Tuesday, December 24, 2013

आज की कविता : पहचान कहाँ खो गए

                                                                                    -मिलन सिन्हा 
old man














जिन्हें 
ढूंढ़ रही थी आँखें 
वो कहाँ चले गए 
जिन्हें 
देख रही थी आँखें 
वो पहचान कहाँ खो गए 
जिन रास्तों पर 
चलने की सीख 
गुरुजनों के दी थी 
वे रास्ते क्यों अब 
सुनसान पड़ गए 
जिन पर चलने से 
किया था मना 
वे रास्ते क्यों अब 
भीड़ से पट गए 
परवरिश में तो 
नहीं थी कोई कमी 
फिर बच्चे 
माँ - बाप को छोड़ कर 
क्यों चले गए 
न जाने 
किस काम में लग गए 
किस भीड़ में खो गए 
कैसे रिश्तों की परिभाषा 
ऐसे बदलते गए 
कैसे हम 
इतने अकेले हो गए 
भविष्य के सपने 
क्यों ऐसे चकनाचूर हो गए ?

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
 प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :31.12.2013

Tuesday, December 10, 2013

आज की कविता : बड़े घरों में पड़ा ताला

                                              - मिलन सिन्हा 


खस्ता हाल
साल दर साल
क्या करे मजदूर -किसान
हैं सब बहुत परेशान
या तो बाढ़
या फिर सूखा
आधी उम्र
गरीब रहता है भूखा
हर गाँव में महाजन
देते ऊँचे ब्याज पर रकम
पर कैसे चुकाए उधार
कहाँ मिले रोजगार
बेचना पड़े घर - द्वार
शहर भी कहाँ खुशहाल 
गरीब यहाँ भी बदहाल 
सड़क के साथ चलता 
उफनता बदबूदार नाला 
फूटपाथ पर रहते लोग 
बड़े घरों में पड़ा ताला 
स्वछन्द विचरते 
गाय, सूअर , कुत्ते 
जहाँ -तहाँ, इधर -उधर 
हर वक्त, बेरोकटोक 
न जाने और कितने साल 
रहने को अभिशप्त हैं ये लोग !

                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
 प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

Wednesday, December 4, 2013

आज की कविता : देखा मैंने राजधानी में

                                                  - मिलन सिन्हा 
देखा मैंने राजधानी में 
आलीशान इमारतों का काफिला
और बगल में
झुग्गी झोपड़ियों की बस्ती
जैसे अमीरी -गरीबी
रहते साथ- साथ
दो अलग -अलग दुनिया में
सुविधाएँ अनेक इमारतों में
असुविधाएँ अनेक झोपड़ियों में
एक तरफ रातें रंगीन हैं
तो दूसरी ओर
सिर्फ कल्पनाएँ रंगीन हैं ,यथार्थ काला
ऊपर मदिरा में डूब कर भी
प्यासे हैं लोग
झोपड़ियों में पानी के लिए भी
तरस रहें हैं लोग
कितने ही ऐसे विरोधाभास
फिर भी, बस ऐसे ही
सालों -साल जिये जा रहें हैं लोग !

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
 प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

Friday, November 29, 2013

आज की कविता : कारण

                                                          - मिलन सिन्हा
खून को
पसीना बनाकर
आदमी
आदमी को
खींचता है
पेट के लिए
गरीब
रिक्शा चलाता है
जाड़े की रात में
गर्मी के दोपहर में
फिर
आदमी
रिक्शे पर
क्यों कर चढ़ता है
सुना है
लोहिया
ऐसा कहते थे
सो
रिक्शे पर
कभी नहीं चढ़ते थे
आज के नेता को
परहेज नहीं
पूछने पर
अट्टाहास करते हैं
फिर कहते हैं
आदमी
जानवर को तो
खींच सकता है
इसी कारण
मेरे जैसा नेता
रिक्शे पर
मजे से चढ़ सकता है !

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Friday, November 22, 2013

आज की कविता : जरा सोचो तो, क्यों ?

                                               - मिलन सिन्हा

जरा सोचो तो !
आज 
न जाने 
क्या हो गया है ?

कलतक 
जिनके शब्द 
आपस में 
इस कदर गुंथे थे 
कि 
उनको अलग -अलग करके 
पहचानना मुश्किल पड़ता था 
आज वही 
दो विपरीत दिशाओं में 
दुर्गन्ध बिखेरते 
चले जा रहे हैं !

कलतक 
जो एक दूसरे के 
हाथ में हाथ डाले 
घूमा करते थे 
उनके वे हाथ 
आज शस्त्रों में 
कैद हैं !

कलतक 
जो एक दूसरे के 
मुंह में मुंह डाले 
बतियाते थे 
वे ही आज 
एक दूसरे का मुंह 
सदा के लिए 
बंद करने पर 
तुले हैं !

लेकिन 
इतना सब होने के बावजूद
वे सभी एक हैं 
सबों को 
इस जमीन से 
बेहद लगाव है 
जरा सोचो तो, क्यों ? 

  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

#  'मध्य प्रदेश संदेश' के सितम्बर'80 अंक में प्रकाशित

Friday, November 15, 2013

आज की बात: बाल दिवस की सार्थकता

                                                                           -- मिलन सिन्हा
 कल (14 नवम्बर)  बाल दिवस था और चाचा नेहरु का जन्म दिवस भी। अनेक  सरकारी आयोजन हुए, स्कूलों में  पिछले वर्षों की भांति कई कार्यक्रम हुए, बहुत  बातें हुई,  बच्चों की  भलाई के   लिए ढेर सारे वादे किये गए, तालियां बजी ।  हां, आजाद  देश के पहले प्रधान मंत्री और बच्चों के चाचा नेहरू के जन्म दिन के उपलक्ष्य में भी अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गये । और क्या ?  

ज़रा सोचिये, इस मौके पर  पूरे  देश में  जितने रूपये सारे सरकारी आयोजनों में खर्च हुए दिखाए जायेंगे, उतना अगर कुछ गरीब, बेसहारा, कुपोषित बच्चों  के भलाई के लिए  कुछ बेहद पिछड़े गांवों में   खर्च किये जाते तो कुछ तो अच्छा होता।

आजादी के 66  साल बाद भी  पूरी आजादी से गरीब छोटे बच्चे सिपाही जी को रेलवे के किसी स्टेशन पर या चलती ट्रेन में मुफ्त में गुटखा, सिगरेट,बीड़ी या तम्बाकू खिलाता,पिलाता दिख जायेगा। वैसे ही दिख जाएगा  नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों  के घर में भी  नौकर के रूप में काम करते हुए  लाचार,  बेवश  छोटे गरीब बच्चे। सड़क किनारे छोटे होटलों, ढाबों, अनेक छोटे-मोटे कारखानों, दुकानों आदि में ऐसे छोटे बच्चे सुबह से शाम तक हर तरह का काम करते मिल जायेंगे, तथाकथित  बचपन बचाओ अभियान को अंगूठा दिखाते हुए। हमारे देश में जन्म से ही गरीब तबके के  बच्चों के साथ  लापरवाही या जैसे-तैसे पेश आने का प्रचलन  रहा हो ऐसा प्रतीत  होता है, यह सब देख कर।

इस मौके पर निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करना प्रासंगिक होगा :

 बच्चों के अधिकार पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के लड़का और लड़की को बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है।  भारतवर्ष में बच्चों की कुल संख्या देश की आबादी का 40% है, यानी करीब 48 करोड़।  देश में हर घंटे 100 बच्चों की मृत्यु होती है।  भारत में बाल मृत्यु  दर (प्रति 1000 बच्चों के जन्म पर ) अनेक राज्यों में 50 से ज्यादा है जब कि इसे 30 से नीचे लाने की आवश्यकता है।  दुनिया के एक तिहाई  कुपोषित  बच्चे भारत में रहते हैं।   देश में आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण  मरते हैं।   पांच साल तक के बच्चों में 42% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।    जो बच्चे स्कूल जाते है  उनमें  से 40% से ज्यादा बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं जब कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत उनके स्कूली शिक्षा के लिए सरकार को हर उपाय  करना है।  हाल के वर्षों  में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि हुई है।

 इस तरह  के अन्य अनेक तथ्यों से रूबरू होते रहते है हम पढ़े-लिखे, खाते-पीते लोग। कभी- कभी वक्त मिले तो थोड़ी चर्चा भी कर लेते हैं। लेकिन, अब  सरकार के साथ-साथ भारतीय समाज को भी इस विषय पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा और संविधान/कानून  के मुताबिक  जल्द ही कुछ  प्रभावी कदम  उठाने पड़ेंगे, नहीं तो इन गरीब, शोषित, कुपोषित,अशिक्षित बच्चों की बढती आबादी आने वाले वर्षों  में देश के सामने बहुत  बड़ी और बहुआयामी चुनौती पेश करनेवाले हैं।ऐसे  भी, हम कब तक सिर्फ  सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) और शाइनिंग इंडिया  की चर्चा से देश की आम जनता को बहलाते रहेंगे।

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Tuesday, November 12, 2013

हेल्थ मोटिवेशन : जाड़ा और दिल का दौरा

                                                                  - मिलन  सिन्हा 
heart भारत में ह्रदय रोग से पीड़ित लोगों  की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 
हर साल देश में 30 लाख से ज्यादा लोग इस रोग के कारण मारे जाते हैं। दुनिया के 60 % ह्रदय रोगी भारत में हैं।  इसी कारण हमारे देश को ह्रदय रोग की विश्व राजधानी कहा जाता है। वास्तव में इसके एक नहीं अनेक कारण हैं जिसमें एक महत्वपूर्ण कारण इस रोग से जुड़ी सामान्य जानकारी से अनभिज्ञता के साथ-साथ हमारी दोषपूर्ण जीवनशैली है।   

हाल ही में ब्रिटेन (यू.के.) में हुए एक नए शोध के मुताबिक़ जाड़े के मौसम में अपेक्षाकृत ज्यादा लोगों को दिल का दौरा पड़ता है। ऐसा पाया गया है कि मात्र 0.67 डिग्री से. तापमान के गिरने पर एक दिन में औसतन 200 ज्यादा लोगों को दिल का दौरा पड़ा। 

ज्ञातव्य है कि गर्मी की तुलना में जाड़े के मौसम में 53 % से अधिक दिल के दौरे के मामले प्रकाश में आते हैं। जनवरी में तो यह संख्या जुलाई के अनुपात में दोगुनी हो जाती है। 

डॉक्टर बताते हैं, ऐसा इसलिए होता है क्यों कि ठण्ड के कारण हमारी रक्त धमनियां थोड़ी सिकुड़ जाती हैं जिससे रक्त प्रवाह दुष्प्रभावित होता है और साथ -साथ धमनियों में खून के थक्के बनने की संभावना भी बढ़ जाती है।

कहने का तात्पर्य यह कि शीतकालीन मौसम में हमें ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए। बड़े -बुजुर्गों, खासकर  दिल की बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए तो हर सम्भव एहतियात  बरतना नितांत आवश्यक है।ऐसा इसलिए कि बढ़ती उम्र के साथ शरीर के तापमान को यथोचित स्तर पर बनाये रखने की हमारी क्षमता कम होती जाती है।  ऐसे में कृत्रिम रूप से शरीर को गर्म बनाये रखना अनिवार्य है।

विटामिन डी की कमी जिसका गहरा सम्बन्ध ह्रदय रोग से है, को धूप का सेवन कर(वो भी  मुफ्त में) पूरा कर सकते हैं। खाने -पीने के मामले में भी मौसम के अनुरूप व अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बदलाव अपेक्षित है। किसी तरह की  शंका -आशंका की स्थिति में तुरत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। 
  
                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

#  प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :01.12..2013

Sunday, October 27, 2013

आज की कविता : सच्चाई

                                           - मिलन सिन्हा 
बिहार की राजधानी में आज 
कई बम विस्फोट हुए 
महत्वपूर्ण स्थानों में हुए 
कई लोग मारे गए 
दर्जनों जख्मी हुए 
तो क्या हुआ ?

मुम्बई में आतंकी हमला हुआ 
लोकल ट्रेन में बम फटे 
महानगर  दहशत में जीता रहा 
सैकड़ों लोग मारे गए 
हजारों लोग घायल हुए 
तो क्या हुआ ?

देश की  राजधानी  में 
कई बार दहशतगर्दों ने 
खूनी खेल खेला 
जहाँ चाहा, वहाँ खेला 
संसद भवन को भी नहीं छोड़ा 
तो क्या हुआ ?

कश्मीर में जब तब 
गोलाबारी होती है 
रॉकेट से हमले भी होते हैं 
सीमा पर तनाव बढ़ता है 
जनजीवन असामान्य हो जाता है 
तो क्या हुआ ?

हर मामले में हर जगह 
निर्दोष लोग, कर्तव्यनिष्ठ सिपाही 
मारे जाते हैं, आहत होते हैं 
परिवार पर विपत्ति आती है 
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें कवर करते हैं 
तो क्या हुआ ?

सरकार सख्त कारवाई का राग अलापती है 
संवेदना भी प्रदर्शित करती है 
मुआवजे की त्वरित घोषणा होती है 
घड़ियाली आंसू बहते हैं, जांच आयोग बैठते हैं 
अखबार, न्यूज़ चैनल उन्हें भी कवर करते हैं  
तो क्या हुआ ?

अब तो ऐसा अमूमन 
हर जगह होने लगा है 
कभी कभार नहीं, बराबर होने लगा है 
परन्तु खबरों के अलावा 
इनका और क्या महत्व रह गया है 

हाँ, सत्य तो बस इतना है कि 
आम आदमी तो होता ही है 
आश्वासनों एवं घोषणाओं के साथ जीने के लिए 
वोट देने के लिए 
प्रजातंत्र को  ढोने के लिए 
और ऐसी घटनाओं ( दुर्घटनाओं नहीं ) का 
शिकार होने के लिये !

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Tuesday, October 22, 2013

आज की कविता : जीवन एक नाव, तैयारी

                           - मिलन सिन्हा 
एक 
जीवन 
एक नाव है,
मौत 
सागर सामान है
कब कोई 
उफान आवे 
और 
लील ले 
नाव  को 
कोई कैसे 
कह सकता है ?

दो 
हमें 
'आज' को 
'कल' के लिए 
तैयार करना है,
क्यों कि 
'कल' के 
भरोसे ही तो 
हमें जीना है !

               और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
# 'जीवन साहित्य' में प्रकाशित 

Tuesday, October 15, 2013

आज की कविता : ऐसा क्यों होता है

                                                    - मिलन सिन्हा
क्यों होता है ऐसा
जो खुद को
कहते नहीं थकते
दबंग, स्वस्थ, समर्थ
सर्वप्रिय नेता
सब मर्जों की दवा
दोषी साबित होते ही
जेल में कदम धरते ही
हो जाते हैं बीमार
बदहाल, लाचार
लगाते हैं  कोर्ट में
दया की गुहार
बताकर खुद को
कई रोगों के शिकार
खाए कोई अठारह-बीस गोली
तो कोई दिन में अस्सी गोली
असहाय लगे हैं दिखने
बदल गयी है बोली
तो क्या कल तक जो
दिखते थे शानदार,
दमदार और जानदार
वो होते हैं वाकई 
शाश्वत बीमार और लाचार
कहाँ  तब  यह सवाल 
कि जनता करे उन्हें स्वीकार !

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

#  प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :14.11.2013

Saturday, October 12, 2013

आज की कविता : जीवन का हिसाब

                                                             - मिलन सिन्हा 
life









तुमसे बेहतर  
तुम्हें जाने कौन 
मुझसे बेहतर 
मुझे जाने कौन 
लोग कहें न कहें 
मानें  न मानें 
जानें न जानें 
पहचानें न पहचानें 
क्या फर्क पड़ेगा 
जैसे हम हैं  
वैसे हम हैं 
जैसा आगे करेंगे 
वैसा ही बनेंगे 
सच है, झूठ से सच 
कैसे साबित करेंगे   
गलत तरीके से 
जब जोड़ेंगे संपत्ति 
दूर कैसे रहेगी तब 
हमसे  विपत्ति 
गवाह है मानव इतिहास 
होता है अपने-अपने 
कर्मों का यहीं हिसाब 
इसी जीवन में 
जीना है सबको 
अपने हिस्से का स्वर्ग 
अपने हिस्से का नर्क 
करें क्यों तब छल-प्रपंच 
और अपना ही बेड़ा गर्क !

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित

Tuesday, October 8, 2013

आज की कविता : खिलौना

                                                          - मिलन सिन्हा

neta














समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ
एक बार फिर
खून से रंगे पड़े हैं  
दर्जनभर दबे-कुचले लोगों को मारकर
आधे दर्जन दबंग
असलहों के साथ
सैकड़ों मूक दर्शकों के सामने
निकल पड़े हैं वीर ( ? ) बने
राजनीतिक बयानबाजी का टेप 
बजने लगा है अनवरत 
इधर, सत्ता प्रतिष्ठान की आँखों से
बह निकली है
ड़ियाली अश्रुधारा
चल पड़ी है फिर
मुआवजे की वही धूर्त राजनीति
उधर मातहत व्यस्त हो गए हैं
करने वो सारा इंतजाम
जिससे दबंगों - साहबों की
रंगीन बनी  रहे शाम
चौंकिए नहीं, 
आज के तंत्र आधारित लोकतंत्र में
ऐसी ही परंपरा है आम  
गरीब शोषित जनता को समझते हैं ये  
बस अपने हाथ का खिलौना 
जिनके हाथ में थमा देते हैं यदा-कदा  
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का झुनझुना। 

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :08.10.2013

Sunday, October 6, 2013

आज की कविता : आम के पेड़ के नीचे

                                                       - मिलन सिन्हा 
बाग़ में आम के पेड़ के नीचे 
किताबों और अजीजों के साथ 
अच्छे - अच्छे शेर सुनना 
किसे सुकून नहीं देता 

बाग़ में आम के पेड़ के नीचे 
ठंडी -ठंडी हवा में 
रसभरे आम चूसना 
किसे अच्छा नहीं लगता 

बाग़ में आम के पेड़ के नीचे 
शाम को झूला झूलते हुए 
सूरज को नदी में डूबते हुए देखना 
किसे कवि नहीं बनाता !

   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

Friday, October 4, 2013

हास्य व्यंग्य कविता : नया खेल

                                               - मिलन सिन्हा

तिकड़म सब हो गए फेल
नेताजी पहुँच ही गए जेल
बनने लगे हैं नए समीकरण
बाहर शुरू हो गया है नया खेल

खूब खाया था, खिलाया था 
पीया था, खूब पिलाया था
राजनीति को ढाल बनाया था
परिवार को आगे बढ़ाया था

जिनका खूब साथ दिया
उन्होंने ही दगा किया
भ्रष्टाचार के नाम पर
शिष्टाचार तक त्याग दिया

आगे क्या होगा, कितनी होगी सजा
पक्षवाले चिंतित, तो विपक्ष ले रहा मजा
पर एक बात पर हैं सब एकमत 
बुरे काम का होता ही  है बुरा नतीजा। 

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं


 # प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :02.10.2013

Wednesday, October 2, 2013

आज की कविता : सत्य

                                 - मिलन सिन्हा 
मैं 
एक 
सत्य हूँ 
तुम 
मुझे 
काट-छांट कर 
कितना भी 
छोटा 
क्यों न 
कर दो,
फिर भी 
मैं 
एक तत्व के 
परमाणु की तरह 
बराबर 
वही गुण 
प्रदर्शित करता रहूँगा !

              और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं
# 'जीवन साहित्य' में प्रकाशित 

Thursday, September 26, 2013

आज की कविता : जंजीर

                                                 - मिलन सिन्हा
कहा था
जोर देकर कहा था
जितनी बड़ी चादर
उतना ही पसारो पांव
करो मत हांव- हांव
न ही करो खांव खांव
करो खूब मेहनत
खुद कमाओ
खुद का खाओ
उसी से बचाओ   
न किसी को डसो
न किसी के जाल मे फंसो
पढो और पढ़ाओ 
हंसो और हंसाओ
सुना, पर कुछ न बोला
चुपचाप उठकर चला
न फिर मिला
न कुछ पता चला
दिखा अचानक आज
कई साल बाद
अखबार के मुखपृष्ठ पर
पुलिस के गिरफ्त में
लेकिन, चेहरे पर
न लाज, न शर्म
पढ़ा, इस बीच उसने
किये कई  कुकर्म 
अपनाकर एक नीति
चादर से  बाहर
हमेशा पांव फैलाओ
हंसो और फंसाओ
खाओ और खिलाओ
पीओ और पिलाओ
जैसे  भी हो
जमकर कमाओ
थोड़ा- बहुत दान करो
ज्यादा  उसका प्रचार करो
जेल को
अपना दूसरा घर बनाओ
अच्छाई  की जंजीरों से आजाद रहो
बेशक, कभी -कभार
क़ानून की जंजीरों में कैद रहो !

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

 प्रवक्ता . कॉम  पर प्रकाशित, दिनांक :26.09.2013

Wednesday, September 18, 2013

व्यंग्य कविता : खाने में कैसी शर्म

                                                       - मिलन सिन्हा
कसमें वादे  निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम

जनता ने चुनकर भेजा है
चुन- चुनकर खायेंगे
पांच साल बाद खाने का कारण
विस्तार से उन्हें बतायेंगे

कसमें वादे  निभायेंगे न  हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम

हीरा-मोती, सोना-चांदी तो है ही  
बस थोड़ा  और रुक जाइये
जंगल,जमीन के साथ साथ
कोयला भी सब खा जायेंगे

कसमें वादे  निभायेंगे न  हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम

छोड़ दिया जब लज्जा व शर्म
तब काहे का कोई  गम
जारी रहेगा यूँ ही खाने का खेल
फूटे करम तभी जाना पड़ेगा जेल

कसमें वादे  निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम

खाने का अब चल पड़ा एक सिलसिला  है
सचमुच,खाना विज्ञानं नहीं एक कला है
 खाते- खाते लोग कहाँ - कहाँ पहुँच जाते हैं
क्या ऐसे पराक्रमी लोग कभी पछताते हैं ?

कसमें वादे  निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम !

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :18.09.2013

Sunday, September 15, 2013

आज की कविता :व्यस्त- मदमस्त

                                                             - मिलन सिन्हा
पेड़ के शिखर पर बैठा
अपने में व्यस्त
पूर्णतः मदमस्त  
एक बगुला दूध -सफ़ेद
जो जानता - समझता
हर खेल का भेद
झट खोज लेता 
हर कानून में छेद 
फिर जुट जाता 
करने काले को सफ़ेद 
क्या करता है
आपको  कुछ संकेत ?
जरा सोचिये,
वह पेड़ नहीं
राजनीति है, राजनीति।
और वह दूध -सफ़ेद बगुला ?
समझ गए न !

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवासी दुनिया .कॉम पर प्रकाशित

Thursday, September 12, 2013

आज की बात: ओलम्पिक में भारत का भविष्य

                                                                                      - मिलन सिन्हा 

london olympics 2012अबतक खींच-तान, आरोप-प्रत्यारोप  जारी है। ओलम्पिक खेल  में भारत की वापसी के रास्ते कठिन बने हुए हैं। राजनीति अपना रंग दिखा रही है। क्यों और कैसे अंतर राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने अगले ओलम्पिक खेल से भारत को निलंबित करने का वह अप्रत्याशित निर्णय लिया जिससे देश की 125 करोड़ जनता का सिर शर्म से झुक गया, उस पर चर्चा कर हम आपका मूड और खराब नहीं करना चाहेंगे, बल्कि ओलम्पिक खेलों में भारत की दशा और दिशा पर एक अन्य सन्दर्भ में सार्थक चर्चा करेंगे।

अब भी हमारे स्मृति में कुछेक माह पूर्व संपन्न हुए लन्दन ओलम्पिक 2012 की यादें ताजा हैं, जब भारत ने ओलम्पिक खेल प्रतिस्पर्धाओं में अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार  करते हुए कुल 6 पदक - दो रजत और चार कांस्य, हासिल किये। 17 दिनों  तक चले इस भव्य खेल आयोजन में विश्व के 204  देशों ने भाग लिया परन्तु सिर्फ 85 देशों को ही पदक तालिका में स्थान पाने का गौरव प्राप्त हुआ। ज्ञातव्य है कि अमेरिका ने 104  पदक जीत कर पहला तो चीन ने 85 पदक के साथ दूसरा और मेजबान  ब्रिटेन ने 65 पदक के साथ तीसरा स्थान हासिल किया। भारत 55 वें स्थान पर रहा। 

परंपरा के अनुसार ओलम्पिक खेल की समाप्ति पर अधिकारियों और खेल विश्लेषकों का प्रत्याशा के अनुरूप बयान व विश्लेषण आया। भारत में ओलम्पिक खेलों से सम्बद्ध अधिकारियों, नेताओं एवं तथाकथित समर्थकों ने कम से कम निम्नलिखित तीन कारणों से भारत की उपलब्धियों को अत्यन्त उत्साहवर्धक बतलाया।  ये कारण हैं :


  • इस प्रतियोगिता में हमारे  पदकों की संख्या दोगुनी हुई  - बीजिंग ओलम्पिक, 2008 में  तीन पदक मिले थे जब कि लन्दन ओलम्पिक 2012 में हमने छह पदक हासिल किये 
  • 1996 अटलांटा  ओलम्पिक  में भारत को मिले एक पदक की तुलना में यह छह गुना ज्यादा है 
  • पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल जैसे हमारे निकटतम पड़ोसी देशों को लन्दन ओलम्पिक में एक भी पदक नहीं मिले 

सही है।  खुद को खुश करने और रखने को यह ख्याल अच्छा है। लेकिन, अगर नीचे प्रस्तुत तालिका पर, जिसमें लन्दन ओलम्पिक 2012 के पदक सूची में पन्द्रह शीर्ष पदक पानेवाले देशों पर उनकी आबादी को सन्दर्भ में रखते हुए, एक गहरी  नजर डालें तो दुनिया के दूसरे सबसे आबादीवाले देश के खेलनीति निर्धारकों, खेल संघों, मंत्रिओं -नेताओं  को 'रिओ ओलम्पिक 2016' के लिए एक सशक्त व प्रभावी कार्य योजना बनाने में संभवतः कुछ सहायता मिलेगी।  


क्रमांक 
देश का नाम 
स्वर्ण पदक सं. 
कुल पदक सं.
देश की आबादी (करोड़ में )
1
अमेरिका 
46
104
31. 2
2
चीन 
38
87
135. 0
3
ब्रिटेन 
29
65
6. 2
4
रूस 
24
82
14. 2
5
द. कोरिया 
13
28
5. 0
6
जर्मनी 
11
44
8. 2
7
फ़्रांस 
11
34
6. 5
8
इटली 
8
28
6. 1
9
हंगरी 
8
17
1. 0
10
ऑस्ट्रेलिया 
7
35
2. 2
11
जापान 
7
38
12. 8
12
कज़ाकिस्तान 
7
13
1. 7
13
नीदरलैंड 
6
20
1. 7
14
उक्रेन 
6
20
4. 6
15
क्यूबा 
5
14
1. 1
     
विश्वास है कि उपर्युक्त तालिका को देखकर सभी देशभक्तों का यह सोचना और सत्ता प्रतिष्ठान से प्रश्न करना उपयुक्त होगा कि हमारे देश के दस बड़े और अपेक्षाकृत संपन्न ( प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन सहित ) प्रदेश जैसे, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, राजस्थान,कर्नाटक  एवं गुजरात ( उत्तर प्रदेश की आबादी है 20 करोड़ जबकि गुजरात की 6 करोड़ ) अपने अपने बलवूते  पर  ओलम्पिक पदक तालिका में शामिल शीर्ष दस देशों जितना पदक क्यों नहीं जीत सकते ?

भारत गणतंत्र के इन  दस प्रदेशों के अलावे  कई अन्य प्रदेशों में भी यह इतनी क्षमता है कि अगर वे यह ठान लें कि अगले तीन वर्षों तक   'रिओ ओलम्पिक 2016' को ध्यान में रखकर  उत्साही, उर्जावान, समर्पित युवा खिलाडियों की एक ऐसी टीम तैयार करने में दृढ़ संकल्प, प्रभावी कार्य योजना के साथ कार्य  को पूरी ईमानदारी से सम्पादित करेंगे तो कोई कारण नहीं कि भारत आगामी ओलम्पिक खेलों में पदक प्राप्त करनेवाले पांच शीर्ष देशों में शुमार नहीं होगा। हाँ, लेकिन, इसके लिए खेल को राजनीति के दुष्प्रभावों से पूर्णतः बचाना होगा जिसके लिए सभी देशभक्तों को आगे आ कर काम करना पड़ेगा।

                   और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :12.09.2013

Sunday, September 8, 2013

आज की बात: अविलम्ब बंद हो तेल के दुरुपयोग का खेल

                                                                                               – मिलन सिन्हा
petrol
डीजल और पेट्रोल के कीमतें निरंतर बढ़ रहीं हैं। रुपये के  गिरते मूल्य के कारण खुदरा बाजार में बढ़ते कीमत को तेल कम्पनियां बिलकुल जायज बता रही है। कहना न होगा कि तेल के दाम में बढ़ोतरी का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव आम लोगों के उपयोग की हर चीजों एवं सेवाओं पर पड़ना लाजिमी है। लेकिन, किसे फ़िक्र है जनता को होनेवाली परेशानी का – न प्रधानमंत्री, न मुख्यमंत्री, न मंत्री, न अधिकारी और न ऐसे किसी प्राणी को जिसे जनता के पैसे से असीमित तेल खर्च करने की  आजादी इस  आजाद गणतंत्र में  सहज प्राप्त है।

दो दिन पूर्व एक चैनल में दिखाया जा रहा था कि किस – किस राज्य के मुख्यमंत्री के काफिले के साथ कितनी गाड़ियां तेल गटकते हुए दौड़ती रहती हैं। किसी के साथ सत्रह, तो किसे के साथ बारह।  सबसे कम छह गाड़ियों के साथ चलने वाले दो तीन मुख्यमंत्री हैं, बेशक त्रिपुरा के मुख्यमंत्री को छोड़ कर, जो सादगी का एक उदहारण हैं। सवाल है कि अगर कुछ मुख्यमंत्री छह गाड़ियों के साथ चल सकते हैं तो दूसरे  क्यों नहीं ? ( तेल के अलावे जो अन्य खर्च बचेंगे उसकी चर्चा नहीं हो रही है यहाँ, हालांकि उसपर भी खर्च बहुत होता है )  अब जब  मुख्यमंत्रियों का, जिनमे से कई अपने को लोहियावादी, प्रखर समाजवादी कहते नहीं थकते हैं और जो विकास के लिए पर्याप्त संसाधन न होने का रोना रोज रोते हैं, यह हाल है, तो उन प्रदेशों के अधिकारी व बाबू तेल खर्च करने में पीछे क्यों रहें ?

बड़े स्कूल, कॉलेज, मॉल, सिनेमा हॉल, सब्जी बाजार  आदि के पास यथासमय  रहने का मौका मिलने पर स्वत पता चल जाता है कि मंत्रियों, नेताओं, अधिकारियों के द्वारा सरकारी वाहनों का कितना और कैसा दुरुपयोग शुद्ध निजी कार्यों के लिए किया जाता है, जिस पर हजारों करोड़ रूपया साल दर साल खर्च होता है।  एक मोटे अनुमान के मुताबिक केवल  केंद्र सरकार के मंत्रियों, अधिकारियों आदि के वाहनों पर आनेवाला सालाना खर्च तीन हजार करोड़ रूपया से भी अधिक है।

सोचनेवाली बात है कि कर्ज लेकर इतना बड़ा खर्च का बोझ उठाने का क्या औचित्य है ? सभी जानते हैं कि देश के कुल तेल खपत का 80 % आयात से पूरा किया जाता है जिस पर पिछले वित्त वर्ष में 144 विलियन डालर चुकाना पड़ा था। देश में बढ़ते तेल खपत के कारण चालु वर्ष में तेल के आयात पर खर्च होनेवाली विदेशी मुद्रा हमारी अर्थ व्यवस्था को और भी चौपट कर देगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।

ऐसे में यह नितांत आवश्यक है कि तुरंत प्रभाव से सरकारी अमले द्वारा तेल के खपत को अत्यधिक कम करना पड़ेगा जिसकी शुरुआत केंद्र एवं राज्यों के मंत्रियों और अधिकारियों द्वारा निजी कार्यों के लिए सरकारी वाहन का उपयोग बंद करने से हो। इससे एक सार्थक सन्देश  आम लोगों तक जाएगा । देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्य मंत्रियों को अपने अपने काफिले में कम से कम गाड़ियों को शामिल करने का निर्णय स्वयं लेना चाहिए जिससे  खर्च  में कटौती तो हो ही, साथ ही  इस कठिन दौर में वे खुद जनता के वास्तविक प्रतिनिधि के रूप में खड़ा  पा  सकें। अन्य अनेक ज्ञात उपाय तेल के दुरुपयोग को रोकने और खपत को कम करने के दिशा में किये जाने के जरूरत तो है ही।

                 और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :07.09.2013