- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
विख्यात अमेरिकी लेखक और मोटिवेटर जिग जिगलर कहते हैं, "सक्सेस का मतलब यह कि जो कुछ हमारे पास है उससे सबसे अच्छा करना." कहने का अभिप्राय यह कि जो भी संसाधन हमारे पास हैं उसका उत्तम इस्तेमाल करके बेहतर परिणाम सुनिश्चित करना और यह भी कि जो नहीं है सिर्फ उसका रोना रोते हुए जो कर सकते थे वह भी न करना. अब अगर आप इन बातों के सन्दर्भ में अपने आसपास के मित्रों के सोच और कार्यकलाप पर गौर करेंगे तो आप पायेंगे कि अच्छी संख्या में विद्यार्थी इसलिए बेहतर परिणाम के हकदार नहीं बन पाते क्यों कि जो कुछ उनके पास नहीं है वे सिर्फ उसपर फोकस कर दुखी होते रहते हैं. जो उन्हें करना चाहिए था या जो कर सकते थे और वह सब अभी भी करने का प्रयास कर सकते हैं, उसे भी अकारण नहीं करते.
"यह दिल मांगे मोर" की भावना तो कमोबेश सबके अंदर होती है. बिना परिश्रम के ऐसे ही बैठे-बिठाए सब कुछ मिलता रहे, ऐसा भी कई लोगों की सोच होती है. यह उनके और समाज के लिए हितकारी नहीं है और देर-सवेर उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ता है. बहरहाल, छात्र-छात्राएं अपने आसपास घटित होनेवाली घटनाओं से बहुत कुछ सीखते हैं, अच्छा और बुरा दोनों. अब जब वे देखते हैं कि उनके साथी-सहपाठी के पास कुछ चीजें या सुविधा के उपकरण, मसलन मोबाइल, घड़ी, स्कूटर-कार, मंहगे कपड़े-जूते आदि अधिक हैं तो उनमें से कई विद्यार्थियों के मन में भी उसे पाने की इच्छा बलवती होती है. वे उसे पाने के लिए अपने अभिभावक से कहते हैं, जिद भी करते हैं और जब तक वह नहीं मिलता तबतक वे बेचैन रहते हैं. उनका मन अध्ययन जैसे बुनियादी कामों से भटक जाता है. इस दौरान वे एक बार भी नहीं सोचते कि वाकई उन्हें इसकी कोई जरुरत है भी या नहीं या कि वे मात्र विलासिता के कुछ दिखावटी उपकरण हैं और वह सब उन्हें इसलिए चाहिए कि वे दिखावे में दोस्तों की बराबरी कर सकें या दोस्तों से खुद को ज्यादा समृद्ध या अमीर साबित कर सकें, बेशक स्थायी नहीं तो तात्कालिक रूप से ही सही. वे इस बात से भी बेफिक्र रहते हैं कि उनके अभिभावक की उन चीजों को खरीदने की औकात है भी या नहीं. अभिभावक के बढ़िया से समझाने और फिर ना कहने के बाद कुछ विद्यार्थी तो अपनी जिद को पूरा करने के लिए गलत तरीके मसलन झूठ बोलने, घर -बाहर जहां मौका मिला चोरी करने और गैरकानूनी तरीके से पैसा हासिल करने से भी बाज नहीं आते.
विचारणीय सवाल है कि दिखावे का क्या कोई अंत है. और फिर दिखावे से क्षणिक ख़ुशी के अलावे और क्या हासिल है? नुकसान तो अनेक हैं जो उन विद्यार्थियों को भी मालूम है. बहरहाल, इस दिखावे के चक्कर में उनके पास जो कुछ उपलब्ध होता है, उसका समुचित उपयोग तथा उपभोग करने या आनंद उठाने से भी वे वंचित रह जाते हैं. ऊपर से सोच के स्तर पर पाजिटिविटी को छोड़ नेगेटिविटी की ओर बढ़ जाते हैं. इसका व्यापक दुष्परिणाम उन्हें आगे भुगतना पड़ता है. सवाल है कि इस चक्रव्यूह में फसने से कैसे बचें?
सीधा और सरल तरीका यह है कि हर विद्यार्थी अपने हिसाब से एक कागज़ पर मोटे अक्षरों में उनके लिए अभी यानी अध्ययनकाल में किन-किन चीजों की आवश्यकता है यानी जिसकी सख्त जरुरत है, उसका एक लिस्ट बना लें. दूसरे विद्यार्थी के लिस्ट को देखने और उससे तुलना कतई न करें. अब उनमें जो चीजें आपके पास हैं उन्हें टिक करते जाएं. अगर सब हैं तो खुद को भाग्यशाली समझें और ख़ुशी-ख़ुशी अध्ययन में लग जाएं. अगर किसी के पास एकाध चीज या कुछ चीजें नहीं हैं तो अपने अभिभावक से बात कर और उन्हें समझा कर उसे प्राप्त करने का प्रयास करें. इस दौरान धैर्य से काम लें और अपने अभिभावक के प्रति सम्मान भाव बनाए रखें. दीगर बात है कि हर अभिभावक अपने बच्चे की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने की पूरी कोशिश करता है, बेशक कभी-कभी कुछ देर हो जाती है. उस समय केवल उन विद्यार्थियों के विषय में सोचें जो आर्थिक रूप से आपसे भी कमजोर हैं, लेकिन पार्ट-टाइम जॉब करके भी अपनी पढ़ाई न केवल जारी रखते हैं, बल्कि अच्छा रिजल्ट भी करते हैं. सीखनेवाली बात यह भी है कि ऐसे विद्यार्थी न तो अपने अभिभावक को कोसते हैं और न ही इस बात का रोना रोते हैं कि उन्हें प्रतिकूल परिस्थिति में अध्ययन करना पड़ रहा है. बहरहाल, मौका मिले तो सिर्फ दो महान हस्तियों - लाल बहादुर शास्त्री और ए पी जे अब्दुल कलाम की जीवनी पढ़ लें. बहुत प्रेरणा मिलेगी और ऊपर लिखी बातों पर आप ज्यादा भरोसा भी करने लगेंगे.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 08.03.2020 अंक में प्रकाशित
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