- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट
हाल ही में अहमदाबाद क्रिकेट टेस्ट में भारत ने इंग्लैंड को दो दिनों में ही पराजित कर टेस्ट श्रृंखला में दो-एक की बढ़त बना ली. इस टेस्ट मैच में भारतीय स्पिन गेंदबाज अक्षर पटेल और रविचंद्रन अश्विन का प्रदर्शन बेहतरीन रहा. अश्विन ने तो जोफ्ररा आर्चर का विकेट लेकर टेस्ट मैच में अपना 400वां विकेट हासिल किया. इसके साथ ही वे न केवल टेस्ट क्रिकेट में 400 या उससे अधिक विकेट लेने वाले भारत के चौथे गेंदबाज बन गये, बल्कि वे सबसे तेज 400 विकेट लेने वाले दुनिया के दूसरे गेंदबाज भी बन गये हैं. जाहिर है टेस्ट क्रिकेट में 400 विकेट लेकर इतिहास रचनेवाले अश्विन ने एक-एक विकेट लेते हुए ही इस बहुत बड़े मुकाम को हासिल किया है.
यह सच है कि हर विद्यार्थी की इच्छा होती है कि वे जीवन में बड़ा मुकाम हासिल करें. उनके अभिभावक भी उनके लिए यही दुआ करते हैं और उनकी अच्छी परवरिश के लिए हर संभव कोशिश करते हैं. तभी तो अभिभावक गरीब हो या अमीर, सभी अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देने को तत्पर रहते हैं. अधिकतर छात्र-छात्राएं भी इसी भावना से स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में दाखिल होते हैं और अध्ययन में लगे रहते हैं. लेकिन कुछ विद्यार्थी सब कुछ बहुत जल्दी प्राप्त करना चाहते हैं. वे संत कबीर के इस दोहे का भावार्थ नहीं समझ पाते हैं जिसमें उन्होंने लिखा है कि धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब कुछ होय, माली सींचें सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय. खैर, सवाल है कि क्या किसी विद्यार्थी के चाहने मात्र से बड़े मुकाम को एक छलांग में हासिल किया जा सकता है या छोटे-छोटे लक्ष्यों को हासिल करते हुए बड़े मुकाम तक पहुंचना निश्चित होता है और अपेक्षाकृत आसान भी? विद्यार्थियों ने स्कूल में केमिस्ट्री के क्लास में अवक्षेपण यानी प्रेसिपीटेसन के बारे में पढ़ा होगा. उदाहरण देकर समझाऊं तो पोटैशियम परमैंगनेट के रंगीन घोल में जब सलफ्युरिक एसिड को बूंद-बूंद कर डाला जाता है तो एक समय ऐसा आता है कि बस एक और बूंद डालते ही घोल रंगहीन हो जाता है. केमिस्ट्री में इसे प्रेसिपीटेसन पॉइंट कहा जाता है. मान लीजिए कि 24 बूंद एसिड डालने तक घोल का रंग नहीं बदलता है, लेकिन 25वें बूंद के बाद रंग बिलकुल गायब हो जाता है. यानी 25वां बूंद बड़ा अहम है. लेकिन क्या उसके पहले के 24 बूंद कम अहम थे? बिलकुल नहीं. एक-एक बूंद करते-करते ही हम 25वें बूंद तक पहुंचते हैं. हम यह भी जानते हैं कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है. अब अगर हम इसे जीवन में बड़े लक्ष्य को सामने रखकर नियमित रूप से किए जा रहे छोटे-छोटे प्रयास के सन्दर्भ में देखें तो बात ठीक से समझ में आएगी. विद्यार्थियों के लिए इस विषय पर चिंतन-मनन करना जरूरी है और लाभकारी भी.
आइए, आज एक आपबीती सुनाता हूँ. कुछ महीने पूर्व मुझे एक उम्रदराज एक्सपर्ट के साथ एक कोयला खदान के निरीक्षण में जाने का मौका मिला. कोयला खदान के बड़े अधिकारी भी हमारे साथ थे. हम सभी आम खदान कर्मी की तरह माथे पर टोपी, हाथ में टॉर्च आदि से सुसज्जित थे. कोयला खदान में टेढ़े–मेढ़े फिसलनभरे सीढ़ियों के रास्ते से सब लोग करीब पचास फूट नीचे उतरे. इस दौरान साथ चल रहे अधिकारी एक्सपर्ट सर को उस खदान विशेष के परिचालन आदि के विषय में बताते रहे. हमारे लिए यह ज्ञानवर्द्धक एवं रोमांचक अनुभव था. सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हो रहा था. लौटते हुए हमारे सामने अब उन्हीं सीढ़ियों से सुरक्षित ऊपर आने की बड़ी चुनौती थी. खदान के भीतर ऑक्सीजन की कमी सामान्य बात है और नए लोगों का थोड़ी चढ़ाई के बाद दम फूलने की शिकायत स्वाभाविक बात. आधी चढ़ाई पूरी हो चुकी थी. एक्सपर्ट सर सधे क़दमों से बढ़ रहे थे. उनके उर्जा व उत्साह को देखकर मैंने जब पूछा कि उन्हें कैसा लग रहा है, चढ़ने में कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है, तो उनका उत्तर असाधारण रूप से प्रेरणादायी था. उन्होंने कहा, ‘मैं तो सिर्फ एक कदम आगे बढ़ा रहा हूँ. मैं कहां देख रहा हूँ कि और कितना चढ़ना है. ये कदम बढ़ते रहे तो मंजिल तो मिल ही जायेगी. जीवन में भी जरुरी तो यही है कि हमारा लक्ष्य बड़ा हो और कदम छोटे-छोटे, जिससे कि हम अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहें - जब हो सके तो थोड़े तेज गति से भी.’ यकीनन हम कुछ मिनटों में खदान से बाहर निकल आए, एक नए उत्साह और विचार-मंथन के साथ. सार-संक्षेप यह कि जीवन में बड़े-से-बड़ा मुकाम हासिल करनेवाले लोग सीढ़ियों की एक-एक पायदान चढ़ते हुए बड़ी मंजिल तक पहुंचते रहे हैं. इतिहास के पन्नों में ऐसे अनगिनत मिसालें दर्ज हैं. आप भी इस सिद्धांत पर अमल करें, बहुत लाभ होगा.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.
# "हिन्दुस्थान समाचार समूह" की पाक्षिक पत्रिका "यथावत" में प्रकाशित
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