Friday, June 9, 2017

आज की बात : कौन ज्यादा जरुरी – 500 करोड़ से रांची में एक एलिवेटेड रोड या झारखण्ड के गांवों में 3.33 लाख शौचालय ?

                                                                                 - मिलन  सिन्हा
केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री जहां जाते हैं, कुछ न कुछ दे कर आते हैं. अच्छी बात है. आज के अखबार में है कि वे झारखण्ड की राजधानी रांची आये और शहर के एक व्यस्ततम इलाके में एलिवेटेड रोड बनवाने में केन्द्रीय सहायता देने का एलान कर गए. इसमें 500 करोड़ की लागत आयेगी और इस पर जल्द ही काम शुरू किया जाएगा. राज्य सरकार इस एलिवेटेड रोड के निर्माण के लिए केन्द्रीय सहायता की मांग करती रही है.

सोशल मीडिया पर कल से ही इसकी चर्चा शुरू हो गई थी. कुछ लोगों ने इसका स्वागत किया, तो विपक्ष सहित कुछ ने इसे अनावश्यक बताया - बड़े प्रोजेक्ट के साथ बड़े कमीशन के लाभ का जिक्र भी किया.

बहरहाल, एक प्रश्न जो कई लोगों ने उठाई या आगे भी उठाये जायेंगे, वह यह कि जिस सड़क पर लगातार जाम लगने की दुहाई दे कर इस प्रोजेक्ट को लाने की घोषणा हुई, क्या वास्तव में इसकी नितांत आवश्यकता है. ऐसा इसलिए कि झारखण्ड जैसे राज्य में, जहां एक बड़ी आबादी को राज्य के निर्माण के 17 साल बाद भी पीने के पानी तक का अभाव झेलना पड़ता है, सब के लिए शौचालय निर्माण में अभी बहुत काम करना है, प्राइमरी स्कूलों तक में आधारभूत सुविधाओं की कमी बरकरार है, प्राइमरी हेल्थ सेंटर में दवा-डॉक्टर आदि तक की कमी है. इस सन्दर्भ में 500 करोड़ की राशि को राजधानी के एक एलिवेटेड रोड निर्माण में खर्च करना कहाँ तक उचित है. वह भी तब जब कि सरकार और प्रशासन ने उक्त व्यस्ततम रोड के दोनों ओर अतिक्रमित जगह को खाली करवाने, प्राइम टाइम में ट्रैफिक को बेहतर तौर पर रेगुलेट करने, एक दूसरे से जुड़ी दसाधिक गलियों को अतिक्रमण मुक्त कर विकसित करने जैसे तमाम विकल्पों पर शिद्दत से कारवाई तक न की हो.

बेहतर तो यह होगा कि मौजूदा व्यवस्था को ठीक करने की पुरजोर कोशिश लगातार की जाय, उस इलाके के आम लोगों का सहयोग और समर्थन प्राप्त करें, उन्हें जागरूक भी करते रहें, जरुरत हो तो अतिक्रमण हटा कर सड़क चौड़ीकरण करें और इस बीच 500 करोड़ जितनी बड़ी राशि से ग्रामीण इलाकों में विकास के बुनियादी कार्य करें. सोचिये, 500 करोड़ रुपये से रु.15000/- प्रति शौचालय के दर  से करीब 3.33 लाख शौचालय बनाए जा सकते हैं या रु. 10 लाख प्रति स्कूल के हिसाब से 5000 नए विद्यालय भवन बनाए जा सकते हैं  या ...
आम जनता के व्यापक हित में इन बातों पर गौर करना अनिवार्य है, क्यों कि कर और कर्ज से चलने वाली सरकारों को उचित प्राथमिकताएं तो तय करनी ही पड़ेगी.    ( hellomilansinha@gmail.com)
                    और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

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