- मिलन सिन्हा
कुत्ते की मौत
अब
कभी-कभार ही कुत्ते,
कुत्ते की मौत मरते हैं।
कुत्ते अब नहीं भौंकते
चोर, डाकुओं को देखकर।
अपितु,
वफादार, चरणदास की तरह
दुम हिलाते हैं।
आखिर, पेट का सवाल है !
हाँ, कुत्ते तो भौकते हैं,
काटने को भी दौड़ते हैं,
देखकर उन्हें,
जो हैं सत्य, ईमान के पक्षधर।
ऐसे कुत्तों से
सहमा सहमा-सा
डरा डरा-सा
जिंदगी जी रहा है आदमी
या
मर रहा है यहाँ - वहाँ
सरेआम,
कुत्ते की मौत !
('प्रभात खबर' में 21 सितम्बर,2008 को प्रकाशित)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
कुत्ते की मौत
अब
कभी-कभार ही कुत्ते,
कुत्ते की मौत मरते हैं।
कुत्ते अब नहीं भौंकते
चोर, डाकुओं को देखकर।
अपितु,
वफादार, चरणदास की तरह
दुम हिलाते हैं।
आखिर, पेट का सवाल है !
हाँ, कुत्ते तो भौकते हैं,
काटने को भी दौड़ते हैं,
देखकर उन्हें,
जो हैं सत्य, ईमान के पक्षधर।
ऐसे कुत्तों से
सहमा सहमा-सा
डरा डरा-सा
जिंदगी जी रहा है आदमी
या
मर रहा है यहाँ - वहाँ
सरेआम,
कुत्ते की मौत !
('प्रभात खबर' में 21 सितम्बर,2008 को प्रकाशित)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते। असीम शुभकामनाएं।
Aapne bilkul sahee likha hai.Achha laga.Aajkal sachaee aur eeman ke pakchhadhar ko bechare kaha jata hai. Kya ho gaya hai iss jamane ko?SG
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