Monday, November 23, 2020

जिज्ञासा का साथ न छूटे

                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

"जंगल बुक" जैसी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक ब्रिटिश साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग, जिन्हें  साहित्य के क्षेत्र में सबसे कम उम्र  में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, का कहना है, "मैं छह ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ. इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ.  इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन. सचमुच कितनी महत्वपूर्ण बात कही है इस महान लेखक ने.
सभी विद्यार्थी  इस बात से सहमत होंगें कि देश-दुनिया में अबतक जितने भी आविष्कार और अन्वेषण हुए हैं, सबके पीछे इन छह शब्दों की अहम भूमिका रही है. इसे एक शब्द में मनुष्य के  प्राकृतिक गुण जिज्ञासा के रूप में जाना जाता है. जरा सोचिए, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित  करनेवाले महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन के बारे में. अगर पेड़ से गिरते हुए सेव को देखकर उनको यह जिज्ञासा न हुई होती कि यह सेव नीचे धरती पर ही क्यों गिरा, तो क्या यह महान आविष्कार हो पाता? अगर महान भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बोस और इटालियन वैज्ञानिक गुल्येल्मो मार्कोनी अपनी जिज्ञासा को पंख न लगाते तो क्या रेडियो टेलीग्राफी का आविष्कार हो पाता और आज उसी सिद्धांत पर आधारित रेडियो, दूरसंचार, टेलीविज़न, मोबाइल आदि की  विराट और अदभुत  दुनिया का लाभ हम उठा पाते? 


दरअसल, जो अनदेखा, अनसुना और अनजाना है उसके प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा मनुष्य मात्र में होती है. प्राचीन काल से ही मनुष्य जाति इसको अपना सबसे प्रिय साथी और औजार बनाकर निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर होती रही है. वास्तव में, जिज्ञासा मनुष्य को हमेशा कुछ नया सोचने और करने को प्रेरित करती रहती है. यह नायाब मानवीय गुण एक ओर जहां निराशा और गम से जूझते लोगों को झकझोरती है और समाधान के नए रास्ते तलाशने को प्रेरित करती है, वहां  दूसरी ओर सुख-सुविधा से संपन्न व्यक्ति को जीवन का सही अर्थ जानने को विवश भी कर देती है. इसके बहुत सारे उदाहरण दुनिया में मौजूद हैं. एक बड़े उदाहरण के रूप में महात्मा बुद्ध और उनके अनमोल विचार दुनिया के सामने हैं. जरा सोचिए, अगर कोई विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा को विस्तार देते हुए एक बड़ा लक्ष्य रखे कि उसे तो इस ब्रह्माण्ड को समझने की कोशिश करनी है; पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सूरज-चाँद-सितारे, देश-विदेश आदि से जुड़ी हर बड़ी बात को जानने-समझने का प्रयास करते रहना है, तो उसे कितना ज्ञान और अनुभव हासिल होगा.  

    
विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात साफ़ तौर पर उभर कर आती है कि अधिकांश विद्यार्थी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद एक अच्छी नौकरी की तलाश में रहते हैं, जब कि अपनी शिक्षा, जिज्ञासा और क्षमता के आधार पर अपना व्यवसाय या उद्द्योग शुरू करने हेतु आगे आनेवाले युवाओं की संख्या अभी भी बहुत कम है. इस स्थिति में बदलाव जरुरी है.
अच्छी बात है कि नई शिक्षा नीति का एक बड़ा उद्देश्य विद्यार्थियों में जिज्ञासा की प्रवृति को उत्प्रेरित करना है जिससे कि छात्र-छात्राएं छात्र जीवन में और उससे आगे भी अपने सोच-विचार तथा कार्य-कलाप को उन्नत करते रहें. 


हर विद्यार्थी में जिज्ञासा का गुण विद्यमान होता है. बस हमेशा यह कोशिश करते रहने की जरुरत होती है कि किसी भी कारण जिज्ञासा की आग ठंडी न हो जाय. इसके लिए विद्यार्थियों को इन अहम बातों पर फोकस करना चाहिए.
पहली बात यह कि कभी भी प्रश्न पूछने से संकोच न करें. हां, प्रश्न पूछने का अंदाज शालीन और मर्यादित हो तो बेहतर. यह सच है कि कई बार विद्यार्थी यह सोचकर प्रश्न नहीं पूछते कि साथी-सहपाठी या शिक्षक बाद में उसका मजाक तो नहीं उड़ायेंगे. इस मामले में किसी ने बहुत सही कहा है कि जो विद्यार्थी प्रश्न पूछता है उसका कुछ देर के लिए तो मजाक उड़ाया जा सकता है या थोड़े समय के लिए तो वह मूर्ख प्रतीत हो सकता है, लेकिन जो विद्यार्थी इस डर से प्रश्न ही नहीं  पूछते, वे तो जीवन भर मूर्ख बने रहते हैं. दूसरा, अपने प्रश्न का उत्तर ठीक से सुनें और उसे समझने का यत्न करें. पूरी तरह न समझने की स्थिति में या उस विषय में कोई और प्रश्न दिमाग में आने पर उसका भी समाधान प्राप्त करें. तीसरा, जिज्ञासा के दायरे को सीमित न करें. कहने का आशय यह कि कोर्स में आपके जो भी सब्जेक्ट्स हैं उनके केवल कुछ प्रश्नों को सॉल्व करके संतुष्ट न हो जाएं, बल्कि अन्य सभी संभावित प्रश्नों के प्रति जिज्ञासु बनकर समाधान तक पहुंचने की चेष्टा करें. इसके लिए आपको को उस विषय के साथ गहरी दोस्ती निभानी पड़ेगी. निसंदेह, आपको अपनी जिज्ञासा के मैजिकल परिणाम मिलते रहेंगे. 

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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 04.10.2020 अंक में प्रकाशित
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Thursday, November 19, 2020

चलेगा कार्यशैली के मायने

                                     - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सभी विद्यार्थियों ने यह गौर किया होगा कि उनके स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में कुछ शिक्षक-प्राध्यापक अपने क्लास में जिस विषय  या चैप्टर को पढ़ाने आते हैं, उसे किसी तरह आधा-अधूरा पढ़ा कर घंटी बजते ही झट क्लास से निकल जाते हैं. क्लास के बाहर आप उनसे कुछ पूछने-समझने जाएं तो वहां भी वे आपको यथाशीघ्र चलता करते हैं. दिलचस्प बात है कि  वे अपनी संस्थान से कम वेतन नहीं लेते हैं और न ही अपने को किसी दूसरे शिक्षक-प्राध्यापक से कमतर ही समझते हैं. उसी तरह कुछ विद्यार्थी अपना क्लास जैसे-तैसे अटेंड करते हैं - कभी करते हैं, कभी नहीं करते हैं, देर से आते हैं, जल्दी निकलने की ताक में रहते हैं, कॉपी में कुछ नोट करते हैं, ज्यादा नहीं करते हैं. कई विद्यार्थियों को आप हर काम को किसी भी तरह निबटाते देखते हैं.  उनके रिजल्ट के समय अपनी असफलता का दोष किसी और पर मढ़ने की कोशिश करते भी आप देख सकते हैं.  आपके  आसपास  इस तरह के लोग अनायास ही मिल जायेंगे. दुःख की बात है कि देश में ऐसे लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है.
हां, ये सारे लोग जाने-अनजाने  "चलेगा कार्यशैली या संस्कृति" के पक्षधर व समर्थक होते है और कुछ तो प्रमोटर भी होते हैं. इनसे कोई इनके इस रवैये के विषय में सवाल करे तो उसका एक ही उत्तर होता है  कि सब चलता है और सब चलेगा. कमोबेश हर सरकारी दफ्तर और कई प्राइवेट संस्थान में इस कार्यशैली या संस्कृति से  चालित लोग कम या ज्यादा संख्या में मौजूद रहते हैं. वे लोग हर काम चलताऊ तरीके से निबटाते हैं. उनके कारण उन दफ्तरों का माहौल बिगड़ता है और छवि भी. सम्प्रति केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारें इस कार्यशैली को बदलने की कोशिश में जुटे हैं. यह बहुत अच्छी बात है. 


चलेगा कार्यशैली या संस्कृति से प्रेरित व प्रभावित विद्यार्थियों में ये ख़ास लक्षण पाए जाते हैं.
1) इनकी जीवनशैली बेतरतीब होती है. रात में सोना, सुबह उठना, खानपान, अध्ययन, ड्रेस, आचरण से लेकर जीवन को जीने का इनका पूरा अंदाज मानक सिद्धांतों से मेल नहीं खाता. हर मामले में ये विद्यार्थी चलेगा का दामन थामे रहते हैं.  2) ये अपनी असफलताओं से कोई सीख नहीं लेते हैं. रिजल्ट के दिन भी वे उतने दुखी या उदास नहीं होते क्यों कि ज्यादातर मामलों में उन्हें अपने परीक्षा या टेस्ट के फलाफल का अनुमान रहता है. फिर भी कोई इनसे खराब रिजल्ट को लेकर कोई सवाल करे तो बहानेबाजी और दोषारोपण को अपना हथियार बनाते हैं  3) ये विद्यार्थी अपने अभिभावक या शिक्षक की बात या तो सुनते नहीं हैं या चुपचाप सुनकर उसे अनसुना कर देते हैं.  4) जीवन में अनुशासन के महत्व को नहीं समझते हैं. लिहाजा अनुशासनहीनता के कई छोटे-बड़े मामले में फंसते रहते हैं. 5) समय की पाबंदी के वैल्यू को नहीं मानते. क्लास हो या समय से ट्रेन, बस या फ्लाइट पकड़ने या कहीं और पहुंचने की बात, ये अमूमन लेट से ही पहुंचते हैं.  


स्वाभाविक रूप से ऐसे विद्यार्थी इस चलेगा कार्यशैली के अनेकानेक दुष्परिणामों से रूबरू होते  हैं, जिनमें से ये अहम हैं.
1) इनकी आदत बिगड़ जाती है और ये कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाते हैं. स्वास्थ्य भी दुप्रभावित होता है.  2) आम परीक्षा हो या कोई भी प्रतियोगिता परीक्षा, इनका  रैंक नीचे ही होता है. लिहाजा एडमिशन या सेलेक्शन बहुत मुश्किल होता है.  3) इनकी इस कार्यशैली का बुरा असर इनके साथ-साथ इनके साथी-सहपाठी, परिजनों और आसपास के लोगों, खासकर घर के छोटे भाई-बहनों पर भी पड़ता है. 4) अपने संस्थान के अलावे घर या समाज में इन्हें लोग एवरेज स्टूडेंट मानते हैं और सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं. 5) आगे के जीवन में नौकरी या कारोबार में ये लोग रोजाना आठ-दस घंटे काम करने के बाद भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते हैं.  


"विश्व एक व्यायामशाला है जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं" - स्वामी विवेकानंद  की इस बात को सदा याद रखते हुए सभी छात्र-छात्राओं को चलेगा कार्यशैली से दूर रहने और इन पांच बातों को पूर्णतः अमल में लाने की जरुरत है.
1) शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहने का हर संभव प्रयास करें तथा अपने स्टडी पर पूरा फोकस करें 2) वर्तमान समय को लाइफ का प्राइम टाइम मानकर समय का सदुपयोग करें 4) आवरण हो या आचरण या खानपान या रहन-सहन, सब मामले में स्वच्छता, सकारात्मकता और संतुलन रखें. 4) हर काम को बहुत अच्छी तरह करने की आदत डालें यानी परफेक्शन और क्वालिटी पर ध्यान दें. 5) हमेशा याद रखें कि जीवन में एक्सीलेंस एक यात्रा है. इस विचार पर चलनेवाले विद्यार्थी बराबर सफलता प्राप्त करते रहते हैं. 

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            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
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Monday, November 16, 2020

नींद की अहमियत को भी समझें

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सभी विद्यार्थी इस बात पर एकमत होंगे कि अध्ययन आदि के कारण उनकी दिनभर की जो व्यस्तता होती है उसके बाद रात की अच्छी नींद न केवल उनकी जिन्दगी में सुख का बेहतरीन समय होता है, बल्कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उनकी आवश्यकता भी है.
कोरोना महामारी  के मौजूदा समय में जब दुश्चिंता, भय, दहशत, अनिश्चितता आदि से विद्यार्थीगण भी बहुत दुष्प्रभावित है, नींद की अहमियत और भी बढ़ जाती है. लेकिन क्या सभी छात्र-छात्राएं  रात में 7-8 घंटे अच्छी तरह सो पाते हैं? कई हेल्थ और मेडिकल सर्वे बताते हैं कि बड़ी संख्या में विद्यार्थी रात में अच्छी नींद का आनंद नहीं ले पाते हैं और इसके बहुआयामी दुष्परिणाम के हकदार बनते हैं. इसके अनेक जाने-पहचाने कारण हैं. काबिले गौर है कि यहां नींद का मतलब अच्छी नींद से है, बिछावन पर मात्र लेटे रहने से नहीं है. हां, यह भी सच है कि कम सोना और बहुत ज्यादा सोना दोनों सेहत के लिए ठीक नहीं होता है. यहां भी संतुलन जरुरी है. 


स्मार्ट फोन, लैपटॉप, इंटरनेट, डिजिटल लर्निंग, ऑनलाइन क्लासेज, सोशल मीडिया आदि के मौजूदा दौर में बहुत सारे विद्यार्थी "अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज यानी जल्दी सोओ और जल्दी उठो" के सिद्धांत पर अमल नहीं करते हैं
. कहने का मतलब यह कि ऐसे विद्यार्थी रात के दस बजे तक नहीं सोते हैं और न ही सुबह छह बजे से पहले जग पाते हैं. दरअसल, वे रात में देर से सोते हैं और सुबह देर से उठते हैं. नतीजतन उनके बॉडी क्लॉक का प्राकृतिक क्लॉक से सामंजस्य बिगड़ जाता है. इसका गंभीर दुष्प्रभाव उनके मेटाबोलिज्म, मेमोरी और इम्युनिटी पर पड़ता है. लिहाजा  पौष्टिक आहार लेने और एक्सरसाइज वगैरह करने के बाद भी वे कई रोगों के चपेट में आ जाते है. प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को जरुरी मानता है कि रात में अपर्याप्त या अनियमित नींद छात्र-छात्राओं के अध्ययन आदि पर बुरा असर डालती है. उन्हें थकान और आलस्य का बोध होता है. चाह कर भी वे अपने कार्य पर फोकस नहीं कर पाते हैं.  


सवाल है कि रात में अच्छी नींद का इतना महत्व क्यों है?
दरअसल, रात में नींद के दौरान हमारे शरीर में क्लीनिंग, रिपेयरिंग और रिचार्जिंग का काम होता है. इसी समय शरीर में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं यानी डब्लू बी सी, जो हमें रोग संक्रमण से बचाने का काम करती हैं, का रीजेनरेशन टाइम होता है. इतना ही नहीं, रात में अच्छी नींद के कारण हमारे शरीर में मेलाटोनिन नामक हॉर्मोन का स्राव बढ़ता है जो हमारे बायोलॉजिकल क्लॉक को दुरुस्त रखता है. यह हार्मोन अपने एंटीऑक्सिडेंट क्वालिटी के लिए भी प्रसिद्ध है. एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर की कोशिकाओं को मजबूत और स्फूर्तिवान बनाए रखता है. इससे शरीर सक्रिय और स्वस्थ रहता है. दिलचस्प बात है कि अच्छी नींद हमारे स्ट्रेस को कम करता है और हमारे लिए मूड-बूस्टर का काम भी करता है. अच्छी नींद के कारण हमारे सारे ऑर्गन अच्छे ढंग से काम करते हैं. उनका रेगुलेशन और रीसेटिंग अच्छे से हो जाती है. ब्रेन को जरुरी ब्रेक और रेस्ट मिल जाता है. इससे हमारा मानसिक और भावनात्मक संतुलन बेहतर बना रहता है. फील गुड और फील हैप्पी हॉर्मोन स्रावित होते हैं. इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है. सुबह हम तरोताजा और हैप्पी फील करते है. इसका  समेकित असर हर मामले में हर विद्यार्थी के लिए बहुत ही पॉजिटिव साबित होता है.


अब सवाल है कि आज के चुनौतीपूर्ण दौर में अच्छी नींद का लाभार्थी बनने और अनिद्रा की समस्या से बचे रहने के लिए कौन से सरल उपाय हैं, जिससे विद्यार्थियों  का इम्यून सिस्टम  स्ट्रांग बना रहे और वे दिनभर उर्जावान और उत्साहित बने रहें?
रात में 10 से 11 बजे के बीच सोने की और सुबह 6 बजे से पहले उठने की कोशिश करें. इसके लिए रात का खाना सोने से कम-से-कम एक घंटा पहले खा लें. अच्छी नींद के लिए रात का खाना हल्का और सुपाच्य होना चाहिए. हो सके तो सोने से पहले दूध में थोड़ा हल्दी या शहद या दालचीनी मिलाकर पी लें. इससे  नींद अच्छी आती है. सोने से घंटे भर पहले मोबाइल-लैपटॉप-टीवी आदि से नाता न रखें. संभव हो तो सोने से पहले  15-20 मिनट ही सही, कोई मोटिवेशनल किताब पढ़ें. मोबाइल को बेड से थोड़ा दूर रखें. टाइट कपड़े पहनकर ना सोएं. कपड़े कॉटन के हों तो बेहतर. बिछावन साफ़-सुथरा और कमरा हवादार हो. सोने के लिए बिछावन में जाने से पूर्व पैर धोकर पोंछ लें. फिर तलवों में सरसों के तेल से हल्का मालिश करें. सोते वक्त लाइट बंद कर दें. यकीनन, नींद अच्छी आएगी.  

 (hellomilansinha@gmail.com)   

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 20.09.2020 अंक में प्रकाशित
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Thursday, November 12, 2020

जैसी सोच वैसे हम, कैसे संभव है?

                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...

कोविड -19 महामारी के इस लम्बे दौर में अनेक अप्रत्याशित कारणों से बड़ी संख्या में हर उम्र के लोग हैरान-परेशान, चिंतित और तनावग्रस्त हैं. होम आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग, नेगेटिव न्यूज़, खानपान में असंतुलन, बेरोजगारी, आर्थिक तंगी, सामान्य रूटीन में असामान्य एवं अघोषित परिवर्तन और ऐसी अनेक बातों से आम लोगों का जीवन बहुत दुष्प्रभावित हुआ है.
लेकिन जीवन तो चलने का नाम है और जीवन में छोटी-बड़ी समस्याएं आती-जाती रहती हैं. सो, इन तमाम परेशानियों और चुनौतियों के बीच भी बहुत सारे  लोग हैं, जो आज भी कमोबेश संतुलित ढंग से जी रहे हैं और हंस-हंसा भी रहे हैं. यही है हमारी सोच और नजरिए का जीवन पर प्रभाव. हां, यूँ ही नहीं कहा जाता है कि सही सोच-विचार से हम जीवन को नई दिशा दे सकते हैं.


विश्व विख्यात मैनेजमेंट गुरु डेल कार्नेगी ने बताई जीवन की अहम बातें : जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही बनने लगते हैं. खुद को ताकतवर मानेंगे तो ताकतवर बनेंगे. डेल कार्नेगी ने जीवन की अहम बातें तीन वाक्यों में बताई हैं. 1) हम जो सोचते हैं, वही प्रमुख है.  2) हमारे  विचार ही हमें  वह बनाते हैं जो हम वास्तव में होते हैं और 3) अपनी सोच को बदलकर हम जिंदगी को भी बदल सकते हैं.  


जीने के प्रति प्रतिबद्धता और संकल्प को हमेशा स्ट्रांग बनाए रखनेवाले ये लोग  अंधेरे में भी रोशनी देख लेते हैं. जीवन के प्रति ये लचीला रुख रखते हैं. जिन बातों या सिचुएशन को ये कंट्रोल कर सकते हैं, उनका फोकस उन पर रहता है. जिनपर उनका कोई कंट्रोल नहीं होता उसे लेकर परेशान नहीं होते, बल्कि उसे स्वीकार करते हुए अपनी स्थिति को थोड़ा एडजस्ट करके चलने का प्रयास करते हैं. 


पॉजिटिव सोच वाले लोग गैर जरुरी बातों में समय और ऊर्जा नहीं गंवाते हैं. उनका समय व्यर्थ की बातों पर चिंता करने के बजाय अच्छी बातों के चिंतन-मनन में व्यतीत होता है. स्वाभाविक  रूप से उनकी रचनात्मकता और कल्पनाशीलता को इससे जरुरी माहौल और पोषण उपलब्ध होता है. परिणाम स्वरुप वे कठिनाई के कठिन दौर में भी नए रास्ते तलाशने में कामयाब होते हैं. 


दरअसल, अच्छी और संतुलित सोच से हमारे शरीर में डोपामाइन, सेरोटोनिन, ऑक्सीटोसिन, एंडोर्फिन जैसे फील गुड और फील हैप्पी होरमोंस का स्राव होने लगता है, जिससे हम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रिलैक्स्ड, शांत, संयत और खुश रह पाते हैं. स्वाभाविक रूप से हमारी पॉजिटिव एक्टिविटी बढ़ जाती है.
जाहिर है कि हमारा खानपान, रहन-सहन, आचरण सब जब बदलने लगे और एक ख़ास सकारात्मक दिशा में हो तो जीवन पर इसका सुंदर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 


            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# "दैनिक जागरण" और "नई दुनिया" के सभी संस्करणों में एक साथ (12.11.20) प्रकाशित  
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Monday, November 9, 2020

अपना अनोखापन बनाए रखें

                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

सब जानते हैं कि हर व्यक्ति अपने-आप में अनोखा है. विश्व की सात सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी में कोई भी व्यक्ति दूसरे के बिलकुल एक जैसा नहीं है और न ही हो सकता है. यह शाश्वत सत्य है. जुड़वां भाई-बहनों में भी अनेक समानताओं के बावजूद कई स्पष्ट असमानताएं भी होती हैं. बड़े होने पर यह और साफ़ हो जाता है. एक तरह की परवरिश के बाद भी उनका अनोखापन उनके स्वभाव, व्यवहार, पसंद-नापसंद, जीवनशैली, कार्यशैली आदि से रिफ्लेक्ट होता है. जुड़वां भाइयों और जुड़वां बहनों को लेकर कई हिन्दी और अन्य भाषाओं की फिल्में बनी हैं, जिसमें ऊपर कही गई बातों को रोचक तरीके से दर्शाया गया है.
गौरतलब  बात है कि अनोखेपन का यह संसार बहुत ही बड़ा, अदभुत और सुंदर है. छात्र-छात्राएं अबतक के अपने-अपने जीवन पर गंभीरता से गौर करें तो उन्हें खुद इस बात की सत्यता की अनुभूति हो जाएगी. उनके सपने और लक्ष्य, उनकी सोच, उनका विचार, रहन-सहन, खानपान आदि सब मामले में वे एक दूसरे से कुछ-न-कुछ अलग हैं और रहेंगे. 


जॉब मार्केट में या प्रतियोगिता परीक्षा के इंटरव्यू में आम तौर पर प्रतिभागियों से उनके  यूएसपी  के बारे में पूछा जाता है.
यह यूएसपी आखिर है क्या? इसका फुल फॉर्म है यूनिक सेलिंग प्रोपोजीशन या पॉइंट. सरल शब्दों में कहें तो आप दूसरे की तुलना में यूनिक या अनोखे कैसे हैं? कहने का आशय यह कि किसी भी व्यक्ति का अनोखापन उसकी एक स्पेशल क्वालिटी और आइडेंटिटी  होती है, जिसे हर नियोक्ता या चयनकर्ता कैंडिडेट में देखना चाहता है. दरअसल, यह एक लीडरशिप क्वालिटी भी है, जिससे आप भीड़ का हिस्सा होते हुए भी भीड़ से अलग दिखते हैं. हां, यह विशेष गुण और पहचान आपके लिए दिखावे या अहंकार की वस्तु नहीं बने, इसका ध्यान रखना अच्छा साबित होता है.  


विचारणीय विषय यह है कि यह सब जानते हुए भी बहुत सारे विद्यार्थी किसी दूसरे की तरह ही बनना चाहते हैं, उनकी नक़ल करते हैं, बिना सोचे-समझे दूसरे के पीछे चलते रहते हैं. यह दूसरा व्यक्ति कोई भी हो सकता है - कोई नेता, अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, कलाकार, दोस्त, सहपाठी  या अन्य कोई. इतना ही नहीं, नए कोर्स में एडमिशन लेने की बात हो या किसी कॉलेज-यूनिवर्सिटी  विशेष में पढ़ने की बात हो या किसी आन्दोलन या जुलूस  में शामिल होने की बात, छात्र-छात्राएं बस एक जैसा काम करने लगते हैं.
यकीनन यह उनके हित में नहीं होता है क्यों कि वे अपने मौलिकता को छोड़कर कॉपी-पेस्ट कल्चर को अपनाने लगते हैं.  सभी विद्यार्थी इस बात से सहमत होंगे कि वे किसी के गुलाम नहीं बनना या रहना चाहते हैं. उनमें चीजों को अपने तरीके से देखने-समझने की स्वाभाविक जिज्ञासा होती है. वे यह भी मानेंगे कि उनकी जिंदगी बेशकीमती है और वे अपनी जिंदगी को अपने तरीके से पूरी सार्थकता और जीवंतता  के साथ  जीना चाहते हैं. सवाल है कि ऐसा जीवन जीने के लिए छात्र-छात्राओं को क्या करना चाहिए?


पहले तो प्रत्येक विद्यार्थी अपनी समझ के मुताबिक़ जीवन के अपने छोटे-बड़े लक्ष्य को स्पष्ट रूप से तय करें. फिर उसके अनुरूप अपनी कार्ययोजना बनाकर उस ओर बढ़ना शुरू करें. अध्ययन, कैरियर या अपने जीवन से जुड़ी अहम बातों पर थोड़ी गहराई में जाकर चिंतन करें. बहुत सारे कनफ्यूजन क्लियर हो जायेंगे. खुद की बुद्धि और क्षमता पर भरोसा बढ़ने लगेगा.  छात्र-छात्राएं हमेशा यह भी सोचें कि हर प्रॉब्लम का निदान कहीं-न-कहीं है और वे भी उस निदान तक पहुंच सकते हैं, बेशक कई बार उनके लिए वहां तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल भी हो सकता है.
इससे चीजों को देखने, परेशानियों से निबटने और समस्याओं का समाधान तलाशने में वे दक्षता हासिल करते जायेंगे. इसका पॉजिटिव असर उनके स्टडी और कैरियर सहित कई मामलों में दिखेगा ही.  


जानने-सीखने के मामले में खुले मन से काम करें. सीखें सबसे, परन्तु अन्धानुकरण किसी का नहीं करें. जब-जहां महसूस हो, सलाह-सुझाव-मार्गदर्शन जरुर प्राप्त करें, लेकिन खुद उस पर सोच-विचार करके ही अंतिम निर्णय लें. ऐसे भी जब कोई विद्यार्थी अपने को यूनिक मानता है, जो कि वह वास्तव में होता है तो उसका जो भी यूएसपी है उसे आधार बनाकर भविष्य की कार्ययोजना बनाना बेहतर होता है. 
खेल का मैदान हो, गीत-संगीत-नृत्य की प्रतियोगिता, रंगमंच या पेंटिंग की दुनिया, राजनीति या कूटनीति का फील्ड, भाषण या लेखन प्रतियोगिता, वर्कप्लेस या शोध संस्थान सभी स्थान पर लोग अपने यूएसपी की बुनियाद पर दूसरे की अपेक्षा बेहतर रिजल्ट हासिल करते हैं. अतः जरुरी है कि हर विद्यार्थी अपने अनोखेपन को बनाए रखें. फायदे में रहेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com)   

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 13.09.2020 अंक में प्रकाशित
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Thursday, November 5, 2020

आज की बात: बिहार चुनाव - मेरे विचार

                                                          - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर व लेखक 

बिहार में सबकुछ है - अत्यन्त गौरवशाली अतीत, जिसका उल्लेख वेदों, पुराणों एवं महाकाव्यों तक में प्रचुरता में मिलता है; उर्वरा जमीन, नदियों का जाल और पानी की बहुलता; बिहारियों की मेधा और सादगी, मेहनत व संघर्ष के बूते आगे बढ़ने की क्षमता व जज्बा, राजनीतिक जागरूकता आदि. फिर भी अपेक्षाकृत बेहतर स्टेट जीडीपी दर का अपेक्षित फायदा गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार आदि क्षेत्रों और राज्य के सभी इलाकों और समुदायों को समावेशी रूप में नहीं मिल पाया है; बिहार की प्रति व्यक्ति आय पिछले एक दशक में बेहतर तो हुई है, परन्तु यह अब भी देश के अग्रणी राज्यों के मुकाबले आधे से भी कम है. लिहाजा बिहार में मानव विकास सूचकांक कमजोर है. इस स्थिति में गुणात्मक बदलाव के लिए यह जरुरी है कि प्रशासन की कार्यशैली पूर्णतः पारदर्शी, जनोन्मुख और  भ्रष्टाचारमुक्त - व्यक्तिगत और संस्थागत हो. समाज को भी जागरूक और सचेत रहकर गलत करनेवालों को टोकने और रोकने के मामले में आगे आना पड़ेगा.  

 
पिछले दो विधानसभा चुनाव (2010 और 2015) में वोटिंग 60 प्रतिशत से कम रहा है. इस बार भी पहले दो चरणों में वोटिंग लगभग 56 प्रतिशत रही. लोकतंत्र के इस बड़े उत्सव में करीब 44 प्रतिशत वोटरों की भगीदारी न होना गंभीर चिंता का विषय है. सभी संबंधित पक्ष - समाज, सरकार, राजनीतिक दल, चुनाव आयोग आदि  को इस पर सार्थक चर्चा-विमर्श करने और इसमें गुणात्मक सुधार (वोटिंग प्रतिशत कम-से-कम 80%) करने हेतु ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. बहरहाल, बिहारवासियों से यही अपेक्षा है कि वे तीसरे चरण के मतदान में  बड़ी संख्या में मताधिकार का प्रयोग करें तथा अच्छे व सच्चे प्रतिनिधि का चुनाव सुनिश्चित करें. तभी लोकतंत्र मजबूत और सफल होगा और बिहार का भविष्य बेहतर भी. 


मुझे विश्वास है कि बिहार के लोग जो ठान लेंगे, उसे कर लेंगे और सरकार से करवा भी लेंगे.     


               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.