Wednesday, August 30, 2017

यात्रा के रंग : गंगटोक और आसपास -2 - अब हनुमान टोक और ...

                                                                              -मिलन सिन्हा
...गतांक से आगे... गाड़ी बढ़ चली अब अगले पॉइंट- हनुमान टोक यानी हनुमान मंदिर की ओर. गंगटोक शहर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी एवं  समुद्र तल से करीब 7200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है यह खूबसूरत मंदिर. पार्किंग स्थल से मंदिर तक जाने के लिए सीढियां बनी है, जिसमें बीच-बीच में बैठने-सुस्ताने की व्यवस्था है. मंदिर के रास्ते में लगातार घंटियां लगी हैं, जिन्हें बजाते जाने पर ध्वनि की अदभुत गूंज-अनुगूंज से आप अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते. सारा परिसर इतना साफ़-सुथरा एवं सुरुचिपूर्ण ढंग से सुसज्जित है कि आप स्वतः पूछ बैठेंगे कि ऐसा रख-रखाव तो सेना के देखरेख में ही संभव है. बिलकुल ठीक सोचा है आपने. 

वर्ष 1968 से भारतीय सेना के माउंटेन डिवीज़न के जवान इस हनुमान मंदिर का रख-रखाव करते रहे हैं. इस स्थान से कंचनजंघा पर्वतमाला के अप्रतिम सौन्दर्य का आप आनन्द उठा सकते हैं. कहने की जरुरत नहीँ कि यहाँ आने पर आपको थोड़ा और रुकने का मन जरुर करेगा. लेकिन आगे और भी तो बहुत कुछ देखना है और घड़ी कहाँ तक आपको रुकने देगी. हाँ, एक और जानने योग्य बात. वर्षों से प्रचलित लोकमत के अनुसार राम-रावण युद्ध के दौरान आहत पड़े लक्ष्मण के लिए हिमालय से संजीवनी बुटी ले जाने के क्रम में हनुमान जी कुछ देर  के लिए इस स्थान पर रुके थे. 

पेड़ों से भरे पहाड़ी रास्ते से होकर अब हम हनुमान टोक से करीब 1200 फीट नीचे गणेश टोक के पास आ गए हैं. घुमावदार सीढ़ियों से चढ़ कर इस मंदिर तक पहुँचते हुए आप प्रकृति के विविध रूपों का गवाह बनेंगे, साथ ही मौका मिलेगा गंगटोक शहर के एक  कुछ हिस्सों के विहंगम दृश्य से रूबरू होने का. इस गणेश मंदिर के पार्किंग स्थल के बिलकुल पास में आपको खाने-पीने की सामग्री मिल जायेगी और हस्तशिल्प की कुछ खूबसूरत वस्तुएं भी. कई सीनियर सिटीजन जो शारीरिक कारण से ऊपर मंदिर  तक नहीं जा पाते हैं, नीचे पार्किंग स्थल से भगवान गणेश को प्रणाम कर लेते हैं और ईश्वर का आशीर्वाद  पाने की अनुभूति से खुश हो जाते हैं. चाय-पानी और अन्य खरीदारी बाद में करते रहते हैं. ...आगे जारी...
                                                                                     (hellomilansinha@gmail.com)
                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com 

Monday, August 28, 2017

यात्रा के रंग : गंगटोक और आसपास -1

                                                                                                         -मिलन सिन्हा
...गतांक से आगे... ऐसे, आप गंगटोक तक आएं और उसके आसपास के दर्शनीय स्थानों को देखे बिना लौट जाएं, यह मुनासिब नहीं. वह भी तब जब कि इस शहर के आसपास के पर्यटक स्थलों को देखने के लिए आप अपने समय एवं बजट के हिसाब से पांच, सात या दस पॉइंट्स में से कोई भी ‘पैकज टूर’ चुन सकते हैं.  इसमें पर्यटन सूचना केन्द्र एवं महात्मा गाँधी मार्ग  स्थित एकाधिक ट्रेवल एजेंसी आपके लिए मददगार साबित होंगे. सच कहें तो हमने इन्ही सूत्रों से पूछताछ करके पिछले दिन ही आज के घूमने के कुल दस स्थानों को तय कर लिया था. इसके बाद इन स्थानों पर जाने के लिए हमने एक छोटी गाड़ी भी दिनभर के लिए बुक कर ली. गाड़ी पहले बुक करना अच्छा रहता है, क्यों कि टूरिस्ट सीजन में कई बार आपको गाड़ी न मिलने के कारण अपना प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ जाता है. 

सुबह गाड़ी समय पर आ गयी. ड्राईवर ने मोबाइल पर सूचित किया. होटल से हम निकले तो बाहर झमाझम बारिश हो रही थी. पहाड़ों पर कब घटायें घिर आयें, बारिश होने लगे और कब अचानक धूप खिल उठे, अनुमान लगाना कठिन होता है, खासकर बाहर से आये लोगों के लिए. बहरहाल, कुछ मिनटों के बाद बारिश थमते ही हम चल पड़े गंगटोक शहर के आसपास स्थित दर्शनीय जगहों का आनंद उठाने. 

पहाड़ी जगह होने के कारण बारिश का पानी सड़क पर जमा होने की गुंजाइश कम थी. पुलिस मुख्यालय से पहले ही ड्राईवर ने एक ढलानवाली सड़क पर गाड़ी को मोड़ दिया. यह सड़क कम चौड़ी थी, फिर भी दोनों ओर से वाहनों का आना –जाना लगा था. अगल-बगल होटल एवं गेस्ट हाउस होने के कारण गाड़ियां सुस्त गति से चल रही थी. कुछ दूर आगे जाकर हमारी गाड़ी अचानक रुक गयी. सामने और भी गाड़ियां खड़ी थी. तभी ड्राईवर ने थोड़ी दूर पर सड़क के किनारे खड़े एक सज्जन को दिखा कर कहा, ‘सर देखिए, ये हैं सिक्किम के पूर्व चीफ मिनिस्टर श्री नरबहादुर भण्डारी ’. कोट-पेंट-टाई पहने भण्डारी साहब एक आम शहरी के तरह खड़े थे और किसी को इशारे से बुला रहे थे. कोई तामझाम नहीं, कोई दिखावा नहीं, आसपास कोई सुरक्षा कर्मी भी नहीं. जब तक मै गाड़ी से निकलता और उनसे मिलकर कुछ बातें कर पाता, गाड़ी चल पड़ी. गाड़ी रोक कर बात करना संभव नहीं था, कारण पीछे भी गाड़ियां कतार से चल रही थीं. हां, गाड़ी तो चल रही थी, पर मैं मानसिक रूप से रुका हुआ था भण्डारी साहब के आसपास. बता दें कि नर बहादुर भण्डारी ने 1977 में सिक्किम जनता परिषद् का गठन किया और उसके संस्थापक के रूप में 1979 में चुनाव लड़ा. वे अक्टूबर 1979 से जून 1994 के बीच तीन बार सिक्किम के मुख्य मंत्री रहे और सिक्किम के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय भी, बेशक उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. बहरहाल, चलती गाड़ी और चलती घड़ी ने हमें फ्लावर शो सेंटर  पहुंचा दिया. 

एक छोटे से स्थान में संचालित इस सेंटर में अनेक तरह के फूल खूबसूरत तरीके से प्रदर्शित किये गए हैं. रंग –बिरंगे फूलों के साथ अपने प्रियजनों का फोटो खींचने और फोटो खींचवाने में पर्यटकों की बड़ी भीड़ व्यस्त थी. दिन चढ़ते ही सैलानियों से भरी बसें आने लगी एवं यहाँ भीड़ बढ़ने लगी. 

बाहर निकला तो देखा खीरा बिक रहा है. पिताजी की बात याद आ गयी. वे कहा करते  थे कि सेहत के लिए सुबह का खीरा हीरा, रात का खीरा पीड़ा. बस, दो खीरा खरीदा और खाते-खिलाते हुए गाड़ी में बैठ गए. गाड़ी चली तो ड्राईवर ने बताया  कि वो सामने वर्तमान मुख्य मंत्री श्री पवन कुमार चामलिंग  का सरकारी आवास है. श्री चामलिंग पिछले 23 वर्षों से सिक्किम के मुख्यमंत्री हैं.  अगर गाड़ी के चालक ने न बताया होता तो देख कर अनुमान लगाना मुश्किल था कि यह प्रदेश के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति का निवासस्थान है. कारण, न कोई आडम्बर, न बेरिकेडिंग  और न ही पुलिसिया तामझाम. आवागमन बिलकुल सामान्य. .... ....आगे जारी...                                                                                   (hellomilansinha@gmail.com)
                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं
# साहित्यिक पत्रिका 'नई धारा' में प्रकाशित
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