हो सही शुरुआत

                                          - मिलन  सिन्हा,  स्ट्रेस मैनेजमेंट एंड वेलनेस कंसलटेंट

हमारे देश में सीनियर सिटीजन यानी बुजुर्गों की संख्या ग्यारह करोड़ से ज्यादा है. कोविड -19 महामारी के मौजूदा दौर में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में बुजुर्ग ज्यादा हैं. ऐसे भी सीनियर सिटीजन से संबंधित ख़बरें हमें रोजाना मिलती रहती हैं. इनमें अच्छी ख़बरें कम और बुरी ज्यादा होती हैं. संयुक्त परिवारों के टूटने और एकल परिवारों के बढ़ते जाने के साथ-साथ अन्य कई जाने-अनजाने कारणों से बुजुर्गों की शारीरिक और मानसिक समस्याएं बढ़ती जा रही है. बुजुर्गों को सम्मान देना, उन्हें हेल्दी और हैप्पी रखना आज की पीढ़ी का नैतिक कर्तव्य और समाज का एक बड़ा दायित्व है. ज्ञातव्य है कि डब्लूएचओ अर्थात विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1982 में  "वृद्धावस्था को सुखी बनाइए" का आह्वान किया था.

 
सवाल है कि तमाम दिक्कतों के बावजूद हमारे सीनियर सिटीजन कैसे स्वस्थ और सानंद रहें. यकीनन इसमें उनकी अपनी भूमिका अहम है और इसके लिए मॉर्निंग की शुरुआत गुड होना बहुत जरुरी है. इससे उनके दिनभर की गतिविधियां भी अच्छी बनी रहती है. ऐसे भी हेल्थ एक्सपर्ट्स स्वास्थ्य और सुबह के समय के बीच के गहरे रिश्ते की बात करते रहते हैं.  यहां गुड मॉर्निंग का अर्थ सुबह सो कर उठने के बाद पहले दो  घंटे का अपने स्वास्थ्य के लिए सदुपयोग सुनिश्चित करना है. 


आइए जानते हैं कि सुबह के पहले दो घंटे में क्या-क्या करना चाहिए. 

  
-सुबह आंख खुलने के बाद बिछावन पर लेटे हुए ही तीन-चार मिनट अपने शरीर के विभिन्न अंगों को देखते हुए उसे हिलाएं जिससे धीरे-धीरे शरीर में रक्त संचरण बढ़े. फिर आराम से यानी बिना किसी  झटके के उठकर बैठें और अपने दोनों हथेली को तथा बाद में अपने दोनों  पांव के तलबों को धीरे से मलें .


-इसके पश्चात् बिछावन से उतरने से पूर्व करीब एक मिनट तक अपने दोनों पांवों को लटकाकर  बैठे रहें. अब धीरे से उतरकर आईने में खुद को देखें और मुस्कुराते हुए खुद का अभिवादन करें.
 


-फिर  कहीं भी आराम से बैठ कर धीरे-धीरे कम-से-कम एक गिलास गुनगुना पानी पीएं और साथ में यह सोचें और महसूस करें कि इस पानी से आपका शरीर सींचित हो रहा है और आप हाइड्रेटेड फील कर रहें हैं. कहते हैं न जल ही जीवन है. तो सुबह पानी पीने के बाद आप बेहतर महसूस करेंगे. 


-बताने की जरुरत नहीं कि हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत पानी है, जो दिनभर में हमारे शरीर से कई तरीके से निकलता रहता है. लिहाजा शरीर में पानी का अपेक्षित स्तर बनाए रखने के लिए रोजाना दिनभर में तीन से चार लीटर पानी पीने की सलाह डॉक्टर सहित सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञ दिया करते हैं. यहां यह स्पष्ट करना जरुरी है कि अगर कोई व्यक्ति किसी रोग विशेष से पीड़ित हैं  और डाक्टरी इलाज में हैं तो डॉक्टर की सलाह के मुताबिक़ ही पानी पीएं.  

 
-अब घर पर ही थोड़ा चहलकदमी करें, 3-4 मिनट बस. इससे शरीर के हर अंग में अपेक्षित रक्त संचार होगा और सारे अंग और सक्रिय होंगे. 


-फिर टॉयलेट-वाशरूम का काम संपन्न कर लें यानी अपने शरीर का वेस्ट क्लीयरेंस अर्थात मल-मूत्र त्याग कर लें. आप हल्का और अच्छा महसूस करेंगे. 


-बाहर निकलकर कुर्सी या बिछावन पर आराम से बैठें और आंख बंद कर एक मिनट तक गहरी सांस लें और अपने माता-पिता-शिक्षक-मित्र-इष्ट देव आदि को याद कर उनके प्रति आभार व्यक्त करें, उन्हें मन-ही-मन थैंक्स कहें.


-अब तुलसी के पांच पत्तों को बढ़िया से धोकर एक-एक  दाना गोलमिर्च व लौंग के साथ बढ़िया से चबाते हुए घर में ही चहलकदमी करें. जो मधुमेह से पीड़ित नहीं हैं, वे इसके बाद एक चम्मच मधु यानी शहद का सेवन करें. इसके बदले एक चम्मच चव्यनप्राश का सेवन कर सकते हैं. इन सबके सेवन से आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होगा और आप सामान्य तौर पर निरोगी रह पायेंगे. महामारी के इस दौर में तुलसी, गिलोय, गोलमिर्च, दालचीनी, लौंग आदि का काढ़ा पीना बेहतर विकल्प है.


-अब आपका शरीर योगाभ्यास के लिए तैयार हो जाता है  यानी आप अच्छी तरह आसन, प्राणायाम और ध्यान कर सकते हैं. पहले पवनमुक्तासन समूह के तीन-चार आसन अपनी सुविधा और जरुरत के हिसाब से करें. 


-इसे और आसान भाषा में समझाएं तो सिर से लेकर पांव की ऊँगलियों तक शरीर के हर जोड़ को आराम से चला लें. इससे आपका शरीर लचीला हो जाएगा. प्राणायाम में आप अनुलोम-विलोम और भ्रामरी से शुरू कर सकते हैं. 


-इसके बाद आप पांच मिनट ध्यान में बैठें. इसमें और कुछ नहीं तो केवल श्वास को आते-जाते देखें. इतना कुछ करने में सामान्यतः 15-20 मिनट लगेंगे. अब दो-तीन मिनट शवासन में लेटकर खुद को रिलैक्स कर लें. 


-जो लोग योगाभ्यास नहीं करते, उन्हें भी इसकी आदत डालने की कोशिश करनी चाहिए क्यों कि योग का साथ हो तो स्वस्थ रहना आसान हो जाता है. बहरहाल, योग न करनेवाले लोग खुले स्थान पर रोज 20-30 मिनट टहल लें तो भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा.


-कोरोना महामारी के वर्तमान समय में अपने घर के छत पर या अपने कंपाउंड में ही टहलना उचित है. सुबह सूर्योदय के बाद टहलना स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर माना गया है. काबिले गौर बात है कि उम्र के इस पड़ाव में अतिउत्साह में कोई भी काम झटके या बहुत तेजी में करना मुनासिब नहीं होता है. अतः आराम से टहलें. अकेले टहलने के बजाय दो गज दूरी बनाकर किसी मित्र या परिजन के साथ टहलें तो एकाधिक कारणों से बेहतर फील करेंगे. 


-इन सब कार्यों से निवृत होने के बाद आपका शरीर पौष्टिक आहार मांगता है. कहते हैं जैसा अन्न, वैसा मन. यह भी कहा गया है कि सुबह का नाश्ता सबसे ज्यादा पौष्टिक होना चाहिए. 


-पौष्टिक आहार का मतलब ऐसा आहार जो सुपाच्य हो और जिससे शरीर को प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, फैट, मिनरल्स और विटामिन की अपेक्षित मात्रा मिल जाए. लिहाजा, अपने शरीर  की जरूरतों के मुताबिक यथासंभव सात्विक खाना खाएं. 


-कोरोना के दौर में शरीर को विटामिन सी और विटामिन डी की विशेष जरुरत है. नींबू, मौसंबी, आंवला सहित अनेक फल और सब्जी के सेवन से विटामिन सी प्राकृतिक रूप से प्राप्त किए जा सकते हैं. विटामिन डी का सबसे सस्ता और सुलभ स्रोत है धूप. रोज थोड़ी देर धूप में रहें. विकल्प के रूप में स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह से विटामिन डी सप्लीमेंट लें. 


-हां, जब भी खाना खाएं, आराम से खूब चबाकर और स्वाद लेकर खाएं. खाते वक्त टीवी न देखें, मोबाइल पर बात न करें और न ही आपस में अनावश्यक बातचीत करें. 


-कोशिश करें कि खाने के तुरत पहले, खाने के बीच में और खाने के तुरत बाद पानी न पीएं. इससे आपका पाचन तंत्र बेहतर काम करेगा और आप जो कुछ खायेंगे उसका अपेक्षित लाभ आपको मिलेगा. 


कहने का आशय यह कि मॉर्निंग के पहले दो घंटे बुजुर्गों के अगले 22 घंटे की दिशा-दशा निर्धारित करने में बड़ी भूमिका अदा करते है. इसे अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल कर बुजुर्गों के लिए स्वस्थ और सानंद रहना आसान हो जाएगा.
यकीनन, इसमें उनके घरवालों या साथ रहनेवाले लोगों की भी अहम भूमिका होगी.  (hellomilansinha@gmail.com) 



                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं. 
# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" के सभी संस्करणों में 19.08.20 को प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Tuesday, August 18, 2020

गांव-समाज से रहे अटूट रिश्ता

                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

देश के अलग-अलग महानगरों-शहरों से लोगों का अपने-अपने गांव-घर लौटने का सिलसिला जारी है. इनमें बहुत सारे विद्यार्थी भी शामिल हैं. अनुमान है कि इनमें से अधिकतर विद्यार्थी स्थिति सामान्य होने तक अभी अपने घर पर ही रहेंगे. हमारा देश गांवों का  देश है. अभी भी लगभग सत्तर फीसदी आबादी गांवों में रहती है. हाल के वर्षों में देश के प्रायः सभी गांवों में सड़क और बिजली की सुविधा के साथ-साथ इंटरनेट की सुविधा भी उपलब्ध हो गई है, पर कई बुनियादी बातों पर ध्यान देना जरुरी है. सौभाग्य से ग्रामीण इलाके में रहनेवाले लोग प्रकृति प्रेमी हैं. मुख्यतः खेती और उससे जुड़े कार्यों में संलग्न रहनेवाले ये लोग प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीवन जीने में आनंद का अनुभव करते हैं.


समझदार विद्यार्थी अनुकूल-प्रतिकूल हर परिस्थिति में कुछ-न-कुछ अच्छा सीखने और उसे  जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं. वे इनोवेटिव तरीके से अपने ज्ञान और स्किल का उपयोग करने में भी आगे रहते हैं. प्राकृतिक माहौल में रहने से विद्यार्थीगण  ऐसे भी ज्यादा उर्जावान, उत्साहित और क्रिएटिव महसूस करते हैं. शहर-महानगर के अपने-अपने शैक्षणिक संस्थान में छात्र-छात्राएं किताबी ज्ञान के अलावे वहां की तेज रफ़्तार जीवनशैली के कई अच्छे-बुरे पक्षों से परिचित होने के साथ-साथ अन्य अनेक नई चीजें अपने अनुभव से सीखते हैं. हां, महामारी के कारण उत्पन्न  यह असामान्य समय उन्हें अपने ज्ञान व अनुभव की उस पूंजी को अपने-अपने गांव-कस्बे-समाज  को उन्नत बनाने की दिशा में उपयोग में लाने का बड़ा अवसर प्रदान करता है. आखिर कैसे?


छात्र-छात्राएं जितने भी दिन अपने गांव में रहें, एक-दो बार  पूरे गांव में घूमकर उसे अपनी आँखों से अच्छी तरह देखें, उसे महसूस करें, जहां बात करने का मन हो लोगों से खुलकर बात करें. इससे उन्हें गांव की वास्तविक स्थिति को जानने-समझने में मदद मिलेगी और उनके बहुत सारे भ्रम  दूर होंगे. उन्हें स्थिति का सही आकलन करने में भी आसानी होगी. घर लौट कर सोचें कि कहां-कहां  कुछ सुधार की गुंजाइश है, जिसे कम समय में अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है. बस अब उसके लिए प्रयास शुरू कर दें. यकीनन, गांव के बड़े-बुजुर्गों की सलाह और गांववालों के सहयोग से समाधान तक पहुंचना मुश्किल नहीं होगा.
आइए, दो अहम मुद्दों जिनपर विद्यार्थियों की निगाह जरुर जायेगी, की थोड़ी चर्चा कर लेते हैं.  
   
सभी विद्यार्थी जानते हैं कि अप्रैल-मई-जून का महीना आमतौर पर हमारे देश में बहुत गर्मी का समय होता है. हर जगह पानी की समस्या से बड़ी आबादी को जूझना पड़ता है. मानसून के आने पर ही राहत मिलती है. काबिलेगौर बात है कि पिछले कई वर्षों से देश में मानसून की बारिश अच्छी रही है. फिर भी जल संचयन और प्रबंधन की अच्छी व्यवस्था के अभाव में जल का अभाव बना रहता है. इस स्थिति को सुधारने में छात्र-छात्राएं सार्थक योगदान कर सकते हैं. पहले तो वे यह जानने का प्रयास करें कि उनके गांव के लोगों को पानी कैसे मिलता है - कुआं, हैण्ड पंप, बोरिंग, तालाब, नदी, नल या अन्य किसी तरीके से. फिर  पानी के संचयन पर फोकस कर सकते हैं. गांव में कितने निजी और सार्वजनिक तालाब है. उनकी स्थिति कैसी है? बरसात के पानी को कैसे संरक्षित करते हैं या कि वह शुद्ध पानी यूँ ही बह जाता है और उसका संचयन नहीं हो पाता. पीने के पानी की गुणवत्ता, पानी का जाने-अनजाने अपव्यय आदि भी पानी से जुड़े अहम मुद्दे हैं.
 
सभी विद्यार्थी जानते हैं कि पेड़-पौधे की संख्या घटती जाए तो ऑक्सीजन की मात्रा घटती जाएगी और कई कारणों से कार्बन डाईआक्साइड जैसे विषैले गैस की मात्रा बढ़ती जाएगी जो हमारे जीवन के लिए बहुत घातक होगा. पेड़-पौधों से जल-चक्र का भी गहरा रिश्ता है. उसे भी क्षति पहुंचेगी. अनाज-फल-फूल से लाभान्वित होने से भी हम वंचित रहेंगे. मतलब एक साथ कई बड़ी हानि के हम भागी बनेंगे. इन सबसे बचे रहने का सीधा और सरल उपाय है गांव और गांववालों को हर तरह से तैयार करना जिससे कि बरसात के दिनों में निजी एवं सार्वजनिक जमीन पर योजनाबद्ध तरीके से बड़े पैमाने पर फल, फूल, औषधीय आदि हर तरह के पेड़-पौधे लगाए जा सकें. इस सामाजिक कार्य में गांव के स्कूली बच्चों का सहयोग भी बहुत लाभकारी सिद्ध होगा.

  
कहने की जरुरत नहीं कि अगर छात्र-छात्राएं अपने-अपने गांवों में इस तरह का कोई एक भी सामाजिक कार्य हाथ में लेकर उसे गांववालों के सहयोग से पूरा करने का प्रयास करें तो न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और उनका अपने गांव-समाज से एक पॉजिटिव रिश्ता डेवलप होगा, बल्कि हर साल वे अपने गांव में आने और उसके  विकास में कुछ योगदान करने को लालायित भी रहेंगे. समाज और देश को तो इससे  बहुत लाभ होगा ही. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
                      और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 24.05.2020 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com    

Thursday, August 13, 2020

प्रशंसा के पात्र

                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...

जीवन विविध अनुभवों से गुजरते हुए आगे बढ़ते रहने का नाम है. जीवन में आगे क्या-क्या होनेवाला है, इसका बस थोड़ा अनुमान ही लगाया जा सकता है. सच तो यह है कि जीवन न तो 20-20 मैच है और न ही एक टेस्ट मैच. इसमें तो असीमित ओवर के अनेक मैच खेले जाते हैं. इसका गणित सरल होते हुए भी जटिल प्रतीत होता है. हां, यह तो सब जानते हैं कि संसार में कोई भी अमर नहीं है. जिसका भी जन्म हुआ है, उसकी कभी-न-कभी मृत्यु अवश्य होगी. फिर भी सत्य तो यही है कि संसार में सभी का जन्म जीने के लिए होता है. मृत्यु तो एक प्राकृतिक परिणिति है. उसे जब आना होगा वह आएगी. कब आएगी, बता कर तो आएगी नहीं. तो फिर हम सबका फर्ज क्या है? बस यही न कि जीवन को इसकी समग्रता में जीने का हरसंभव प्रयास करते रहें और इसे गतिशील बनाए रखें. नोबेल प्राइज विजेता  महान वैज्ञानिक  अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं, "ज़िन्दगी साइकिल चलाने के जैसा है. बैलेंस कायम रखने के लिए आप को बस चलते रहना है.' 

  
 देश भर में अनेक विद्यार्थी अपने गांव, शहर या प्रदेश से दूर अन्य स्थान पर अध्ययन के लिए जाते हैं और उन्हें इसके लिए कई महीनों या सालों तक वहां रहना पड़ता है. घर से दूर रहकर अध्ययन करने के कई कारण होते हैं. मसलन जिस विषय या कोर्स की वे पढ़ाई करना चाहते हैं, उसकी सुविधा उनके यहां  उपलब्ध नहीं है  या  सुविधा तो है पर आर्थिक या अन्य किसी कारण से उन्हें बाहर जा कर किसी संस्थान में पढ़ना पड़ता है. सोचनेवाली बात है कि अगर अपने गृह स्थान में या उसके आसपास ही छात्र-छात्राओं को उनकी शैक्षणिक योग्यता के अनुरूप उपयुक्त किसी शैक्षणिक संस्थान में पढ़ने की सुविधा मिल जाए तो अधिकांश विद्यार्थी वहीँ  पढ़ना चाहेंगे. नाहक बाहर क्यों जायेंगे?
विचारणीय प्रश्न है कि जो भी विद्यार्थी  बाहर रह कर अध्ययन करते हैं उन्हें कितने प्रकार की छोटी-बड़ी परेशानियों के बीच सब कुछ मैनेज करना पड़ता है. घर पर रह कर पढ़नेवालों को इन परेशानियों से होकर नहीं गुजरना पड़ता है. साथ ही उन्हें अपने अभिभावक के  सानिद्ध का सुख भी हासिल होता है.


 कहने की जरुरत नहीं कि व्यावहारिक तौर पर किसी भी आपदा या विपत्ति के वक्त घर से दूर किसी अन्य स्थान में रहकर अध्ययन करनेवाले विद्यार्थियों के अभिभावक के रूप में उनके देखभाल की पहली जिम्मेदारी उनके कॉलेज-यूनिवर्सिटी-इंस्टिट्यूट के प्रमुख और उनसे ऊपर वहां के जिलाधिकारी की होती है. फिर अगर लॉक डाउन जैसी अप्रत्याशित और सर्वथा अकल्पनीय स्थिति उत्पन्न हो जाए, तो यह जिम्मेदारी थोड़ी ज्यादा हो जाती है. इस जिम्मेदारी  का निर्वहन बेहतर तरीके से हो सके इसके लिए समाज और सरकार को इन विषयों पर गंभीर चिंतन करना चाहिए और आगे के लिए एक पुख्ता रोडमैप बनाना चाहिए. इससे भविष्य में एक साथ कई आर्थिक, सामाजिक तथा शैक्षणिक समस्याओं से आसानी से निपटना संभव हो जाएगा. 


बहरहाल, सोचिए जरा कि जब छात्र-छात्राओं के सामने अचानक अपने सीमित संसाधन के साथ घर से दूर अपना गुजारा करने, महामारी से बचे रहने एवं तमाम डराने वाले पुष्ट-अपुष्ट ख़बरों की गंभीर चुनौती पेश हो जाय और आगे उन्हें अपने हॉस्टल या लॉज में रहने की सामान्य सुविधा भी न मिले, तो उनकी स्थिति कैसी होगी? हां, इसी स्थिति से देशभर में लाखों विद्यार्थियों का सामना हुआ. लेकिन इस कठिनतम परिस्थिति में भी लगभग सभी विद्यार्थियों ने अपने-अपने तरीके से तमाम समस्याओं  से निबटने का अदभुत उदाहरण पेश किया. उन्होंने समस्याओं के आगे घुटने टेकने के बजाय परेशानियों को झेला, आपस में सहयोग किया, संयम रखा और समाधान के रास्ते तलाशते रहे.
कहते हैं न कि ईश्वर उसी की मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करता है. मुझे तो लगता है कि उस समय किसी-न-किसी रूप  में स्वामी विवेकानंद की ये बातें  कि "सारी शक्तियां आपमें मौजूद हैं, आप सब कुछ कर सकते हो. बस खुद पर विश्वास बनाए रखो" और राष्ट्र कवि दिनकर की ये पंक्तियां कि "विपत्ति जब आती है कायर को ही दहलाती है, सूरमा नहीं विचलित होते..." उनको प्रेरित और अंदर से मजबूत बना रही होगी. एक बात और. घर लौटने की उनकी उत्कंठा इस बात को साबित करता है कि उनका अपने परिवार एवं समाज के साथ भावनात्मक जुड़ाव कितना प्रगाढ़ है. काबिलेगौर बात है कि इस मुश्किल वक्त में भी उनमें से शायद ही किसी ने हताश-निराश होकर कोई आत्मघाती कदम उठाया. इसका मतलब साफ़ है. इन लोगों ने मन से माना कि जीवन अनमोल है और इसे किसी भी सूरत में जाया नहीं करना है. सुख-दुःख तो जीवन का अभिन्न हिस्सा, जैसे आती-जाती ऋतुएं. सचमुच, ऐसे सभी छात्र-छात्राएं प्रशंसा के हकदार हैं. 

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                            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# साप्ताहिक पत्रिका "युगवार्ता" में 17.05.20 को प्रकाशित 
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Monday, August 10, 2020

सादगी और सरलता की सहज राह

                          - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एवं वेलनेस  कंसलटेंट 

कोविड 19 महामारी से पूरा विश्व तबाह है. हमारा देश भी उसमें शामिल है. आर्थिक-सामाजिक स्थिति खराब है. लाखों की संख्या में गरीब, मजदूर एवं कामगार अपने-अपने घर लौट रहे हैं. देश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति को फिर से पटरी पर लाने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की है. प्रधानमन्त्री ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक नए संकल्प और कार्यसंस्कृति की जरुरत पर जोर दिया है. इस बड़ी और अभूतपूर्व चुनौती को अवसर में बदलने का आह्वान किया है. निःसंदेह, इसके लिए हमें अपने शाश्वत मूल्यों व विचारों को निष्ठापूर्वक अमल में लाना पड़ेगा. और यह बहुत मुश्किल नहीं है. सच्चाई यह है  कि अगर व्यक्ति, समाज और सरकार 'स' अक्षर से शुरू होनेवाले इन तीन शब्दों - सरलता, सादगी और सदाचार का अर्थ अच्छी तरह समझ लें, इनके महत्व को जान लें और फिर उन्हें अपने कार्यशैली का अभिन्न हिस्सा बना लें, तो व्यक्ति, समाज और देश सबके लिए सफल, संपन्न और स्वावलंबी बनना आसान हो जाएगा. रोचक बात है कि ये तीनों शब्द - सफल, संपन्न और स्वावलंबी भी अक्षर 'स' से ही शुरू होते हैं.


आइए, हम यहां अपने जीवन में इनकी अहम भूमिका पर चर्चा करते हैं. समाज और सरकार भी इसे अपने हिसाब से कार्यान्वित कर असीमित लाभ उठा सकते हैं. 


सरलता: प्रकृति के मूल चरित्र को गौर से देखें-जानें-समझें, तो सरलता की महत्ता का एहसास स्वतः हो जाएगा. बच्चों की हंसी के पीछे जो सरलता है, उसके हम सब कायल हैं. सरल स्वभाववाले व्यक्ति सबको अच्छे लगते हैं. देवी सीता और अनुज लक्ष्मण संग श्रीराम के वनगमन के दौरान ऋंगवेरपुर (वर्तमान-प्रयागराज) के राजा निषादराज गुह के व्यवहार की सरलता से स्वयं प्रभु राम गदगद हो गए थे. भक्त की सरलता ही उसे भगवान का प्रिय बनाती है. यहां विचारणीय सवाल है कि यह सब जानते-समझते हुए भी क्या हम सरलता से जीते हैं या जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे जाने-अनजाने कारणों से हम सरलता से जटिलता की ओर बढ़ते जाते हैं? यथार्थ तो यह है कि बड़े होते-होते हममें से बहुत लोगों की सीधी चलनेवाली जिंदगी टेढ़े-मेढ़े दुर्गम रास्तों पर चल पड़ती है. तब आसान काम भी कठिन प्रतीत होता है. लक्ष्य नजदीक होते हुए भी बहुत दूर लगता है. इस क्रम में हम एक अजीब से चक्रव्यूह में फंसते जाते हैं. इसका नुकसान कई तरह से हमें ही उठाना पड़ता है. इतना कुछ होते हुए भी बिडंवना है कि कुछ लोग सरलता को व्यक्ति की कमजोरी समझने की बड़ी गलती करते है, जब कि यह किसी भी व्यक्ति का एक बड़ा गुण है; उनके व्यक्तित्व का मजबूत पक्ष.  बुद्धिमान लोग इस बात को बखूबी समझते हैं और सरलता का साथ नहीं छोड़ते. लिहाजा उनके सोच और कार्यशैली में स्पष्टता रहती है और वे जीवन को अच्छी तरह एन्जॉय करते हैं. वे जानते हैं कि जिसने भी सरलता का साथ छोड़ा, उसे झूठ-फरेब, तिकड़म आदि का सहारा लेना पड़ेगा जो अंततः उनके अवनति और दुःख का कारण बनेगा. 
 
सादगी: तड़क-भड़क और आडम्बर के मौजूदा दौर में सादगी की मिसाल रहे स्वामी विवेकानंद या महात्मा गांधी या लाल बहादुर शास्त्री सरीखे विभूतियों की उपलब्धियों पर गौर करने और उससे सीख लेने की जरुरत है. हम जो नहीं हैं, उसे हम लेप-पोत कर या सजा-संवार कर या कीमती पोशाक पहनकर लोगों को दिखाने और प्रभावित-आकर्षित करने का प्रयास करते हैं. इस क्रम में हम व्यक्तित्व विकास के एकाधिक पॉजिटिव पहलुओं पर फोकस करने से चूकते रहते हैं और हम कालान्तर में आदतन कृत्रिमता को ओढ़े चलते हैं. यहां इस बात पर विचार करना लाभदायक साबित होगा कि सादगी छोड़कर मुख्यतः दिखावा करने के चक्कर में हम अनावश्यक रूप से अपना कितना समय, पैसा और ऊर्जा खर्च करते हैं.  प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक एवं विचारक हेनरी डेविड थोरो ने न केवल सादगी को जीवन में उतारा और विश्वभर में सादगीभरा जीवन जीने के लिए लोगों को प्रेरित किया, बल्कि इस संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए "वाल्डेन" शीर्षक से एक लोकप्रिय किताब भी लिखी. दुनियाभर में "सिम्प्लिसिटी डे" उन्हीं के जन्मदिन के अवसर पर हर वर्ष 12 जुलाई को मनाया जाता है. इस सन्दर्भ में विश्व के जाने-माने उद्योगपति हेनरी फोर्ड जो सादगी से जीवन-यापन के लिए मशहूर थे, का यह कथन भी काबिले गौर है,  "मैं अपने देश में इसलिए सादा कपड़े पहनता हूं क्योंकि यहां मुझे  सब जानते हैं कि मैं हेनरी फोर्ड हूं और विदेश में इसलिए पहनता हूं कि वहां मुझे कोई जानता ही नहीं कि मैं फोर्ड हूँ." सादा जीवन उच्च विचार का भारतीय दर्शन भी तो यही कहता है और इसको अपने जीवन में उतार कर लाखों ऋषि-मुनि और महान लोगों ने इसे साबित भी किया है. ऐसे लोग सभी तरह की सुविधाओं को हासिल करने में सक्षम होने के बावजूद अपनी जरूरतों को कम रखते हुए कम-से-कम चीजों में काम चलाते है और बिलकुल सादगीभरा  जीवन व्यतीत करते हैं. सच कहें तो दिखावा हमें जकड़ता है और सादगी हमें सहज रखता है. इसके बहुआयामी फायदे हैं, सबके लिए. जरा सोच कर देखिएगा. आनंद बोध होगा.


सदाचार: इस गुण को मानव धर्म में उच्च स्थान प्राप्त है. इसके  बदौलत असंख्य लोग नौकरी और व्यवसाय सहित हर क्षेत्र में छोटी-बड़ी सब चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए मानव धर्म का निर्वहन करते हैं.  किसी भी काम को ईमानदारी से करना  इनका सामान्य स्वभाव होता है. इनमें शक्ति और संयम  दोनों होता है. वे अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में सदाचार के मार्ग पर चलते रहते हैं. अच्छे लोगों और अच्छी बातों से जुड़ने और सायास उनको अपने साथ जोड़ने का सिलसिला सतत चलता रहता है. ऐसे लोग सामान्यतः तनावमुक्त और खुश रहते हैं. अच्छे नेतृत्व की यह एक अहम शर्त होती है. इनके सानिद्ध में रहनेवाले तथा इनके संपर्क में आनेवाले लोग इनके गुणों से सिर्फ प्रभावित ही नहीं, लाभान्वित भी होते हैं. सदाचार का पालन करनेवाले लोगों का प्रभाव बहुत व्यापक और समावेशी होता है. गुरू नानक, संत कबीर, तुलसीदास, रामकृष्ण परमहंस, बाबा आमटे और बाल गंगाधर तिलक जैसे महापुरुष इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. गीता, रामायण, उपनिषद आदि पौराणिक ग्रंथों में तो सदाचार से जुड़े अनेक प्रेरक प्रसंग मौजूद हैं.    

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                       और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" के सभी संस्करणों में 09.06.2020 को प्रकाशित

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Thursday, August 6, 2020

समीक्षा और संकल्प का समय

                    - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...

छात्र जीवन की रोमांचक यात्रा में हर विद्यार्थी को कई मार्गों और कई चौराहों से होकर गुजरना पड़ता है. इस क्रम में कई बार ट्रैफिक सिग्नल पर रुकना भी पड़ता है. पर मन को रोकना किसी सिग्नल के लिए कहां संभव होता है. उसे तो खुद सही दिशा में गतिशील या स्थिर रखने में पारंगत होना पड़ता है, जो थोड़ा कठिन तो है, पर असंभव नहीं. बहरहाल, भागमभाग के वर्तमान समय में कई बार छात्र-छात्राएं बहुत तेज गति से कई चौराहों को पार करते हुए जीवन पथ पर बहुत दूर निकल जाते हैं, तब कहीं जा कर उन्हें सोचने का वक्त मिलता है कि वाकई वे सही दिशा में बढ़ तो रहे हैं? कई बार तो वे अपने अभिभावक या शिक्षक या मार्गदर्शक से सलाह लेने की जरुरत भी नहीं समझते और कई बार सलाह मिलने पर भी उसपर अमल नहीं करते हैं. परिणामस्वरूप, अपेक्षा के अनुरूप सफलता हाथ नहीं लगती. सच पूछिए तो छात्र-छात्राएं अपने कार्यों की समय-समय पर समीक्षा या रिव्यु करते रहे तो यह यह परेशानी नहीं होती. यह समीक्षा वे खुद कर सकते हैं या किसी के सहयोग से भी कर सकते हैं. उसी प्रकार लगभग सभी विद्यार्थी अध्ययन कार्य में व्यस्त तो रहते हैं, पर कुछ विद्यार्थी ही यथासमय अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हो पाते हैं, क्यों कि वे सब संकल्प शक्ति के धनी होते हैं. आइए वैश्विक संकट के मौजूदा समय में आज 'स' अक्षर से शुरू होनेवाले दो शब्दों - समीक्षा और संकल्प की अहमियत पर चर्चा करते हैं. 


आज भारत सहित संसार के सभी देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग, व्यापार, आर्थिक-सामाजिक स्थिति, अंतरराष्ट्रीय संबंध आदि सभी क्षेत्रों में समीक्षा का दौर प्रारंभ हो चुका है. अपनी-अपनी स्थिति-परिस्थिति के अनुसार हर देश अपनी प्राथमिकताओं की गंभीर समीक्षा कर रहा है. विद्यार्थियों के लिए भी अपने कार्यकलाप और कार्ययोजना की समीक्षा का यह विशेष समय है. समीक्षा से वे अपरिचित नहीं हैं. रोचक बात है कि समीक्षा का भाव हर विद्यार्थी में बुनियादी रूप से विद्दमान होता है. बचपन से ही अपने कार्य के साथ-साथ दूसरे लोगों के कार्य की समीक्षा जाने-अनजाने सभी करते हैं. पुस्तक समीक्षा, फिल्म समीक्षा या भाई-बहन से लेकर  दोस्त-सहपाठी तक के ड्रेस और स्टाइल पर समीक्षा की बात हो, छात्र-छात्राएं इनमें शामिल रहते हैं. उसी तरह विद्यार्थी अपने कार्यकलाप की समीक्षा भी करते रहते हैं, बेशक यदाकदा. ऐसा इसलिए कि हमें बाहर देखने की आदत अधिक होती है, अंदर देखने की कम. हां, बुद्धिमान विद्यार्थी अपने काम  की गंभीर समीक्षा का अभ्यस्त होता है. वह अपने संकल्प को  साधने के क्रम में अपने हर एक्शन की समय-समय पर विवेचना और समीक्षा करता है. अपनी गलतियों को ढूंढने का प्रयास करता  है और उससे जरुरी सबक लेता है. इससे उसे आगे और बेहतर तरीके से अपनी कार्य योजना को अंजाम देने और जरुरी हो तो कोर्स करेक्शन में भी मदद मिलती है. इस प्रक्रिया में  उसे जहां भी कोई कनफूजन होता है, वह अपने अभिभावक या मेंटर से सलाह लेने में पीछे नहीं रहता है.


ज्ञानीजन बराबर कहते रहे हैं कि जो विद्यार्थी सोच-विचार कर संकल्प लेता है और उससे  प्रतिबद्ध रहता है, उसके लिए कर्मपथ पर चलना एक साधना के समान हो जाता है और फिर तो उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं होता है. ऐसा इसलिए कि संकल्पित होते ही वह पॉजिटिव फील करने लगता है और उसकी आंतरिक शक्ति बढ़ने लगती है, जो कार्य विशेष को सफ़ल बनाने में बहुत सहायक होता  है. दरअसल, किसी भी विद्यार्थी में शक्ति की कमी नही होती, बस संकल्प की कमी होती हैं. संकल्प के अभाव में छात्र-छात्राएं सफ़लता के निकट पहुंच कर भी असफल हो जाते हैं. कहने का अभिप्राय यह कि किसी कार्य का असंभव  या संभव होना विद्यार्थी विशेष के संकल्प पर निर्भर करता हैं.  


स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री व महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार पटेल हों या हॉकी के जादूगर कहे जानेवाले महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद  या दक्षिण अफ्रीका के महान नेता व पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला या सिंगापुर के युगपुरुष व पूर्व प्रधानमन्त्री ली कुआन यू  या  देश के महान स्पेस साइंटिस्ट विक्रम साराभाई या विश्व प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेट आलराउंडर कपिल देव, सबने अपने-अपने क्षेत्र में अपने संकल्प को  निष्ठापूर्वक साधते हुए तथा निरंतर अपने प्रदर्शन की बेबाक समीक्षा करते हुए देश-विदेश में अपनी सफलता का झंडा बुलंद किया. मेरी तो स्पष्ट मान्यता है कि हमारे विद्यार्थियों में असीम क्षमता है और उनमें अनेक खूबियां भी मौजूद हैं. बस आज जरुरत इस बात की है कि समीक्षा और संकल्प की अहमियत को समझते हुए देश का युवावर्ग अपने और देश के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य को हासिल करने हेतु कर्मपथ पर दृढ़ता से सतत आगे बढ़ता रहे. 

 (hellomilansinha@gmail.com)  

      
                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 10.05.2020 अंक में प्रकाशित
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Monday, August 3, 2020

संकट के संकेत व संदेश

                  - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...

जिंदगी कब, किसे और कैसा संकेत-संदेश किस प्रकार दे जाती है, उसका अनुमान लगाना तो कठिन होता है, लेकिन ये संकेत-संदेश सबके बहुत काम आते है, खासकर संकट के दौर में.  विद्यार्थियों सहित सभी समझदार लोग इन पर गौर करते हैं और उनके निहितार्थ को समझने का प्रयास भी करते हैं. आज के असामान्य एवं अभूतपूर्व दौर में सभी छात्र-छात्राएं एक सर्वथा नए अनुभव के भागी बन रहे हैं. इस समय मुझे टेली काउंसलिंग करते हुए बहुत सारे विद्यार्थियों की विविध परेशानियों को जानने -समझने और उनका समाधान सुझाने का अधिक अवसर मिल रहा है. एक बात तो बिलकुल साफ़ है कि जिंदगी का यह वक्त सभी विद्यार्थियों को कई अहम सबक सिखा रहा है. समस्या समाधान के कई महत्वपूर्ण सूत्र बता रहा है. इनमें से पांच जरुरी बातों पर चर्चा करने से पहले आइए अमेरिकी लेखक व संपादक लुईस ग्रीज़र्ड के इस कथन पर गौर कर लेते हैं. वे कहते हैं, "ज़िन्दगी का खेल काफी कुछ फुटबॉल के समान है.  इसमें आपको अपने  प्रॉब्लम्स खुद ही टैकल करने पड़ते हैं; अपने डर को ब्लॉक करना पड़ता है और जब मौका हाथ लगे तब अपना पॉइंट स्कोर करना पड़ता है."


1.
जीवन है तो चुनौती और समस्या कम या ज्यादा रहेंगे. सोच पॉजिटिव रखेंगे तो समाधान के रास्ते दिखेंगे या खोज लेंगे, ऐसा मन में विश्वास रहता है. सोच का हमारे कर्म पर गहरा असर होता है. अगर सोच के स्तर पर ही हार मान लेंगे, तो कर्म करने में न तो उत्साह रहेगा और न ही उर्जावान रह पायेंगे. फिर तो इच्छित या अपेक्षित समाधान तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो जाएगा. यह समय है पॉजिटिव सोच को मजबूत करने और उस सोच से प्रेरित होकर काम करने का. जिस भी परिस्थिति में हैं, बिना विचलित हुए पहले यह सोचें और देखें कि इसमें अच्छा क्या है या इसको कैसे थोड़ा अपने अनुकूल बना सकते हैं, तमाम दिक्कतों के बावजूद. इतने भर से ही आप सोच के पॉजिटिव जोन में आ जाते हैं और फिर तो कठिन रास्ते भी आसान प्रतीत होते हैं. 


2. अपनी आवश्यकताओं की एक लिस्ट बनाएं. हर विद्यार्थी की लिस्ट थोड़ी अलग होगी, लेकिन ज्यादातर आइटम एक समान होंगे. एक सामान्य जीवन जीने  के लिए आवश्यक सामान. जरा गंभीरता से सोचिए कि जो चीजें हमारे जीवन में फिलहाल शामिल हैं या जिनपर हम निर्भर हैं, उनमें से कितनों का परित्याग करने के बाद भी हम स्वस्थ रह सकते हैं और अपने  बुनियादी दायित्वों का निर्वाह कर सकते हैं. अगर ऐसा सोचने में थोड़ी भी दिक्कत हो रही हो तो अपने क्लास में पढ़नेवाले सबसे गरीब विद्यार्थी से पूछ लें कि आखिर कैसे वह अपनी जीवन यात्रा पर आगे बढ़ता जा रहा है. 


3. विश्व के सबसे चर्चित और प्रसिद्ध हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन कहते हैं कि सबसे दुखी करनेवाली बात जिसकी कल्पना मैं कर सकता हूँ वह है विलासिता के बंधन में बंध जाना. बिलकुल सही. विलासिता की कोई सीमा नहीं होती. विलासिता न केवल छात्र-छात्राओं  का पैसा और समय खर्च करता है, बल्कि उसे कृत्रिमता के चंगुल में जकड़ लेता है. इससे विद्यार्थियों की  मौलिकता और अध्ययन क्षमता बहुत दुष्प्रभावित होती है. ऐसे भी मितव्ययता  तथा बचत संकट के साथी माने जाते हैं.


4. इस समय चिंता में लीन रहने के बजाय इस बात पर फोकस करें कि आप क्या-क्या कर सकते हैं. बेहतर होगा कि इसकी एक छोटी सूची बनाकर काम शुरू कर दें. अगर घर से दूर हैं और कमोबेश स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित हैं, तो अभी जहां हैं वहां रहें. आर्थिक परेशानी है तो घरवालों और दोस्तों से सहयोग लेने और मांगने में संकोच न करें. खुद आर्थिक रूप से सक्षम हों तो अपने साथी-सहपाठी  की मदद करने में गौरव का अनुभव करें. अपने खानपान, अध्ययन, एक्सरसाइज आदि पर अधिक समय दें. नेगेटिव या फेक न्यूज़ पर समय बर्बाद करना हर दृष्टि से नुकसानदेह है. ऐसे भी सिर्फ चिंता करने मात्र से किसी को कभी कोई लाभ नहीं होता. 
 
5. इस समय सावधान और सचेत रहना बहुत जरुरी है. किसी भी स्थिति के लिए खुद को तैयार रखना, खासकर मानसिक रूप से फायदेमंद होगा. देखा गया है कि अगर अचानक किसी अनहोनी की सूचना मिलती है तो आमतौर पर विद्यार्थी  घबड़ा जाते है; तनावग्रस्त हो जाते हैं और सही कदम नहीं उठा पाते हैं. इससे अनावश्यक हानि होती है.इसके विपरीत अगर किसी भी संभावित खतरे या दुर्घटना के लिए मानसिक रूप से तैयार रहते हैं तो वह स्थिति आ जाने पर भी वे संयत बने रह पाते हैं और अच्छी तरह उस सिचुएशन को हैंडल कर पाते हैं. इससे नुकसान अगर होता भी है तो बहुत कम होता है. शक्ति, बुद्धि और संयम को धारण कर जीवन पथ पर चलना ऐसे भी सर्वथा उत्तम माना गया है. 

 (hellomilansinha@gmail.com)   


                      और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# साप्ताहिक पत्रिका "युगवार्ता" में 03.05.20 को प्रकाशित 
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