Thursday, October 12, 2017

प्रेरक प्रसंग : कैसे पहुंचे लोहिया मद्रास से कलकत्ता ?

                                                                                      - मिलन सिन्हा
ब्रिटिश हुकूमत का दौर था. पूरे देश में स्वतंत्रता आन्दोलन का जोर था. ऐसे ही समय डॉक्टरेट की उपाधि से विभूषित लोहिया जी जब बर्लिन से पानी के जहाज द्वारा मद्रास पहुंचे तो उस समय उनके पास एक भी पैसा नहीं था. ऊपर से किताबों सहित उनका सारा सामान न जाने क्यों, रास्ते में ही जब्त कर लिया गया था. अब समस्या यह थी कि मद्रास से कलकत्ता कैसे पहुंचा जाय. जाने अचानक उनके दिमाग में क्या आया कि वे जहाज से उतर कर सीधे मद्रास से प्रकाशित अखबार ‘हिन्दू’ के दफ्तर में पहुंच गए. संपादक के पास पहुंच कर फर्राटे की अंग्रेजी में बोले, ‘मैं अभी-अभी बर्लिन से आ रहा हूँ और आपके उपयोग हेतु एक-दो लेख देने की इच्छा रखता हूँ. 

संपादक ने अपरिचित नौजवान को एक पल ठीक से देखा और पूछा, 'कहां है लेख? दीजिए.’

‘कृपया कागज़-कलम दें, मैं अभी तुरन्त लिख देता हूँ ’ – लोहिया जी ने कहा.

संपादक जी अवाक. कारण पूछा तो मालूम हुआ कि कलकत्ता जाने के लिए पैसे चाहिए. कागज़-कलम मिलते ही लोहिया जी वहीं बैठकर लिखने लगे, बिना किसी रुकावट के जैसे कि लेख लिखने के लिए वे पहले से ही तैयार बैठे हों. संपादक जी के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. 

कुछ ही देर में दो लेख लिखकर उन्होंने संपादक जी को दे दिए. दोनों लेख पढ़कर संपादक जी ने  लोहिया जी की विद्वता एवं प्रतिभा का प्रमाण पा लिया. संपादक जी ने तुरन्त पारिश्रमिक के रूप में उन्हें पच्चीस रूपये दिए और साथ ही शाम को अपने घर साथ खाने का निमंत्रण भी.
                                                                           (hellomilansinha@gmail.com)
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

# डॉ. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि के अवसर पर 
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