- मिलन सिन्हा
राममनोहर लोहिया काशी के एक कॉलेज में इंटर की पढ़ाई कर रहे थे. सभी विषयों में उन्हें इतिहास ही सबसे प्रिय था. अतएव अपने पाठ्यक्रम की इतिहास की पुस्तकों के अलावा जो भी इतिहास की पुस्तकें उनके हाथ लग जाती उन्हें वे जल्दी ही पढ़ जाते. इतिहास की पुस्तकों के इस व्यापक अध्ययन का परिणाम यह हुआ कि उनकी दृष्टि समालोचक की हो गई. अब जहां भी वे कोई तथ्यहीन बात पढ़ते तो तुरन्त उसे गलत साबित करने में जुट जाते.
उनके अपने पाठ्यक्रम में इतिहास की एक पुस्तक थी - 'ईसाई शक्ति का उदय'. इस किताब में एक स्थान पर कलकत्ते की एक काल कोठरी का वर्णन करते हुए भारतवासियों पर यह आरोप लगाया गया था कि उस काल कोठरी में एक सौ चालीस अंग्रेजों को एक साथ बंद कर उनकी हत्या की गयी थी. लोहिया जी को ये सब पढ़ते ही ऐसा लगा कि सारा वाकया तथ्य से परे है और इस तरह के प्रचार के पीछे भारत के लोगों को एन-केन-प्रकारेण बदनाम करने का उद्देश्य है. फिर क्या था, लोहिया जी ने इस मुद्दे को बहस के लिए सबके सामने रखा. बहस का लम्बा दौर चला और अंत में लोहिया जी ने यह साबित कर दिया कि उक्त पुस्तक में जिन एक सौ चालीस अंग्रेजों का जिक्र है, वे कभी इंग्लैंड से भारत आये ही नहीं. और तो और, जिस काल कोठरी का उस किताब में उल्लेख है उस कोठरी में किसी भी तरह एक सौ चालीस आदमी समा ही नहीं सकते. इतना ही नहीं, लोहिया जी ने उसी पुस्तक में छत्रपति शिवाजी को 'लुटेरा सरदार' लिखे जाने की बात को भी ठोस प्रमाणों द्वारा बेबुनियाद और झूठा साबित कर दिया.
# डॉ. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि के अवसर पर
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और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
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