- मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
जीवन जीने का बेहतरीन अंदाज गिरने या असफल होने में नहीं, बल्कि हर बार ज्यादा जोश से फिर कोशिश करने में होती है, ऐसा हर क्षेत्र के लगभग सभी उत्कृष्ट व्यक्तियों ने अपने-अपने तरीके से कहा है. यह बिलकुल सत्य बात है. कोशिश करते रहने का कोई और विकल्प नहीं है. अगर कोशिश करना ही छोड़ देंगे या कोशिश में कमी कर देंगे तो अपनी असफलता की कहानी तो हम खुद ही लिखेंगे. इम्तिहान से पहले ही उसका अंजाम जान लेंगे. है न? चींटी और मधुमक्खी जैसे छोटे जीवों की कोशिश के प्रति जुनून को अगर गौर से नहीं देखा है तो एक बार जरुर देखें. अपने काम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और तमाम असफलताओं के बाद भी अपने लक्ष्य की ओर चलते रहने की चेष्टा बहुत ही प्रेरणादायक है. चीटियों के कार्यकलाप से तो एकाधिक राजाओं के प्रेरणा लेने, फिर से उठ खड़े होने और बेहतर कोशिश करके रणक्षेत्र में विजयी होने की कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. मधुमक्खियों के जीवन से प्रेरणा लेने की भी अनेक कथाएं हैं.
छात्र-छात्राएं अपने आसपास नजर दौड़ाएंगे तो पायेंगे कि उनके कई सहपाठी-साथी ऐसे हैं जिन्हें पिछले वर्षों में बराबर अच्छी सफलता मिली थी, पर अपनी कोशिशों में कमी के कारण अब उन्हें वैसी सफलता नहीं मिल रही है. इसके विपरीत कुछ दूसरे विद्यार्थी हैं, जो पहले औसत माने जाते थे, पर अब रैंकिंग में लगातार आगे चल रहे हैं, क्यों कि वे किसी से तुलना किए बगैर बस अपने प्रयास को लगातार बेहतर करते रहे. कहते हैं न कि एक्सीलेंस इज ए जर्नी, नॉट दि डेस्टिनेशन अर्थात खुद को बेहतर करते रहना एक यात्रा है, न कि कोई मंजिल. कहने का अभिप्राय यह कि छात्र-छात्राएं पढ़ने-लिखने-सीखने के मामले में अपने प्रयासों को बढ़ाते जाएं. छोटे-बड़े किसी भी असफलता से हताश-निराश हो कर हथियार न डाल दें, बल्कि दोगुने उत्साह से फिर से अपने काम में लग जाएं. महान आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन कहते हैं कि "हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेने में है. सफल होने का सबसे सटीक तरीका है हमेशा एक बार और कोशिश करना."
आगे बढ़ने से पहले उस महान व्यक्ति के विषय में जानते चलें जिन्होंने अमेरिका में दास प्रथा का अंत किया और गृह युद्ध को समाप्त किया. हां, उनका नाम अब्राहम लिंकन है.
लिंकन 1861 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए. वे अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्र प्रमुख बने. अपनी कोशिशों के बलबूते हार को हरा कर देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने और अमेरिका के सबसे लोकप्रिय और प्रभावी राष्ट्रपति के रूप में मशहूर होने से पहले उनकी कोशिशों और असफलताओं की जो जुगलबंदी थी, वह सभी विद्यार्थियों के लिए आज भी प्रेरणा का विषय है. लिंकन जब नौ साल के थे, उसी समय उनकी मां का देहांत हो गया. उनका बचपन काफी गरीबी में गुजरा. उस दौरान उन्होंने अनेक छोटे-मोटे काम किए, लेकिन पढ़ने के प्रति उनकी रूचि कभी कम नहीं हुई. उन्होंने वकालत को अपना पेशा बनाया. 23 साल की उम्र में उनका राजनीतिक जीवन प्रारंभ हुआ और एक के बाद दूसरी हार का सिलसिला भी. लेकिन उन्होंने कभी अपनी कोशिश में कमी नहीं आने दी और हर हार के बाद ज्यादा बड़े निश्चय के साथ फिर प्रयास किया. इस बीच वे सीनेट एवं उप-राष्ट्रपति का चुनाव भी हारे. असफलता का यह सिलसिला उनके 54 वें साल में राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने के साथ ख़त्म हुआ. अब्राहम लिंकन बराबर कहते थे कि इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि सिर्फ आपका सतत प्रयास और दृढ़ निश्चय ही आपकी सफलता के लिए मायने रखता है, बाकी कोई और चीज नहीं.
कोरोना लॉकडाउन के समय करीब 1200 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए ज्योति नाम की जो किशोरी अपने अनथक प्रयास से अपने बीमार पिता को एक साइकिल पर बिठाकर हरियाणा के गुरुग्राम से बिहार के दरभंगा ले आई, उसके विषय में जानकर आपको भी जरुर अच्छा लगा होगा. बिहार के गया जिले के दशरथ मांझी के नाम से भी विद्यार्थीगण अपरिचित नहीं हैं. उन्हें देश-विदेश में लोग अब "माउंटेन मैन" के नाम से जानते हैं. मात्र एक छेनी-हथोड़ी के सहारे करीब 22 साल के कठिन प्रयास से उन्होंने एक बड़े पहाड़ को काट कर करीब 30 फीट चौड़ी सड़क बना दी, जिससे उस इलाके के आम लोगों को अनेक लाभ मिला. निसंदेह, बिलकुल असंभव-सा प्रतीत होनेवाले कार्य को संभव करके दशरथ मांझी जैसे लोग यह साबित करते रहे हैं कि कोशिश करनेवालों की कभी हार नहीं होती. जीवन में बड़ी जीत के भी वही हकदार होते हैं.
(hellomilansinha@gmail.com)
और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं।
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 09.08.2020 अंक में प्रकाशित
# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 09.08.2020 अंक में प्रकाशित
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