Friday, November 29, 2019

सुनने की कला में दक्षता जरुरी

                                                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... .... 
सुनना एक कला है और एक लोकतांत्रिक सोच भी - यह हमने अनेकों बार सुना है. नोबेल पुरस्कार विजेता विख्यात अमेरिकी लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे कहते हैं, "मैं सुनना पसंद करता हूँ. ध्यान से सुनने के परिणामस्वरूप मैंने बहुत कुछ सीखा है." अन्य अनेक नामचीन लोगों ने भी इस बात को किसी-न-किसी सन्दर्भ में रेखांकित किया है. लेकिन क्या ज्यादातर लोग, खासकर विद्यार्थीगण इस बात से इत्तफाक रखते हैं ? 

मौजूदा दौर में अधिकांश विद्यार्थी बोलना पसंद करते हैं. सुनने में उनकी रूचि  कम होती है, जब कि अच्छा वक्ता होने के लिए अच्छा श्रोता होना जरुरी माना गया है. एक दिलचस्प तथ्य यह भी कि हमारे पास सुनने के लिए दो कान हैं तो बोलने के लिए केवल एक मुंह. शायद इसलिए कि हम ज्यादा  सुनें और कम बोलें. कहते हैं कि जब हम बोलते हैं तो सामान्यतः केवल वही दोहराते हैं जो हम पहले से जानते हैं, लेकिन जब हम सुनते हैं तो कुछ-न-कुछ नया सीखते हैं. 

कई जॉब कम्पटीशन में जीडी यानी ग्रुप डिस्कशन भी होता है जिसमें अलग-अलग ग्रुप में प्रतिभागी अलग-अलग विषयों पर चर्चा करते हैं. इस दौरान एक्सपर्ट पैनल के सदस्य प्रतिभागियों के कई व्यक्तिगत गुणों का मूल्यांकन करते हैं. वहां कई बार विद्यार्थियों को  एक साथ बोलते -चिल्लाते देखा जा सकता है, जैसा कि आजकल प्राइम टाइम टीवी शो में आमतौर पर देखने को मिलता है. ऐसे टीवी शो को देखना छोड़ कर दर्शक जैसे चैनेल बदल लेते हैं, वैसे ही जीडी में  साथी प्रतिभागी को पूरा न सुनकर जबरन अपनी बात रखनेवाले प्रतिभागी से एक्सपर्ट किनारा कर लेते हैं यानी उन्हें पसंद नहीं करते हैं. सर्वसत्य है कि अच्छी तरह सुनना न केवल बोलनेवाले के प्रति सम्मान प्रदर्शित करता है, बल्कि किसी भी सफल संवाद प्रक्रिया की अनिवार्य शर्त भी होती है. "दि मोंक हू सोल्ड हिज फेरारी' जैसे कई बेस्ट सेलर पुस्तकों के लेखक और प्रेरक वक्ता रोबिन शर्मा का कहना है, "सुनना पर्सनल और प्रोफेशनल उत्कृष्टता का एक मास्टर स्किल है."  

वास्तव में  जो विद्यार्थी अपने टीचर -प्रोफेसर की बात, क्लास में हो या कोचिंग या ट्यूशन क्लासेज में, अच्छी तरह सुनते हैं, विषय की उनकी समझ अच्छी होती है. इसके विपरीत कई विद्यार्थी शरीर से टीचर-प्रोफेसर या किसी और वक्ता के साथ दिखाई तो देते हैं, लेकिन दिमाग से कहीं और होते हैं, जब कि वे भलीभांति जानते हैं कि आधा-अधूरा सुनेंगे तो ज्ञान भी आधा-अधूरा ही तो रहेगा. दूसरे, बहुधा कुछ विद्यार्थी बोलनेवाले की बातों को समझने, जानने तथा सीखने के लिए नहीं, अपितु केवल सवाल-जवाब करने की मंशा से उन्हें सुनते हैं. यही उनके लिए विषयवस्तु से भटकने और फिर अप्रासंगिक सवाल पूछने का कारण बनता है. एक काबिलेगौर बात और. अधूरा सुनने एवं उस आधार पर मत बनाने का परिणाम सामान्यतः बहुत घातक और नुकसानदेह होता है, जिससे विद्यार्थियों को बचना चाहिए.

सभी विद्यार्थियों के लिए यह ठीक से जानने और समझने योग्य बात है कि सुनने से अधिकतम फायदा उठाने के लिए यह जरुरी है कि वे  एकाग्रचित्त रहें और विषय के साथ सच्ची संलग्नता बनाए रखें. इस प्रक्रिया में डर, घबराहट, चिंता आदि से मुक्त रहना बेहतर परिणाम देता है. जो विद्यार्थी ऐसा करते हैं वे अपेक्षाकृत ज्यादा संतुलित, मर्यादित एवं संयमित होते हैं.  

विश्वविख्यात प्रबंधन गुरु डेल कार्नेगी कहते हैं कि दूसरों की बात सुनने के दो बहुत अच्छे  कारण हैं. एक तो यह कि इससे आप नयी बात सीखते हैं और दूसरा यह कि लोग अपनी बात सुननेवाले लोगों से खुश होते हैं. जाहिर है, सुनना सिर्फ प्रोफेशनल इंटरव्यू लेनेवालों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होता है. यह संवाद करनेवाले हर व्यक्ति के लिए हर जगह और हर वक्त महत्वपूर्ण है. लिहाजा, सुनना सबसे महत्वपूर्ण संवाद कौशल है. प्रेरक संभाषण की कला से भी ज्यादा महत्वपूर्ण; बुलंद आवाज से भी ज्यादा महत्वपूर्ण; कई भाषा बोलने की योग्यता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण; लिखने की प्रतिभा से भी ज्यादा महत्वपूर्ण. और-तो-और अच्छे से सुनना ही वह मोड़ है जहां से असरदार संवाद शुरू होता है. हैरानी की बात है कि बहुत कम लोग सचमुच अच्छी तरह सुनते हैं. लेकिन सफल लीडर्स अक्सर वही होते हैं, जो सुनने का महत्व अच्छी तरह समझते हैं. 

एकदम सही. महान व्यक्तियों की जीवनी पढ़ने तथा अपने आसपास के अच्छे व सफल लोगों का व्यवहार आदि को देखने से साफ़ हो जाता है कि वे सुनने की कला में माहिर हैं. वे तन्मयता से छोटे-बड़े सबकी बात या समस्या सुनते हैं और अनेकों बार आसानी से समाधान का सूत्र भी तलाशने में कामयाब होते हैं. 
    (hellomilansinha@gmail.com)

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 13.10.2019 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, November 26, 2019

जरुरी है विषयों की बुनियादी समझ

                                                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
हाल ही में आईआईटी परीक्षा की तैयारी कर रहे सैकड़ों छात्र-छात्राओं से मिलने, उनसे बातचीत  करने और उनको इस परीक्षा में बेहतर परिणाम पाने के कुछ बुनियादी शर्तों के बारे में बताने का मौका मिला. उन विद्यार्थियों से बातचीत के क्रम में यह जान पाया कि वे लोग खूब मेहनत करते हैं और आगे और भी ज्यादा मेहनत करना चाहते हैं. लेकिन उन्हें कई बार ऐसा लगता है कि उनका एनर्जी लेवल कम है, पढ़ते वक्त उनका मन भटकता है, एक लगातार वे तीन-चार घंटे नहीं पढ़ पाते, पढ़ा हुआ सब याद नहीं रख पाते और न चाहते हुए भी बीच-बीच में तनावग्रस्त महसूस करते हैं. 
               
ज्ञातव्य है कि 11वीं कक्षा पास कर 12वीं में जाने के बाद विद्यार्थी आईआईटी परीक्षा में शामिल हो सकते हैं. हां, फाइनल सेलेक्शन की कुछ शर्तें तो है ही. मसलन मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक सामान्य श्रेणी  के वैसे विद्यार्थी जिन्हें 12वीं या समकक्ष बोर्ड एग्जाम में कम-से-कम 75 प्रतिशत अंक (आरक्षित श्रेणी के लिए 65%) हासिल होंगे, वही आईआईटी परीक्षा में क्वालीफाई करने के बाद एडमिशन के पात्र होंगे.  इस दृष्टि से प्लस टू या 12वीं या समकक्ष बोर्ड की परीक्षा की तैयारी भी अहम हो जाती है. ऐसे भी आईआईटी परीक्षा में पूछे जानेवाले प्रश्न सामान्यतः 11वीं एवं 12वीं कक्षा के सिलेबस पर आधारित होता है. लिहाजा विद्यार्थियों के लिए इस सिलेबस पर पूर्ण समर्पण के साथ ध्यान देना अनिवार्य है. इसके लिए सभी शिक्षक और एक्सपर्ट विद्यार्थियों को  तीनों विषयों - भौतिक विज्ञान, रसायन शास्त्र और गणित के लिए एनसीइआरटी की किताबें पढ़ने की सलाह देते हैं. विषय की बुनियादी समझ के बिना विद्यार्थियों के लिए न तो स्कूली परीक्षा में बेहतर परिणाम हासिल करना संभव होता है और न ही जीईई मेन और जीईई एडवांस में  क्वालीफाई करना और अंततः सेलेक्ट होना. बहरहाल, फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स के सिलेबस को एनसीइआरटी किताब से शुरू से अंत तक बढ़िया से समझकर पढ़ना और दोहराते रहना लाभप्रद साबित होता है.

हमेशा यह याद रखना अच्छा है कि जीईई मेन और जीईई एडवांस परीक्षा में कोई शॉर्टकट नहीं चलता है और सीधे सवाल बहुत ही कम पूछे जाते हैं. अतः जीईई मेन की तैयारी अलग होती है. यहां विषय की बुनियादी समझ के आधार पर एप्लीकेशन ऑफ़ माइंड की भूमिका अहम है. तीनों  विषयों की एक-दो और अच्छी किताबें पढ़ें तो बेहतर होगा.  परीक्षा  सेंटर में दिमाग को  कूल-कूल रखकर प्रश्नों को समझना और फिर निर्धारित समयसीमा के  भीतर सबका सही उत्तर लिखने  की बड़ी चुनौती होती है. सामान्यतः नाम के अनुरूप जीईई एडवांस में स्थिति थोड़ी और कठिन और चुनौतीपूर्ण हो जाती है. लगभग हर सवाल नया होता है और उन्हें हल करने के लिए विषय की स्पष्ट समझ के साथ-साथ अपने दिमाग को अप्लाई करके ही उत्तर लिखा जा सकता है. 

विचारणीय सवाल है कि शारीरिक, मानसिक, शैक्षणिक आदि बदलावों का सामना करते  हुए 11वीं और 12वीं या समकक्ष क्लासेज के दो वर्षों में खुद और परिवार की सारी आशा, अपेक्षा और आकांक्षा के अनुरूप परीक्षा में प्रदर्शन दर्ज करना हर विद्यार्थी के लिए बड़ी चुनौती है. लेकिन जैसा कि प्रख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं, "... ...ख़म ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़, मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है... ..." अतः यह जानकर और मानकर कि जितनी बड़ी चुनौती, उतना मजबूत संकल्प, उतनी बड़ी तैयारी और फिर उतनी ही बड़ी सफलता, तो किसी भी विद्यार्थी के लिए आगे का रास्ता थोड़ा आसान लगने लगता है. इसलिए आईआईटी परीक्षा को अपना लक्ष्य बनाकर तदनुरूप 24 घंटे का एक व्यवहारिक रूटीन बना लें, जिसमें 10% तक का हेरफेर का प्रावधान रखें और फिर उसपर निष्ठापूर्वक अमल करें. विषय की बुनियादी समझ को लगातार  टेस्ट करते रहें. इसके लिए जीईई मेन एवं  जीईई एडवांस के पिछले 10 सालों के सवालों को हल करने की कोशिश करें. शरीर को खानपान, योग-व्यायाम, पर्याप्त नींद और पॉजिटिव सोच से पूर्णतः स्वस्थ और उर्जावान बनाए रखें. नेगेटिव सोच और नेगेटिव सहपाठियों-मित्रों से बचें. इससे आपका समय  बचेगा और अनावश्यक तनाव से भी आप बचे रहेंगे. रोजाना कुछ समय आउटडोर गेम्स या एक्सरसाइज में बिताएं. कहने का मतलब यह कि अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास करें. ऐसा पाया गया है कि दसवीं के बाद  करीब दो साल की कड़ी और नियमित मेहनत से अनेक विद्यार्थियों ने पहले ही प्रयास में जीईई एडवांस तक में अच्छी सफलता पाई है. मेरा मानना है कि 'मन में है विश्वास, हम होंगे कामयाब' की भावना को आप रोज सार्थक रूप से जी पाएं, तो सफलता आपके भी कदम चूमेंगी. 
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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 06.10.2019 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, November 19, 2019

खुद को तलाशें और तराशें

                                                                        - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
हर विद्यार्थी के जीवन में हर दिन एक नया दिन होता है. बीते हुए कल से कुछ बेहतर करने का अवसर. प्रत्येक विद्यार्थी में असंभव को संभव बनाने की क्षमता होती है. कहते हैं जब आंख खुले तभी सवेरा, अन्यथा चारों ओर अंधेरा. नेपोलियन बोनापार्ट के शब्दकोष में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं था. उनके जैसे और बहुत से महान लोग हमें इतिहास के पन्नों में मिलते हैं  जो खुद को जानने-समझने और उत्तरोत्तर उन्नत करने में विश्वास करते थे. वे दूसरों को देखने या बाहर देखने के बजाय पहले खुद को देखने और खुद को तलाशने में ज्यादा ध्यान देते थे. उन्हें अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होने में यकीन था. विचारणीय बात है कि आखिर किसी भी विद्यार्थी को खुद उस विद्यार्थी से बेहतर और कौन जानता है या जान सकता है. हर विद्यार्थी में न जाने कितने गुण, कितनी क्षमताएं दबे व छुपे रहते हैं. इन गुणों और क्षमताओं को तलाशना हर विद्यार्थी की बेहतरी के लिए आवश्यक माना गया है. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किसी विद्यार्थी को अपने अंदर छिपे गुणों और क्षमताओं का इल्म नहीं होता. तब जांबवंत सरीखे लोग उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं कि उनमें भी हनुमान सरीखे असाधारण गुण और असीमित क्षमता है और उसके अनुरूप कार्य करने की दक्षता वे भी हासिल कर सकते हैं. नेपोलियन हिल की बात भी काबिले गौर है, "अच्छी  तरह  से  जान  लीजिए कि आपको  आपके  सिवा  कोई  और  सफलता  नहीं  दिला  सकता."
   
हर विद्यार्थी जानता और मानता भी है कि कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती. इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कारक थॉमस आल्वा एडिसन ने इसे अनेकों बार अपने नए-नए आविष्कारों से साबित किया. देश-विदेश में ज्ञान-विज्ञान-कला-संस्कृति-राजनीति आदि हर क्षेत्र में इसके हजारों छोटे-बड़े उदाहरण मौजूद हैं. हाल ही में हम सबने देखा और गर्व किया कि किस तरह इसरो के चेयरमैन के.सिवन सहित चंद्रयान-2 से जुड़े सैंकड़ों वैज्ञानिक एवं इंजीनियर ने अंतिम क्षणों की एक गड़बड़ी के बावजूद अपना हौसला कायम रखा. उस दौरान स्पेस साइंस से जुड़ा हर शख्स खुद के अंदर झांक रहा होगा, खुद को फिर से तलाश रहा होगा कि कहां क्या हो गया और हम कैसे खुद को बेहतर साबित कर सकते हैं. हर विद्यार्थी के जीवन में भी ऐसे पल आते हैं और आते रहेंगे जब उन्हें बाहर देखने के बजाय अंदर देखने और कुछ नायाब करने की प्रेरणा मिलती है. 

दिलचस्प बात है कि जब कोई विद्यार्थी खुद को जानने, समझने और तलाशने पर अपना ध्यान फोकस करता है तो उसे कई नयी बातों का पता चलता है -गुण, अवगुण, शक्ति, क्षमता, संभावना, कमजोरियां आदि. खुद को तलाशने के क्रम में उन्हें अपने लक्ष्यों-सपनों को यथार्थ के तराजू पर अच्छी तरह तौलने का मौका मिलता है. फलतः ऐसे विद्यार्थी विचारों और कार्ययोजना के स्तर पर बिलकुल स्पष्ट और फुलप्रूफ होते हैं. उन्हें लक्ष्य  तक पहुंचने और अपने सपनों को साकार करने के लिए क्या-क्या करना पड़ेगा, उसकी रुपरेखा क्या होगी, कैसे उसे आगाज से अंजाम तक पहुंचाएंगे - यह सब बिलकुल साफ और सहज लगता है. विश्वविख्यात मैनेजमेंट गुरु डेल कार्नेगी ने स्टीव जॉब्स जैसे कई बड़े लोगों का उदाहरण देते हुए लिखा है कि अपने असल व्यक्तित्व को पहचानना बहुत जरुरी होता है. अक्सर इसके लिए यह पता लगाने की जरुरत होती है कि आप दरअसल क्या हैं. इसके बाद उस ज्ञान के मुताबिक विचारपूर्वक मेहनत करने की जरुरत होती है. यह इतनी महत्वपूर्ण बात है कि इस पर शांति से चिंतन किया जाना चाहिए. खुद से ईमानदारी के साथ यह पूछें कि मुझमें ऐसे कौन से गुण हैं जिन्हें लीडरशिप के गुणों में बदला जा सकता है. 
   
सही बात है. प्रत्येक विद्यार्थी के लिए खुद को तलाशने के साथ-साथ खुद को तराशना भी जरुरी होता है. यह एक सतत प्रक्रिया है. अंग्रेजी में कहते है न कि खुद को प्रूव करने के लिए इम्प्रूव करना पड़ेगा अर्थात खुद को साबित करने के लिए खुद को उन्नत करना पड़ेगा. सोचिए जरा,  अगर कोई खिलाड़ी मसलन हिमा दास, अभिनव बिंद्रा, पी.वी. सिंधु, विराट कोहली या कोई और रोज अपने को तराशे नहीं; इम्प्रूव न करे तो क्या वे उस खेल के शिखर तक पहुंचने और साल-दर -साल वहां अपना सिक्का जमाए रखने में कामयाब हो सकता है? नहीं न. यही कारण है कि वे रोजाना अपने खेल को बेहतर बनाने के लिए खूब प्रैक्टिस करते हैं , नए-नए हूनर सीखते हैं, खुद को और दक्ष बनाते हैं और खुद के प्रयासों तथा परिणाम की निरंतर समीक्षा भी करते रहते हैं, जिससे कि कमियों में निरंतर सुधार कर सकें. विद्यार्थियों को भी इसी सिद्धांत पर अमल करना चाहिए. अंत में हेनरी फोर्ड का यह प्रेरक विचार, "ऐसा कोई भी इंसान मौजूद नहीं है जो उससे ज्यादा ना कर सके जितना कि वो सोचता है कि वो कर सकता है."
                                                                               (hellomilansinha@gmail.com)

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.09.2019 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, November 5, 2019

बीमा क्षेत्र में रोजगार की संभावना

                                                                  - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
हमारे देश में बेरोजगार युवाओं की संख्या बहुत बड़ी है. सबके पास रोजगार हो तो देश की खुशहाली एवं समृद्धि सुनिश्चित है. अधिकांश विद्यार्थियों की यह स्वाभाविक आशा होती है  कि उन्हें उनके ज्ञान व योग्यता के अनुरूप रोजगार मिले, जिससे वे अपना और अपने परिवार का जीवनयापन कर सकें. लिहाजा वे नौकरी और स्वरोजगार की तलाश में रहते हैं. बैंकों में मुद्रा लोन के युवा आवेदकों की बात करें या एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज या कोई जॉब फेयर या कैंपस प्लेसमेंट की बात हो,  हर जगह विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या इस बात को रेखांकित करती है.

ऐसे तो विश्वभर  में बीमा क्षेत्र में रोजगार की अच्छी संभावना है, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में इसकी संभावना तुलनात्मक रूप से बेहतर है. देश का इंश्योरेंस सेक्टर आज न केवल व्यक्ति के जीवन, घर, वाहन, घरेलू साज-सामान, मेडिकल खर्च जैसे कई मामले में बीमा की सुविधा मुहैया कर आर्थिक सुरक्षा प्रदान रहा है, बल्कि बीमित व्यक्ति को जोखिमों के प्रति आश्वस्त भी करता है. कहने का मतलब यह कि लाइफ इंश्योरेंस हो या जनरल इंश्योरेंस या फिर हेल्थ इंश्योरेंस, हर जगह यह एक विकसित होता हुआ क्षेत्र है. जैसे-जैसे लोगों की क्रय क्षमता बढ़ रही है, लोगों में जीवन के प्रति जिम्मेदारी और संजीदगी में इजाफा हो रहा है, सामाजिक जागरूकता में वृद्धि हो रही है, वैसे-वैसे बीमा क्षेत्र का विकास तेजी से हो रहा है. एक अनुमान के मुताबिक़ निरंतर विकसित होते हुए इस सेक्टर में अगले दस वर्षों में 30 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त होगा. आज की तारीख में जीवन बीमा क्षेत्र में सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी  के अलावे 23 प्राइवेट यांनी गैर सरकारी कम्पनियां  काम कर रही हैं. उसी तरह नॉन-लाइफ एंड हेल्थ इंश्योरेंस क्षेत्र में चार सरकारी बीमा कंपनियों के अलावे 30 प्राइवेट बीमा कंपनी कार्यरत र्हैं. 

बताते चलें कि बीमा और कुछ नहीं बल्कि  बीमाकर्ता और  बीमित व्यक्ति के बीच एक एग्रीमेंट है जिसके तहत बीमित व्यक्ति या तो वन टाइम प्रीमियम या मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक, वार्षिक आधार पर एक समयावधि तक नियमित एक तय राशि बीमा प्रीमियम  के तौर पर बीमाकर्ता के पास जमा करता है.  एग्रीमेंट के अनुसार  इसके एवज में  में बीमाकर्ता यानी इंश्योरेंस कंपनी  बीमित व्यक्ति को किसी दुर्घटना या नुकसान या बीमा के अन्य प्रावधानों के तहत एक बड़ी  राशि का भुगतान करती है. संतोष की बात है कि आज देश की बीमा कंपनियों के पास हर हालात से निपटने के लिए कोई-न-कोई इंश्योरेंस पॉलिसी है. 

आंकड़ों के लिहाज से जीवन बीमा क्षेत्र में मासिक कारोबार की बात करें तो इरडा (भारतीय बीमा नियामक प्राधिकरण) के मुताबिक जुलाई 2019 में जुलाई 2018 के मुकाबले 6 प्रतिशत से ज्यादा बीमा प्रीमियम जमा हुआ. उसी तरह नॉन-लाइफ एंड हेल्थ इंश्योरेंस क्षेत्र में जुलाई 2019 में जुलाई 2018 की तुलना में 22 प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि दर्ज हुई, जिसमें हेल्थ इंश्योरेंस क्षेत्र में कार्यरत सात कंपनियों द्वारा  इसी अवधि में करीब 44 प्रतिशत का उछाल शामिल है. ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि बीमा क्षेत्र में कारोबार निरंतर बढ़ रहे हैं और इसके साथ वहां रोजगार के अवसर भी. 

देश के बीमा क्षेत्र में विद्यार्थियों के लिए इंश्योरेंस एजेंट या एडवाइजर, ऑफिस स्टाफ, डेवलपमेंट या सेल्स ऑफिसर, एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर, मैनेजर, ट्रेनर, सर्वेयर, अंडरराइटर, एक्चुअरीज आदि के रूप में कार्य करने के मौका रहता है.  ज्ञातव्य है कि इस क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए विद्यार्थी के पास ग्रेजुएट लेवल की डिग्री होना बेहतर होता है. सरकारी बीमा कंपनियों - जीवन बीमा और साधारण बीमा दोनों में नियुक्ति के लिए केंद्रीकृत व्यवस्था है. प्राइवेट बीमा कम्पनियां समय-समय पर वेकंसी के अनुरूप अपने-अपने तरीके से सेलेक्सन करते हैं. कॉलेज-यूनिवर्सिटी में कैंपस सेलेक्सन प्रोसेस के माध्यम से फ्रेशेर्स को नियुक्त किया जाता है. इंश्योरेंस सेक्टर में जाने को इच्छुक छात्र-छात्राओं के लिए एमबीए इन इंश्योरेंस, बीएससी इन एक्चुरियल साइंस,  पोस्ट ग्रेजुएट  डिप्लोमा इन रिस्क एंड इंश्योरेंस मैनेजमेंट जैसे कई कोर्सेस भी मौजूद हैं. 

जो भी विद्यार्थी इंश्योरेंस क्षेत्र में रोजगार पाना चाहते हैं उन्हें यह याद रखना चाहिए कि यह एक ऐसा पेशा है जिसमें काम करनेवाले हर व्यक्ति से यह न्यूनतम अपेक्षा होती है कि वे बीमित व्यक्ति और उसके परिवारजनों की छोटी-बड़ी कठिनाइयों को समझें और उसका समाधान करने का भरसक प्रयास करे. वे सेलिंग तथा पीपल स्किल्स में दक्ष हों, बीमा करने से पहले व्यक्ति के  जोखिम, आर्थिक स्थिति व बीमा की जरूरतों का सही आकलन कर उन्हें बीमा के शर्तों की पूरी जानकारी दे और पूरी पारदर्शिता अपनाते हुए व्यक्ति को इंश्योरेंस प्रोडक्ट ऑफर करे. साथ ही  किसी नुकसान या दुर्घटना की स्थिति में बीमित राशि के शीघ्र भुगतान में हर संभव मदद करे. 
(hellomilansinha@gmail.com)

                 
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 22.09.2019 अंक में प्रकाशित
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