- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
देश के अलग-अलग महानगरों-शहरों से लोगों का अपने-अपने गांव-घर लौटने का सिलसिला जारी है. इनमें बहुत सारे विद्यार्थी भी शामिल हैं. अनुमान है कि इनमें से अधिकतर विद्यार्थी स्थिति सामान्य होने तक अभी अपने घर पर ही रहेंगे. हमारा देश गांवों का देश है. अभी भी लगभग सत्तर फीसदी आबादी गांवों में रहती है. हाल के वर्षों में देश के प्रायः सभी गांवों में सड़क और बिजली की सुविधा के साथ-साथ इंटरनेट की सुविधा भी उपलब्ध हो गई है, पर कई बुनियादी बातों पर ध्यान देना जरुरी है. सौभाग्य से ग्रामीण इलाके में रहनेवाले लोग प्रकृति प्रेमी हैं. मुख्यतः खेती और उससे जुड़े कार्यों में संलग्न रहनेवाले ये लोग प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीवन जीने में आनंद का अनुभव करते हैं.
समझदार विद्यार्थी अनुकूल-प्रतिकूल हर परिस्थिति में कुछ-न-कुछ अच्छा सीखने और उसे जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं. वे इनोवेटिव तरीके से अपने ज्ञान और स्किल का उपयोग करने में भी आगे रहते हैं. प्राकृतिक माहौल में रहने से विद्यार्थीगण ऐसे भी ज्यादा उर्जावान, उत्साहित और क्रिएटिव महसूस करते हैं. शहर-महानगर के अपने-अपने शैक्षणिक संस्थान में छात्र-छात्राएं किताबी ज्ञान के अलावे वहां की तेज रफ़्तार जीवनशैली के कई अच्छे-बुरे पक्षों से परिचित होने के साथ-साथ अन्य अनेक नई चीजें अपने अनुभव से सीखते हैं. हां, महामारी के कारण उत्पन्न यह असामान्य समय उन्हें अपने ज्ञान व अनुभव की उस पूंजी को अपने-अपने गांव-कस्बे-समाज को उन्नत बनाने की दिशा में उपयोग में लाने का बड़ा अवसर प्रदान करता है. आखिर कैसे?
छात्र-छात्राएं जितने भी दिन अपने गांव में रहें, एक-दो बार पूरे गांव में घूमकर उसे अपनी आँखों से अच्छी तरह देखें, उसे महसूस करें, जहां बात करने का मन हो लोगों से खुलकर बात करें. इससे उन्हें गांव की वास्तविक स्थिति को जानने-समझने में मदद मिलेगी और उनके बहुत सारे भ्रम दूर होंगे. उन्हें स्थिति का सही आकलन करने में भी आसानी होगी. घर लौट कर सोचें कि कहां-कहां कुछ सुधार की गुंजाइश है, जिसे कम समय में अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है. बस अब उसके लिए प्रयास शुरू कर दें. यकीनन, गांव के बड़े-बुजुर्गों की सलाह और गांववालों के सहयोग से समाधान तक पहुंचना मुश्किल नहीं होगा. आइए, दो अहम मुद्दों जिनपर विद्यार्थियों की निगाह जरुर जायेगी, की थोड़ी चर्चा कर लेते हैं.
सभी विद्यार्थी जानते हैं कि अप्रैल-मई-जून का महीना आमतौर पर हमारे देश में बहुत गर्मी का समय होता है. हर जगह पानी की समस्या से बड़ी आबादी को जूझना पड़ता है. मानसून के आने पर ही राहत मिलती है. काबिलेगौर बात है कि पिछले कई वर्षों से देश में मानसून की बारिश अच्छी रही है. फिर भी जल संचयन और प्रबंधन की अच्छी व्यवस्था के अभाव में जल का अभाव बना रहता है. इस स्थिति को सुधारने में छात्र-छात्राएं सार्थक योगदान कर सकते हैं. पहले तो वे यह जानने का प्रयास करें कि उनके गांव के लोगों को पानी कैसे मिलता है - कुआं, हैण्ड पंप, बोरिंग, तालाब, नदी, नल या अन्य किसी तरीके से. फिर पानी के संचयन पर फोकस कर सकते हैं. गांव में कितने निजी और सार्वजनिक तालाब है. उनकी स्थिति कैसी है? बरसात के पानी को कैसे संरक्षित करते हैं या कि वह शुद्ध पानी यूँ ही बह जाता है और उसका संचयन नहीं हो पाता. पीने के पानी की गुणवत्ता, पानी का जाने-अनजाने अपव्यय आदि भी पानी से जुड़े अहम मुद्दे हैं.
सभी विद्यार्थी जानते हैं कि पेड़-पौधे की संख्या घटती जाए तो ऑक्सीजन की मात्रा घटती जाएगी और कई कारणों से कार्बन डाईआक्साइड जैसे विषैले गैस की मात्रा बढ़ती जाएगी जो हमारे जीवन के लिए बहुत घातक होगा. पेड़-पौधों से जल-चक्र का भी गहरा रिश्ता है. उसे भी क्षति पहुंचेगी. अनाज-फल-फूल से लाभान्वित होने से भी हम वंचित रहेंगे. मतलब एक साथ कई बड़ी हानि के हम भागी बनेंगे. इन सबसे बचे रहने का सीधा और सरल उपाय है गांव और गांववालों को हर तरह से तैयार करना जिससे कि बरसात के दिनों में निजी एवं सार्वजनिक जमीन पर योजनाबद्ध तरीके से बड़े पैमाने पर फल, फूल, औषधीय आदि हर तरह के पेड़-पौधे लगाए जा सकें. इस सामाजिक कार्य में गांव के स्कूली बच्चों का सहयोग भी बहुत लाभकारी सिद्ध होगा.
कहने की जरुरत नहीं कि अगर छात्र-छात्राएं अपने-अपने गांवों में इस तरह का कोई एक भी सामाजिक कार्य हाथ में लेकर उसे गांववालों के सहयोग से पूरा करने का प्रयास करें तो न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और उनका अपने गांव-समाज से एक पॉजिटिव रिश्ता डेवलप होगा, बल्कि हर साल वे अपने गांव में आने और उसके विकास में कुछ योगदान करने को लालायित भी रहेंगे. समाज और देश को तो इससे बहुत लाभ होगा ही.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 24.05.2020 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 24.05.2020 अंक में प्रकाशित
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