-मिलन सिन्हा
आज हम सब 67वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं । बड़े ताम-झाम से राजकीय समारोह मनाया जा रहा है । आज फिर प्रधान मंत्री से लेकर मुख्य मंत्री तक सब देश/प्रदेश के तरक्की के बारे में विस्तार से लोगों को बताएँगे , अनेक नए वादे भी करेंगे। इन सब आयोजनों पर करोड़ों का खर्च जनता के नाम जाएगा , विशेष कर उन तीन चौथाई से भी ज्यादा देश की जनता का, जो आज भी रोटी, कपड़ा, मकान के साथ साथ स्वास्थ्य , शिक्षा और रोजगार की समस्या से बुरी तरह परेशान है, बेहाल है - आजादी के साढ़े छह दशकों के बाद भी। क्या यह शर्मनाक स्थिति विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जानेवाले देश के योजनाकारों, नीति निर्धारकों और नौकरशाहों को तनिक भी परेशान नहीं करती, उन्हें जल्दी कुछ करने को मजबूर नहीं करती ?
आज हम सब 67वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं । बड़े ताम-झाम से राजकीय समारोह मनाया जा रहा है । आज फिर प्रधान मंत्री से लेकर मुख्य मंत्री तक सब देश/प्रदेश के तरक्की के बारे में विस्तार से लोगों को बताएँगे , अनेक नए वादे भी करेंगे। इन सब आयोजनों पर करोड़ों का खर्च जनता के नाम जाएगा , विशेष कर उन तीन चौथाई से भी ज्यादा देश की जनता का, जो आज भी रोटी, कपड़ा, मकान के साथ साथ स्वास्थ्य , शिक्षा और रोजगार की समस्या से बुरी तरह परेशान है, बेहाल है - आजादी के साढ़े छह दशकों के बाद भी। क्या यह शर्मनाक स्थिति विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जानेवाले देश के योजनाकारों, नीति निर्धारकों और नौकरशाहों को तनिक भी परेशान नहीं करती, उन्हें जल्दी कुछ करने को मजबूर नहीं करती ?
आजादी के लिए लाखों देश भक्तों ने कुर्बानी दी, भारतवासियों ने अनेक सपने देखे। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी से लेकर लोकनायक जयप्रकाश नारायण तक अनेक नेतागण अपने पूरे जीवन काल में सिर्फ और सिर्फ गरीब,शोषित,दलित जनता के लिए काम करते रहे। तो क्यों न स्वतंत्रता के 66 साल पूरे होने के इस मौके पर हम अपने सत्तासीन नेताओं, योजनाकारों, नीति निर्धारकों आदि से एक बार फिर यह पूछें :
- क्या प्रत्येक भारतीय को रोज दो शाम का खाना भी नसीब हो पाता है?
- क्या प्रत्येक भारतीय को एक मनुष्य के रूप में रहने लायक कपड़ा उपलब्ध है ?
- क्या प्रत्येक भारतीय को रहने के लिए अपना मकान नसीब है?
- क्या प्रत्येक भारतीय को न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है?
- क्या प्रत्येक भारतीय बच्चे को बुनियादी स्कूली शिक्षा उपलब्ध है?
- क्या प्रत्येक भारतीय व्यस्क को साल में 180 दिनों का रोजगार भी मिल पाता है
हम जानते हैं कि इन सभी मौलिक सवालों का जबाव बहुत ही निराशाजनक है,फिर भी सत्ता प्रतिष्ठान से सम्बद्ध सारे लोग चीखते हुए कहेंगे कि इन दशकों के दौरान देश ने हर क्षेत्र में प्रगति की है। लेकिन, वही लोग इस तथ्य को नहीं नकार पाएंगे कि जितने वायदे उन लोगों ने जनता से इन वर्षों में किया है, उसका दस प्रतिशत भी वे पूरा करने में नाकाम रहे। देखिये, दुष्यंत कुमार क्या कहते हैं :
यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ।
सभी यह मानेंगे कि किसी भी पैमाने से आजादी के ये 66 साल किसी भी देश को अपनी जनता को बुनियादी जरूरतों से चिंतामुक्त करके देश को सम्पन्न और शक्तिशाली बनाने के लिए बहुत लम्बा अरसा होता है। और वह भी तब, जब कि इस देश में न तो प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी रही है और न तो मानव संसाधन की। तो फिर यह तो साफ़ है कि भारी गलती हुई – नीति, योजना,कार्यवाही और सबसे ऊपर नीयत के मामले में। चुनांचे, हम सभी को देश/ प्रदेश की सरकारों से पूरी गंभीरता से पूछना पड़ेगा कुछ बुनियादी सवाल और मिल कर बनानी पड़ेगी एक समावेशी कार्य योजना जिसे समयबद्ध तरीके से आम जनता की भलाई के लिए लागू किया जा सकें, तभी हम अपने को एक मायने में आजाद भारत के नागरिक कह सकेंगे। अन्यथा कोई विदेशी यह कहते हुए मिलेगा :
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है !
- दुष्यंत कुमार
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :15.08.2013
और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं।
# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :15.08.2013
और भी बातें करेंगे, चलते चलते। असीम शुभकामनाएं।
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