Friday, May 28, 2021

प्रकृति, प्रवृति और प्रगति

                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

छात्र-छात्राएं इन तीन शब्दों - प्रकृति, प्रवृति और प्रगति पर थोड़ा गहराई से विचार करेंगे तो  उन्हें इन शब्दों की महत्ता और आपसी जुड़ाव का पता चलेगा. उनके जीवन में इनकी कितनी अहमियत है, इसके विषय में जानकर उन्हें बहुत अच्छा लगेगा और विस्मय भी होगा. 

  
प्रकृति और हमारा रिश्ता बहुत गहरा और स्वाभाविक है. सभी विद्यार्थी जानते हैं कि
हमारा यह शरीर पंच तत्वों - आकाश, जल, वायु, अग्नि और धरती का समेकित लघु रूप है. यह कहना  गलत नहीं होगा कि हम सभी प्रकृति की  संतान हैं. यही कारण है कि मूल रूप से प्रकृति के सभी गुण हममें विद्यमान हैं. मानव जाति के निरंतर विकास के पीछे प्रकृति की बहुत अहम भूमिका है. हम सबके के लिए धरती घर का आंगन है तो आकाश  उस घर का छत,  चांद, सूरज आदि  प्रकाश और ऊर्जा के स्त्रोत हैं तो नदी, झील, सागर आदि मनुष्य को जलयुक्त रखने के माध्यम और पेड़-पौधे प्राणवायु और आहार के साधन हैं. विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु का कहना है कि प्रकृति की सभी चीजों में कुछ ना कुछ अद्भुत है. आप उससे जितना जुड़ेंगे, आपको इसका उतना ही ज्ञान होगा. सभी ज्ञानीजन बराबर कहते हैं कि प्रकृति हर वक्त हमारे लिए अभिभावक, मार्गदर्शक और दोस्त का रोल अदा करती रही है. लेकिन क्या हम प्रकृति का उचित सम्मान करते हैं, उसकी अहमियत को ठीक से समझते हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि तथाकथित आधुनिकता के प्रभाव या कतिपय अन्य कारणों से प्रकृति प्रदत्त हमारे ये गुण या तो कमजोर होते जाते हैं या हम उन्हें जाने-अजनाने अपने व्यवहार में शामिल नहीं कर पाते हैं. फलतः इसका बहुत नुकसान हम सबको उठाना पड़ता है. यकीनन, विद्यर्थियों के लिए यह बहुत ही अहम विचारणीय विषय है. 


हम सब जानते हैं कि व्यक्ति की जैसी प्रवृति होती है, वह वैसा ही काम करता है. चोर की प्रवृति दूसरे का सामान चुराने की होती है, सो वह चोरी के काम करता है. इसके विपरीत किसी साधु या अच्छे व्यक्ति को देखें तो वह अपनी अच्छी प्रवृति के अनुरूप बराबर अच्छे  व समाजोपयोगी कार्य में लगा रहता है. अल्बर्ट आइन्स्टीन कहते हैं, "प्रवृत्ति की कमजोरी चरित्र की कमजोरी बन जाती है." यह भी सौ फीसदी सच है कि व्यक्ति की प्रवृति पर प्रकृति के सानिद्ध का गहरा व सकारात्मक असर होता है. प्रकृति की प्रवृति  देने की होती है, अनुकूल और प्रतिकूल प्रतीत होनेवाले समय में भी हंसते हुए संघर्षरत रहने और  हार नहीं मानने की होती है. सब जानते हैं कि पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता है. फल और फूल से अत्यंत संपन्न होने के बावजूद भी पेड़ की प्रवृति में न तो अहंकार का भाव रहता है और न ही दूसरों को हानि पहुंचाने का. क्या सभी छात्र-छात्राएं देने की भावना रखते हैं और वाकई उसे दैनंदिन जीवन में अमल में लाते हैं? एक बार आंख बंद कर सोचें कि पिछले एक साल में उन्होंने कितने साथियों-सहपाठियों-परिजनों-पड़ोसियों की किसी-न-किसी रूप से मदद की है. पैसे से मदद करने के अलावे भी लोगों की सहायता करने के अनेक तरीके हैं. कोरोना महामारी के  प्राइम टाइम में फिल्म अभिनेता सोनू सूद द्वारा मजदूरों और उनके परिजनों की हरसंभव सहायता करने का उदाहरण सबके सामने है. श्री राम को शिक्षा प्रदान करने के क्रम में महर्षि वशिष्ठ कहते हैं कि जो मनुष्य  प्रकृति के साथ अपनी प्रवृत्ति को जोडक़र जीवन जीता है, वही सच्चे मायने में जीवन में सफल होता है.   

   
प्रगति एक डायनामिक प्रोसेस है, एक निरंतर यात्रा. मानव जाति का इतिहास प्रगति का दस्तावेज है. हर विद्यार्थी में एकाधिक विशेषताएं होती हैं और सभी विद्यार्थी जीवन में प्रगति करना चाहते हैं. अपनी-अपनी  विशेषताओं का सदुपयोग करते हुए शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को निरंतर बेहतर बनाने का उनका प्रयास इस बात को सिद्ध करता है. यह सही और जरुरी भी है. लेकिन प्रगति का सही अर्थ क्या है? क्या दूसरे को कुचलते हुए, उनका शोषण करते हुए, उन्हें धोखा देते हुए आगे बढ़ना क्या प्रगति का सूचक हो सकता है? कदापि नहीं.  प्रगति की सही परिभाषा तो यह है कि छात्र-छात्राएं  इस लोकतांत्रिक और समावेशी विचार के साथ आगे बढ़ने  की कोशिश करते रहें, जिसमें "सबका साथ, सबका विकास" की भावना शमिल हो? कहने का आशय यह कि प्रकृति की संरचना और उसके कार्यशैली को ठीक से समझते हुए विद्यार्थीगण  अपनी प्रवृति को सदैव मानवीय और सकारात्मक रखने का प्रयास करते रहें  तो जीवन में प्रगति पथ पर बढ़ते रहना आसान हो जाएगा और अत्यंत आनंददायक भी.  

  (hellomilansinha@gmail.com)      

      
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 28.02.2021 अंक में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Friday, May 21, 2021

परीक्षा सीजन में कैसे रहें स्ट्रेस फ्री?

                                          - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

आजकल परीक्षा और स्ट्रेस में घनिष्ठ रिश्ते की झलक अनायास ही मिल जाती  है. स्कूल-कॉलेज की परीक्षाओं के साथ-साथ प्रतियोगिता परीक्षाओं का दौर प्रारंभ हो चुका है. अधिकतर छात्र-छात्राएं तनाव से गुजर रहे हैं. सब जानते हैं की तनाव शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. ऐसे में विद्यार्थियों की तैयारी दुष्प्रभावित होना स्वाभाविक है और परिणामस्वरूप उनका रिजल्ट भी. लेकिन समस्या है तो समाधान भी है और कहते हैं न "मुश्किल  नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए और अपने मन को मना लीजिए." आइए, आज पांच ऐसे आसान उपायों की चर्चा करते हैं, जिससे परीक्षा के दौर में विद्यार्थियों के लिए स्ट्रेस फ्री रहना संभव होगा.


1. तनाव का सीधा संबंध हमारी सोच से है. माइंड मैनेजमेंट से है
. खुद पर भरोसा और पॉजिटिव सोच रखेंगे तो सब कुछ पॉजिटिव दिखेगा और होगा भी. हमारा मेटाबोलिज्म और इम्यून सिस्टम भी बेहतर रहेगा. लिहाजा, कुछ भी हो जाए हमेशा पॉजिटिव नजरिया बनाए रखें. हां, स्ट्रेस  का कारण कागज़ पर लिखें और अपने  हिसाब से संभावित समाधान भी लिखें. अधिकतर मामलों में यह पाया गया है कि दिमाग से उतरकर कागज़ पर लिखते ही तनाव के कारण बहुत हल्के नजर आते हैं और समाधान भी मिल जाते हैं. सदा यह भी याद रखें कि परेशानी-समस्या सबके जीवन में आती-जाती रहती है. बस संयम और शांति से जो भी कर सकते हैं करते रहें. इससे लाभ मिलेगा. 


2. तनाव को मैनेज करने में सही रूटीन की बड़ी भूमिका होती है.
दिनभर के 24 घंटे में से रात की नींद के 7-8 घंटे अलावे स्नान-भोजन आदि के लिए उचित समय छोड़कर बाकी के समय को विषयवार नियत कर उसका पूरा सदुपयोग करें. भोजन पौष्टिक और सुपाच्य हो, इसका ध्यान रखें. सोशल मीडिया से इस समय दूर ही रहें तो बेहतर होगा. मोबाइल का उपयोग भी न्यूनतम हो तो अच्छा. हां, बहुत जरुरी हो तो बस अपने ज्ञानवर्धन और जरुरी कार्यकलाप को सुगम बनाने के लिए ही इनका उपयोग करें. इससे आपका समय बचेगा और तनाव घटेगा. दिन  की अच्छी शुरुआत और उसका समापन स्ट्रेस को कम करने में बहुत कारगर साबित होता है. इसके लिए सुबह-सुबह शरीर को अच्छी तरह जल और ऑक्सीजन युक्त कर लेना जरुरी है. इससे शरीर स्वच्छ और रक्त संचरण बेहतर होता है. उसी तरह सोने से पहले पॉजिटिव माइंडसेट में रहना अच्छी नींद के लिए जरुरी है. अच्छी नींद अपने-आप में मानसिक तनाव का बेहतरीन समाधान है. परिजनों के साथ कुछ क्वालिटी और हैप्पी टाइम बिताने से भी स्ट्रेस काफी घटता है. 


3. अतीत या भविष्य में जीने के बदले आज यानी प्रेजेंट में जीना सीखें.
अबतक क्या नहीं पढ़ पाए, इसके बजाय आज और आगे क्या पढ़ सकते हैं, इसपर ध्यान केन्द्रित करें. हाँ,  जब भी मन अतीत की बातों को सोचकर दुखी हो रहा हो या भविष्य के प्रति दुश्चिंता या आशंका हो तो तुरत मन को प्रेजेंट में लाएं और किसी पॉजिटिव एक्टिविटी में व्यस्त हो जाएं.  अभी तो बस अपने रूटीन को फॉलो करते हुए अपनी पॉजिटिव एक्टिविटी को बढ़ाना बहुत जरुरी है.


4. दोस्त या सहपाठी या कोई अन्य व्यक्ति जो कुछ कहें, बस एक बार उनकी बात शांति से सुन लें.
उनकी अच्छी बात की प्रशंसा जरुर करें. अपने फायदे का जो कुछ हो उसे ग्रहण कर लें. अन्यथा इग्नोर करें. कहने का आशय यह कि आलोचना से विचलित न हों. अतिरेक-आवेग-उत्तेजना में जवाब न दें. इससे कोई लाभ नहीं होता है. विवाद और मानसिक तनाव जरुर बढ़ता है. 


5. हर विद्यार्थी अनोखा है. क्षमता का  किसी में अभाव नहीं.
अतः न तो किसी से अपनी तुलना करें और न ही प्रतिस्पर्धा. बस दृढ़ संकल्प और स्पष्ट लक्ष्य के साथ अपने कर्मपथ पर चलते रहें. अच्छी बातें दूसरों से सीखें जरुर, पर किसी से अपनी तुलना करके मन दुखी न करें. प्रतिस्पर्धा के बजाय अनुस्पर्धा करें. कल से बेहतर आज कैसे परफॉर्म कर सकते हैं, इस पर बस महान धनुर्धर अर्जुन की तरह फोकस करते हुए अध्ययन में मन लगाएं. 


अंत में एक और बात. कभी अचानक बहुत स्ट्रेस फील  हो, तो फ़ास्ट रिलीफ के लिए स्ट्रेस वाले स्थान से अलग किसी खुले जगह पर चले जाएं; कहीं बैठ जाएं और दो मिनट तक दीर्घ श्वास लें और अपने श्वास को आते-जाते महसूस करें; फिर आंख बंद कर थोड़ा पानी धीरे-धीरे सिप करें. लेमन टी या चाकलेट मिले तो एन्जॉय करें; आराम से बैठकर 100 से शून्य तक उल्टी गिनती करें. अच्छा महसूस हो तो दुबारा करें और  अपने माता-पिता, शिक्षक-मेंटर या काउंसेलर से बात करें. 

(hellomilansinha@gmail.com)


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# "हिन्दुस्थान समाचार समूह" की  पाक्षिक पत्रिका "यथावत" में प्रकाशित   

#For Motivational Articles in English, pl.visit my site : www.milanksinha.com                                                                                                     

Friday, May 14, 2021

छोटे-छोटे कदम और बड़ा मुकाम

                                    - मिलन  सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 

हाल ही में अहमदाबाद क्रिकेट टेस्ट में भारत ने इंग्लैंड को दो दिनों में ही पराजित कर टेस्ट श्रृंखला में दो-एक की बढ़त बना ली. इस टेस्ट मैच में भारतीय स्पिन गेंदबाज अक्षर पटेल और रविचंद्रन अश्विन का प्रदर्शन बेहतरीन रहा. अश्विन ने तो जोफ्ररा आर्चर का विकेट लेकर टेस्ट मैच में अपना 400वां विकेट हासिल किया. इसके साथ ही वे न केवल टेस्ट क्रिकेट में 400 या उससे अधिक विकेट लेने वाले भारत के चौथे गेंदबाज बन गये, बल्कि वे सबसे तेज 400 विकेट लेने वाले दुनिया के दूसरे गेंदबाज भी बन गये हैं.
जाहिर है टेस्ट क्रिकेट में 400 विकेट लेकर इतिहास रचनेवाले अश्विन ने एक-एक विकेट लेते हुए ही इस बहुत बड़े मुकाम को हासिल किया है. 


यह सच है कि हर विद्यार्थी की इच्छा होती है कि वे जीवन में बड़ा मुकाम हासिल करें. उनके अभिभावक भी उनके लिए यही दुआ करते हैं और उनकी अच्छी परवरिश के लिए हर संभव कोशिश करते हैं. तभी तो अभिभावक गरीब हो या अमीर, सभी अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देने को तत्पर रहते हैं. अधिकतर छात्र-छात्राएं भी इसी भावना से स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में दाखिल होते हैं और अध्ययन में लगे रहते हैं. लेकिन कुछ विद्यार्थी सब कुछ बहुत जल्दी प्राप्त करना चाहते हैं.
वे संत कबीर  के इस दोहे का भावार्थ नहीं समझ पाते हैं जिसमें उन्होंने लिखा है कि धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब कुछ होय, माली सींचें सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय. खैर, सवाल है कि क्या किसी विद्यार्थी के चाहने मात्र से बड़े मुकाम को एक छलांग में हासिल किया जा सकता है  या छोटे-छोटे लक्ष्यों को हासिल करते हुए बड़े मुकाम तक पहुंचना निश्चित होता है और अपेक्षाकृत आसान भी?  विद्यार्थियों ने स्कूल में केमिस्ट्री के क्लास में अवक्षेपण यानी प्रेसिपीटेसन के बारे में पढ़ा होगा. उदाहरण देकर समझाऊं तो पोटैशियम परमैंगनेट के रंगीन घोल में जब सलफ्युरिक एसिड को बूंद-बूंद कर डाला जाता है तो एक समय ऐसा आता है कि बस एक और  बूंद डालते ही  घोल रंगहीन हो जाता है. केमिस्ट्री में इसे प्रेसिपीटेसन पॉइंट कहा जाता है. मान लीजिए कि 24 बूंद एसिड डालने तक घोल का रंग नहीं बदलता है, लेकिन 25वें बूंद के बाद रंग बिलकुल गायब हो जाता है. यानी 25वां बूंद बड़ा अहम है. लेकिन क्या उसके पहले के 24 बूंद कम अहम थे? बिलकुल नहीं. एक-एक बूंद करते-करते ही हम 25वें बूंद तक पहुंचते हैं. हम यह भी जानते हैं कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है. अब अगर हम इसे जीवन में बड़े लक्ष्य को सामने रखकर नियमित रूप से किए जा रहे छोटे-छोटे प्रयास के सन्दर्भ में देखें तो बात ठीक से समझ में आएगी. विद्यार्थियों के लिए इस विषय पर चिंतन-मनन करना जरूरी है और लाभकारी भी. 


आइए, आज एक आपबीती सुनाता हूँ.
कुछ महीने पूर्व मुझे एक उम्रदराज एक्सपर्ट के साथ एक कोयला खदान के निरीक्षण में जाने का मौका मिला. कोयला खदान के बड़े अधिकारी भी हमारे साथ थे. हम सभी आम खदान कर्मी की तरह माथे पर टोपी, हाथ में टॉर्च आदि से सुसज्जित थे. कोयला खदान में टेढ़े–मेढ़े फिसलनभरे सीढ़ियों के रास्ते से सब लोग  करीब पचास फूट नीचे उतरे. इस दौरान साथ चल रहे अधिकारी एक्सपर्ट सर को उस खदान विशेष के परिचालन आदि के विषय में बताते रहे. हमारे लिए यह ज्ञानवर्द्धक एवं रोमांचक अनुभव था. सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हो रहा था. लौटते हुए हमारे सामने अब उन्हीं सीढ़ियों से सुरक्षित ऊपर आने की बड़ी चुनौती थी. खदान के भीतर ऑक्सीजन की कमी सामान्य बात है और नए लोगों का थोड़ी चढ़ाई के बाद दम फूलने की शिकायत स्वाभाविक बात. आधी चढ़ाई पूरी हो चुकी थी.  एक्सपर्ट सर सधे क़दमों से बढ़ रहे थे. उनके उर्जा व उत्साह को देखकर मैंने जब पूछा कि उन्हें कैसा लग रहा है, चढ़ने में कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है, तो उनका उत्तर असाधारण रूप से प्रेरणादायी था. उन्होंने कहा, ‘मैं तो सिर्फ एक कदम आगे बढ़ा रहा हूँ. मैं कहां देख रहा हूँ कि और कितना चढ़ना है. ये कदम बढ़ते रहे तो मंजिल तो मिल ही जायेगी. जीवन में भी जरुरी तो यही  है कि हमारा लक्ष्य बड़ा हो और कदम छोटे-छोटे, जिससे कि हम अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहें - जब हो सके तो थोड़े तेज गति से भी.’ यकीनन हम कुछ मिनटों में खदान से बाहर निकल आए, एक नए उत्साह और विचार-मंथन के साथ. सार-संक्षेप यह कि जीवन में बड़े-से-बड़ा मुकाम हासिल करनेवाले लोग सीढ़ियों की एक-एक पायदान चढ़ते हुए बड़ी मंजिल तक पहुंचते रहे हैं. इतिहास के पन्नों में ऐसे अनगिनत मिसालें दर्ज हैं. आप भी इस सिद्धांत पर अमल करें, बहुत लाभ होगा.

(hellomilansinha@gmail.com)


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# "हिन्दुस्थान समाचार समूह" की  पाक्षिक पत्रिका "यथावत" में प्रकाशित   

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Friday, May 7, 2021

वेलनेस पॉइंट: असफलता से घबराना कैसा

                                        - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर एवं  वेलनेस कंसलटेंट 

आसपास देखने पर अक्सर यह बात ध्यान में आती है कि बचपन से ही असफलता के बाद सफलता का अनुभव प्राप्त  करते रहने के बाद भी कई युवा असफलता से बहुत घबरा जाते हैं. यकीनन यह एक रोचक और विचारणीय विषय है. शायद ही ऐसा भी कोई व्यक्ति होगा जिसने जीवन में कभी असफलता का स्वाद न चखा हो. हाँ, अगर वाकई ऐसा कोई है जिसे कभी भी असफलता नहीं मिली, तो अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार उसने कोई प्रयास ही नहीं किया होगा.
बास्केटबॉल के सुपर स्टार माइकल जार्डन कहते हैं कि "हर कोई किसी ना किसी चीज में विफल होता है. मैं असफलता को स्वीकार कर सकता हूँ, लेकिन मैं प्रयास ना करना  स्वीकार नहीं कर सकता." 


दरअसल, यही सबसे अहम बात है.
विश्वविख्यात उद्योगपति व मैनेजमेंट एक्सपर्ट हेनरी फोर्ड तो कहते हैं कि "असफलता महज एक अवसर है फिर से शुरुआत करने का, इस बार और ज्यादा बुद्धिमानी से." खुद हेनरी फोर्ड का जीवन शुरूआती असफलताओं की कहानी कहता है. फिर भी  वे हर बार खुद को और व्यवस्थित और बुलंद करने का यथासाद्ध्य प्रयास करते रहे और सफलता का एक के बाद दूसरा मुकाम प्राप्त करने में सफल रहे. सिर्फ हेनरी फोर्ड ही क्यों, महज सात साल की उम्र में अपने पिता को खोने वाले और बाद में कठिन संघर्ष के पांच दशक गुजारने वाले केंटुकी फ्राइड चिकन यानी केएफसी के मालिक कर्नल सैंडर्स, गरीबी में बचपन बितानेवाले और तारघर में एक छोटी नौकरी से शुरुआत करनेवाले अमेरिका के जानेमाने व्यवसायी एवं उद्योगपति एंड्रयू कार्नेगी, एक कार मैकेनिक से हौंडा मोटर्स का मालिक बनने वाले जापान के सोइचिरो होंडा और ऐसे अनेक प्रसिद्ध लोग कई बार की असफलता के बाद सफलता का बड़ा-से बड़ा मुकाम हासिल करके अदभुत मिसाल कायम की. प्रेरणादायक तथ्य यह है कि इन सबने असफल होने के बाद भी आत्मविश्वास को कभी कम नहीं होने दिया. निर्भीक होकर पूरे मनोबल से लगातार प्रयत्न करते रहे और एक-के-बाद-एक बड़ी सफलता के हकदार बने.


काबिलेगौर बात यह भी है कि ऐसे लोग असफल होने पर दूसरों को दोष देने की कतई कोशिश नहीं करते, क्यों कि वे जानते हैं कि दोषारोपण के चक्रव्यूह में फंसने का मतलब है कीमती समय, उर्जा और मानसिक शांति को अनावश्यक रूप से बर्बाद करने के रास्ते खोल देना और स्वयं अपने इम्प्रूवमेंट के रास्ते को बंद कर देना.
इसके बजाय वे उस काम में हुई चूक का पता लगाने और उसको ध्यान में रखकर आगे बेहतर तरीके से काम करना जरूरी समझते हैं. यहां माइक्रोसॉफ्ट के सह संस्थापक बिल गेट्स के विचार भी महत्वपूर्ण हैं. उनका कहना है  कि "सफलता की खुशी मनाना अच्छा है पर उससे जरुरी है अपनी असफलता से सीख लेना." ज्ञानीजन सही कहते हैं कि असफलता से कभी घबराएं नहीं, निराश होकर रुकें नहीं, क्यों कि जैसा हिंदी फिल्म इम्तिहान के एक गाने के बोल हैं, "रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के, काँटों पे चलकर मिलेंगे साए बहार के." तो जरुरत बस इस बात की है कि हम इस जीवन दर्शन को अच्छी तरह आत्मसात कर सत्कर्म में सतत जुटे रहें और जीवन को हर पल एन्जॉय करते रहें. बड़ी-से-बड़ी सफलता भी जरुर मिलेगी. 

(hellomilansinha@gmail.com)


             और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.               
# "दैनिक जागरण" में प्रकाशित   
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