- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ...
स्कूल-कॉलेज हो या अन्य शिक्षण-प्रशिक्षण स्थल हर स्थान पर आर्डिनरी और एक्स्ट्रा-आर्डिनरी की चर्चा से सभी वाकिफ हैं. ये दो अलग शब्द हैं और इसका उपयोग दो अलग सेट ऑफ़ स्टूडेंट्स के लिए किया जाता है. छात्र जीवन में साल के अंत में प्राप्त प्रोग्रेस रिपोर्ट में किसी को एवरेज या आर्डिनरी और किसी को एक्सीलेंट या एक्स्ट्रा-आर्डिनरी लिखा मिलता है. यह कम-से-कम उस साल के लिए उस विद्यार्थी का मूल्यांकन रिपोर्ट होता है. इन दो शब्दों से फौरी तौर पर हर विद्यार्थी का मूल्यांकन हो जाता है और इसका प्रभाव एडमिशन, अपॉइंटमेंट, प्रमोशन आदि पर साफ़ देखा जा सकता है.
जमैका के विश्व प्रसिद्ध धावक उसैन बोल्ट की चर्चा समीचीन होगी. अनेक अवरोधों और चुनौतियों के बावजूद बोल्ट ने 2008, 2012 और 2016 के तीन ओलिंपिक खेलों में 100 मीटर और 200 मीटर के दौड़ में न केवल प्रथम स्थान हासिल किया, बल्कि ऐसा कीर्तिमान स्थापित करनेवाले वे विश्व के पहले धावक बने. ओलिंपिक मैच में जहां पूरी दुनिया के देशों से धावक पूरी तैयारी के साथ आते हैं, वहां लगातार तीन बार अभूतपूर्व प्रदर्शन दर्ज करना निश्चित रूप से एक्स्ट्रा-आर्डिनरी अचीवमेंट है. न जाने कितनी और काबिले तारीफ़ अचीवमेंट उनके नाम दर्ज हैं. उनके इन उपलब्धियों के लिए लोग उन्हें प्यार से "लाइटनिंग बोल्ट" के नाम से पुकारते हैं.
जीवन के हर क्षेत्र में - विज्ञान, खेलकूद, संगीत, समाज सेवा आदि, सुपर एचीवर थे, हैं और रहेंगे. कहने की जरुरत नहीं कि ये सब अपने-अपने तरीके से अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोत्तम स्थान हासिल करते हैं. उनसे प्रेरणा लेकर छात्र-छात्राएं भी कुछ ऐसा असाधारण परफॉरमेंस दर्ज करने के लायक बन सकते हैं जिससे उन्हें भी एक्स्ट्रा-आर्डिनरी के रूप में ख्याति और पहचान मिल सके. यकीनन इसके लिए जरुरी यह है कि विद्यार्थीगण उनके इन एक्स्ट्रा-आर्डिनरी उपलब्धियों के पीछे की सच्ची कहानी तथा कारणों को जाने-समझे और यथासंभव अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें. आइए, तीन अलग-अलग कार्य क्षेत्रों के तीन विभूतियों की संक्षिप्त चर्चा करते हैं.
विज्ञान के क्षेत्र से एक मिसाल लें तो हाल के दशक में ब्रिटिश थ्योरीटिकल भौतिक शास्त्री स्टेफन विलियम हाकिंग याद आते हैं. शारीरिक रूप से लगभग दिव्यांग इस विलक्षण वैज्ञानिक की जितनी तारीफ़ की जाए, कम है. 21 साल की उम्र में एक बिमारी से ग्रस्त होने के कारण वे धीरे-धीरे शारीरिक अपंगता के शिकार हो गए और बाद के 53 साल व्हील-चेयर पर गुजारे. बावजूद इसके, जीने की प्रबल इच्छा और रिसर्च के प्रति उनके जुनून के बदौलत उन्होंने 49 साल और बहुत महत्वपूर्ण रिसर्च वर्क किया जब कि उनके डॉक्टरों ने उनके मात्र दो साल जीवित रहने का अनुमान लगाया था.
उसी तरह जर्मनी में जन्में महान संगीतज्ञ और कंपोजर लुडविग वान बीथोवेन के अचीवमेंट को क्या कहेंगे? 30 साल की उम्र के आसपास उन्हें सुनने की समस्या होने लगी और बाद में वे पूरी तरह बहरे हो गए. लेकिन कुछ एक्स्ट्रा-आर्डिनरी करने का जज्बा इतना स्ट्रांग था कि उन्होंने अगले करीब ढाई दशक तक जो कुछ कंपोज़ किया वह अकल्पनीय था. क्या यह सब उस छोटे से शब्द एक्स्ट्रा के योगदान के बिना संभव हो पाता?
जरा अपने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के विषय में भी जान लेते हैं. अपने पिता के इच्छानुसार वे ब्रिटिश शासन काल की सबसे मुश्किल इंडियन सिविल सर्विस प्रतियोगिता में शामिल हुए. पर उस कठिन कम्पटीशन में चौथा स्थान हासिल करने और आईसीएस के लिए सेलेक्ट होने के बाद भी देश भक्ति की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने उससे त्यागपत्र दे दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल हो गए. जरा सोचिए, किस तरह नेता जी ने देश के बाहर रहकर आजाद हिन्द फ़ौज का उत्कृष्ट नेतृत्व और संचालन किया, जिससे ब्रिटिश शासन बहुत परेशान हो उठा. उनके फ़ौज में चालीस हजार से ज्यादा सैनिक देश को आजाद करने के लिए संकल्पित थे, जिसमें रानी झांसी रेजिमेंट के नाम से महिला सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी भी शामिल थी.
विख्यात अमेरिकी फुटबॉल कोच और उदघोषक जिमी जॉनसन ने एक बार आर्डिनरी और एक्स्ट्रा-आर्डिनरी के बीच के फर्क को समझाते हुए कहा था कि यह फर्क दोनों शब्दों के बीच के एक्स्ट्रा शब्द का है. उनके कहने का आशय यह था कि शब्द एक्स्ट्रा की व्याख्या करें तो यह आपके लक्ष्य निर्धारण, आपका संकल्प, समर्पण, उत्साह और संयम, आपकी प्लानिंग, मेहनत और एकाग्रता, आपका नियमित अभ्यास और फिटनेस आदि के साथ-साथ आपका यह जुनून कि आप रोज अपने ही रिकॉर्ड को कैसे बेहतर बनाते जाते हैं, पर निर्भर करता है.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 19.04.2020 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 19.04.2020 अंक में प्रकाशित
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