- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं वेलनेस कंसलटेंट
कोविड 19 महामारी से पूरा विश्व तबाह है. हमारा देश भी उसमें शामिल है. आर्थिक-सामाजिक स्थिति खराब है. लाखों की संख्या में गरीब, मजदूर एवं कामगार अपने-अपने घर लौट रहे हैं. देश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति को फिर से पटरी पर लाने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की है. प्रधानमन्त्री ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक नए संकल्प और कार्यसंस्कृति की जरुरत पर जोर दिया है. इस बड़ी और अभूतपूर्व चुनौती को अवसर में बदलने का आह्वान किया है. निःसंदेह, इसके लिए हमें अपने शाश्वत मूल्यों व विचारों को निष्ठापूर्वक अमल में लाना पड़ेगा. और यह बहुत मुश्किल नहीं है. सच्चाई यह है कि अगर व्यक्ति, समाज और सरकार 'स' अक्षर से शुरू होनेवाले इन तीन शब्दों - सरलता, सादगी और सदाचार का अर्थ अच्छी तरह समझ लें, इनके महत्व को जान लें और फिर उन्हें अपने कार्यशैली का अभिन्न हिस्सा बना लें, तो व्यक्ति, समाज और देश सबके लिए सफल, संपन्न और स्वावलंबी बनना आसान हो जाएगा. रोचक बात है कि ये तीनों शब्द - सफल, संपन्न और स्वावलंबी भी अक्षर 'स' से ही शुरू होते हैं.
आइए, हम यहां अपने जीवन में इनकी अहम भूमिका पर चर्चा करते हैं. समाज और सरकार भी इसे अपने हिसाब से कार्यान्वित कर असीमित लाभ उठा सकते हैं.
सरलता: प्रकृति के मूल चरित्र को गौर से देखें-जानें-समझें, तो सरलता की महत्ता का एहसास स्वतः हो जाएगा. बच्चों की हंसी के पीछे जो सरलता है, उसके हम सब कायल हैं. सरल स्वभाववाले व्यक्ति सबको अच्छे लगते हैं. देवी सीता और अनुज लक्ष्मण संग श्रीराम के वनगमन के दौरान ऋंगवेरपुर (वर्तमान-प्रयागराज) के राजा निषादराज गुह के व्यवहार की सरलता से स्वयं प्रभु राम गदगद हो गए थे. भक्त की सरलता ही उसे भगवान का प्रिय बनाती है. यहां विचारणीय सवाल है कि यह सब जानते-समझते हुए भी क्या हम सरलता से जीते हैं या जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे जाने-अनजाने कारणों से हम सरलता से जटिलता की ओर बढ़ते जाते हैं? यथार्थ तो यह है कि बड़े होते-होते हममें से बहुत लोगों की सीधी चलनेवाली जिंदगी टेढ़े-मेढ़े दुर्गम रास्तों पर चल पड़ती है. तब आसान काम भी कठिन प्रतीत होता है. लक्ष्य नजदीक होते हुए भी बहुत दूर लगता है. इस क्रम में हम एक अजीब से चक्रव्यूह में फंसते जाते हैं. इसका नुकसान कई तरह से हमें ही उठाना पड़ता है. इतना कुछ होते हुए भी बिडंवना है कि कुछ लोग सरलता को व्यक्ति की कमजोरी समझने की बड़ी गलती करते है, जब कि यह किसी भी व्यक्ति का एक बड़ा गुण है; उनके व्यक्तित्व का मजबूत पक्ष. बुद्धिमान लोग इस बात को बखूबी समझते हैं और सरलता का साथ नहीं छोड़ते. लिहाजा उनके सोच और कार्यशैली में स्पष्टता रहती है और वे जीवन को अच्छी तरह एन्जॉय करते हैं. वे जानते हैं कि जिसने भी सरलता का साथ छोड़ा, उसे झूठ-फरेब, तिकड़म आदि का सहारा लेना पड़ेगा जो अंततः उनके अवनति और दुःख का कारण बनेगा.
सादगी: तड़क-भड़क और आडम्बर के मौजूदा दौर में सादगी की मिसाल रहे स्वामी विवेकानंद या महात्मा गांधी या लाल बहादुर शास्त्री सरीखे विभूतियों की उपलब्धियों पर गौर करने और उससे सीख लेने की जरुरत है. हम जो नहीं हैं, उसे हम लेप-पोत कर या सजा-संवार कर या कीमती पोशाक पहनकर लोगों को दिखाने और प्रभावित-आकर्षित करने का प्रयास करते हैं. इस क्रम में हम व्यक्तित्व विकास के एकाधिक पॉजिटिव पहलुओं पर फोकस करने से चूकते रहते हैं और हम कालान्तर में आदतन कृत्रिमता को ओढ़े चलते हैं. यहां इस बात पर विचार करना लाभदायक साबित होगा कि सादगी छोड़कर मुख्यतः दिखावा करने के चक्कर में हम अनावश्यक रूप से अपना कितना समय, पैसा और ऊर्जा खर्च करते हैं. प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक एवं विचारक हेनरी डेविड थोरो ने न केवल सादगी को जीवन में उतारा और विश्वभर में सादगीभरा जीवन जीने के लिए लोगों को प्रेरित किया, बल्कि इस संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए "वाल्डेन" शीर्षक से एक लोकप्रिय किताब भी लिखी. दुनियाभर में "सिम्प्लिसिटी डे" उन्हीं के जन्मदिन के अवसर पर हर वर्ष 12 जुलाई को मनाया जाता है. इस सन्दर्भ में विश्व के जाने-माने उद्योगपति हेनरी फोर्ड जो सादगी से जीवन-यापन के लिए मशहूर थे, का यह कथन भी काबिले गौर है, "मैं अपने देश में इसलिए सादा कपड़े पहनता हूं क्योंकि यहां मुझे सब जानते हैं कि मैं हेनरी फोर्ड हूं और विदेश में इसलिए पहनता हूं कि वहां मुझे कोई जानता ही नहीं कि मैं फोर्ड हूँ." सादा जीवन उच्च विचार का भारतीय दर्शन भी तो यही कहता है और इसको अपने जीवन में उतार कर लाखों ऋषि-मुनि और महान लोगों ने इसे साबित भी किया है. ऐसे लोग सभी तरह की सुविधाओं को हासिल करने में सक्षम होने के बावजूद अपनी जरूरतों को कम रखते हुए कम-से-कम चीजों में काम चलाते है और बिलकुल सादगीभरा जीवन व्यतीत करते हैं. सच कहें तो दिखावा हमें जकड़ता है और सादगी हमें सहज रखता है. इसके बहुआयामी फायदे हैं, सबके लिए. जरा सोच कर देखिएगा. आनंद बोध होगा.
सदाचार: इस गुण को मानव धर्म में उच्च स्थान प्राप्त है. इसके बदौलत असंख्य लोग नौकरी और व्यवसाय सहित हर क्षेत्र में छोटी-बड़ी सब चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए मानव धर्म का निर्वहन करते हैं. किसी भी काम को ईमानदारी से करना इनका सामान्य स्वभाव होता है. इनमें शक्ति और संयम दोनों होता है. वे अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में सदाचार के मार्ग पर चलते रहते हैं. अच्छे लोगों और अच्छी बातों से जुड़ने और सायास उनको अपने साथ जोड़ने का सिलसिला सतत चलता रहता है. ऐसे लोग सामान्यतः तनावमुक्त और खुश रहते हैं. अच्छे नेतृत्व की यह एक अहम शर्त होती है. इनके सानिद्ध में रहनेवाले तथा इनके संपर्क में आनेवाले लोग इनके गुणों से सिर्फ प्रभावित ही नहीं, लाभान्वित भी होते हैं. सदाचार का पालन करनेवाले लोगों का प्रभाव बहुत व्यापक और समावेशी होता है. गुरू नानक, संत कबीर, तुलसीदास, रामकृष्ण परमहंस, बाबा आमटे और बाल गंगाधर तिलक जैसे महापुरुष इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. गीता, रामायण, उपनिषद आदि पौराणिक ग्रंथों में तो सदाचार से जुड़े अनेक प्रेरक प्रसंग मौजूद हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" के सभी संस्करणों में 09.06.2020 को प्रकाशित
# लोकप्रिय अखबार "दैनिक जागरण" के सभी संस्करणों में 09.06.2020 को प्रकाशित
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