- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
सभी देशवासी आजादी की 73वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. युवाबहुल हमारे देश में यह एक ख़ास अवसर होता है, जब आजादी के सही मतलब और उसकी सार्थकता पर विचार-विमर्श का दौर भी चल पड़ता है. ऐसे देश के कुछ कॉलेज - यूनिवर्सिटी में यह सालोंभर बहस का बड़ा विषय होता है. वहां के अनेक विद्यार्थी इस बहस में अपना बड़ा समय व्यतीत करते हैं, फिर भी आजादी के सही अर्थ को समझने में सफल नहीं हो पाते हैं. उनमें से कई विद्यार्थी तो स्वार्थी तत्वों द्वारा निर्मित अंतहीन वाद-विवाद के चक्रव्यूह में भी फंस जाते हैं. जीवन के प्राइम टाइम को वे जाने-अनजाने यूँ ही गंवा देते हैं, जिसका नुकसान उनके साथ-साथ उनके परिवार-समाज को भी उठाना पड़ता है. ब्रिटिश इतिहासकार, समाज सुधारक और उपन्यासकार चार्ल्स किंग्सले कहते हैं कि "संसार में बस दो तरीके की आजादी है – एक झूठी जिसमें व्यक्ति वह करने के लिए स्वतंत्र है, जो वह चाहता है और दूसरी सच्ची जिसमें व्यक्ति वह करने के लिए स्वतंत्र है, जो उसे करना चाहिए." चाहने और चाहिए के बीच के महत्वपूर्ण अंतर को समझना सभी विद्यार्थियों के लिए निहायत जरुरी है.
दरअसल, छात्र जीवन हर विद्यार्थी को यह जानने-समझने का स्वर्णिम अवसर देता है कि आजादी का सही मतलब क्या है. ज्ञानीजन कहते हैं कि अज्ञानता, रूढ़िवादिता, गुलामी, अन्याय, आडम्बर आदि से निकलने के फायदों को जानना और उससे आजाद होने के उपाय तलाशने में दक्ष होना सभी छात्र-छात्राओं के लिए शिक्षित होने के साथ-साथ आजाद होने का वास्तविक प्रमाणपत्र है. स्वामी विवेकानंद सहित कई महान लोगों ने स्पष्ट रूप से यह बात कही है कि सिर्फ कुछ डिग्रियां प्राप्त करने, अच्छा कपड़ा पहनने या अच्छा भाषण देने से ही किसी को शिक्षित नहीं कहा जा सकता. वास्तव में शिक्षा विद्यार्थियों को जीवन संग्राम में समर्थ बनाती है, उनमें चारित्रिक शक्ति और परहित की भावना विकसित करती है. मतलब, जो कुछ बुरा है उससे आजादी.
व्यक्ति की आजादी का सबसे सरल अर्थ लोग यह लगाते हैं कि वह जो करना चाहते हैं, उसे कर सकें. विद्यार्थियों को फोकस में रखकर बात करें तो इसमें मुख्यतः पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने, घूमने-फिरने, खाने-पीने, बोलने-सुनने की आजादी जैसी बातें शामिल है. ख़ुशी की बात है कि भारत के संविधान के अनुसार चलनेवाले हमारे लोकतंत्र में छात्र-छात्राओं को यह आजादी उपलब्ध है. लेकिन क्या आजादी के नाम पर कई विद्यार्थियों का कई प्रकार के अवांछित और गैर-कानूनी कार्यों में लिप्त रहने को सही माना जा सकता है? बहरहाल, आजादी के पक्षधर सभी विद्यार्थियों के लिए इस समय सबसे जरुरी है ज्ञान अर्जन करना, अपनी समझदारी विकसित करना और अपनी शारीरिक-मानसिक कमजोरी से आजाद होना. हां, इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध फ्रेंच लेखक और दार्शनिक अल्बर्ट कामू के इस बात को हमेशा याद रखना पड़ेगा कि "आजादी और कुछ नहीं, बस बेहतर होने का एक अवसर है." कहने का तात्पर्य यह कि हर विद्यार्थी आजादी को एक ऐसे औजार के रूप में उपयोग करे जिससे कि वे अज्ञानता, बुराई और कमजोरी के अंधकार से निकलकर प्रकाशवान व्यक्तित्व का मालिक बन सके. इसके लिए उन्हें संकल्प से सिद्धि के मार्ग पर चलते रहना पड़ेगा; हर मौके का भरपूर उपयोग करना पड़ेगा; एक-एक पल का सदुपयोग सुनिश्चित करना पड़ेगा और बातों का बादशाह बनने के बजाय कर्मयोगी बनना पड़ेगा. इसके अनेकानेक लाभ हैं.
देश की स्वतंत्रता के सात दशक गुजर जाने और विकास पथ पर आगे बढ़ते रहने के बावजूद हमारा देश अब भी रोटी, कपड़ा और मकान के सबसे बुनियादी आवश्यकताओं से आजाद नहीं हो पाया है. शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसे अन्य बुनियादी मसले भी सामने हैं. समाज की इन समस्याओं का हल निकालने में शिक्षित युवाओं के आगे आकर सार्थक प्रयास करने की अपेक्षा उनके घरवालों के साथ-साथ समाज और सरकार को भी है. देश की सीमाओं पर भी तनाव है. बाढ़ जैसी आपदा के साथ-साथ कोरोना महामारी से निबटना भी कम बड़ी चुनौती नहीं है. ऐसे अनेक तात्कालिक और दीर्घकालिक समस्याओं से खुद को, समाज को और देश को आजाद करने का सतत प्रयास करना ही आजादी को सार्थक करना है. दक्षिण अफ्रीका के महान स्वतंत्रता सेनानी और नोबेल पुरस्कार विजेता भारत रत्न नेल्सन मंडेला इसे इन शब्दों में व्यक्त करते है : "आजाद होना सिर्फ अपनी जंजीरों को उतार देना नहीं होता, बल्कि इस तरह से जीवन जीना होता है कि दूसरों के सम्मान और स्वतंत्रता में वृद्धि हो."
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 30.08.2020 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 30.08.2020 अंक में प्रकाशित
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