Saturday, November 24, 2012

व्यंग्य कविता : पहुँच वाले

                                                                      * मिलन सिन्हा 
पहुँच वाले 
ए जी, ओ जी 
हो जाओ  शुरू जी  से 
टू जी  तक पहुँच गए। 
बेईमानी  का यह खेल 
खेलते - खेलते 
कामन वेल्थ में सेंध लगा गए।
कहते हैं, 
पहुँच वाले 
अपनी  पहुँच से 
कहीं भी पहुँच जाते  हैं,
काले सफ़ेद के चक्कर में 
अन्त में, कालिख पुतवा कर 
जेल की हवा खाते हैं !
                                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं                        

आज की कविता : काला पानी का सच

                                                                   - मिलन सिन्हा 

जो थे राष्ट्रभक्त 
और स्वतंत्रता सेनानी 
उन्हें तो 
उठानी पड़ी थी 
अनेकानेक परेशानी।
भेज देते थे उन्हें 
बर्बर गोरे  अंग्रेज 
भोगने  काला पानी।
तथापि,
 वे सत्याग्रह करते गए 
बेशक इस क्रम में 
अनेक मर गए,
तो कुछ 
गुमनामी के अँधेरे में 
खो गए।
लेकिन,
देश को यही  लोग 
स्वाधीन कर गए।
आजाद हुआ देश
तो 
बदलने लगा परिवेश।
सब कुछ हो अपना
यही तो था 
सबका सपना।
अपना कानून, 
अपना संविधान,
अपनी बोली, 
अपना परिधान।
इस बीच,
गुजर गई आधी शताब्दी 
और 
विकास के साथ 
बढती गई हमारी आबादी।
परन्तु, 
साढ़े छह दशक बाद भी 
काला पानी ने 
न छोड़ा हमारा साथ 
काला पानी पेश करना तो अब 
हो गई  है 
शिष्टाचार की बात।
वैज्ञानिक कहते रहें 
इसे खराब 
स्टार तो हमारे 
कहते हैं इसे लाजवाब।
हो कोई क्रिकेटर 
या हो कोई फ़िल्मी एक्टर  
सबके लिए पैसा है 
बहुत बड़ा फैक्टर।
काला  पानी से 
देखिए उनका अपनापन,
हर तरफ आजकल 
छाया है उसी का  विज्ञापन।
काला पानी अब 
हम भोगते नहीं 
बल्कि 
खूब पीते हैं 
जिंदगी को ऐसे ही 
खूब मस्ती में जीते हैं।
गरीबों/ ग्रामीणों  को
मिले न मिले 
पीने को पानी
पर, हर जगह 
मिल रहा है काला पानी, 
काला पानी।  

# प्रवक्ता .कॉम पर प्रकाशित 

                        और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं                      

Thursday, November 22, 2012

आज की कविता : चौराहे पर खड़े हम

                                                                       *  मिलन  सिन्हा
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चौराहे पर खड़े हम
जिसके सहारे था, उसी ने मुझे बेसहारा किया
साहिल ने भी  अब  मुझसे  किनारा किया।

दिन गुजर गया, पर किसी ने खबर न ली
शाम को उसने मुझे दूर से  इशारा किया।

खट्टी-मीठी यादों का नाम है मेरी जिंदगी
यादों के सहारे ही हमने अबतक गुजरा किया।

जो  कुछ  झूठ  है, वही  सब  सच  है  यहाँ
देश के कर्णधारों (?) ने तैयार यह नारा किया।

जो गन्दा है, भूखा है, नंगा है, उसे मत देखो 
उन्होंने  हिदायत दी, पर मैंने वही दुबारा किया।

कौन  थे  वे  लोग, कहाँ  गए  वे  लोग 
जिन्होंने हमें आज चौराहे पर खड़ा किया।

#  प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं

Thursday, November 15, 2012

आज की बात: देश के गरीब बच्चों के लिए कब मनायेंगे बाल दिवस ?

                                                                           -- मिलन सिन्हा 
     कल (14 नवम्बर)  बाल दिवस था और चाचा नेहरु का जन्म दिवस भी। अनेक  सरकारी आयोजन हुए, स्कूलों में  पिछले वर्षों की भांति कई कार्यक्रम हुए, बहुत  बातें हुई,  बच्चों की  भलाई के   लिए ढेर सारे वादे किये गए, तालियां बजी  और क्या ? हां, आजाद  देश के पहले प्रधान मंत्री और बच्चों के चाचा नेहरू के जन्म दिन के उपलक्ष्य में भी अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये।   

ज़रा सोचिये, इस मौके पर  पूरे  देश में  जितने रूपये सारे सरकारी आयोजनों में खर्च हुए दिखाए जायेंगे, उतना अगर कुछ गरीब, बेसहारा, कुपोषित बच्चों  के भलाई के लिए  कुछ बेहद पिछड़े गांवों में   खर्च किये जाते तो कुछ तो अच्छा होता।

आजादी के 66  साल बाद भी  पूरी आजादी से गरीब छोटे बच्चे सिपाही जी को रेलवे के किसी स्टेशन पर या चलती ट्रेन में मुफ्त में गुटखा, सिगरेट,बीड़ी या तम्बाकू खिलाता,पिलाता दिख जायेगा। वैसे ही दिख जाएगा  नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों  के घर में भी  नौकर के रूप में काम करते हुए  लाचार,  बेवश  छोटे गरीब बच्चे। सड़क किनारे छोटे होटलों, ढाबों, अनेक छोटे-मोटे कारखानों, दुकानों आदि में ऐसे छोटे बच्चे सुबह से शाम तक हर तरह का काम करते मिल जायेंगे, तथाकथित  बचपन बचाओ अभियान को अंगूठा दिखाते हुए। हमारे देश में जन्म से ही गरीब तबके के  बच्चों के साथ  लापरवाही या जैसे-तैसे पेश आने का प्रचलन  रहा हो ऐसा प्रतीत  होता है, यह सब देख कर।

इस मौके पर निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करना प्रासंगिक होगा :
  • बच्चों के अधिकार पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के लड़का और लड़की को बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है।
  • भारतवर्ष में बच्चों की कुल संख्या देश की आबादी का 40% है, यानी करीब 48 करोड़।
  • देश में हर घंटे 100 बच्चों की मृत्यु होती है।
  • भारत में बाल मृत्यु  दर (प्रति 1000 बच्चों के जन्म पर ) अनेक राज्यों में 50 से ज्यादा है जब कि इसे 30 से नीचे लाने की आवश्यकता है।
  • दुनिया के एक तिहाई  कुपोषित  बच्चे भारत में रहते हैं।
  • देश में आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण  मरते हैं।
  • पांच साल तक के बच्चों में 42% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
  • जो बच्चे स्कूल जाते है  उनमें  से 40% से ज्यादा बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं जब कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत उनके स्कूली शिक्षा के लिए सरकार को हर उपाय  करना है।
  • हाल के वर्षों  में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि हुई है।
        इस तरह  के अन्य अनेक तथ्यों से रूबरू होते रहते है हम पढ़े-लिखे, खाते-पीते लोग। कभी- कभी वक्त मिले तो थोड़ी चर्चा भी कर लेते हैं। लेकिन, अब  सरकार के साथ-साथ भारतीय समाज को भी इस विषय पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा और संविधान/कानून  के मुताबिक  जल्द ही कुछ  प्रभावी कदम  उठाने पड़ेंगे, नहीं तो इन गरीब, शोषित, कुपोषित,अशिक्षित बच्चों की बढती आबादी आने वाले वर्षों  में देश के सामने बहुत  बड़ी और बहुआयामी चुनौती पेश करनेवाले हैं।ऐसे  भी, हम कब तक सिर्फ  सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) और शाइनिंग इंडिया  की चर्चा से देश की आम जनता को बहलाते रहेंगे।


               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं                                                         

Saturday, November 10, 2012

तीन लघु कविताएं : मोह, कारगर, महान

                                                                                      - मिलन सिन्हा 
मोह
जीवन 
आनन्ददायक है, 
किसके लिए ?
जिसने 
इसका  मोह 
त्याग दिया है, 
उसके लिए !

कारगर
स्वतन्त्रता 
कारगर है, 
कब ?
इसके साथ जब 
रोटी भी हो, 
तब !

महान 
आदमी 
महान  बनेगा, 
कब ?
वह जब 
'मैं' से निकल कर 
'ममेतर' में जायेगा, 
तब ! 

# जीवन साहित्य के दिसम्बर '८१ अंक में प्रकाशित 

                       और भी बातें करेंगे, चलते चलते असीम शुभकामनाएं

Wednesday, November 7, 2012

तीन लघु कविताएं : भयानक, सराहनीय, उपदेश

                                                                                        - मिलन सिन्हा 
भयानक 
मौत 
भयानक है, 
किसके लिए ?
जो इसकी 
अनिश्चितता से 
डर  गया, 
उसके लिए !

सराहनीय
सुन्दरता 
सराहनीय  है, 
कब ?
जब यह 
दूसरे को भी 
सुन्दर होने का 
बोध कराए, 
तब !

उपदेश
उपदेश दो, 
किसे ?
जो इसे 
मानने से पहले 
जांचे - परखे, 
उसे !
 # जीवन साहित्य के दिसम्बर '८१ अंक में प्रकाशित

            और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

हास्य व्यंग्य कविताएं : महंगाई और भ्रष्टाचार, आधुनिक परिभाषा


हास्य व्यंग्य कविताएं         
                                                                   0 मिलन सिन्हा  
महंगाई और भ्रष्टाचार 
काफी समय से 
पति पत्नी के बीच 
चल रही थी तकरार 
पर कोई भी अपनी हार 
स्वीकारने को 
नहीं थे तैयार .
तभी पत्नी बोली,
तुम मुझे मत धमकाओ 
वरना, मैं महंगाई  बन जाऊंगी 
और तुम पर तो क्या 
पूरे देश पर छा जाऊंगी .
तैश में आकर तब 
पतिदेव ने फरमाया,
ठीक है, मैं भी तब 
भ्रष्टाचार बन जाऊंगा 
और केवल
अपने देश पर ही नहीं 
पूरे विश्व पर छा जाऊंगा .

आधुनिक परिभाषा 
एक आधुनिक पत्नी ने 
अपने पति को
'पतिव्रता' शब्द का
अर्थ यूं समझाया 
कि 'पति' से महीने   
दस दिन निराहार 'व्रत' रखवाया .

                              और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं 
           

Saturday, November 3, 2012

आज की कविता : यही है बस

                                      - मिलन सिन्हा 

बस, यही है बस।
हमारे  गांव की बस 
सभी गांवों की बस 
ऊपर नीचे लोग ठसाठस 
बराबर दौड़ती रहती है यह 
चांदनी हो या हो अमावस 
बस, यही है बस।

जाति -पांति मिटानेवाली बस 
सबको साथ ले चलनेवाली बस 
जहां कहो रुकनेवाली  बस 
छोटे - बड़े सबकी बस 
समाजवाद का नमूना है बस 
बस, यही है बस।

हमारे गांव जैसी है यह बस 
टूट रही है, उजड़ रही है बस 
गरीबी, बेकारी की कहानी है बस 
शहर में झोपड़पट्टी जैसी है बस
हर समय हमें झकझोरती है बस 
बस, यही है बस।

('हिन्दुस्तान ' में 10 जुलाई,2003 को प्रकाशित)

                         और भी बातें करेंगे, चलते-चलतेअसीम शुभकामनाएं