Wednesday, December 5, 2012

आज की कविता : सपने बेचना

                                            - मिलन  सिन्हा 
sllepवे 
सपने बेच रहे हैं 
एक अरसे से 
बेच रहे हैं 
भोर के नहीं 
दोपहर के सपने 
बेच रहे हैं 
तरह तरह के 
रंग बिरंगे सपने 
बेच रहे हैं 
खूब बेच रहे हैं 
मनमाने भाव में 
बेच रहे हैं 
अपनी अपनी दुकानों से 
बेच रहे हैं 
मालामाल हो रहे हैं 
निरंकुश हो रहे हैं 
होते रहेंगे तबतक 
अधजगे खरीदते रहेंगे 
लोग  सपने  जबतक !

प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित
                                                     और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

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