- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर... ....
हर विद्यार्थी के जीवन में हर दिन एक नया दिन होता है. बीते हुए कल से कुछ बेहतर करने का अवसर. प्रत्येक विद्यार्थी में असंभव को संभव बनाने की क्षमता होती है. कहते हैं जब आंख खुले तभी सवेरा, अन्यथा चारों ओर अंधेरा. नेपोलियन बोनापार्ट के शब्दकोष में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं था. उनके जैसे और बहुत से महान लोग हमें इतिहास के पन्नों में मिलते हैं जो खुद को जानने-समझने और उत्तरोत्तर उन्नत करने में विश्वास करते थे. वे दूसरों को देखने या बाहर देखने के बजाय पहले खुद को देखने और खुद को तलाशने में ज्यादा ध्यान देते थे. उन्हें अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होने में यकीन था. विचारणीय बात है कि आखिर किसी भी विद्यार्थी को खुद उस विद्यार्थी से बेहतर और कौन जानता है या जान सकता है. हर विद्यार्थी में न जाने कितने गुण, कितनी क्षमताएं दबे व छुपे रहते हैं. इन गुणों और क्षमताओं को तलाशना हर विद्यार्थी की बेहतरी के लिए आवश्यक माना गया है. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किसी विद्यार्थी को अपने अंदर छिपे गुणों और क्षमताओं का इल्म नहीं होता. तब जांबवंत सरीखे लोग उन्हें यह विश्वास दिलाते हैं कि उनमें भी हनुमान सरीखे असाधारण गुण और असीमित क्षमता है और उसके अनुरूप कार्य करने की दक्षता वे भी हासिल कर सकते हैं. नेपोलियन हिल की बात भी काबिले गौर है, "अच्छी तरह से जान लीजिए कि आपको आपके सिवा कोई और सफलता नहीं दिला सकता."
हर विद्यार्थी जानता और मानता भी है कि कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती. इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कारक थॉमस आल्वा एडिसन ने इसे अनेकों बार अपने नए-नए आविष्कारों से साबित किया. देश-विदेश में ज्ञान-विज्ञान-कला-संस्कृति-राजनीति आदि हर क्षेत्र में इसके हजारों छोटे-बड़े उदाहरण मौजूद हैं. हाल ही में हम सबने देखा और गर्व किया कि किस तरह इसरो के चेयरमैन के.सिवन सहित चंद्रयान-2 से जुड़े सैंकड़ों वैज्ञानिक एवं इंजीनियर ने अंतिम क्षणों की एक गड़बड़ी के बावजूद अपना हौसला कायम रखा. उस दौरान स्पेस साइंस से जुड़ा हर शख्स खुद के अंदर झांक रहा होगा, खुद को फिर से तलाश रहा होगा कि कहां क्या हो गया और हम कैसे खुद को बेहतर साबित कर सकते हैं. हर विद्यार्थी के जीवन में भी ऐसे पल आते हैं और आते रहेंगे जब उन्हें बाहर देखने के बजाय अंदर देखने और कुछ नायाब करने की प्रेरणा मिलती है.
दिलचस्प बात है कि जब कोई विद्यार्थी खुद को जानने, समझने और तलाशने पर अपना ध्यान फोकस करता है तो उसे कई नयी बातों का पता चलता है -गुण, अवगुण, शक्ति, क्षमता, संभावना, कमजोरियां आदि. खुद को तलाशने के क्रम में उन्हें अपने लक्ष्यों-सपनों को यथार्थ के तराजू पर अच्छी तरह तौलने का मौका मिलता है. फलतः ऐसे विद्यार्थी विचारों और कार्ययोजना के स्तर पर बिलकुल स्पष्ट और फुलप्रूफ होते हैं. उन्हें लक्ष्य तक पहुंचने और अपने सपनों को साकार करने के लिए क्या-क्या करना पड़ेगा, उसकी रुपरेखा क्या होगी, कैसे उसे आगाज से अंजाम तक पहुंचाएंगे - यह सब बिलकुल साफ और सहज लगता है. विश्वविख्यात मैनेजमेंट गुरु डेल कार्नेगी ने स्टीव जॉब्स जैसे कई बड़े लोगों का उदाहरण देते हुए लिखा है कि अपने असल व्यक्तित्व को पहचानना बहुत जरुरी होता है. अक्सर इसके लिए यह पता लगाने की जरुरत होती है कि आप दरअसल क्या हैं. इसके बाद उस ज्ञान के मुताबिक विचारपूर्वक मेहनत करने की जरुरत होती है. यह इतनी महत्वपूर्ण बात है कि इस पर शांति से चिंतन किया जाना चाहिए. खुद से ईमानदारी के साथ यह पूछें कि मुझमें ऐसे कौन से गुण हैं जिन्हें लीडरशिप के गुणों में बदला जा सकता है.
सही बात है. प्रत्येक विद्यार्थी के लिए खुद को तलाशने के साथ-साथ खुद को तराशना भी जरुरी होता है. यह एक सतत प्रक्रिया है. अंग्रेजी में कहते है न कि खुद को प्रूव करने के लिए इम्प्रूव करना पड़ेगा अर्थात खुद को साबित करने के लिए खुद को उन्नत करना पड़ेगा. सोचिए जरा, अगर कोई खिलाड़ी मसलन हिमा दास, अभिनव बिंद्रा, पी.वी. सिंधु, विराट कोहली या कोई और रोज अपने को तराशे नहीं; इम्प्रूव न करे तो क्या वे उस खेल के शिखर तक पहुंचने और साल-दर -साल वहां अपना सिक्का जमाए रखने में कामयाब हो सकता है? नहीं न. यही कारण है कि वे रोजाना अपने खेल को बेहतर बनाने के लिए खूब प्रैक्टिस करते हैं , नए-नए हूनर सीखते हैं, खुद को और दक्ष बनाते हैं और खुद के प्रयासों तथा परिणाम की निरंतर समीक्षा भी करते रहते हैं, जिससे कि कमियों में निरंतर सुधार कर सकें. विद्यार्थियों को भी इसी सिद्धांत पर अमल करना चाहिए. अंत में हेनरी फोर्ड का यह प्रेरक विचार, "ऐसा कोई भी इंसान मौजूद नहीं है जो उससे ज्यादा ना कर सके जितना कि वो सोचता है कि वो कर सकता है."
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.09.2019 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 29.09.2019 अंक में प्रकाशित
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