- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर व लेखक
बिहार में सबकुछ है - अत्यन्त गौरवशाली अतीत, जिसका उल्लेख वेदों, पुराणों एवं महाकाव्यों तक में प्रचुरता में मिलता है; उर्वरा जमीन, नदियों का जाल और पानी की बहुलता; बिहारियों की मेधा और सादगी, मेहनत व संघर्ष के बूते आगे बढ़ने की क्षमता व जज्बा, राजनीतिक जागरूकता आदि. फिर भी अपेक्षाकृत बेहतर स्टेट जीडीपी दर का अपेक्षित फायदा गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार आदि क्षेत्रों और राज्य के सभी इलाकों और समुदायों को समावेशी रूप में नहीं मिल पाया है; बिहार की प्रति व्यक्ति आय पिछले एक दशक में बेहतर तो हुई है, परन्तु यह अब भी देश के अग्रणी राज्यों के मुकाबले आधे से भी कम है. लिहाजा बिहार में मानव विकास सूचकांक कमजोर है. इस स्थिति में गुणात्मक बदलाव के लिए यह जरुरी है कि प्रशासन की कार्यशैली पूर्णतः पारदर्शी, जनोन्मुख और भ्रष्टाचारमुक्त - व्यक्तिगत और संस्थागत हो. समाज को भी जागरूक और सचेत रहकर गलत करनेवालों को टोकने और रोकने के मामले में आगे आना पड़ेगा.
पिछले दो विधानसभा चुनाव (2010 और 2015) में वोटिंग 60 प्रतिशत से कम रहा है. इस बार भी पहले दो चरणों में वोटिंग लगभग 56 प्रतिशत रही. लोकतंत्र के इस बड़े उत्सव में करीब 44 प्रतिशत वोटरों की भगीदारी न होना गंभीर चिंता का विषय है. सभी संबंधित पक्ष - समाज, सरकार, राजनीतिक दल, चुनाव आयोग आदि को इस पर सार्थक चर्चा-विमर्श करने और इसमें गुणात्मक सुधार (वोटिंग प्रतिशत कम-से-कम 80%) करने हेतु ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. बहरहाल, बिहारवासियों से यही अपेक्षा है कि वे तीसरे चरण के मतदान में बड़ी संख्या में मताधिकार का प्रयोग करें तथा अच्छे व सच्चे प्रतिनिधि का चुनाव सुनिश्चित करें. तभी लोकतंत्र मजबूत और सफल होगा और बिहार का भविष्य बेहतर भी.
मुझे विश्वास है कि बिहार के लोग जो ठान लेंगे, उसे कर लेंगे और सरकार से करवा भी लेंगे.
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते. असीम शुभकामनाएं.
No comments:
Post a Comment