Thursday, October 19, 2017

आज की कविता : एक दीया अन्दर जलाएंगे

                                                                                                                - मिलन सिन्हा


जेब बेशक खाली
फिर भी मनेगी दिवाली
दिवाली का है
दिल से रिश्ता
दिल को मनाएंगे
मानस को समझायेंगे
किसी रोते को हंसाएंगे 
एक दीया अन्दर जलाएंगे
दिवाली तो हम बस
ऐसे ही मनाएंगे !


                                                                              (hellomilansinha@gmail.com)

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

Thursday, October 12, 2017

प्रेरक प्रसंग : कैसे पहुंचे लोहिया मद्रास से कलकत्ता ?

                                                                                      - मिलन सिन्हा
ब्रिटिश हुकूमत का दौर था. पूरे देश में स्वतंत्रता आन्दोलन का जोर था. ऐसे ही समय डॉक्टरेट की उपाधि से विभूषित लोहिया जी जब बर्लिन से पानी के जहाज द्वारा मद्रास पहुंचे तो उस समय उनके पास एक भी पैसा नहीं था. ऊपर से किताबों सहित उनका सारा सामान न जाने क्यों, रास्ते में ही जब्त कर लिया गया था. अब समस्या यह थी कि मद्रास से कलकत्ता कैसे पहुंचा जाय. जाने अचानक उनके दिमाग में क्या आया कि वे जहाज से उतर कर सीधे मद्रास से प्रकाशित अखबार ‘हिन्दू’ के दफ्तर में पहुंच गए. संपादक के पास पहुंच कर फर्राटे की अंग्रेजी में बोले, ‘मैं अभी-अभी बर्लिन से आ रहा हूँ और आपके उपयोग हेतु एक-दो लेख देने की इच्छा रखता हूँ. 

संपादक ने अपरिचित नौजवान को एक पल ठीक से देखा और पूछा, 'कहां है लेख? दीजिए.’

‘कृपया कागज़-कलम दें, मैं अभी तुरन्त लिख देता हूँ ’ – लोहिया जी ने कहा.

संपादक जी अवाक. कारण पूछा तो मालूम हुआ कि कलकत्ता जाने के लिए पैसे चाहिए. कागज़-कलम मिलते ही लोहिया जी वहीं बैठकर लिखने लगे, बिना किसी रुकावट के जैसे कि लेख लिखने के लिए वे पहले से ही तैयार बैठे हों. संपादक जी के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. 

कुछ ही देर में दो लेख लिखकर उन्होंने संपादक जी को दे दिए. दोनों लेख पढ़कर संपादक जी ने  लोहिया जी की विद्वता एवं प्रतिभा का प्रमाण पा लिया. संपादक जी ने तुरन्त पारिश्रमिक के रूप में उन्हें पच्चीस रूपये दिए और साथ ही शाम को अपने घर साथ खाने का निमंत्रण भी.
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# डॉ. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि के अवसर पर 
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प्रेरक प्रसंग : इतिहास का अध्येता

                                                                                                 - मिलन सिन्हा 
राममनोहर लोहिया काशी के एक कॉलेज में इंटर की पढ़ाई  कर रहे थे. सभी विषयों में उन्हें इतिहास ही सबसे प्रिय था. अतएव अपने पाठ्यक्रम की इतिहास की पुस्तकों के अलावा जो भी इतिहास की पुस्तकें उनके हाथ लग जाती उन्हें वे जल्दी ही पढ़  जाते. इतिहास की पुस्तकों के इस व्यापक अध्ययन का परिणाम यह हुआ कि उनकी दृष्टि समालोचक की हो गई. अब जहां भी  वे कोई तथ्यहीन बात पढ़ते तो तुरन्त उसे गलत साबित करने में जुट जाते.

उनके अपने पाठ्यक्रम में इतिहास की एक पुस्तक थी - 'ईसाई शक्ति का उदय'. इस किताब में एक स्थान पर कलकत्ते की एक काल कोठरी का वर्णन करते हुए भारतवासियों पर यह आरोप लगाया गया था कि उस काल कोठरी में एक सौ चालीस अंग्रेजों को एक साथ बंद कर उनकी हत्या की गयी थी. लोहिया जी को ये सब पढ़ते ही ऐसा लगा कि सारा वाकया तथ्य से परे है और इस तरह के प्रचार के पीछे भारत के लोगों को एन-केन-प्रकारेण बदनाम करने का उद्देश्य है. फिर क्या था, लोहिया जी ने इस मुद्दे को बहस के लिए सबके सामने रखा. बहस का लम्बा दौर चला और अंत में लोहिया जी ने यह साबित कर दिया कि उक्त पुस्तक में जिन एक सौ चालीस अंग्रेजों का जिक्र है, वे कभी इंग्लैंड से भारत आये ही नहीं. और तो और, जिस काल कोठरी का उस किताब में उल्लेख है उस कोठरी में किसी भी तरह एक सौ चालीस आदमी समा ही नहीं सकते. इतना ही नहीं, लोहिया जी ने उसी पुस्तक में छत्रपति शिवाजी को 'लुटेरा सरदार' लिखे जाने की बात को भी ठोस प्रमाणों द्वारा बेबुनियाद और झूठा साबित कर दिया.
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Sunday, October 1, 2017

यात्रा के रंग : गंगटोक और आसपास -5- अब शान्ति व्यू पॉइंट और ...

                                                                                          -मिलन सिन्हा
...गतांक से आगे... हल्का नाश्ता करने के बाद हम नीचे उतरने लगे तो राजू ने बताया कि इसी रास्ते में थोड़ी  दूर पर विख्यात ‘जवाहरलाल नेहरु बोटानिकल  गार्डन’ है. जल्द ही हम वहां पहुंच गए. यह गार्डन एक बड़े से परिसर में है, जिसका देखरेख सरकार का वन विभाग करता है. इस परिसर का माहौल खुशनुमा है. यहां आप अनेक प्रकार के आर्किड का आनंद ले सकते हैं. ओक सहित अन्य अनेक दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधों के बीच वक्त कैसे गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता. 

रोचक तथ्य ये भी कि इतना पैदल चलने पर भी आप ज्यादा नहीं थकते, कारण रोजमर्रा की भागदौड़ की जिंदगी से इतर आपको प्रकृति के साथ वक्त गुजरना अच्छा लगता है और आप ऑक्सीजन अर्थात प्राण-वायु से भरे भी तो रहते हैं. 

आगे हमारी गाड़ी “शान्ति व्यू पॉइंट” पर आ कर रुकी. इस स्थान से आप पूरे गंगटोक का एक बेहद खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं. पहाड़ों के विस्तारित श्रृंखला में पूरे गंगटोक शहर और उसके आसपास फैले छोटे-बड़े इलाके का ऐसा विहंगम दृश्य शायद शान्ति व्यू पॉइंट  से ही शान्ति और सकून से आप देख सकते हैं. सच कहें तो आप चाय की चुस्की लेते हुए घंटों यहाँ समय बिता सकते हैं. सो, हमने भी थोड़ा ज्यादा समय इस जगह के नाम किया, बेशक बीच-बीच में राजू की  दिलचस्प आपबीती सुनते हुए. 

सचमुच, यात्रा हमें बहुत कुछ दिखाती है, बहुत कुछ सिखाती-समझाती है. तभी तो कई बड़े लोगों ने अलग-अलग तरीके से  कहा है : दुनिया एक बड़ी किताब है और वे जो यात्रा नहीं करते सिर्फ कुछ पेज पढ़ कर ही रह जाते हैं.

शाम हो चली थी. सड़क के दोनों ओर फैले प्रकृति के विभिन्न रूपों को निहारते हुए हम आ गए थे गंगटोक की ह्रदय स्थली महात्मा गांधी रोड के पास. हमने राजू से विदा ली, उसे गले लगाया, शुक्रिया कहा. राजू ने भी थैंक्स कहा और मुस्कुराते हुए बढ़ गया, कल फिर किसी और सैलानी को गंगटोक घुमाने की इच्छा के साथ – एक अच्छे गाइड की तरह. जीते रहो राजू....असीम शुभकामनाएं.  ....आगे जारी...
                                                                           (hellomilansinha@gmail.com)
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# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित
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