Tuesday, July 15, 2014

राजनीति: संसाधनों का इस्तेमाल है चुनौती

                                                                                   - मिलन सिन्हा 
पिछले गुरुवार को लोकसभा में बजट भाषण के दरम्यान बिहार को विशेष आर्थिक पैकेज या विशेष राज्य का दर्जा देने की न तो कोई घोषणा की गयी, और न ही इसका कोई स्पष्ट संकेत दिया गया । इससे बिहार में दलगत लाइन पर एक बार फिर, तात्कालिक ही सही, राजनीति उबाल देखा जा रहा है । संसाधन की कमी को पिछड़ेपन की एक मात्र वजह बताने पर भी चर्चा चल पड़ी है । बहरहाल, कोई भी पार्टी इस मुद्दे पर कुछ भी कहे, यह तो एक कड़वा सच है ही कि आजादी के करीब 67 साल बाद भी आज बिहार देश का एक पिछड़ा राज्य है, बावजूद इसके कि यहाँ की मिट्टी बहुत उपजाऊ है,  नदियों का जाल बिछा हुआ है; लोग  काफी मेहनती तथा बचत पसंद हैं ; बिहारी छात्र  मेधावी हैं और तो और गत दो दशकों से प्रदेश में कोई राजनीतिक अस्थिरता भी नहीं रही है । कहने की जरुरत नहीं कि अतीत में अनेक गलतियां हुई -नीति,योजना,कार्यान्वयन और नीयत के मामले में भी ।  

विडम्बना है कि एक ओर तो हम आर्थिक पैकेज की मांग करते हैं, वहीं दूसरी ओर यह भी पाते हैं कि कई विभागों को केन्द्र से मिले विभिन्न योजनाओं के पैसे समय पर खर्च न होने के कारण लौट जाते हैं । इस तथ्य से भी हम वाकिफ हैं कि तमाम सरकारी घोषणाओं के बावजूद कमोवेश सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए आवंटित राशि का किस तरह  और कितना   दुरुपयोग   होता रहा है, घोटाले आदि तो साथ में है ही । दुःख की बात है कि राजीव गांधी से लेकर आज तक के हर दल के नेता यह मानते हैं कि आम जनता की भलाई एवं देश-प्रदेश के विकास के निमित्त निर्गत राशि का अमूमन 15% ही सही रूप में इस्तेमाल हो पाता है । बाकी का 85% पैसा  अनियमितता, गोलमाल आदि के भेंट चढ़ता रहा है । सोचिये, अगर सिर्फ इसी सिलसिले को राजनीतिक संकल्प व मार्गदर्शन, प्रशासनिक दक्षता, ईमानदारी और पारदर्शिता  से पलटने की सार्थक कोशिश की जाय, तो  संसाधन की अपर्याप्तता का सवाल कुछ सालों के लिए क्या नेपथ्य में नहीं चला जाएगा ?  

क्या मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान आज भी वही करते रहेंगे, जो पीछे होता रहा या इसे एक अवसर व चुनौती मान कर अबिलम्व उपलब्ध संसाधनों का समुचित प्रबंधन हेतु आवश्यक कदम उठायेंगे ?

                  और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

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