Tuesday, October 8, 2013

आज की कविता : खिलौना

                                                          - मिलन सिन्हा

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समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ
एक बार फिर
खून से रंगे पड़े हैं  
दर्जनभर दबे-कुचले लोगों को मारकर
आधे दर्जन दबंग
असलहों के साथ
सैकड़ों मूक दर्शकों के सामने
निकल पड़े हैं वीर ( ? ) बने
राजनीतिक बयानबाजी का टेप 
बजने लगा है अनवरत 
इधर, सत्ता प्रतिष्ठान की आँखों से
बह निकली है
ड़ियाली अश्रुधारा
चल पड़ी है फिर
मुआवजे की वही धूर्त राजनीति
उधर मातहत व्यस्त हो गए हैं
करने वो सारा इंतजाम
जिससे दबंगों - साहबों की
रंगीन बनी  रहे शाम
चौंकिए नहीं, 
आज के तंत्र आधारित लोकतंत्र में
ऐसी ही परंपरा है आम  
गरीब शोषित जनता को समझते हैं ये  
बस अपने हाथ का खिलौना 
जिनके हाथ में थमा देते हैं यदा-कदा  
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का झुनझुना। 

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :08.10.2013

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