- मिलन सिन्हा
गाँव छोड़ कर लोग लगातार शहरों में आ रहे हैं।शहरों पर बोझ बढ़ रहा है। शहर में बुनियादी सुविधाएँ पहले ही नाकाफी थी, अतिरिक्त जनसँख्या के दवाब में तो अब हालत और भी खस्ता हो गई है। सुबह हो या शाम, घर से बाहर निकल कर सड़क पर आते ही आपको हर छोटे बड़े शहर में सड़कों पर जाम से रूबरू होना पड़ेगा और सडकों पर गुजारे सारे वक्त में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को झेलना पड़ेगा। हालांकि वायु प्रदूषण का प्रकोप सर्वव्यापी है, फिर भी नगरों, महानगरों की हालत गाँव की अपेक्षा बहुत ही गंभीर होती जा रही है दिन-पर-दिन। वायु प्रदूषण के विभिन्न आयामों पर चर्चा जारी रखने से पहले आइये इन तथ्यों पर गौर कर लें :
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
गाँव छोड़ कर लोग लगातार शहरों में आ रहे हैं।शहरों पर बोझ बढ़ रहा है। शहर में बुनियादी सुविधाएँ पहले ही नाकाफी थी, अतिरिक्त जनसँख्या के दवाब में तो अब हालत और भी खस्ता हो गई है। सुबह हो या शाम, घर से बाहर निकल कर सड़क पर आते ही आपको हर छोटे बड़े शहर में सड़कों पर जाम से रूबरू होना पड़ेगा और सडकों पर गुजारे सारे वक्त में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को झेलना पड़ेगा। हालांकि वायु प्रदूषण का प्रकोप सर्वव्यापी है, फिर भी नगरों, महानगरों की हालत गाँव की अपेक्षा बहुत ही गंभीर होती जा रही है दिन-पर-दिन। वायु प्रदूषण के विभिन्न आयामों पर चर्चा जारी रखने से पहले आइये इन तथ्यों पर गौर कर लें :
- चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा आबादीवाला देश है। भारत की आबादी 120 करोड़ से ज्यादा है।
- भारत में यात्री वाहनों की संख्या चार करोड़ से ज्यादा है।
- हर साल भारत में 110 लाख वाहन का उत्पादन होता है।
- भारत विश्व के दस बड़े वाहन उत्पादक देशों में से एक है।
- हमारे देश में पेट्रोल, डीजल आदि की खपत तेजी से बढ़ रही है।
- हम अपने खनिज तेल की जरूरतों का 80% आयात करते हैं।
- वर्ष 2011-12 में हमने खनिज तेल के आयात पर 475 बिलियन डालर खर्च किया है।
- कोयले के उत्पादन और खपत में भी लगातार वृद्धि हो रही है।
उपर्युक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर हम स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं कि हमारी स्थिति कितनी गंभीर होती जा रही है। देश में खनिज तेल जरुरत की तुलना में मात्र 20% है, पर तेल पर चलनेवाले वाहनों की संख्या तेजी से बढती जा रही है।सड़कें छोटी पड़ती जा रही हैं, वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी निरंतर बढती जा रही है, देश की राजधानी विश्व के कुछ सबसे बड़े प्रदूषित शहरों में शामिल हो गया है, लेकिन किसे इन बातों की फिक्र है? नतीजतन, आज हम सभी निम्नलिखित परिस्थिति से दरपेश हैं:
- वायु प्रदूषण से भारत में हर साल 6 लाख से ज्यादा लोग मरते हैं।
- वायु प्रदूषण से एक बड़ी आबादी दमा, हृदय रोग, कैंसर , चर्म रोग आदि से ग्रस्त हैं।
- गर्ववती महिलाएं और पांच साल तक के बच्चे वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
- वायु प्रदूषण के कारण मानव समाज के अलावे पशु-पक्षी एवं वनस्पति तक को गहरी क्षति होती है।
तो आखिर क्या करें? सिर्फ सरकार द्वारा उठाये जानेवाले क़दमों के भरोसे रहें? या अपनी ओर से अपने वायु मंडल को प्रदूषण से बचाने के लिए नीचे लिखे कार्यों को अंजाम तक पहुँचाने में बढ़-चढ़ कर भाग लें और सरकार को भी इन्हें सख्ती से लागू करने के लिए संविधानिक तरीके से मजबूर करें:
- सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में व्यापक एवं प्रभावी सुधार।
- साइकिल चालन को अत्यधिक प्रोत्साहित करना।
- मौजूदा जंगलों /पेड़ों को संरक्षित करना एवं साथ-साथ बड़े पैमाने पर वनीकरण को बढ़ावा देना।
- यथासंभव प्राथमिकता के आधार पर सौर तथा पवन उर्जा को लोकप्रिय बनाना।
- उत्सर्जन मानदंडों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना।
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
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