Tuesday, June 24, 2014

राजनीति: 'पहले शौचालय' पर अमल की जरुरत

                                                                                 - मिलन सिन्हा 
Displaying 11263596-0.jpg आपको याद होगा, पिछले वर्ष नयी दिल्ली में बीजेपी द्वारा आयोजित युवाओं की एक सभा में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री व देश के वर्त्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  ने कहा था, 'मेरी छवि हिन्दुत्ववाले नेता की  है, लेकिन मैं आपको अपने सच्चे विचार बताऊँ, 'पहले शौचालय फिर देवालय'। इस पर बहुत गर्मागर्म चर्चा हुई।  उससे पूर्व तत्कालीन  केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश  ने भी कहा था कि भारतवर्ष के लिए शौचालय  ज्यादा महत्वपूर्ण है। 

बहरहाल, विचारों व चिंताओं से आगे जाकर इससे जुड़ी जमीनी हकीकत की थोड़ी पड़ताल करें तो साफ़ हो जाता है कि स्थिति बेहद गंभीर है जिसका  बहुआयामी नकारात्मक असर हमारे स्वास्थ्य व सोच पर हो रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के कटरा सआदतगंज गांव में घटी बलात्कार व हत्या की जघन्य घटना के कई कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण घटना की शिकार दोनों नाबालिग लड़कियों का रात को शौच के लिए घर से बाहर जाना बताया जाता है, कारण उनके घर में कोई शौचालय नहीं था। इसे विडंबना ही कहेंगे  कि प्रत्येक राजनीतिक दल नारी सशक्तिकरण की  बात तो जोर -शोर से करते हैं, लेकिन नारी के स्वास्थ्य, सुरक्षा -संरक्षा, मर्यादा व अस्मिता से गहरे ताल्लुक रखनेवाले कार्यों  (शौचालय, स्वच्छता आदि ) को जमीन पर उतारने में गंभीर नहीं रहते । 

 'यूनिसेफ' एवं 'डब्लू एच ओ' के एक संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक पूरे विश्व में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या 110 करोड़ है जिसमें  से अधिकतर भारतवर्ष  के हैं, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, इथोपिया और नाइजीरिया का नम्बर इसके बाद आता है।' दरअसल, देश में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या करीब 60 करोड़ है यानी  देश की करीब आधी आबादी । 2011 के जनगणना के अनुसार पूरे देश में 53 % घरों में शौचालय नहीं है जब कि ग्रामीण इलाके में स्थिति और खराब है- वहाँ यह 69.3 % है। 

दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 1999 -2000 में पूरे तामजाम तामझाम व प्रचार-प्रसार के साथ शुरू किये गए राष्ट्रीय कार्यक्रम, 'निर्मल भारत अभियान' के तहत यह लक्ष्य रक्खा गया था कि गांव के लोगों को जागरूक व प्रेरित करके बड़े पैमाने पर शौचालयों का निर्माण किया जाएगा जिससे खुले में शौच के चलन को ख़त्म किया जा सके और लोग एक स्वच्छ परिवेश में जी सकें।  लेकिन 15  वर्षों के बाद भी उक्त कार्यक्रम की समीक्षा में यह तथ्य उभर कर आता है कि आज भी भारत को खुले में शौच करने वालों की राजधानी कहा जाता है। ज्यादा दुःख की बात तो यह है कि इस आलोच्य अवधि में देश के कुल दो लाख चालीस हजार ग्राम पंचायतों में से मात्र 28 हजार ग्राम पंचायतों को 'निर्मल भारत अभियान' के अन्तर्गत 'निर्मल ग्राम' का दर्जा मिल पाया। बावजूद इस शर्मनाक हालत के, 'यूनिसेफ' एवं 'डब्लू एच ओ' के नए संयुक्त रिपोर्ट ने बताया है कि भारत में इस दिशा में प्रगति की रफ़्तार उत्साहवर्धक नहीं रही है जब कि बांग्लादेश, वियतनाम और पेरू जैसे छोटे देशों ने अपनी जनता को शौचालय उपलब्ध  करवाने एवं खुले में शौच के चलन को कम करने में शानदार सफलता पाई है 

11 जून , 2014 को यूनिसेफ एवं बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा 'सेनिटेशन एंड हाइजीन एडवोकेसी एंड कम्युनिकेशन स्ट्रेटेजी' विषय पर  पटना में आयोजित  सेमिनार में बिहार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री महाचंद्र प्रसाद सिंह ने  मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेते हुए कहा कि वर्ष 2020 तक खुले में शौच से मुक्त होगा बिहार। उक्त सेमिनार में चर्चा के दौरान यह तथ्य सामने आया कि राज्य की महज 18 % आबादी ही शौच के लिए शौचालय का प्रयोग करती है ।  यह स्थिति तब है जब सरकार कहती है कि  निर्मल भारत अभियान के अन्तर्गत पिछले 10 सालों में राज्य के कुल 179 लाख  घरों में से 47.5 लाख घरों में शौचालय बनाया जा चुका है। 

                      और भी बातें करेंगे, चलते-चलते । असीम शुभकामनाएं

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