- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर .....
दरअसल, डॉ. लोहिया को गरीबों, दलितों और शोषितों के बीच रहने, उनकी समस्याओं को जानने –समझने एवं उनका हल ढूंढ़ने के लिए संघर्ष करने में आनन्द मिलता था. छोटे आदमी के लिए उनके दिल में बड़ा दर्द था. अतः जब भी उन्हें थोड़ा समय मिलता, वे सुदूर गांवों की ओर निकल पड़ते. ऐसा ही एक दौरा समाप्त करके वे एक दिन बिहार के सहरसा स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे. इस बीच एक गाड़ी आयी. डाकिए डाक के डिब्बे से डाक की थैलियां उतारने लगे. उसी समय शायद थैले का मुंह ढीला बंधा होने के कारण डाक का एक थैला खुल गया और कुछ चिट्ठियां प्लेटफार्म पर बिखर गयीं. वहीं टहल रहे लोहिया जी और उनके कुछ मित्रों का ध्यान उधर गया. मित्रगण टहलते हुए आगे बढ़ गये. जब कुछ क्षणों के बाद लोहिया जी को अपने साथ न पाकर मुड़े तो देखते क्या हैं कि लोहिया जी बैठकर जमीन पर बिखरी चिट्ठियों को बटोरने में डाकिया की मदद कर रहे हैं और पूरी आत्मीयता से यह भी कहते जा रहे हैं – ‘तुम कितने महत्वपूर्ण आदमी हो, शायद तुम्हें यह मालूम नहीं. देखो, इसमें न जाने कितनों के कितने अच्छे –बुरे सन्देश हैं जो तुम्हारे माध्यम से ही गरीब –अमीर सभी के पास पहुंचते हैं. अमीर व्यक्तियों को अगर खबर न भी मिले तो वे अन्य माध्यमों से सन्देश का आदान-प्रदान कर लेंगे, पर जरा सोचो, उस गरीब का क्या होगा जिसके लिए तुम्हीं सबसे उपयुक्त माध्यम हो. अब अगर तुम ही लापरवाह हो जाओ तो कितने लोग दुखी होंगे, कितनों का दिल टूट जायेगा.’
कहना न होगा, ऐसी बातों का जबरदस्त सकारात्मक असर वहां मौजूद हर किसी के दिलो –दिमाग पर होना लाजिमी था .
( लोहिया जी के जन्म दिन के अवसर पर )
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।