Thursday, September 26, 2013

आज की कविता : जंजीर

                                                 - मिलन सिन्हा
कहा था
जोर देकर कहा था
जितनी बड़ी चादर
उतना ही पसारो पांव
करो मत हांव- हांव
न ही करो खांव खांव
करो खूब मेहनत
खुद कमाओ
खुद का खाओ
उसी से बचाओ   
न किसी को डसो
न किसी के जाल मे फंसो
पढो और पढ़ाओ 
हंसो और हंसाओ
सुना, पर कुछ न बोला
चुपचाप उठकर चला
न फिर मिला
न कुछ पता चला
दिखा अचानक आज
कई साल बाद
अखबार के मुखपृष्ठ पर
पुलिस के गिरफ्त में
लेकिन, चेहरे पर
न लाज, न शर्म
पढ़ा, इस बीच उसने
किये कई  कुकर्म 
अपनाकर एक नीति
चादर से  बाहर
हमेशा पांव फैलाओ
हंसो और फंसाओ
खाओ और खिलाओ
पीओ और पिलाओ
जैसे  भी हो
जमकर कमाओ
थोड़ा- बहुत दान करो
ज्यादा  उसका प्रचार करो
जेल को
अपना दूसरा घर बनाओ
अच्छाई  की जंजीरों से आजाद रहो
बेशक, कभी -कभार
क़ानून की जंजीरों में कैद रहो !

                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

 प्रवक्ता . कॉम  पर प्रकाशित, दिनांक :26.09.2013

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