Saturday, December 1, 2012

आज की कविता : कुत्ते की मौत

                                - मिलन सिन्हा  
कुत्ते की मौत
अब 
कभी-कभार  ही कुत्ते, 
कुत्ते की मौत मरते हैं। 
कुत्ते अब नहीं भौंकते 
चोर, डाकुओं को देखकर। 
अपितु, 
वफादार, चरणदास की तरह 
दुम  हिलाते  हैं। 
आखिर, पेट का सवाल है ! 
हाँ, कुत्ते तो भौकते हैं, 
काटने को भी दौड़ते हैं, 
देखकर उन्हें, 
जो हैं सत्य, ईमान  के पक्षधर। 
ऐसे  कुत्तों से 
सहमा सहमा-सा 
डरा डरा-सा 
जिंदगी जी रहा है आदमी 
या 
मर रहा  है  यहाँ - वहाँ 
सरेआम, 
कुत्ते की मौत !

('प्रभात खबर' में 21 सितम्बर,2008 को प्रकाशित)

                           और भी बातें करेंगे, चलते-चलते असीम शुभकामनाएं

1 comment:

  1. Aapne bilkul sahee likha hai.Achha laga.Aajkal sachaee aur eeman ke pakchhadhar ko bechare kaha jata hai. Kya ho gaya hai iss jamane ko?SG

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