Tuesday, April 28, 2020

जिंदगी जीने का नाम

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
भगवान बुद्ध कहते हैं, "ख़ुशी इसपर निर्भर नहीं करती कि आपके पास क्या है  या आप क्या हैं. ये पूरी तरह से इस पर निर्भर करती है कि आप क्या सोचते हैं." सच कहें तो यह विचार हमें दुःख की  मानसिकता से बाहर निकालने में भी बहुत मदद करता है. जीवन गतिशील है और हर विद्यार्थी को अपने सपनों को साकार करने और अपने छोटे-बड़े लक्ष्यों तक पहुंचने की स्वाभाविक इच्छा होती है. स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत बड़ी है. विद्यार्थियों में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विविधता भी बहुत है. लेकिन हर साल या हर सेमेस्टर के रिजल्ट के दिन रिजल्ट शीट में वही विद्यार्थी टॉप टेन या ट्वेंटी में जगह हासिल कर पाते हैं, जो हमेशा सोच के स्तर पर पॉजिटिव और यथार्थवादी बने रहते हैं. महात्मा गांधी का स्पष्ट कहना है, "व्यक्ति अपने विचारों के सिवाय कुछ नहीं है. वह जो सोचता है, वह बन जाता है." सचमुच, इन महापुरुषों के विचारों पर गौर करें तो विद्यार्थियों के लिए जीवन पथ पर दृढ़ता और ख़ुशी-ख़ुशी बढ़ते जाना आसान हो जाएगा. भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी का जीवन इसका ज्वलंत प्रमाण है.

कभी ख़ुशी, कभी गम के मिलेजुले दौर से हर विद्यार्थी गुजरता है. यह सही है कि सभी छात्र-छात्राएं ऐसा जीवन जीना चाहते हैं जहां ज्यादा-से-ज्यादा ख़ुशी हो और कम-से-कम गम. इसके लिए सब अपने-अपने तरीके से जीवन जीने का प्रयास करते हैं. ज्ञानीजन बराबर कहते रहे हैं कि पूरी निष्ठा और विश्वास से यथासंभव प्रयास करते रहें. कभी भी किसी काम को बीच में न छोड़ें. फल क्या होगा इसकी चिंता कार्य करते वक्त कदापि ना करें. एक किसान के बारे में सोचें. अगली फसल  के लिए जमीन को जोतते या तैयार करते वक्त या जमीन में बीज डालते या पौधा लगाते समय वह फल के विषय में ज्यादा नहीं सोचता है. वह बस इस आत्मविश्वास से काम करता है कि जो कुछ हमारे अख्तियार में है, उसे सर्वश्रेष्ट तरीके से करते हैं. उसे अच्छी तरह मालूम होता है कि मौसम सहित कतिपय बाहरी फैक्टर्स अपेक्षित फल पाने में अवरोध बन सकते हैं. ऐसा कई बार होता भी है. लेकिन इस कारण किसान अपना 100 % देने से बचने की कोशिश नहीं करता. देखा गया है कि अधिकांश समय उसे अपनी कोशिशों के अनुरूप ही फल मिलता है. अनेकानेक विद्यार्थी किसान की मानसिकता से ही अध्ययन में जुटे रहते हैं. खूब मेहनत करते हैं. नकारात्मकता से भरसक दूर रहते हैं और इसी कारण खुश भी रहते हैं. कामयाबी तो मिलती ही है.
                                   
एक सच्ची घटना बताता हूँ. एक दिन दो मित्र अपने-अपने घर से एक ही ऑटो में  रेलवे स्टेशन की ओर चले. उन्हें एक प्रतियोगिता परीक्षा के लिए प्रदेश की राजधानी जाना था. घर से स्टेशन के बीच जाम के कारण वे लोग कुछ देर से स्टेशन पहुंचे. टिकट लेकर जब तक वे प्लेटफार्म पर  पहुंचते उनकी ट्रेन निकल चुकी थी. दोनों को बहुत अफ़सोस हुआ. लेकिन उनमें से एक ने तुरत उस गम को पीछे छोड़कर यह सोचना शुरू किया कि जो होना था वह तो हो गया, अब विकल्प क्या है? वह मोबाइल के जरिए यह पता करने में जुट गया कि ट्रेन या बस या टैक्सी से समय से राजधानी पहुंचना संभव है या नहीं. दूसरी ओर उसका साथी थोड़ी देर तो माथा पकड़ कर बैठा रहा, फिर ऑटोवाले और सड़क पर जाम के लिए पुलिसवाले और न जाने किसको-किसको कोसने लगा. इसके बाद  ट्रेन मिस करने के विषय में विस्तार से किसी दोस्त को बताता रहा. उसने तो गम की दरिया में न जाने इस बीच कितने गोते लगाए. और फिर जब साथ चल रहे लड़के को घर लौटने को कहने लगा तब उसे बताया गया कि चिंता की कोई खास बात नहीं है, क्यों कि एक ट्रेन जो तीन घंटे लेट चल रही है वह अगले बीस मिनट में आनेवाली है जिससे वे लोग  गंतव्य तक कमोबेश ठीक समय से पहुंच जायेंगे. इस वाकया से यह साफ़ है कि एक ही घटना को दो अलग-अलग मानसिकतावाले विद्यार्थी ने अलग-अलग रूप में लिया और तदनुसार रियेक्ट किया.
  
विचारणीय बात है कि  परेशानी या गम का वक्त सभी छात्र-छात्राओं को  हमेशा एक मौका देता है खुद को संयत और शांत रखकर उस समय उपलब्ध संभावित विकल्पों पर विचार करने का और उनमें से सबसे अच्छे विकल्प का उपयोग करके मंजिल तक पहुंचने का. परेशानी के समय परेशान होने, उत्तेजित होने, खुद को और परिस्थिति को कोसने का कोई लाभ नहीं होता. नुकसान तो अवश्य होता है. कहने का मतलब यह कि विद्यार्थीगण ख़ुशी या गम को जीवन का महज एक पड़ाव मानकर पॉजिटिव सोच के साथ बस अपना मूल काम करते रहें तथा जीवन को एन्जॉय करते चलें. जो होगा, सब बढ़िया होगा.  
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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 09.02.2020 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, April 21, 2020

चेंज मैनेजमेंट के लाभ

                               - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
हम सभी परिवर्तनशील दुनिया में रहते हैं. सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक और शाम से सुबह तक जैसे पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमते हुए अपना स्थान परिवर्तित करती है, उसी तरह हम जीवन में परिवर्तन से रूबरू होते रहते हैं -प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में और छोटे या बड़े रूप में. यकीनन,  विद्यार्थियों के जीवन में परिवर्तन का सिलसिला थोड़ी तीव्र गति से होता है. 

सच तो यह है कि समय बदलता रहता है और बदलता रहता है छात्र-छात्राओं के जीवन में बहुत सारी छोटी-बड़ी बातें. जीवन के इस कालखंड में  हार्मोनल चेंज से लेकर कक्षा, पाठ्यक्रम, दोस्त, शिक्षक, स्थान, मान्यता, संवेदना आदि तक में बदलाव  के दौर से गुजरते हैं सभी विद्यार्थी. इतने  परिवर्तनों के बीच सच्चाई और अच्छाई को अपने व्यक्तित्व विकास में शामिल करते हुए अपनी मूल मानवीय पहचान को बनाए रखना तथा सतत उन्नत करते रहना बड़ी चुनौती होती है. ऐसा इसलिए कि आम तौर पर  परिवर्तन के दौर में विद्यार्थियों को अनिश्चितता और शंका-आशंका का सामना तो करना ही पड़ता है.  लेकिन इन परिवर्तनों के साथ कमोबेश सभी छात्र-छात्राओं में होता  है अनजाने-अनदेखे के प्रति जिज्ञासा तथा उत्साह भी. जो भी हो, दिलचस्प बात यह है कि परिवर्तन उन्हें जड़ता एवं 'कम्फर्ट जोन' से बाहर निकलने का अवसर देता है और कई बार मजबूर भी करता है. यह वाकई बहुत अच्छी बात है. परिवर्तन को सकारात्मकता के साथ अंगीकार कर एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ने का यही तो कारण भी बनता है. 

महात्मा गाँधी का यह विचार कि पहले खुद में वो बदलाव लाएं जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं, विद्यार्थियों के लिए बहुत ही विचारणीय विषय है. आम तौर पर बहुत सारे विद्यार्थी दूसरों से तो बदलाव की सौ फीसदी अपेक्षा करते हैं, लेकिन खुद को बदलने के मामले में जड़ता के सिद्धांत का पालन करते प्रतीत होते हैं. ऐसा भी देखा जाता है कि कई विद्यार्थी पहनावे, स्टाइल या आवरण में तो त्वरित बदलाव के पक्ष में रहते हैं, लेकिन अपने खराब आचरण या नकारात्मक नजरिये को बदलने से कतराते हैं. कुछ विद्यार्थी तो विरोध तक करते हैं. यह नासमझी है और इससे उनका बहुत नुकसान होता है. समझदार और अच्छे विद्यार्थी परिवर्तन से घबराते नहीं, बल्कि एक अच्छे दोस्त की तरह उसका स्वागत करते हैं. परिवर्तन को बोझ समझने के बजाय अपने डेवलपमेंट के लिए एक नया अवसर मानते हैं. 

शाश्वत सत्य यह है कि परिवर्तन एक स्थायी प्रक्रिया है.  लिहाजा, सर्वप्रथम परिवर्तन के प्रति अपने नजरिये को परिवर्तित करना जरुरी होता है. चार्ली चैप्लिन तो कहते हैं, "इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है – यहाँ तक कि जीवन में आनेवाले संकट भी नहीं." अपने आसपास और इतिहास पर नजर डालें तो चार्ली चैप्लिन का यह कथन बिलकुल सही लगता है. आप अपने  पिछले एक हफ्ते के घटनाक्रम पर ही गौर करें तो आपको लगेगा कि आप सुबह से शाम तक छोटे-बड़े बदलावों के बीच से गुजरते रहे हैं. देखा जाए तो हर विद्यार्थी का, घर हो या स्कूल या कॉलेज, हर जगह,  हर रोज कितने प्रकार के बदलावों से सामना होता  है. उनसे उन्हें  निबटना पड़ता है. बेशक कई बार ये बदलाव जाने-पहचाने होते हैं, लिहाजा उन्हें परेशान नहीं करते. वे इनसे आसानी से पार पा लेते हैं. हां, यह सच है कि बड़े परिवर्तन उनके लिए कुछ कठिनाई पैदा करते हैं. लेकिन यह भी उतना ही सही है कि अगर कठिनाई है तो उसका कोई-न-कोई  निदान भी है और सही-गलत की समझ से अर्जित आत्मविश्वास भी उनके साथ है. तो फिर डर काहे का. एक और अहम बात. कठिनाई के उस पार संघर्ष से अर्जित उपलब्धि का अदभुत आनन्द भी तो होता है. सो, प्रत्येक विद्यार्थी को करना यह चाहिए कि हर बड़े  बदलाव से जुड़े तथ्यों की जानकारी पाने की कोशिश करें, इसके सकारात्मक पक्ष को देखें और  बदलाव को भावनात्मक स्तर पर लेने के बजाय पेशेवर तरीके से लें. जहां जरुरत महसूस हो अपने अभिभावक, शिक्षक और अच्छे दोस्त से सलाह और मदद लें. बहरहाल, ऐसा पाया गया है कि ऐसे मौकों पर जो विद्यार्थी  व्यक्तिगत हठ छोड़कर मानसिक रूप से लचीला बने रहते हैं, उनके लिये परिवर्तन को एन्जॉय करना आसान  हो जाता है. अंत में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मशहूर साहित्यकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के इस कथन पर जरुर विचार करें और जिंदगी को समग्रता में जीने का भरपूर प्रयास करते रहें. शॉ कहते हैं, "बिना बदलाव के विकास संभव नहीं है. बदलाव लाने का मूल मंत्र यही  है कि सबसे पहले अपने विचारों को बदलें"
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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 02.02.2020 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, April 14, 2020

परीक्षा के दौर में स्ट्रेस को कैसे करें मैनेज?

                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...
स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं के मौसम में छात्र-छात्राओं के तनाव में थोड़ी वृद्धि बिलकुल स्वाभाविक है. यह असामान्य तब होता है जब विद्यार्थी तनावग्रस्त रहने लगे या तनाव उन्हें बराबर परेशान करता रहे और परिणामस्वरूप वे पढ़ाई-लिखाई में फोकस न कर सकें. देखा गया है कि कुछ विद्यार्थी ऐसे भी होते हैं जिनका तनाव बढ़ता जाता है, जैसे-जैसे परीक्षा की तिथि नजदीक आती है. तनावग्रस्त रहने के दुष्परिणाम बहुआयामी होते हैं. तो आइए तनाव को मैनेज करने के तरीकों पर थोड़ी चर्चा करते हैं.

परीक्षा के दौर में यह बेहतर होगा कि छात्र-छात्राएं सामान्य दिनचर्या का पालन  करने की कोशिश करें. इतने कम समय में इतना कुछ पढ़ना है, यह सब अब कैसे होगा जैसे नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें. अब तक जो नहीं पढ़ पाए हैं, उसकी चिंता छोड़कर जितना पढ़ना है और जिसे पढ़ना जरुरी जान पड़ता है, उन्हें चिन्हित कर बस पढ़ना शुरू कर दें. जो भी बात आपको परेशान कर रही है, उसे दोस्तों के बजाय अपने अभिभावक या शिक्षक को खुल कर बताएं और उनकी सलाह-सुझाव पर अमल करने की कोशिश करें.

आपके दोस्त-सहपाठी क्या कर रहें हैं, क्या–क्या पढ़ रहें हैं, ऐसा सोच–सोच कर न तो अपना दिमाग खराब करें और न ही अपना कीमती वक्त. फ़ोन करके यह सब जानने की कोशिश तो कतई न करें. उचित तो यह होगा कि इस दौरान अपने मोबाइल फ़ोन का उपयोग बहुत जरुरी हो तभी करें. मोबाइल या तो बंद रखें या साइलेंट मोड पर  कर लें. फेस बुक, व्हाट्सएप आदि से इस समय दूर रहना अच्छा. अभी तो बस खुद पर और परीक्षा की अपनी तैयारी पर ध्यान देना सबसे जरुरी है.

जब भी ज्यादा तनाव महसूस हो तो थोड़ा पानी पी लें. रोजाना बढ़िया से स्नान करें. पानी तनाव की तीव्रता को कम कर देगा. ऐसे भी आपका शरीर जितना हाइड्रेटेड रहेगा, आप उतना ही स्वस्थ रहेंगे. केला, दूध, लेमन टी, डार्क चाकलेट, ड्राई फ्रूट्स, वेजिटेबल सूप आदि  मानसिक तनाव को कम करने में अहम रोल अदा करते हैं. कुछ पल के लिए खुले में निकल आएं और स्वाद लेकर इनमें से किसी चीज का धीरे –घीरे सेवन करें, अच्छा फील करेंगे.

संगीत का साथ  न केवल हमारे व्यक्तित्व में निखार लाता है, बल्कि हमें शारीरिक और मानसिक रूप में स्वस्थ रखने में कारगर भूमिका अदा करता है. मानसिक तनाव से परेशान रहने वाले छात्र-छात्राओं के लिए तो संगीत बेहद प्रभावी औषधि का काम करता है. ज्ञानीजन कहते हैं कि जिनके जीवन में लय,ताल व सुर का बेहतर समन्वय होता है, वे सरलता से अपने कार्यों को संपन्न करने में ज्यादा सक्षम होते हैं. 

जानकार-समझदार लोग भी श्वास की महत्ता को बखूबी समझते हैं और मानसिक तनाव  को कम करने में इसकी प्रभावी भूमिका की तार्किक व्याख्या भी करते हैं. अतः सुबह  15-20 मिनट प्राणायाम और ध्यान करें. अगर समय कम हो तो मिनी मेडीटेशन यानी ध्यान की मुद्रा में 5 मिनट बैठ कर सिर्फ श्वास को आते-जाते देखना भी फायदेमंद होता है. एक बात और. खेलकूद  और  एक्सरसाइज  ऐसे तो सामान्य शारीरिक क्रियाएं हैं, लेकिन इनका असर बहुत व्यापक और सकारात्मक होता है. तनाव के क्षणों में कुछ मिनट का  हल्का व्यायाम तनाव को कम करने में प्रभावी भूमिका निभाता है. 

इस पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि हंसी सर्वोत्तम औषधि है. गांधीजी ने हंसी की अमूल्यता की प्रशंसा की है. विशषज्ञों का यह स्पष्ट मत है कि हंसी का समय तनावमुक्त होता है. पूर्व की अपनी उपलब्धियों एवं खुशनुमा क्षणों को याद कर हंस लिया करें. खाने के टेबल पर  परिवार के सदस्यों के साथ जोक्स आदि शेयर करने  से भी आप तनावमुक्त रह सकते हैं. समय मिले तो कुछ देर के लिए ही सही, कॉमेडी फिल्म या टीवी शो देख लें.

सच पूछिये तो नींद प्राणी मात्र की जिन्दगी में सुख का बेहतरीन समय होता है और तनाव मुक्ति  की अचूक दवा. रात में अच्छी नींद का पॉजिटिव असर दिनभर महसूस होता है. आप  दिन भर सक्रिय रहते हैं. अतः रात में जल्दी सोयें और सुबह जल्दी उठें. रात में 7-8 घंटा जरुर सोयें. सच तो यह है कि नींद हमारी जरुरत नहीं, आवश्यकता है. मौका मिले तो दोपहर में भी थोड़ी देर (घंटा भर) सो लें, आप तरोताजा महसूस करेंगे.
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                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 26.01.2020 अंक में प्रकाशित
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Tuesday, April 7, 2020

गलती स्वीकारना अच्छी बात

                                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस  कंसलटेंट ...
गलती करना या हो जाना असामान्य बात नहीं है. यह भी सामान्य बात है कि गलती करने पर माता-पिता, घर-बाहर के बड़े-बुजुर्ग, शिक्षक सहित कई लोग इस बाबत छात्र-छात्राओं को टोकते और रोकते हैं. उनका एक मात्र मकसद उन्हें सुधारने और सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करने का होता है. बहरहाल, कई विद्यार्थी अपनी गलती को देख नहीं पाते, किन्तु  दूसरों  की गलती उन्हें तुरत दिख जाती है. इतना ही नहीं, कई बार कुछ विद्यार्थी अपनी गलती को छुपाते हैं. किसी के बताने और गलती करते हुए पकड़े जाने के बाद भी बेवजह उसे सही ठहराने का प्रयास करते हैं या इसका दोष दूसरे पर डालने का पूरा प्रयास भी करते हैं. कुछ विद्यार्थी तो बारंबार  गलती करते हैं. और-तो-और ऐसे विद्यार्थियों को एक गलती को बार-बार दोहराने की आदत हो जाती है, बावजूद इसके कि उन्हें पिछली गलती के लिए टोका गया था या चेतावनी दी गई थी या दंडित भी किया गया था. ऐसे विद्यार्थियों को देर-सबेर बड़ी समस्या से जूझना पड़ता है. 

इसके विपरीत अच्छे विद्यार्थी "गलती की हो तो मानें भी" सिद्धांत पर चलते हैं. वे कभी भी न तो एरर ब्लाइंड होते हैं और न ही अहंकार से चालित. सतत सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाने वाले ऐसे विद्यार्थी गलती करने के मामले में  कंजूस भी होते हैं और सॉरी बोलने में फ्रंट रनर. मजे की बात है कि ये लोग अपनी हर गलती से कुछ-न-कुछ सीखते हैं  और अनुभव समृद्ध होते हैं. इससे उनमें सही-गलत की बेहतर समझ भी पैदा होती है. लेकिन  इस पूरी प्रक्रिया में सबसे अहम बात होती है उनका अपनी गलती को मन से स्वीकारना और भविष्य में उस गलती को न दोहराने का सकल्प लेना. आइए, गलती स्वीकारने और उससे सबक लेने के फायदे और गलती न स्वीकारने के नुकसान पर थोड़ा और गौर करते हैं.

दरअसल, अपनी गलती को स्वीकारने के एकाधिक फायदे हैं.  सभी विद्यार्थी जानते हैं कि गलती स्वीकारने से दिल हल्का हो जाता है. अगर दंड आदि के भागी बने तब भी उसे सामान्य रूप से झेलने की शक्ति आ जाती है. कोई असहजता या अपराध बोध नहीं रहता. आगे कदम बढ़ाना मुश्किल नहीं होता और भविष्य में उनके कामयाब होने के चांस बढ़ जाते हैं. एक और  अच्छी बात यह होती है कि झूठ बोलने और बहाने बनाने से भी बच जाते हैं. सोचनीय तथ्य है कि हम एक झूठ को छुपाने के लिए एक-के-बाद-एक कई झूठ बोलते हैं और खुद अपनी जिंदगी को सरलता से जटिलता की ओर ले जाते हैं और बाद में इसके दुष्परिणाम के भागी बनते हैं. हां, यहां इस बात को बिलकुल महत्व देने की जरुरत नहीं है कि गलती मानने से लोग क्या कहेंगे, कितना ताना मारेंगे आदि? उस समय केवल यह सोचना अच्छा होता है कि कैसे इस नकारात्मक स्थिति से निकल कर अध्ययन और सामान्य दिनचर्या के सकारात्मक माहौल को फिर से जीना शुरू करें. 

गलती स्वीकारना वाकई हिम्मत का काम है. इससे विद्यार्थी का आत्मविश्वास कम होने की बजाय बढ़ता है. वे आगे वही गलती शायद ही कभी दोहराते हैं. इतना ही नहीं, वे पिछली गलती के कारण का विश्लेषण भी करते हैं. इससे उन्हें सीख मिलती है और आगे की कार्य योजना को बेहतर बनाने का अवसर मिलता है. ज्ञानीजनों का स्पष्ट मत है कि  जो विद्यार्थी अपनी गलती को स्वीकार कर माफ़ी मांग लेता है और फिर उस गलती को सुधारने  में लग जाता है, उसका जीवन पहले से ज्यादा अच्छा बनने लगता है. इस मानसिकता को बनाए रखना अच्छे गुणों से लैस होते जाने की गारंटी देता है. किशोरावस्था में गांधी जी के जीवन में घटी एक घटना एक प्रेरक मिसाल है, जिसमें गलती करने और फिर उसे  अपने पिता जी को स्वयं बताने के साथ-साथ आगे गलती न करने के संकल्प का वर्णन है. अनेक अन्य महापुरुषों की आत्मकथा में ऐसे ही मिलते-जुलते प्रेरक प्रसंग मिलते हैं. चाणक्य सही कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी गलतियों के लिए स्वयं से लड़ता है, उसे कोई भी हरा नहीं सकता. 

एकाधिक शोध और सर्वेक्षण बताते हैं कि जो विद्यार्थी अपनी गलती को छुपाने या अस्वीकार  करने का प्रयास करते हैं, वे अंदर-ही-अंदर एक अनबुझ भय से ग्रसित हो जाते हैं. उनमें से कई तो अंदर-ही-अंदर घुटते रहते हैं, किसी से साफ़ तौर पर कह नहीं पाते और फिर पढ़ाई-लिखाई से उनका मन भटकता है. इस दौर में मन में कई तरह के नकारात्मक विचार आते हैं. इस सबका समेकित दुष्प्रभाव उनके स्वास्थ्य और परीक्षा फल पर पड़ता है. सार-संक्षेप यह कि जाने-अनजाने जब भी गलती हो, उसे तुरत स्वीकार करें, सॉरी बोलें और खुद में सुधार करते रहें.  
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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" के 19.01.2020 अंक में प्रकाशित
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Friday, April 3, 2020

नई राहें: बनना चाहते हैं टीम लीडर?

                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...
खेल का मैदान हो या ऑफिस या फैक्ट्री, हर व्यक्ति की स्वाभाविक चाहत होती है कि उसे टीम लीडर का पोजीशन मिले. मन में कितनी ही बातें और योजनाएं होती हैं. इस समय यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है, यहां ऐसा होता तो अच्छा होता, वहां यह चेंज किया जाता तो कितना बढ़िया होता, काश मैं उनकी जगह होता तो सब कुछ परफेक्ट होता इत्यादि.  जीवन में आगे बढ़ने की इच्छा रखनेवाले अधिकांश लोगों की मानसिकता कमोबेश ऐसी ही होती है. लेकिन क्या सिर्फ इच्छा रखने भर से जो चाहा वह मिल जाता है और अगर संयोगवश मिल भी जाता है तो क्या उस जिम्मेदारी को निभाना उतना ही आसान होता है? सच यह है कि अपवाद को छोड़ दें तो सिर्फ इच्छा करने से इच्छित मुकाम नहीं मिलता है. उसके लिए यथोचित प्रयास करते रहना पड़ता है. फिर वह  पोजीशन मिल जाने पर भी आगे उस जिम्मेदारी को बखूबी निभाने के लिए कई बातों को साधकर चलना पड़ता है. अगर टीम लीडर की बात करें तो अगर आपको वह पद मिल जाता है तो आगे किन-किन बातों में पारंगत होने और उसे अमल में लाने की जरुरत होगी, आइए जानने का प्रयास करते हैं.

अपने रोल को जानें : आप जहां भी काम कर रहे हैं, उसके विषय में अपटूडेट सब जानकारी आपके पास हो. मसलन, अगर आप मोबाइल कंपनी के सेल्स फील्ड में हैं तो अपनी कंपनी के सेल्स पालिसी से लेकर आपके वार्षिक, तिमाही, मासिक एवं साप्ताहिक सेल्स टारगेट से आप पूर्णतः अवगत हों. अपने टारगेट को नियत समय के भीतर पूरा ही नहीं, बल्कि उससे ज्यादा हासिल करने की आपकी कार्ययोजना और उसपर अमल करने का रोडमैप बिलकुल क्लियर हो. इसके प्रति सजग रहें कि आपसे आपके सीनियर्स और जूनियर्स की क्या-क्या अपेक्षाएं हैं. यह जानकार और मानकर काम करें कि प्लान करके चलने, डेलिगेट करने और सबसे काम लेने में दक्ष होने का आपके परफॉरमेंस से सीधा और गहरा रिश्ता होता है. 

अपने टीम के सदस्यों के बारे में जानें : आपकी टीम छोटी है या बड़ी, सब एक लोकेशन पर हैं या अलग-अलग लोकेशन पर, इसे ध्यान में रखकर काम करना लाजिमी है. जो भी स्थिति हो, आपको टीम के सारे मेंबर्स, छोटे-बड़े सब पोजीशन वाले, का नाम और काम मालूम हो तो बेहतर. टीम छोटी हो तो टीम के सभी सदस्यों की पूरी प्रोफाइल - फैमिली बैकग्राउंड से लेकर प्रोफेशनल, एजुकेशनल बैकग्राउंड तक, हो सके तो हॉबी आदि के विषय में भी जानकारी रखनी चाहिए. इससे उनके साथ प्रोफेशनल और इमोशनल रूप से जुड़े रहने के कॉमन पॉइंट्स मिल जाते हैं. इतना ही नहीं, टीम में कौन किस फील्ड में ज्यादा दक्ष है और कौन थोड़ा कम, कौन एक्स्ट्रा टाइम काम कर सकता है और कौन चाहकर भी कई जायज कारणों से  नहीं कर सकता है, इसकी जानकारी होने और जरुरत पड़ने पर इसका उपयोग करने से नियत समय से पहले लक्ष्य तक पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं होती है. अच्छे लीडर को अपने टीम मेंबर्स की खूबियों और कमियों दोनों की पूरी जानकारी  होती है और वह पूरी टीम को लक्ष्य के प्रति संकल्पित और समर्पित करने का हर संभव प्रयास करता रहता है जिससे कि नियत लक्ष्य को हासिल करना बहुत आसान हो और साथ में आनंददायक भी. 

अपने टीम द्वारा किए जाने वाले काम का नॉलेज जरुरी : टीम लीडर को अपने टीम द्वारा किए जानेवाले हर छोटे-बड़े काम की बुनियादी समझ तथा जानकारी होनी चाहिए. कहते हैं न कि नॉलेज इस पॉवर. इसके बहुत सारे फायदे हैं. किसी कार्य विशेष को करने में लगने वाले न्यूनतम और अधिकतम समय का पता होता है. इससे उस कार्य विशेष से जुड़े लक्ष्य को पूरा करने में कितना वक्त लगेगा, यह तय कर पाना आसान हो जाता है. इतना ही नहीं, किसी आकस्मिक घटना-दुर्घटना के वक्त कार्य बाधित नहीं होता और टीम बिना पैनिक के सामान्य रूप से कार्य संपादित कर पाती है. इससे लीडर का आत्मविश्वास ऊँचा होता है और उनके सहकर्मियों का उनके प्रति सम्मान भी. 

जब भी टीम को आगे का रास्ता दिखाने की बात हो तो सदा तत्पर रहें : जब भी कोई बड़ा और नया काम शुरू करना हो, उस समय टीम के सभी सदस्यों को मोटीवेट करने, उनके साथ मजबूती से खड़ा होने और उन्हें जरुरी मार्गदर्शन देना बेहतर होता है. इसका मतलब यह नहीं कि लीडर छोटी-छोटी बातों में हस्तक्षेप करे. इरादा सिर्फ टीम को सशक्त और आगे बढ़ने के लिए सब तरह से प्रेरित करना होता है. वह अपने सहकर्मी के अच्छे काम की प्रशंसा सार्वजानिक रूप से करता है और गलती करने पर उसकी अकेले में काउंसलिंग करता है.  वह लगातार मानवीय तरीके से सहकर्मियों को सुधारने की कोशिश करता रहता है. निरंतर सीखने और सीखाना सच्चे लीडर की खासियत होती है. आउट ऑफ़ बॉक्स थिंकिंग भी लीडर की बड़ी क्वालिटी मानी जाती है. 

कोई बड़ा या साहसिक काम हो तो खुद आगे आकर लीड करें: जब भी कोई ऐसा काम करना हो जिसे करना तो जरुरी हो, लेकिन उसमें अपेक्षाकृत जोखिम ज्यादा हो या उसे आगे बढ़कर करने में अतिरिक्त साहस की जरुरत हो तब लीडर को बेझिझक आगे आकर टीम को लीड करना चाहिए. ऐसा करने पर टीम के सदस्यों में पर्याप्त उर्जा और उत्साह का संचार होता है. पूरे टीम का मनोबल बढ़ता है. सेकंड लाइन लीडर्स को बहुत प्रेरणा मिलती है. दरअसल, टीम लीडर असफलता से नहीं डरता. वह तो बस हर काम को पूरी प्लानिंग के साथ निष्ठापूर्वक निष्पादित करने में विश्वास करता है. अच्छा लीडर बातों  का बादशाह नहीं, बल्कि कर्मठ कर्मयोगी होता है. वह जो कहता है, करता है. सोच-विचार-परामर्श कर निर्णय लेता है और उसपर कायम रहता है. वह मसला नहीं खड़ा करता, बल्कि छोटे-बड़े सभी मसले का हल निकालता है और सबके सामने मिसाल कायम करता है. जॉन क्विंसी एडम्स सही कहते हैं, "अगर आपके एक्शन दूसरों को ज्यादा सपने देखने, ज्यादा सीखने, ज्यादा काम करने और ज्यादा विकास करने को प्रेरित करते हैं तो आप सचमुच एक लीडर हैं." 
(hellomilansinha@gmail.com)

                 
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# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में प्रकाशित
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Wednesday, April 1, 2020

सप्तरंग-सेहत: आइए मजबूत करें शरीर का सुरक्षा कवच

                                                - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस  कंसलटेंट ... 
सम्प्रति पूरे विश्व में कोरोना वायरस के संक्रमण से उत्पन्न गंभीर  स्थिति स्वाभाविक रूप से  मीडिया में हेडलाइन बना हुआ है. इस सन्दर्भ में और देश-विदेश में अन्यथा भी वायरस या बैक्टीरिया से संक्रमित होकर बीमार पड़नेवाले लोगों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर इम्यून सिस्टम को दुरुस्त बनाए रखने पर सभी चिकित्सा तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञ एक मत हैं. ऐसे भी आंकड़े साफ़ तौर पर बताते हैं कि देश में सभी उम्र के लोग पहले की तुलना में अधिक संख्या में बीमार पड़ रहे हैं  और वह भी छोटे-छोटे अंतराल में. दुःख की बात है कि गैर-संक्रमित (नॉन कम्युनिकेबल) रोगों - ह्रदय रोग, कैंसर, डायबिटीज, लीवर तथा किडनी रोग के चपेट में आनेवालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और उनके इलाज का खर्च भी. यकीनन, व्यक्ति, समाज  और सरकार के सामने यह बहुत बड़ी चुनौती है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? मेरा स्पष्ट मत है कि इसका एक बड़ा कारण आम तौर पर लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होना है. अब सवाल है कि बिना लाखों-करोड़ों का अतिरिक्त खर्च किए क्या इसका समाधान पाया जा सकता है?  बिलकुल पाया जा सकता है और वह भी मोटिवेशन एवं अवेयरनेस के रास्ते. इससे हम आम लोगों को अनेक छोटे-बड़े रोगों से बचा सकते हैं और सरकार के मेडिकल खर्चे को नियंत्रण में रखने में मदद कर सकते हैं. आइए, पहले जानते हैं कि यह इम्यून सिस्टम आखिर किसे कहते हैं?

इम्यून सिस्टम हमारे शरीर के सेल्स (कोशिकाओं), टिश्यूज (ऊतकों) तथा ऑर्गनस (अंगों) का एक काम्प्लेक्स नेटवर्क है जो आपस में मिलकर कीटाणुओं और रोगाणुओं से हमारे शरीर की रक्षा करता है. इस सिस्टम के कारण हमारे शरीर को कीटाणुओं-रोगाणुओं की पहचान करने में मदद मिलती है और फिर अपने नेटवर्क के पार्टनर्स  के साथ मिलकर उन्हें नष्ट करना संभव होता है जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रह पाता है. रोचक बात है कि हमारा इम्यून सिस्टम अपने नेटवर्क के सारे हेल्दी सेल्स और टिश्यूज को पहचानता है और रोगाणुओं के बाहरी आक्रमण या संक्रमण के वक्त उन्हें प्रोटेक्ट भी करता है. दूसरे शब्दों में इम्यून सिस्टम का सीधा मतलब हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता से है, जो हमारे शरीर को ऐसा सुरक्षा कवच प्रदान करता है, जिससे शरीर जल्दी किसी साधारण बीमारी की चपेट में नहीं आता और अगर किसी रोग से कारण-अकारण ग्रसित भी हो जाते हैं तो उससे निजात पाने में भी शीघ्र सफल भी होते हैं. इसके विपरीत, यदि हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है तो हमारे रोग के संक्रमण की चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है. 

कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण हमें जल्दी थकान का अनुभव होता है, घबराहट और बेचैनी फील होता है, पेट खराब रहने, गाहे-बगाहे सर्दी-जुकाम से पीड़ित होने की शिकायत रहती है. सिस्टम लगातार कमजोर होने से वायरस और बैक्टीरिया जनित कई रोगों के अलावे भी हमारे  कई बड़े रोगों से ग्रसित होने की संभावना भी बढ़ जाती है.  

तो फिर इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग बनाए रखने के लिए क्या-क्या करना चाहिए? आइए, थोड़ा विस्तार से जानते हैं. हां, नीचे जो उपाय बताए जा रहे हैं अगर हम उसपर नियमित रूप से निष्ठापूर्वक अमल करें तो निश्चित ही ज्यादा लाभ के हकदार बनेंगे.

1. रोज दिन की अच्छी शुरुआत हो. कहते हैं कि आगाज अच्छा हो तो अंजाम भी अच्छा होता है. पॉजिटिव सोच के साथ दिन की शुरुआत करें. सुबह आंख खुलने के बाद बिछावन पर बैठे-बैठे ही प्रकाश और ऊर्जा के देवता सूर्य को नमन करें और यह फील करने की कोशिश करें कि आप अंदर से प्रकाशित और उर्जायुक्त हो रहे हैं. तत्पश्चात अपने माता-पिता-गुरु-इष्टदेव का स्मरण कर उन्हें नमन करें. आप अच्छा फील करेंगे और आपका शरीर तदनुसार रियेक्ट करेगा. 

2. आराम से बैठकर धीरे-धीरे आधा लीटर गुनगुना पानी पीएं. गुनगुने पानी में आधा नींबू का रस, एक चम्मच शहद और थोड़ा अदरक का रस डाल कर पीएं तो और ज्यादा लाभ मिलेगा. सुबह शरीर  को अच्छी तरह  हाइड्रेट करने से शरीर से विषैले और अवांछित चीजों को निकालने में मदद मिलती है और इससे इम्यून सिस्टम अच्छा बना रहता है. अपनी जरुरत के हिसाब से समय-समय पर दिनभर पानी का सेवन करें. जहां तक संभव हो ठंडा पानी या अन्य कृत्रिम पेय से बचें. 

3. सुबह उठने के बाद कोशिश करें कि आधे घंटे के अंदर आप शौच आदि से निवृत हो जाते हैं. जितना शीघ्र आपके अंदर से वेस्ट क्लियर होगा, आपके इम्यून सिस्टम के लिए उतना अच्छा है. 

4. अब तुलसी के चार-पांच पत्ते के साथ एक-दो दाना गोल मिर्च और लौंग को पान की तरह खूब चबा कर और आनंद लेकर खाएं. इसके बदले नीम या गिलोय के पत्ते या रस या बाजार में उपलब्ध वटी यानी टेबलेट का सेवन भी कर सकते हैं. आईडिया केवल यह है कि आपके इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाए रखने की मजबूत शुरुआत रोज सुबह-सुबह ही हो जाए.

5. योगाभ्यास, व्यायाम, वाकिंग आदि में से आप जो कर सकते हैं, अगला 20-30 मिनट उसे करने में लगाएं. निश्चित रूप से नियमित योगाभ्यास सबसे अच्छा विकल्प  है इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग बनाने और रखने में. तो योगाभ्यास में पहले आसन, फिर प्राणायाम और अंत में ध्यान यानी मेडीटेशन करें. आसन में सूर्य नमस्कार के पांच राउंड से शुरू कर सकते हैं या फिर पवनमुक्तासन श्रेणी के तीन-चार आसन - ताड़ासन, कटि-चक्रासन, भुजंगासन और शशांकासन  अपनी सुविधा और जरुरत के हिसाब से करें. इसे और आसान भाषा में समझाएं तो सिर से लेकर पांव की ऊँगलियों तक शरीर के हर जोड़ को आराम से चला लें. इससे आपका शरीर लचीला हो जाएगा. प्राणायाम यानी ब्रीदिंग एक्सरसाइज में कम-से-कम अनुलोम-विलोम, कपालभाती और भ्रामरी कर लें. इसके बाद  कम-से-कम पांच मिनट मेडीटेशन करें. योगाभ्यास से हमारे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है, रक्त प्रवाह में गुणात्मक सुधार होता है और शरीर के सारे सेल्स एक्टिव हो जाते हैं. नतीजतन इम्यून सिस्टम बहुत स्ट्रांग बनता है. तेज गति से टहलने और शरीर के सारे अंगों को सक्रिय करने के लिए किए जाने वाले आसान व्यायाम से भी अच्छा लाभ मिलता है.

6. दिनभर के हमारे खानपान का हमारे शरीर के रखरखाव में बहुत बड़ा योगदान है और नतीजतन हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाए रखने में भी. खानपान में स्वास्थ्य को ध्यान में रखना बहुत अनिवार्य है, स्वाद भी अच्छा हो तो उत्तम. अपने खानपान में शरीर की मूलभूत आवश्यकताओं -प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, फैट, मिनरल्स और विटामिन की अपेक्षित मात्रा मिल जाए, इसके प्रति सचेत रहें. जब भी खाना खाएं, केवल खाने पर फोकस करें और आराम से खूब चबाकर तथा स्वाद लेकर खाएं. आपका खानपान जितना संतुलित होगा उतना लाभ मिलेगा. अपने खानपान में अन्न, मौसमी सब्जी एवं फल के अलावे नियमित रूप से नींबू,  अदरक, लहसुन, प्याज,  आंवला, लौंग, इलाइची, दालचीनी, गोलमिर्च, हल्दी, जीरा, सौंफ, अजवाइन, मूली, खीरा, गाजर, टमाटर, हरी पत्तेदार सब्जियां, पपीता, केला, नारियल, ड्राई फ्रूट्स आदि को शामिल करें. हां, इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाए रखने में विटामिन -सी की अहम भूमिका मानी गई है. अतः नींबू, आवंला, संतरा, मौसंबी, आम, अंगूर जैसे फल अच्छा लाभ देते हैं. एक बात और. सुबह उठने के दो घंटे के अंदर नाश्ता जरुर कर लें.

7. रोगाणुओं के आक्रमण या उनके संक्रमण से बचाव के लिए  शरीर की अंदरुनी सफाई जितना जरुरी है उतना ही बाहरी और आसपास की सफाई. रोज स्नान करें और साफ़-सुथरे कपड़े पहनें. घर की सफाई का विशेष ध्यान रखें. बाहर से घर आने पर पहले जूते-चप्पल निकाल कर बाहर रखें और फिर हाथ-पांव-चेहरा बढ़िया से धोएं. इससे इम्यून सिस्टम हेल्दी रखना आसान होगा.

8. इम्यून सिस्टम पर हंसी का बहुत सकारात्मक असर होता है.  इससे शरीर में रक्त संचार में सुधार के साथ-साथ ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ती है. ऐसे भी हंसी को बेस्ट मेडिसिन के रूप में डॉक्टर-वैज्ञानिक सबने स्वीकार किया है. 

9. रात में 7-8 घंटे की अच्छी नींद का बहुत ही अच्छा असर दिनभर के क्रियाकलाप पर दिखाई पड़ता है. नींद के दौरान हमारे शरीर को रिलैक्स करने और अंदरूनी रिपेयरिंग का मौका मिलता है. यही कारण है कि अच्छी नींद से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. 

अंत में उन बातों का जिक्र करना जरुरी है जिसके कारण हमारा इम्यून सिस्टम कजोर होता है. संक्षेप में कहें तो धुम्रपान, मद्दपान, गांजा-भांग-खैनी-गुटका तथा कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन, जंक फ़ूड, फ्रोजेन, पैकेज्ड तथा प्रीजर्वड फ़ूड का नियमित सेवन, अस्वच्छ या गन्दा रहन-सहन,  नकारात्मक सोच और अनावश्यक स्ट्रेस आदि बड़े कारण हैं. अनियमित खानपान एवं रूटीन भी इसमें अपनी भूमिका निभाता है.
 (hellomilansinha@gmail.com)

       
                और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं 

# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में 1 अप्रैल, 2020 को प्रकाशित
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