Saturday, June 7, 2014

आज की कविता : सीने में जलती आग

                              - मिलन सिन्हा 
हर मौसम में 
देखता हूँ उन्हें 
मौसम बारिश का हो 
या चुनाव का 
रेल पटरियों से सटे 
उनके टाट -फूस के 
घर भी हैं सटे -सटे 
चुनाव से पूर्व उन्हें 
एक सपना दिखाई देता है 
बारिश से पहले 
अपने एक पक्के घर का 
लेकिन  चुनाव के बाद 
बारिश शुरू होते ही 
एक दुःस्वप्न दिखाई देता है उन्हें 
बारिश के पानी टपकने का
अपने - अपने घर के ढहने का 
आंगन में ठेहुना भर पानी जमने का 
जमा किये हुए सूखे लकड़ियों का 
आग में तब्दील न होने का 
फिर भी, 
एक आग तब भी देखी है 
उन सबके सीने में जलते हुए 
यह आग  भविष्य को जलाकर 
राख करनेवाली नहीं है 
बल्कि, हर विपरीत मौसम में भी 
आपसी संबंधों को गर्माहट देनेवाली, 
जीवन को  संघर्षरत  रखनेवाली है। 

          और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

# प्रवक्ता . कॉम पर प्रकाशित, दिनांक :04.06.2014

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